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बिजनौर के प्रथम मुस्लिम स्वतंत्राता सेनानी इरफान अलवी

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बिजनौर के प्रथम मुस्लिम स्वतंत्राता सेनानी इरफान अलवी  मलिक इरफान अलवी के स्वतंत्राता संग्राम में कूदने की कहानी भी काफी विचित्र है। क्योंकि वह तो अपनी शिक्षा पूर्ण करते ही अंग्रेज़ सरकार द्वारा जयपुर में तहसीलदार मनोनीत कर दिये गए थे। स्वतंत्रता संघर्ष में सम्मिलित होने की गाथा से पूर्व उनका पारिवारिक परिद्वश्य समझना होगा। सर सैय्यद खॉं 1857 के प्रथम स्वतंत्राता संग्राम के समय बिजनौर में मुंसिफ थे ।लेकिन उनकी अंग्रेज़ दोस्ती के कारण बिजनौर ज़िले के अधिकतर मुसलमान उनको पसन्द नहीं करते थे। उस  समय ज़िला बिजनौर में नवाब महमूद खां का डंका बज रहा था । वेअंग्रेज़ों के शब्द में 'बाग़ी और यथार्थ में देश प्रेमी थे।  1857 मेंअंग्रेज कलेक्टर ने   नवाब महमूद को जिले की सतता सौँप ही। इसके बाद उस सयम बिजनौर में तैनात  सदर अमीन सर सैय्यद अपनी जान बचा कर चान्दपुर पहुंचे। चान्दपुर के रईस सैय्यद सादिक़ अली के घर पनाह ली । स्थानीय दबाव और स्वतंत्रता प्रेमियों के घेराव करने पर सादिक़ अली ने उनको 'बकैना गांव पहुंचा दिया। उस समय बकैना गांव  चान्दपुर के दूसरे ज़मीनदार मौलवी कलीमुल्लाह अलवी