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बिजनौर

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बिजनौर उप्र। पर्वतराज हिमालय की तलहटी में दक्षिण भाग पर वनसंपदा और इतिहास से समृद्घशाली बिजनौर जनपद अपने भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण प्राचीन काल से ही एक विशेष पहचान रखता है। इसकी उत्तरी सीमा से, हिमालय की तराई शुरू होती है, तो गंगा मैया इसका पश्चिमी सीमांकन करती है। बिजनौर के उत्तर पूर्व में गढ़वाल और कुमाऊं की पर्वत श्रृंखलाएं इसका सौंदर्य बढ़ाती हैं, तो इसकी पश्चिमी एवं दक्षिण सीमा पर गंगा के उस पार है, विश्व प्रसिद्ध तीर्थ हरिद्वार। कुल 4338 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले बिजनौर जनपद की आबादी इस समय करीब 30 लाख है। बिजनौर अनेक विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है। इसने देश को नाम दिया है, अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभायें दी हैं। यहां की धरती उर्वरक ही उर्वरक है। बिजनौर का उत्तरी, उत्तर पूर्वी और उत्तर पश्चिमी भाग महाभारत काल तक सघन वनों से आच्छादित था। इस वन प्रांत में, अनेक ज्ञात और अज्ञात ऋषि-मुनियों के निवास एवं आश्रम हुआ करते थे। सघन वन और गंगा तट होने के कारण, यहां ऋषि-मुनियों ने घोर तप किये, इसीलिए बिजनौर की धरती देवभूमि और तपोभूमि भी कहलाती है। सघन वन तो यहां

चाहरबैत

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                                                                      अमर उजाला 23 अगस्त 16

bijnor

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Ashok Friend Requests Me बिजनौर (उत्‍तर प्रदेश) अनेक विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी ......... बिजनौर अनेक विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है। इसने देश को नाम दिया है, अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभायें दी हैं। यहां की धरती उर्वरक है। बिजनौर का उत्तरी, उत्तर पूर्वी और उत्तर पश्चिमी भाग महाभारत काल तक सघन वनों से आच्छादित था। इस वन प्रांत में, अनेक ज्ञात और अज्ञात ऋषि-मुनियों के निवास एवं आश्रम हुआ करते थे। सघन वन और गंगा तट होने के कारण, यहां ऋषि-मुनियों ने घोर तप किये, इसीलिए बिजनौर की धरती देवभूमि और तपोभूमि भी कहलाती है। सघन वन तो यहां तीन दशक पूर्व तक देखने को मिले हैं। लेकिन वन माफियाओं से यह देवभूमि-तपोभूमि भी नहीं बच सकी है। प्रारंभ में इस जनपद का नाम वेन नगर था। राजा वेन के नाम पर इसका नाम वेन नगर पड़ा। बोलचाल की भाषा में आते गए परिवर्तन के कारण कुछ काल के बाद यह नाम विजनगर हुआ, और अब बिजनौर है। वेन नगर के साक्ष्य आज भी बिजनौर से दो किलोमीटर दूर, दक्षिण-पश्चिम में खेतों में और खंडहरों के रूप में मिलते हैं। तत

