नृत्य कला अभिनय में अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बनी -जोहरा सहगल
- -नजीबाबाद के नबाब नजीबुद्दौला के परिवार से जुड़ी थी जोहरा
-रूढ़ीवाद की दीवार लांघकर अपनी प्रतिभा का किया प्रदर्शन ----------------------------------------रूढ़ीवादी मुस्लिम परिवार में जन्मी विश्व की ख्याति प्राप्त भारतीय अभिनेत्री व नृत्यांगना जोहरा सहगल का संबंध नजीबाबाद के नबाब नजीबुद्दौला के परिवार से रहा है यह बात बहुत कम लोग जानते हैं। जोहरा सहगल संभवतया भारत की पहली अभिनेत्री व नृत्यांगना है जिसे अपने अभिनय, नृत्य, कला से अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है। इतिहास में झांकें तो पता चला नजीबाबाद को बसाने वाले नबाब नजीबुद्दौला के वंशज नबाब जलालुद्दीन के परिवार से संबंध रखने वाले मुमताजुल्लाह व नटिका बेगम के घर जन्मी जोहरा सहगल का बचपन का नाम साहिबजादी जोहरा मुमतुल्लाह खान बेगम था। मां की ओर से नबाब नजीबुद्दौला व पिता की ओर से रोहिला मुखिया व विद्वान गुलाम जिलानी खान से जुड़ी थी जोहरा सहगल । जोहरा सहगल का जन्म 27 अप्रैल 1912 को सहारनपुर में तथा मृत्यु 10 जुलाई 2014 को दिल्ली में 102 वर्ष में हुई थी । सात वर्ष की उम्र में एक आंख की रौशनी खोने के बाद भी जोहरा सहगल ने प्रारंभिक शिक्षा क्वीन मेरी कालेज लाहौर से ली। रामपुर उत्तर प्रदेश की राजनीति व नबाबी जीवन से दूर रंगमंच की दुनिया को पसंद किया। बचपन में मां की मृत्यु के बाद कुछ दिन अपने चाचा सैदुज्जफर खान के पास देहरादून भी रही। लेकिन बाद को लाहौर में ही शिक्षा के दौरान क्वीन मैरीन कालेज में एक नाटक में जज की सशक्त भूमिका निभाकर वह चर्चा में आ गयी। जर्मनी के ड्रेसडेन में मैरी विगमैन के बैले स्कूल से 3 वर्ष बैले नृत्य सीखकर पहली भारतीय मार्डन डांसर बनीं। 1935-40 में नाट्य कर्मी उदयशंकर के साथ नाटक व नृत्य के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत कर जापान,मिश्र,यूरोप व अमेरिका में अपनी कला का जादू बिखेरा। नाट्य कर्मी उदयशंकर के साथ अल्मोड़ा में नाट्य एकेडमी चलाने लगी। इस बीच कामेश्वर नाथ सहगल से प्रेम व विवाह के साथ भारी विरोध के बीच वह जोहरा सहगल के रूप में पहचानी गयी। कामेश्वर सहगल के साथ लाहौर गयी तो वहां जोरेश नृत्य संस्थान खोलकर कोरियोग्राफर के रूप में अपने को निखारा। कामेश्वर सहगल के निधन के बाद वह दिल्ली लौटी और नाट्य अकादमी, दिल्ली नाट्य संघ की निदेशक बनी और राष्ट्रीय स्तर पर लोकनृत्य में कलाकारों को पारंगत किया। जोहरा सहगल ने अपनी उर्जा, जज्बे व जिंदादिली को सहारा बनाकर मुम्बई पहुंच कर पृथ्वी राज कपूर के पृथ्वी थिएटर से खुद को जोड़ लिया। वह नृत्यांगना के साथ एक अभिनेत्री बनकर उभरी । जोहरा सहगल अपने किसी एक काम से सन्तुष्ट नहीं थी वह जीवन भर संभावना व अवसर तलाशती रही। बाद को उन्होंने थिएटर ग्रुप इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोशिएशन (इप्टा) से जुड़कर अनेक नाटकों में काम किया। ख्वाजा अब्बास द्वारा निर्देशित फिल्म 'धरती के लाल' व चेतन आनंद की 'नीचा नगर' में अभिनय कर फिल्मी केरियर शुरू किया। निर्माता निर्देशक गुरूदत्त की 