हल्दौर रियासत
यह है बैंस राजपूत वंश डोंडिया खेड़ा वालो
की लगभग ढाई सौ साल पुरानी बिजनौर के कस्बा हल्दौर की रियासत हल्दौर स्टेट मे बितरौला फार्म सहित लगभग 300 गांव हुआ करते थे
एसी सभी पुरानी हवेलीयो अथवा महलो को देख कर एक अलग ही अनुभूति महसूस होती है सदियों के इतिहास को समेटे यह महल अपने गौरवशाली अतीत की याद कराता हैं एसे महलो को देखकर अतीत कि यादो मे खो सा जाता हूँ ...!
बैंस राजपूत वंश कि इस रियासत के राजाओ के वंशज आज भी सभी छोटे मोटे गरीब लोगो से बड़ी ही शालीनता से बात करते हैं आज भी यहां के जमींदारो को रत्ती भर भी अपनी सम्पत्ति का अहंकार बिलकुल भी नही है हल्दौर वासियो के हर दुख सुख मे सबकी मदद भी करते हैं
हल्दौर रियासत जिला बिजनोर की सबसे बड़ी रियासत हुआ करती थी यह रियासत 300 गांव मे अपनी जमींदारी के लिए प्रसिद्ध थी बैस राजपूत (डोंडिया खेड़ा) कि इस रियासत मे ब्रिटिश काल से गुदडी मेला लगता आ रहा है और सदियो से यहा पर सालाना गधे घोडो का मेला लगता था जो अब सायद नही लगता है
हल्द्वौर रियासत कि बिजनौर मे भी रानी कि धर्मशाला बडी प्रसिद्ध रही है हल्दौर रियासत के इस महल के ठीक सामने राजाओं का समाधि स्थल भी है मौजूदा राजा अपनी 11वी पीढ़ी के बताए जाते हैं धामपुर में आज भी बड़ी मंड़ी हल्दौरियो की मंडी कहलाती है पुराने बुजुर्ग तो यह भी बताते हैं कि एक बार
हल्दौर मे मोरनागर्दी कि लड़ाई हुई थी जिसमे मोरना से कुछ लोग हल्दौर के राजा शेरसिंह से हाथी पर चढ़ कर लड़ने आए थे ऐसा भी बताया जाता है कि इस लड़ाई में कई जिलो के लोग लड़ने आए थे हल्दौर के आसपास ईखो में शव बिखरे पड़े थे
हल्दौर का जिक्र 1857 के गदर का भी मिलता हैं सरकशी ए बिजनौर नामक पुस्तक मे लिखा है कि जब हल्दौर मे आग लगी थी एक तिनका भी चिड़िया को घोसले के लिए नही बचा था हल्दौर कि रियासत वीरता की प्रतीक रही हैं हल्दौर महल में लगे दरवाजे नजीबाबाद पत्थरगढ़ किले और बसी किरतपुर किले से उतारकर लाए गये थे यह भी कुछ पुराने लोगो ने बताया
बिजनौर के कस्बा हल्दौर मे बैस राजपूतों की यह रियासत एक बढ़ी जमींदारी हुआ करती थी आधुनिक भारत के इतिहास में रियासतों का एक ऐसा खास अध्याय है जिसे पूरी तरह से लिखा नहीं जा सकता है यह अध्याय परिपक्व राजनीतिक और राजनीति में संवाद का बेहद सटीक उदाहरण है
-तैयब अली
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