शाहिक़ बिजनौरी


बिजनौर का एक गुमनाम शायर,जो बहुत अच्छी शायरी करते थे
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  साज़िशों की भीड़ में तामीर रुक कर रह गई,
 दफ़्तरों की फ़ाइलों में मेरा घर रक्खा रहा।

हर घूँट पे चाय की सिगरेट का कश लेकर 
कुछ  यादें चली आईं, कुछ ज़ख़्म उभर आए।
जादीद लबो लहजे के ये खूबसूरत शेर एक ऐसे गुमनाम शायर के हैँ,जिनकी गैरत ने उन्हें मुशायरों तक नहीं जाने दिया। उनकी      अना और  खामोश तबीयत ने उन्हें शायरों की महफ़िलों से भी दूर रक्खा।
गुमनामी के अंधेरों में ज़िंदगी बसर करने वाला यह अच्छा शायर बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान का रहने वाला था। इनका नाम इसरार अहमद और तखल्लुस शाहिक़ बिजनौरी था। शाहिक साहब कमाल के शायर थे। वे लिखते थे,और खूब लिखते थे।आम शायरों की तरह वे हर जगह अपने शेर नहीं सुनाते थे। नये ज़ावियों के साथ कहे गये उनके अशाआर चौंकाने वाले होते थे। वे अरुज के माहिर थे। यही वजह थी,कि बिजनौर,दिल्ली और मुंबई में उनके कई शागिर्द भी थे। वे फन-ए-अरुज़ पर आसान ज़ुबान में किताब लिख रहे थे,जिसका मुसव्वदा तक़रीबन तैयार हो चुका था लेकिन दिली ख्वाहिश के बावजूद घरेलू हालात ने उनकी यह किताब छपने नहीं दी।उम्र के आखिरी पड़ाव में वे अपने घरेलू हालात से बहुत ज़्यादा परेशान हो गये थे।
शाहिक़ बिजनौरी एक अरसे तक मुंबई और दिल्ली रहे। उन्होंने बालीवुड में भी हाथ आज़माये लेकिन कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने युग समेत कई टीवी सीरियलो में बतौर अदाकार भी काम किया लेकिन अपनी अलग ही तबीयत की वजह से वहां भी उनकी दाल नहीं गली। शाहिक बिजनौरी अलेहदगी पसन्द इंसान थे। वे बहुत कम लोगों से मिलते जुलते थे।अपने इस मिज़ाज की उन्हें भारी क़ीमत चुकानी पड़ी। अच्छा शायर और अरुज के अच्छे जानकार होने के बावजूद वे न दौलत हासिल कर सके, न शौहरत। उनकी    पूरी ज़िंदगी मुफलिसी में गुज़री। बहुत ज़्यादा खुद्दार होने की वजह से उन्होंने कभी किसी से किसी भी तरह की मदद का सवाल नहीं किया।और तो और वे अपने बच्चों से भी कभी कुछ नहीं कह सके। शायरी के मैदान में अगर वो थोड़ा बहुत भी हाथ पैर मार लेते तो शायद उनकी अपनी अलग ही पहचान होती।लगभग 70 साल कीमे में 27 फरवरी 2022 को शाहिक़ बिजनौरी इस दुनिया से रुख़सत हो गये।उनके शागिर्द उन्हें बहुत याद करते है। खुदा-ए-पाक शाहिक बिजनौरी को जहां रक्खे खुश रक्खे। नौजवान शायर मैराज बिजनौरी,अब्दुस्समद आज़ाद और बिजनौर के मोहल्ला बख्शिवाला में रहने वाले शाहिक़ बिजनौरी के शागिर्द खुर्शीद बुखारवी ने हमें शाहिक़ बिजनौरी के कुछ शेर और ग़ज़ल भेजी है। आप भी इन शेरो और ग़ज़ल को मुलाहिज़ा फरमाएं।
मरगूब रहमानी
9927 785 786






 

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