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Showing posts from 2015

प्रदर्शनी में एक साल आए थे हवाई जहाज

यादें प्रदर्शनी प्रदर्शनी में एक साल   आए थे हवाई जहाज अशोक मधुप जिला कृषि और औद्योगिक प्रदर्शनी आज भले ही ज्यादा भीड   न जुटा पा रही हो। एक जमाना था कि पूरे   जनपद से दर्शक इसे देखने के लिए आते थे। बिजनौर के आसपास के दर्शक   बैलगाड़ी   आदि से प्रदर्शनी में   आते थे। ये प्राय : पूरी रात रूकते और सवेरे   वापस लौटते। नजीबाबाद और चांदपुर   साइड से शाम को ट्रेन आती थीं। नजीबाबाद और चांदपुर साइड के यात्री इन्हीं ट्रेन से आते। हालत यह होती थी कि प्रदर्शनी के दौरान इस ट्रेन में जगह नहीं मिलती थी। यात्री छतों और डिब्बों के जोड़ तक पर बैठकर आते थे।   कई    बार तो ट्रेन के इंजिन के आगे भी यात्री बैठे और खड़े होते थे। पहले प्रदर्शनी मई - जून में लगती थी। प्राय : मई में परीक्षा होने के बाद छात्र खाली हो जाते थे। उनका काम   खेलना कूदना और नाना - नानी के घर जाकर उछलकूद करना होता था।   ये समय मनोरंजन के लिए बहुत ही उपयुक्त होता। प्रदर्शनी में खूब

हरिपाल त्यागी;कला की नशीली महक

हरिपाल त्यागी;कला की नशीली महक हरिपाल त्यागी जी का जन्म, 20 अप्रैल सन् 1934 ई0 को जनपद बिजनौर के ग्राम महुवा में हुआ।आपके पिता का नाम श्री शेर सिंह त्यागी तथा माता का नाम श्रीमती दयावती देवी था। महुवा गाँव के नाम में एक नशीली महक है।ऐसी ही महक गाँव के लोगों की जिन्दगी में भी है। छोटा किसान परिवार, घर में गरीबी तो थी ही उससे भी कहीं ज्यादा कंजूसी थी। इस तरसाव ने हरिपाल के मन में चीजों के प्रति,  गहरी ललक पैदा कर दी। उन्हें सहज ढंग से पाने में जो रस है, उससे कहीं ज्यादा रस घोल दिया। हरिपाल जी के ,ताऊ जी के बेटे रविंद्रनाथ त्यागी पढ़ाई में कुछ साल आगे थे ,कमरे में तीन तस्वीरें-स्वामी दयानन्द, गा्रमोफोन और ताला। उन्हें देख, हरिपाल त्यागी जी को ललक उठी, कहीं से रंग मिल जाये तो वह भी अपनी तस्वीरोें में रंग भर सके। हरिपाल, परिवार में इकलौता बेटा। पिता की उससे बेहद प्यार। लेकिन प्यार प्रकट करने का अपना अंदाज। पढ़ाई में हरिपाल की बहुत कम दिलचस्पी थी। समय मिलतेे ही तस्वीरें और माटी की मूंरतें बनाते । बचपन में मुशीराम की नौटंकी पार्टी गाँव में आयी। नौटंकी की कमलाबाई ने हरिपाल के बालमन को आन्दोल

