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शाहिक़ बिजनौरी

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बिजनौर का एक गुमनाम शायर,जो बहुत अच्छी शायरी करते थे ---    ---   ---   ---   ---   साज़िशों की भीड़ में तामीर रुक कर रह गई,  दफ़्तरों की फ़ाइलों में मेरा घर रक्खा रहा। हर घूँट पे चाय की सिगरेट का कश लेकर  कुछ  यादें चली आईं, कुछ ज़ख़्म उभर आए। जादीद लबो लहजे के ये खूबसूरत शेर एक ऐसे गुमनाम शायर के हैँ,जिनकी गैरत ने उन्हें मुशायरों तक नहीं जाने दिया। उनकी      अना और  खामोश तबीयत ने उन्हें शायरों की महफ़िलों से भी दूर रक्खा। गुमनामी के अंधेरों में ज़िंदगी बसर करने वाला यह अच्छा शायर बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान का रहने वाला था। इनका नाम इसरार अहमद और तखल्लुस शाहिक़ बिजनौरी था। शाहिक साहब कमाल के शायर थे। वे लिखते थे,और खूब लिखते थे।आम शायरों की तरह वे हर जगह अपने शेर नहीं सुनाते थे। नये ज़ावियों के साथ कहे गये उनके अशाआर चौंकाने वाले होते थे। वे अरुज के माहिर थे। यही वजह थी,कि बिजनौर,दिल्ली और मुंबई में उनके कई शागिर्द भी थे। वे फन-ए-अरुज़ पर आसान ज़ुबान में किताब लिख रहे थे,जिसका मुसव्वदा तक़रीबन तैयार हो चुका था लेकि...

पंडित हरिसिंह त्यागी

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बिजनौर जिले के गैर मुस्लिम शायर

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अपना टू सीटर प्लेन था ताजपुर स्टेट का

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बिजनौर जनपद के लोकतंत्र रक्षकों की सूची

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आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर आज 25 जून 2025 के हिंदुस्तान हिंदी में स्टोरी ( नंबर आठ प्रवीण सिंह/ प्रवीण शास्त्री पुत्र राम लाल सिंह  वजीरपुर भगवान  धामपुर  हाल निवास खत्रियान बिजनौर नंबर 25 ब्र्रज नंदन पुत्र मथुरा प्रसाद  हरेवली नांगल नंबर 27 असगर पुत्र मोहम्मद सद्दीक ग्राम बुडगरा किरतपुर नंबर 32 छत्रसाल पिता राम चरन सिंह किरतपुर चांदपुर  

मशहूर क़व्वाल शेवन बिजनौरी

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 बिजनौर का वो फनकार,जिसकी बसों में बिकी किताबें शेर बने  सुपरहिट गाने और क़व्वाली। घूँघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है। हिंदी फिल्म हम हैं राही प्यार के,का यह हिट गीत बिजनौर के बाकमाल शायर और मशहूर क़व्वाल शेवन बिजनौरी का लिखा हुआ है। शेवन साहब बिजनौर के शायद ऐसे पहले शायर हैं,जिनकी ग़ज़लों-नज़्मों के किताबचे ट्रेनों और रोडवेज़ बसों में खूब बिका करते थे।बचपन में ऐसे ही एक किताबचे में मैने शेवन साहब की यह ग़ज़ल घूंघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है, पढ़ी थी। बरसों बाद शेवन साहब की इसी ग़ज़ल को फिल्मी गीतकार समीर के गीत के रुप में सुन कर मुझे हैरत हुई।शेवन साहब शायर और क़व्वाल के रुप में बहुत ज़्यादा मक़बूल थे।उनके कलाम को बड़े बड़े क़व्वालो,ग़ज़ल गायकों और फिल्मी सिंगरो ने अपनी आवाज़ दी है।इनमें यूसूफ आज़ाद क़व्वाल,जानी बाबू क़व्वाल, अज़ीज़ नाज़ा,अनुराधा पौड़वाल,अनुप जलौटा, सोनू निगम, कुमार सानू,अल्ताफ राजा,राम शंकर,अलका याज्ञनिक,अनवर,मोहम्मद अज़ीज़,अनीस साबरी,राहत अली खा,कविता कृष्णमूर्ती,नुसरत फतह अली खा,मेंहदी हसन,अताउल्ला,शकीला बानो और पंकज उधास आदि शामिल हैं। बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान म...

मुज़तर जमाली झालवी

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 ऐसे बेशुमार अच्छे शायर है,जिनकी शायरी अवाम तक नहीं पहुंची।इन्हीं शायरों में मुज़तर जमाली झालवी भी शामिल हैँ। बिजनौर ज़िले के क़स्बा झालू के अदबी घराने में पैदा हुए सैयद मज़ाहिर हुसैन को शायरी विरासत में मिली।उनके ताये अब्बा ज़फर हुसैन हुनर जमाली का शुमार अच्छे शायरों में था।ताये की देखा देखी सैयद मज़ाहिर हुसैन भी बचपन से ही शेर कहने लगे। उन्होंने अपना तखल्लुस मुज़तर जमाली झालवी मुन्तखिब किया।महकमा-ए- चकबंदी में नौकरी मिलने के बाद शायरी से उनका ध्यान हटा तो ज़रूर लेकिन उन्होंने शेर कहने नहीं छोड़े। जब भी मौक़ा मिला,उन्होंने शायरी की। 1982 में बिजनौर के मोहल्ला क़ाज़ीपाड़ा में शिफ्ट हुए मुज़तर जमाली साहब को शायरी का भरपूर माहौल मिला।उनके ताये  अब्बा हुनर जमाली पहले ही बिजनौर शिफ्ट हो चुके थे।इस बीच उनके तयेरे ज़ाद भाई सैयद अहमद असर और सबा जमाली भी शायरी के मैदान में झंडे गाड़ने लगे थे।भाइयों व दीगर शायरो की सोहबत मिली तो मुज़तर जमाली की शायरी में भी निखार आने लगा।  नौकरी के सिलसिले में कभी यहां तो कभी वहां तबादला होता रहा,जिससे वे शायरी को बाक़ायदा टाइम नहीं दे सके। सीओ चकबंदी के औहदे से ...