नौलखा बाग' खो रहा है अपना मूलस्वरूप..

उत्तर प्रदेश के बिजनौर में दुनि या का अकेला नौलखा बाग का अस्तित्व तो है 

बिजनौर !    उत्तर प्रदेश के बिजनौर में दुनिया का अकेला नौलखा बाग का अस्तित्व तो है लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी और स्थानीय लोगों की अवैध खेती के कारण यह अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है। 
ऐतिहासिक उल्लेख के अनुसार बंगाल विजय के बाद यहां आए शाहजहां ने यह पूरा क्षेत्र जिसे पहले गोवर्धनपुर कहा जाता था शुजात अली को ईनाम में दे दिया। शुजात अली ने बादशाह का सम्मान रखते हुए इस क्षेत्र का नाम जहानाबाद रखा। इसी क्षेत्र में यह नौ लखा बाग स्थित है। लगभग दस एकड़ क्षेत्र, चारों ओर मजबूत दीवार और बीस फुट ऊंचे भव्य प्रवेश द्वार लिए इस बाग को शुजात अली के मकबरे के नाम से भी जाना जाता है। शुजात अली के अलावा उनकी पत्नी और दासी के भी मकबरे हैं। इसके अलावा एक महान पीर जाहर दीवान की भी मजार है। 
शुजात अली ने बाग परिसर में मस्जिद का निर्माण कराया था जो अपने समय में विश्व की पहली ऐसी मस्जिद थी जहां नमाज के पहले बजू गंगा जल से किया जाता था। गंगा नदी तक जाने के लिए मस्जिद के आंगन से विधिवत पैडियां बनाई गई थीं। ईदगाह में तब्दील हो गई मस्जिद के आंगन में पैड़ियां आज भी मौजूद हैं। हालांकि अब गंगा एक किलोमीटर दूर जा चुकी है। सन 1577 में बनी यह मस्जिद सैंकड़ों साल तक साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बनी रही और 1880 में खंडहर में तब्दील होने तक हिन्दू मुस्लिम एकता को दर्शाती रही। मस्जिद क्षेत्र में पीर जाहर दीवान की भी कब्र है। इनके बारे में कहा जाता है कि एक बार बेगम मुमताज को सांप ने डस लिया था। तमाम ईलाज के असफल हो जाने के बाद बेगम को पीर जाहर दीवान ने जीवन दिया था। पीर के नाम पर यहां आज भी मेला लगता है। आश्चर्य है कि पीर के कब्र से पानी ले जा कर लोग आज भी अपने पशुओं का ईलाज करते हैं। नेस्तनाबूत हो चुकी मस्जिद के अवशेष में पड़ी चौकोर तथा लखौरी ईंटें इसके निर्माण कौशल को बयां करती हैं। मस्जिद की मीनारों में कुछ ऐसे संकेत रखे गए थे जिससे इलाहाबाद. कानपुर और वाराणसी में गंगा का जल स्तर यहां समझा जा सकता था। नौ लखा बाग क्षेत्र के भव्य प्रवेश द्वार में भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे जिससे यहां कभी किला होने का भी भ्रम होता है लेकिन पूरे बाग क्षेत्र में कहीं ऐसे संकेत नहीं मिलते। बिजनौर जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर नौ लखा बाग वैसे तो पुरात्तव विभाग की संपत्ति है लेकिन अवैध कब्जे और खेती ने इसका मूल स्वरूप खत्म कर दिया है। अन्यथा यह एक अच्छा पर्यटन स्थल बन सकता था। 
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देशबंधु में २५ सितम्बर में छपा  लेख | समाचार पत्र ने  लेखक का नाम नहीं दिया  

इस   लेख में कुछ  गलतिया हैं 

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