श्रावण मास में बिजनौर नहीं रंगता भगवा रंग में

श्रावण मास की कांवड़  यात्रा के दौरान  हरिद्वार में हर की पौड़ी  से लेकर दिल्ली तक पूरा हाइवे भगवा रंग  में ढका रहता हैं। चौतरफा हर -हर महादेव के जयघोष की गूंज सुनाई देती है। बिजनौर को छोड़ वेस्ट यूपी के अध‌िकांश   जिलों में शिव भक्तों में कांवड़  लाने का जुनून दिखाई देता है।   लाखों श्रद्घालु कांवड लाते हैं।कावंड यात्रा के कारण मुजफफ्नगर मेरठ दिल्ली हाई वे बंद रहता है, तो कई मार्ग पर यातायात परिवर्तित करना पड़ता है। कावंड मार्ग पर जगह -जगह कावंड सेवा श‌िवि‌र लगतें हैं।श‌िवरा‌‌त्र‌ि  पर शिवालयों पर भारी भीड़ रहती है। बागपत के  पुरा महादेव मंदिर पर तो  पांच से दस लाख तक श्रद्घालु कांवड  चढ़ाते हैं। वहीं बिजनौर में ऐसा कुछ नहीं होता। ना कोई  कांवड आती है, नही शिवालयों पर भीड़ होता है।समाचार पत्रों की मांग होती है कि शिवालयों की भीड़ के फोटों हों, सो फोटोग्राफर को इसके लिए जुगाड़ करना पडता है।फर्जी  फोटो बनाने होतें हैं।  मैं बिजनौर का रहने वाला हूं। वही रहकर पला-बढ़ा। किंतु आज तक भी इसका राज नहीं जान सका। बहुतों से सवाल किया। पर कोई उत्तर नहीं मिला। सिर्फ  बिजनौर के वरिष्ठ आर्यसमाजी जयनारा

फ‌‌िक्र ब‌िजनौरी

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पब्ल‌‌िक इमोशन में 26 जुलाई के अंक में   फ‌‌िक्र ब‌िजनौरी पर एक लेख प्रका‌श‌ित हुआ।लेख उपयोगी है  और नीचे द‌िया  जा रहा है।

पारसनाथ का किला

निम्न लेख मेने अमर उजाला   के लिए १९८५ के  आसपास लिखा था । लेख के प्रकाशन के बाद जैन समाज सक्रिय हुआ । आज यहाँ भव्य मंदिर है   बिजनौर जनपद के बढ़ापुर क्षेत्र में स्थित पारसनाथ के नाम से विख्यात किले के अवशेष लंबे समय पुरात्ववेत्ताओं को लंबे समय से खोज के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। किंतु सदियों पुराने इस किले की प्राचीनता का पता लगाने में एवं किले तथा आसपास के क्षेत्रों में बिखरी पड़ी पुरात्व के महत्व को वस्तुओं को संजोकर रखने में किसी ने रूचि नहीं दिखाई है। बढ़ापुर से लगभग चार किलोमीटर पूर्व में ग्राम कांसीवाली में पारसनाथ के किले के नाम से विख्यात स्थान है। २०-२५ एकड़ में बने इस किले के अब तो खंडहर ही रह गए हैं। जगह-जगह टीले दिखाई देते हैं। इन टीलों पर उगे वृक्ष एवं झाड़ एवं झनकाड़ के बीच पुरानी ईंट तथा खूबसूरत नक्काशीदार शिलाएं बिखरी पड़ी हैं। किले को देखने से ऐसा लगता है कि कि इसके चार द्वार रहे होंगे। उत्तर की ओर किले क्षेत्र में प्रवेश का रास्ता इसका प्रमुख द्वार होगा। किले के चारों ओर की बाउंड्री वॉल ढह गई है किंतु टीलों को देखने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे काफी ऊंची रही होगी एवं

१८५७ की आजादी की लडाई और बिजनौर

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                                          1857  की आजादी की लड़ाई  में बिजनौर के हालत पर                                               अमर उजाला में छपा मेरा एक पुराना  लेख

बिजनौर जनपद में कपास उत्पादन की जगह गन्ने ने ली

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                                     अमर उजाला में सात फरवरी २००० में बिजनोर जनपद                                        की खेती के बदलाव पर छापा मेरा एक लेख

