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Showing posts from 2017

हास्य व्यंग के इंटरनेशनल शायर हिलाल स्योहारवी

जिनकी आज पंचवीं पुण्य तिथि है हास्य व्यंग के इंटरनेशनल शायर हिलाल स्योहारवी अपनी शायरी से कहकहे लगवाते हुए नेताओं और व्यवस्था पर चोट करने वाले हिलाल स्योहारवी की आज पुण्यतिथि है। उनहोंने हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी शायरी की छाप छोड़ी। न तुम संभले तो फिर नया तूफान आयेगा। मदद को राम आएंगे न फिर रहमान आएगा। जैसे शेर ने माध्यम से समाज को आगाह करने वाले अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर हिलाल स्योहारवी का वास्तविक नाम हबीबुर्रहमान था। शायरी में आने के बाद उन्होंने अपना उपनाम हिलाल जिसका अर्थ होता है चांद रख लिया। १५ नवंबर २०१२ को उनकी मृत्यु हुई थी। अपनी धमाकेदार नज्मों और कतात के लिए लोग उन्हें आज भी उन्हें याद करते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत पर इनके इस कता ने बहुत ख्याति पाई - बजा कहा जो शहीदाने वतन कहा तुझको, ये हैसीयत तुझे दुनिया में नाम करके मिली। अब इससे बढ़के तेरा एहतराम क्या होगा, मिली जो मौत भी तुझको सलाम करके मिली। हिलाल स्योहरवी को गालिब इंस्टीट्यूट नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा द्वारा उर्दू अदब की सेवा के लिए वर्ष १९८७
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चिंगारी सांध्य दैनिक में छपा चाहर बेत आयोजन के समाचार
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अमर उजाला के 11 सितंबर के अकं में प्रकाशित मेरा लेख
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अमर उजाला में 13 सितंबर 1017 में चहेरबेत कार्यक्रम पर छपा समाचार

डा. ज्ञान चंद जैन

11 अगस्त जिनकी पुण्य तिथि है उर्दू सहित्य के पुरोधा डा. ज्ञान चंद जैन स्योहारा। जनपद के साहित्यकारो का विश्व में बड़ा नाम है। जनपद के सकलेन हैदर, सज्जाद हैदर, अख्तरउल इस्लाम, हिलाल स्योहारवी, डा. ज्ञानचंद जैन आदि वे साहित्यकार हैं जिन्हे पूरी दुनिया में जाना जाता है। भारतीय लेखक और उर्दू साहित्य के स्कालर तथा भारत के उर्दू एर्वाड पदमश्री से सम्मानित डा. ज्ञान चंद जैन का जन्म १९ सितंबर १९२२ में स्योहारा में हुआ था। उनकी मृत्यू ११ अगस्त २००७ में पोर्ट विलेयर कैलिफोर्निया अमरिका में हुई। अपने अंतिम समय में डा. ज्ञानचंद जैन अपनी सरजमी को बेहद याद करते थे। उनकी गजल का एक शेर इस बात की ताईद करता है। मैं बरगद हूं उखड़ कर आ गिरा मशरिक से मगरिब में, किसी मैदान का टूकड़ा ही अपना है ना वन अपना। स्योहारा के लाला बहालचंद जैन के तीन पुत्रो में छोटे पुत्र डा. ज्ञान चंद जैन को उनके गालिब साहित्य पर स्कालरशिप तथा उनकी उर्दू में लिखी गई अनेक किताबों जिनमें एक भाषा दो लिखाबट दो अदब, उर्दू की नर्सरी दास्तानें, निशानयात, कच्चे बोल, दास्तानगोई, अंजूमन तरक्की ए उर्दू, आदि के लिए उर्दू जगत में जाना जाता रहेगा
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amar ujala 8 aug 2017 me prakashit

नगीना का जलियांवाला बाग

नगीना का जलियांवाला बाग नगीना का 'जलियावाला बाग' है पाईबाग नौशाद अंसारी, नगीना, बिजनौर : पंजाब के जलियावाला बाग में 1919 में हुए नरसंहार के जैसी घटना को ब्रिटिश हुकूमत ने बिजनौर में काफी पहले अंजाम दिया था। 1858 में नगीना में पाईबाग में अंग्रेजी हुकूमत ने अनेक लोगों पर गोलियां बरसाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना की एकमात्र निशानी के रूप में बचे एतिहासिक कुएं का आज तक संरक्षण नहीं किया जा सका है। इतिहास के जानकारों के अनुसार प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम लड़ रहे शेरकोट निवासी माढ़े खां ने अपने साथियों के साथ नगीना में मोर्चा कायम करने का फैसला किया। 21 अप्रैल 1858 को जब अंग्रेजों की फौज पाईबाग के निकट पहुंची तो घात लगाकर बैठे आजादी के दीवाने इनामत रसूल व जान मुहम्मद महमूद ने फौज पर बंदूक से फायर कर दिया। इस पर सरकारी फौज ने गोलियां बरसाकर अनेक को मौत के घाट उतार दिया। इनायत रसूल अपने साथी सहित शहीद हो ए। गोलाबारी में घायल अनेक व्यक्ति पाईबाग में स्थित कुंए में जान बचाने को कूद गए, लेकिन अधिकांश की मौत हो गई। एक अनुमान के अनुसार इस घटनाक्रम में करीब डेढ़ सौ लोगों को