बात बिजनौर की पत्रकारिता की

तीस मई हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जिले के पत्रकारों ने जुल्म सहे , पर नहीं टेके घुटने बिजनौर जनपद के पत्रकारों का भी बहुत बलिदानी इतिहास रहा है।इन्हें जेल में बंद किया गया हो या गोलीमारी गई हो किंतु जुल्म के आगे इन्होंने घुटने नहीं टेके।सच्चाई के रास्ते से मुंह नहीं मोड़ा। अपनी कलम की ताकत से समझौता नही किया। आजादी की लड़ाई में जनपद के समाचार पत्र मदीना का क्रांतिकारी इतिहास रहा है। मौलवी मजीद हसन ने 1912 में मदीना त्रिदिवसीय की स्थापना की। स्थापना के बाद से ही यह अंग्रेजों की आंख का कांटा बना। मदीना का प्रत्येक संपादक जेल गया। मदीना प्रबधन संपादक के जेल रहने के दौरान उनका पूरा वेतन तो देता ही था, इस दौरान संपादक के परिवार का पूरा खर्च उठाता था। साप्ताहिक रहे चिंगारी में सीएमओ के खिलाफ समाचार छापने पर संपादक मुनीश्वरानंद त्यागी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा चला। सुप्रीम कोर्ट की बैंच के माफी मांगने का सुझाव देने पर भी त्यागी जी ने माफी नही मांगी और एक साल की जेल काटना मंजूर किया। पर्सनाल्टी अंग्रेजी साप्ताहिक के संपादक स्वामी सच्चिदानंद को समाज विरोध तत्वों के विरूद्घ लि

बिजनौर के प्रथम मुस्लिम स्वतंत्राता सेनानी इरफान अलवी

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बिजनौर के प्रथम मुस्लिम स्वतंत्राता सेनानी इरफान अलवी  मलिक इरफान अलवी के स्वतंत्राता संग्राम में कूदने की कहानी भी काफी विचित्र है। क्योंकि वह तो अपनी शिक्षा पूर्ण करते ही अंग्रेज़ सरकार द्वारा जयपुर में तहसीलदार मनोनीत कर दिये गए थे। स्वतंत्रता संघर्ष में सम्मिलित होने की गाथा से पूर्व उनका पारिवारिक परिद्वश्य समझना होगा। सर सैय्यद खॉं 1857 के प्रथम स्वतंत्राता संग्राम के समय बिजनौर में मुंसिफ थे ।लेकिन उनकी अंग्रेज़ दोस्ती के कारण बिजनौर ज़िले के अधिकतर मुसलमान उनको पसन्द नहीं करते थे। उस  समय ज़िला बिजनौर में नवाब महमूद खां का डंका बज रहा था । वेअंग्रेज़ों के शब्द में 'बाग़ी और यथार्थ में देश प्रेमी थे।  1857 मेंअंग्रेज कलेक्टर ने   नवाब महमूद को जिले की सतता सौँप ही। इसके बाद उस सयम बिजनौर में तैनात  सदर अमीन सर सैय्यद अपनी जान बचा कर चान्दपुर पहुंचे। चान्दपुर के रईस सैय्यद सादिक़ अली के घर पनाह ली । स्थानीय दबाव और स्वतंत्रता प्रेमियों के घेराव करने पर सादिक़ अली ने उनको 'बकैना गांव पहुंचा दिया। उस समय बकैना गांव  चान्दपुर के दूसरे ज़मीनदार मौलवी कलीमुल्लाह अलवी

नगीना की एक एतिहासिक धरोहर

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दैनिक जनवाणी में छपा एक समाचार

बिजनौर के जेम्स मोरीस कोल‌व‌िन

बिजनौर के जेम्स मोरीस कोल‌व‌िन प्रथम वर्ड वार में शानदार सेना नेतृत्व और ए‌‌तिहासिक साहस का परिचय देने के लिए ‌ब्रिट‌िश सेना के सर्वोच्च पदक विक्टोरिया क्रास से नवाजा गया। इनके बारे में विकपिडिया में दिया ब्योरा यहां दिया जा रहा है। विकिपीडिया का लिंक भी हम दें रहे हैं। https://en.wikipedia.org/wiki/James_Morris_Colquhoun_Colvin ....................................................................... विकिपीडिया से आभार सहित James Morris Colquhoun Colvin From Wikipedia, the free encyclopedia This article needs additional citations for verification. Please help improve this article by adding citations to reliable sources. Unsourced material may be challenged and removed. (February 2013) James Morris Colquhoun Colvin VCJamesMorrisColquhounColvin.jpg Born 26 August 1870 Bijnor, United Provinces, India Died 7 December 1945 Stanway, Essex Allegiance United Kingdom Service/branch British Army Rank Colonel Unit Royal Engineers Battles/wars Chitral Expedition