हरप्रसाद सिंह एक नौटकी डाइरेक्टर और कलाकार

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नौटंकी के जरिए आत्मिक ज्ञान लेने तथा लोगों को समाज सुधार की शिक्षा देने वाले बुजूर्गब हर प्रसाद सिंह के परिजन आज भले ही उनको अपेक्षा की दृष्टि से देखते हों, किंतु ८४ वर्षीय श्री सिंह से बातचीत करते ही उनके स्वाभिमानी गुण देखते ही बन जाते हैं। प्रस्तुत हैं उनसे की गई बातचीत के प्रमुख अंश- परिचय-गांव सुआवाला थाना अफजलगढ़ निवासी स्व.फकीर चंद चौहान की इकलौती संतान हर प्रसाद सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती भानमति का वर्ष १९९२ में देहावासन हो गया है। इनके विवाहित चार पुत्र व दो पुत्रियों सहित पौत्र व धेवतों से भरा पूरा परिवार है। शिक्षा:हिंदी और उर्दू में मिडिल कक्षा पास। भूमि व संपत्ति:नौटंकी क्षेत्र में प्रवेश क रते वक्त २६० बीघा जमीन, क्रेशर व टै्रक्टर आदि से पूर्ण विकसित घराना। किंतु अब केवल ५० बीघा जमीन शेष तथा क्रेशर व ट्रैक्टर नहीं रहे। नौटंकी से लगाव व कार्यक्षेत्र:चौहान थ्रियेटिकल संगीत पार्टी के मालिक हरप्रसाद सिंह ने बताया कि मैं अपने पिता की अकेली संंतान हैं। धन दौलत काफी था। इसलिए मैंने समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए नौटंकी बनाने का फैसला किया। इसमे मुझे घरवालों का भी पूरा स

दानिश जावेद स्क्रिप्ट राइटर

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             अमर उजाला मेरठ के १४ जून के अंक   में प्रकाशित मेरा एक लेख। 

आजादी के पहले संग्राम का वीर योद्धा बख्त खान रुहेला

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अमर उजाला १३ मई के अंक में बख्तखान रुहेला पर छापा मेरा लेख

बिजनौर का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन

अलीगढ़ विश्वविद्यालय के संस्थापक  सर सैयद अहमद एक बड़े लेखक हैं।  १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय वे बिजनौर में सदर अमीन थे। उन्होंने जनपद की घटनाओं को सरकशे बिजनौर नाम से लिखा है। यह एक उनकी डायरी है। इसमें घटनाओं का तारीख अनुसार विवरण दर्ज है।  यह पुस्तक उर्दू में हैं।  उसका हाफिज मलिक और मोरिस डैंबो ने अंग्रेजी में अनुवाद किया। नाम दिया बिजनौर रिबैलियन। सर सैयद की पुस्तक बिजनौर जनपद के इतिहास के जानकारों के लिए महत्वपूर्ण पुस्तक रही है। उर्दू में होने के कारण यह   जरूरतमदों की पंहुच से दूर रही।  हाफिज मलिक और मैरिस डैंबों का अंग्रेजी अनुवाद रिवेलियन ऑफ  बिजनौर नेट पर उपलब्ध है। मैंने कई साल पहले इस पुस्तक का गूगल  से हिंदी अनुवाद किया था। फिर भी अंगेजी संस्करण की मांग रही। मैंने यह पुस्तक नेट से ली है। मै हाफिज मलिक और मोरिस डैंबो का आभारी हूं कि उन्होंने बिजनौर के इतिहास के जानकारी के लिए यह काम किया। अशोक  मधुप  Sir Sayyid Ahmad Khan's History of the * Bijnor * Rebellion  (1858) INTRODUCTION by Hafeez Malik Sir Sayyid was born on October 17, 1817,

History of the *Bijnor* Rebellion Chapter 1

Sir Sayyid Ahmad Khan's History of the * Bijnor * Rebellion  (1858) CHAPTER I -- Spread of the Mutiny  News of the tumult and disloyalty that broke out in Meerut on May 10, 1857 had not reached Bijnor on May 11. By May 12, however, this news had become well known and its influence more and more apparent. Looting began on the Ganges road, and the movement of travellers ceased. Travellers who were going to Meerut from Bijnor came back on May 12 and 13; but in Bijnor itself there was no rebellion at this stage. The Mutiny began gradually in Bijnor too. Robbing of wayfarers started. Pillaging was reported on May 16 between the villages of Jhat and Olenda, which were under the control of the Bijnor police station. Here the Gujars /1/  looted one Debi Das Bazzaz. /2/  Dacoits attacked Shahbazpur Khaddar in the same way. The Gujars banded together to loot this village, the very first to be plundered in Bijnor District. On the same day, sixteen thousand rupees that Chaudhri Pr