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अपना टू सीटर प्लेन था ताजपुर स्टेट का

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बिजनौर जनपद के लोकतंत्र रक्षकों की सूची

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आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर आज 25 जून 2025 के हिंदुस्तान हिंदी में स्टोरी ( नंबर आठ प्रवीण सिंह/ प्रवीण शास्त्री पुत्र राम लाल सिंह  वजीरपुर भगवान  धामपुर  हाल निवास खत्रियान बिजनौर नंबर 25 ब्र्रज नंदन पुत्र मथुरा प्रसाद  हरेवली नांगल नंबर 27 असगर पुत्र मोहम्मद सद्दीक ग्राम बुडगरा किरतपुर नंबर 32 छत्रसाल पिता राम चरन सिंह किरतपुर चांदपुर  

मशहूर क़व्वाल शेवन बिजनौरी

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 बिजनौर का वो फनकार,जिसकी बसों में बिकी किताबें शेर बने  सुपरहिट गाने और क़व्वाली। घूँघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है। हिंदी फिल्म हम हैं राही प्यार के,का यह हिट गीत बिजनौर के बाकमाल शायर और मशहूर क़व्वाल शेवन बिजनौरी का लिखा हुआ है। शेवन साहब बिजनौर के शायद ऐसे पहले शायर हैं,जिनकी ग़ज़लों-नज़्मों के किताबचे ट्रेनों और रोडवेज़ बसों में खूब बिका करते थे।बचपन में ऐसे ही एक किताबचे में मैने शेवन साहब की यह ग़ज़ल घूंघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है, पढ़ी थी। बरसों बाद शेवन साहब की इसी ग़ज़ल को फिल्मी गीतकार समीर के गीत के रुप में सुन कर मुझे हैरत हुई।शेवन साहब शायर और क़व्वाल के रुप में बहुत ज़्यादा मक़बूल थे।उनके कलाम को बड़े बड़े क़व्वालो,ग़ज़ल गायकों और फिल्मी सिंगरो ने अपनी आवाज़ दी है।इनमें यूसूफ आज़ाद क़व्वाल,जानी बाबू क़व्वाल, अज़ीज़ नाज़ा,अनुराधा पौड़वाल,अनुप जलौटा, सोनू निगम, कुमार सानू,अल्ताफ राजा,राम शंकर,अलका याज्ञनिक,अनवर,मोहम्मद अज़ीज़,अनीस साबरी,राहत अली खा,कविता कृष्णमूर्ती,नुसरत फतह अली खा,मेंहदी हसन,अताउल्ला,शकीला बानो और पंकज उधास आदि शामिल हैं। बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान म...

मुज़तर जमाली झालवी

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 ऐसे बेशुमार अच्छे शायर है,जिनकी शायरी अवाम तक नहीं पहुंची।इन्हीं शायरों में मुज़तर जमाली झालवी भी शामिल हैँ। बिजनौर ज़िले के क़स्बा झालू के अदबी घराने में पैदा हुए सैयद मज़ाहिर हुसैन को शायरी विरासत में मिली।उनके ताये अब्बा ज़फर हुसैन हुनर जमाली का शुमार अच्छे शायरों में था।ताये की देखा देखी सैयद मज़ाहिर हुसैन भी बचपन से ही शेर कहने लगे। उन्होंने अपना तखल्लुस मुज़तर जमाली झालवी मुन्तखिब किया।महकमा-ए- चकबंदी में नौकरी मिलने के बाद शायरी से उनका ध्यान हटा तो ज़रूर लेकिन उन्होंने शेर कहने नहीं छोड़े। जब भी मौक़ा मिला,उन्होंने शायरी की। 1982 में बिजनौर के मोहल्ला क़ाज़ीपाड़ा में शिफ्ट हुए मुज़तर जमाली साहब को शायरी का भरपूर माहौल मिला।उनके ताये  अब्बा हुनर जमाली पहले ही बिजनौर शिफ्ट हो चुके थे।इस बीच उनके तयेरे ज़ाद भाई सैयद अहमद असर और सबा जमाली भी शायरी के मैदान में झंडे गाड़ने लगे थे।भाइयों व दीगर शायरो की सोहबत मिली तो मुज़तर जमाली की शायरी में भी निखार आने लगा।  नौकरी के सिलसिले में कभी यहां तो कभी वहां तबादला होता रहा,जिससे वे शायरी को बाक़ायदा टाइम नहीं दे सके। सीओ चकबंदी के औहदे से ...