बिजनौर है जाहरवीर की ननसाल

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बिजनौर है जाहरवीर की ननसाल हर साल लगता है रेहड़ ,गंज सहित कई जगह जाहरदीवान का मेला लाखों श्रद्धालु  जाहरवीर  म्हाढ़ी पर चढ़ाते हैं निशान , प्रसाद हिंदू व मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग में माने जाते हैं जाहरवीर(जाहरपीर) अशोक मधुप बिजनौर]देश भर में गोगा जाहरवीर उर्फ जाहरपीर के करोड़ों भक्त हैं। सावन में हरियाली तीज से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी तक देश भर में गोगा जाहरवीर उर्फ जाहरपीर इनकी म्हाढी पर श्रद्धालु आकर निशान चढ़ाते और पूजन अर्चन करते हैं। गोगा हिंदुओं में जाहरवीर है तो मुस्लिमों में जाहरपीर । दोनों संप्रदाय में इनकी बड़ी मान्यता है। यह बात कम ही लोग जानते हैं कि राजस्थान में जन्मे गोगा उर्फ जाहरवीर की ननसाल बिजनौर जनपद के रेहड़ गांव में है। इनकी मां बाछल जनपद में जहां जहां गई, वहां वहां आज मेले लगते हैं। जाहरवीर के नाना का नाम राजा कोरापाल सिंह था। गर्भावस्था में काफी समय गोगा जाहरवीर की मां बाछल अपने पिता के घर रेहड़ में रहीं। रेहड़ के राजा कुंवरपाल की बिटिया बाछल और कांछल का विवाह राजस्थान के चुरू जिले के ददरेजा गांव में राजा जेवर सिंह व उनके भाई राजकुमार

नौलखा बाग' खो रहा है अपना मूलस्वरूप..

उत्तर प्रदेश के बिजनौर में दुनि या का अकेला नौलखा बाग का अस्तित्व तो है  बिजनौर  !    उत्तर प्रदेश के बिजनौर में दुनिया का अकेला नौलखा बाग का अस्तित्व तो है लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी और स्थानीय लोगों की अवैध खेती के कारण यह अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है।  ऐतिहासिक उल्लेख के अनुसार बंगाल विजय के बाद यहां आए शाहजहां ने यह पूरा क्षेत्र जिसे पहले गोवर्धनपुर कहा जाता था शुजात अली को ईनाम में दे दिया। शुजात अली ने बादशाह का सम्मान रखते हुए इस क्षेत्र का नाम जहानाबाद रखा। इसी क्षेत्र में यह नौ लखा बाग स्थित है। लगभग दस एकड़ क्षेत्र, चारों ओर मजबूत दीवार और बीस फुट ऊंचे भव्य प्रवेश द्वार लिए इस बाग को शुजात अली के मकबरे के नाम से भी जाना जाता है। शुजात अली के अलावा उनकी पत्नी और दासी के भी मकबरे हैं। इसके अलावा एक महान पीर जाहर दीवान की भी मजार है।  शुजात अली ने बाग परिसर में मस्जिद का निर्माण कराया था जो अपने समय में विश्व की पहली ऐसी मस्जिद थी जहां नमाज के पहले बजू गंगा जल से किया जाता था। गंगा नदी तक जाने के लिए मस्जिद के आंगन से विधिवत पैडियां बनाई गई थीं। ईदगाह में तब्दील हो गई मस
मेरी गली से निकला ,घर तक नहीं आया,..!!! अच्छा वक़्त भी, रिश्तेदार जैसा निकला....!! - आज सोचा जिंन्दा हुँ तो घूम लूँ, मरने के बाद तो भटकना ही है ! नीरज कुमार अग्रवाल की फेसबुक वॉल से
" ज़िन्दा रहना है तो हालात से लडना होगा , जंग लाजमी हो तो लश्कर नहीं देखे जाते " योगेश शर्मा की फेसबुक वाल से 

बिजनौर जनपद के २०० साल

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