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रियाज अहमद रियाद

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 साहिल पे आके उसने जो आवाज़ दी रियाज़ मै डूबने लगा था उभरना पड़ा मुझे  मुहब्बत के मुख्तलिफ रंगो में लिपटा यह खूबसूरत शेर बिजनौर के मोहल्ला भाटान क़ाज़ीपाड़ा में रहने वाले संजीदा शायर रियाज़ अहमद रियाज़ बिजनौरी का है। रियाज़ साहब उप्र परिवहन विभाग में फोरमैन के उहदे पर फाइज़ रहे। नौकरी की मसरूफियात के बावजूद वे शायरी करते रहे। शेरी महफ़िलों में शिरकत को वे फर्ज़ जैसा समझते थे। नौकरी से सुबुकदोशी के बाद तो उन्होंने खुद को पूरी तरह शायरी के हवाले कर दिया था। उनकी शायरी में मुहब्बत और ज़िंदगी के मुख्तलिफ रंग मिलते हैं। सादा मिज़ाज रियाज़ साहब जब शेरी निशस्तो में अपना कलाम पढ़ते थे तो सामईन उनकी पज़ीराई किये बिना नहीं रहते थे। रिटायरमेंट के बाद रियाज़ साहब का ये मामूल था कि वे अपने शायर दोस्तों और शायरी सुनने का शौक़ रखने वालों से मिलने उनके घर जाते थे और उनसे शायरी पर गुफ्तुगू करते थे। एक बार जब वो मेरे घर तशरीफ़ लाये थे,तो उन्होंने बताया था कि उन्होंने अपने अज़ीज़ों की एक फहरिस्त बना रखी है। सबसे मुलाक़ात के दिन तय हैं। रियाज़ साहब नेक दिल इंसान थे।बड़ों का एहतराम और छोटो से मुहब्बत करते थे। वे जब भी कि...

साहू शांति प्रसाद जैन ने नजीबाबाद को दी राष्ट्रीय पहचान

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साहू शांति प्रसाद जैन ने नजीबाबाद को दी राष्ट्रीय पहचान -साहित्य के क्षेत्र में ज्ञानपीठ पुरस्कार बना मिल का पत्थर -शिक्षा, उद्योग,मीडिया,जैन धर्म को जीवन किया समर्पित       -----------------------------------------राजा दुष्यंत व शकुंतला की प्रणय स्थली मालिन नदी के तट पर बसी  ,चक्रवर्ती सम्राट मोरध्वज की नगरी नजीबाबाद नगर की मिट्टी ने एक ऐसे व्यक्तित्व  को जन्म दिया जिसने अपनी शैक्षिक योग्यता, अनुभव,पारावारिक परिवेश से  उंचाईयां पर पहुंच कर परिवार व नजीबाबाद नगर का नाम रोशन किया। उस व्यक्तित्व का नाम है साहू शांति प्रसाद जैन।                          नजीबाबाद के जमींदार साहू सलेक चन्द जैन के पुत्र दीवान चन्द जैन व मूर्ति देवी के घर 27 अक्टूबर 1911 को जन्में साहू शांति प्रसाद जैन वित्त, वाणिज्य, अर्थशास्त्र व व्यापार में दक्ष होने के कारण देश के औधोगिक विकास में भागेदारी करने लगे। परिवार के सहयोग से साहू शांति प्रसाद जैन ने देश के विभिन्न महानगरों में चीनी, सीमेंट,जूट कपड़ा, केमिकल , खाद्य...

वादाखिलाफी से नाराज हाथी ने मार दिया था राजा को

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 अमर उजाला 14 जुलाई 2025

शाहिक़ बिजनौरी

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बिजनौर का एक गुमनाम शायर,जो बहुत अच्छी शायरी करते थे ---    ---   ---   ---   ---   साज़िशों की भीड़ में तामीर रुक कर रह गई,  दफ़्तरों की फ़ाइलों में मेरा घर रक्खा रहा। हर घूँट पे चाय की सिगरेट का कश लेकर  कुछ  यादें चली आईं, कुछ ज़ख़्म उभर आए। जादीद लबो लहजे के ये खूबसूरत शेर एक ऐसे गुमनाम शायर के हैँ,जिनकी गैरत ने उन्हें मुशायरों तक नहीं जाने दिया। उनकी      अना और  खामोश तबीयत ने उन्हें शायरों की महफ़िलों से भी दूर रक्खा। गुमनामी के अंधेरों में ज़िंदगी बसर करने वाला यह अच्छा शायर बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान का रहने वाला था। इनका नाम इसरार अहमद और तखल्लुस शाहिक़ बिजनौरी था। शाहिक साहब कमाल के शायर थे। वे लिखते थे,और खूब लिखते थे।आम शायरों की तरह वे हर जगह अपने शेर नहीं सुनाते थे। नये ज़ावियों के साथ कहे गये उनके अशाआर चौंकाने वाले होते थे। वे अरुज के माहिर थे। यही वजह थी,कि बिजनौर,दिल्ली और मुंबई में उनके कई शागिर्द भी थे। वे फन-ए-अरुज़ पर आसान ज़ुबान में किताब लिख रहे थे,जिसका मुसव्वदा तक़रीबन तैयार हो चुका था लेकि...

पंडित हरिसिंह त्यागी

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बिजनौर जिले के गैर मुस्लिम शायर

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