शाहिक़ बिजनौरी

बिजनौर का एक गुमनाम शायर,जो बहुत अच्छी शायरी करते थे --- --- --- --- --- साज़िशों की भीड़ में तामीर रुक कर रह गई, दफ़्तरों की फ़ाइलों में मेरा घर रक्खा रहा। हर घूँट पे चाय की सिगरेट का कश लेकर कुछ यादें चली आईं, कुछ ज़ख़्म उभर आए। जादीद लबो लहजे के ये खूबसूरत शेर एक ऐसे गुमनाम शायर के हैँ,जिनकी गैरत ने उन्हें मुशायरों तक नहीं जाने दिया। उनकी अना और खामोश तबीयत ने उन्हें शायरों की महफ़िलों से भी दूर रक्खा। गुमनामी के अंधेरों में ज़िंदगी बसर करने वाला यह अच्छा शायर बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान का रहने वाला था। इनका नाम इसरार अहमद और तखल्लुस शाहिक़ बिजनौरी था। शाहिक साहब कमाल के शायर थे। वे लिखते थे,और खूब लिखते थे।आम शायरों की तरह वे हर जगह अपने शेर नहीं सुनाते थे। नये ज़ावियों के साथ कहे गये उनके अशाआर चौंकाने वाले होते थे। वे अरुज के माहिर थे। यही वजह थी,कि बिजनौर,दिल्ली और मुंबई में उनके कई शागिर्द भी थे। वे फन-ए-अरुज़ पर आसान ज़ुबान में किताब लिख रहे थे,जिसका मुसव्वदा तक़रीबन तैयार हो चुका था लेकि...