स्वतंत्रा आंदोलन में नगीना के सपूत को लगी थी फांसी
डा० शेख़ नगीनवी भारत की आज़ादी की लड़ाई में हर वर्ग के लोग शामिल थे। ब्रिटिश विभाजनकारी नीति के बावजूद समाज के सभी वर्गों के लोगों ने इसमें योगदान दिया। केवल अपनाए गए साधनों में अंतर हो सकता है। धर्म, जाति, पंथ, रंग की बाधाएं स्वतंत्रता के आंदोलन में लोगों की भागीदारी में बाधा नहीं बनीं।बड़ी संख्या में मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपना खून दिया। यहां तक के विद्वानों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उनमें से एक प्रमुख नाम जिला बिजनौर के क़स्बा नगीना के सपूत मौलाना सैयद किफायतुल्लाह “काफ़ी” शहीद का है। “काफ़ी” का जन्म नगीना (यूपी) क़स्बा के सादात घराने में हुआ था और वह विद्वान , चिकित्सक ,सूफी और एक महान कवि थे। लेकिन उन्होंने सुख-सुविधाएं त्याग दीं और जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए निकल पड़े। ऐसा प्रतीत होता है कि “काफ़ी” की बहादुरी ने इक़बाल को इस हद तक प्रभावित किया कि उन्होंने उनके विचारों को बढ़ावा देने का प्रयास किया और कहा: निकल कर खानकाहों से अदा कर रस्म-ए-शब्बीरी, के फकर-ए-खानकाही है फकत अंदोह-ओ-दिलगीरी ('मठ से