फ़िक्र बिजनौरी

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 क़ाज़ी रियासत हुसैन ( फ़िक्र बिजनौरी ) उर्दू के मुंफरिद शायर थे।उनकी अपनी अलग पहचान थी। वे शायद पहले ऐसे शायर हैँ,जिन्होंने शेर तो सैकड़ों कहे लेकिन कभो कोई मुकम्मल ग़ज़ल या नज़्म वगैरा नहीं कही। फ़िक्र साहब मुताफर्रिक शेर कहते थे। वे निहायत शरीफ,खामशी पसंद,नेक दिल और मिलनसार इंसान थे। उनका आबाई गांव हताई शेख था।वे जून 1954 को बिजनौर के मोहल्ला क़ाज़ीपाड़ा में आकर बस गये थे। फ़िक्र साहब दीनदार थे।मुआशरे की इस्लाह उनकी फ़िक्र पर हावी थी। यही वजह रही कि उनके ज़्यादातर शेर इस्लाही है। फ़िक्र साहब शायरी को हद से ज़्यादा ज़िम्मेदारी का काम समझते थे। वे रदीफ़ क़ाफिये की बंदिश से आज़ाद थे। उन्होंने कभी ग़ज़ल तो क्या दो शेर भी नहीं कहे। वे सिर्फ एक शेर कहते थे।उसे भी बहुत सोच समझ कर और मशवरा करके फाइनल करते थे।फ़िक्र साहब का एक ही शेर मुकम्मल ग़ज़लों और नज़्मों पर भारी होता था। उनके बहुत सारे शेर बहुत मशहूर हुए। फ़िक्र साहब के इस शेर - टेलीवीज़न की बदौलत फ़स्ल जल्दी पक गई/बच्चा-बच्चा शहर का बालिग़ नज़र आने लगा-- ने तो गैर मुल्कों तक के शायरों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। उनके कई और शेर भी  बहुत मक़बूल हुए। रियासत ह...

डॉ आत्माराम

 *डा.आत्माराम जी का व्यक्तित्व तथा भारत में विज्ञान और तकनीक की प्रथम संस्था "Council of Scientifi* c and *Industrial Research" (C.S.I.R)के गठन में उनका  योगदान* -* -- मुझे दिनांक 06.12.2024 को डिपार्मेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, मिनिस्ट्री ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, भारत सरकार के तत्वाधान में आयोजित एक वैज्ञानिकों तथा  उद्यमियों की संगोष्ठी में वक्तव्य देने का अवसर मिला! गोष्ठी का विषय था " *भारत में साइंस तथा टेक्नोलॉजी  की CSIR के रूप में विधिवत  स्थापना तथा उसमें डा. आत्माराम जी का योगदान" सौभाग्य से आत्माराम जी मेरे पूज्य ताऊजी थे इसलिए यह विषय मेरे हृदय के बहुत निकट था! यह सत्र बहुत ही अद्भुत था, क्योंकि पूरा सत्र प्रश्नों, उत्सुकता तथा जिज्ञासाओं से परिपूर्ण था कि किस प्रकार एक गरीब परिवार में  जन्मे सुदूर गांव (ग्राम पिलाना, तहसील चांदपुर, जिला बिजनौर)  जिसके पास फीस के भी पैसे नहीं थे, उस समय के विख्यात  इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी, एमएससी (रसायन शास्त्र) में यूनिवर्सिटी टॉप किया और वहीं से 1936 में डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि , उससमय के...