कार्बेट क्यों जा रहे हैं बिजनौर आइए
कार्बेट क्यों बिजनौर आइए
प्रकृति एवं वन्य प्राणियों में रूचि रखने वाले कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान जाना पंसद करते है। वहां भीड बहुत है ,आने वालों को रिजर्वेशन कराने को काफी इंतजार करना पडता है। मेरा कहना है कि आप कार्बेट जाने के इच्छुक हैं तो बिजनौर आएं । बिजनौर बहुत शांत जिला है। शहर हैं तों एक लाख की आबादी के। एक तरह से देहात ही कहो।
कार्बेट उतरांचल आैर उत्तर प्रदेश से मिलकर बना है। संपत्ति के बंटवारे में कार्बेट का बफर जोन बिजनौर जनपद का हिस्सा उत्तर प्रदेश को मिल गया। कई बार उत्तर प्रदेश सरकार की घोषणांए आईं कि इसे मिनी कार्बेट के रूप में विकसित किया जाएगा। किंतु कुछ हुआ नही । बिजनौर के कार्बेट से अलग हुआ वन अमानगढ नाम से जाना जाता है। यहां डाक बंगले में दो वीआईपी सूट है। जनपद के दौरे पर आए प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी यहां प्राय: जाते एवं यहा की प्रकृति का अवलोकन करते हैं।सरकारी स्तर पर तो इसको पर्यटन स्थल के रूप में कुछ नही हुआ किंतु यहा पिछले दिनो आंए प्रभागीय निदेशक के प्रवीण राव ने इसे पर्यटन के लिए खोल दिया:
९५ स्क्वायर किलो मीटर में फैले इस वन में वह सब वन्य प्राणी मिल जातें हैं जो कार्बेट में हैं। क्योकि लोंगो को इसकी जानकारी नही इसलिए यहां रिजर्वेशन का कोई ज्यादा झंझट नही है।एक सडक बिजनौर एंव उत्तरांचल की सीमा तै करती है। इसें कंडी रोड कहते है। इस मार्ग का आधा भाग बिजनौर में हैं तों आधा कार्बेट में । इस मार्ग से कुछ फर्लांग के फासले पर कार्बेट का प्रसिद्ध झिरना डाक बंगला है।कंडी रोड पर कार्बेट में आए सैलानी प्राय: घूमते मिल जाते हैं।
बिजनौर जनपद बहुत सस्ता है।यहां ५०० रूपये प्रतिदिन के आसपास होटल में एसी कमरा मिल जाता है। वन विभाग द्वारा प्रकाशित कराया फोल्डर यहां सबकी जानकारी के लिए दे रहा हू।
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