'बाजीराव' व राजकपूर की 'आवारा' फिल्म में कोरियोग्राफर के रूप में काम किया। उन्होंने भारतीय के साथ विदेशी धरती पर भी अपनी कला का जादू बिखेरा। उन्होंने 'डाक्टर हूं ' मिनिसरीज 'दा ज्वेल इन द क्राउन ' व बेंड इट लाइक बेकहम' में अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान ने जोहरा सहगल की स्मृति में 'इन इवनिंग विद् जोहरा' नाम से आयोजित एक इवेंट में प्रतिभाग किया। जोहरा सहगल ने भारतीय फिल्म 'नीचा नगर' ,'अफसर','भाजी आन दा बीच' ,'द मिस्टिक मैस' , 'दिल से' , 'वीरजारा', 'सांवरिया' 'चेनीकुम' , 'चलो इश्क लडाए ' ,फिल्म व तंदूरी अम्मा एंड फैमिली टीवी धारावाहिक में अपने अभिनय का जादू बिखेरा। बताते हैं फिल्मों में उनके अभिनय से अमिताभ बच्चन , शाहरूख खान, रणवीर कपूर व सलमान खान जैसे कलाकार भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। ----------------------------------------- कला का सम्मान --------------------------------------- जोहरा सहगल के नृत्य,कला,अभिनय से प्रभावित होकर गूगल ने जोहरा सहगल की याद में doolie बनाया। उनकी फिल्म :नीचा नगर 'को कान फिल्म फेस्टिवल में सर्वोच्च सम्मान palme d or prize से सम्मानित किया ।साथ ही जोहरा सहगल के लिए डूडल भी बनाया। भारत में ही जोहरा सहगल को उनके नृत्य कला अभिनय के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्म श्री (1998), कालीदास सम्मान (2001), पद्म विभूषण (2010) में देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने देकर सम्मानित किया गया।भारतीय संगीत नाट्य एकेडमी दिल्ली ने उनकी आजीवन उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए सर्वोच्च पुरस्कार संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया। इप्टा ने भी जोहरा सहगल को उनके शानदार अभिनय के लिए गोल्डन सम्मान से नवाजा। ----------------------------------------------- नृत्य,कला,अभिनय के जनून ने उम्र को दी मात -----------------------------------------------जोहरा सहगल का नाटक,फिल्म व नृत्य में इतना जनून था कि 90 वर्ष की उम्र के बाद भी वह लंबे समय तक कार्य कर नई उम्र के कलाकारों के लिए प्रेरणा बनी रहीं। बताते हैं वह 80 वर्ष की उम्र के बाद भी अभिनय से जुड़ी रही और 90 की उम्र में मुम्बई की सड़कों पर बाइक दौड़ाकर अपनी जिंदादिली दिखा चुकी है। उन्होंने बुरे समय में खुश रहना, बढ़ी उम्र में अधिक काम करना, मजबूत इरादों से बिना विचलित होकर कार्य करने की प्रेरणा दी। ------------------------------------------------रूढीवाद का जीवन भर विरोध किया -------------------------------------------------जोहरा सहगल ने जीवन भर धर्म की बेड़ियों से जकड़े रहने का सदा विरोध किया। बताते हैं रूढ़ीवादी मुस्लिम समाज में जन्म लेकर उन्होंने बुर्के का विरोध करते हुए उसे काटकर ब्लाऊज़ व पेटीकोट बना लिया था। यहां तक परिवार के विरोध को दरकिनार कर पर्दे से बाहर रहकर नृत्य कला व फिल्म में अभिनय को अपना भविष्य बना लिया। यहां तक उन्होंने अपने अंतिम समय में अपनी अस्थियों को किसी नदी, समुद्र के स्थान पर गटर में प्रभावित करने की इच्छा जताई थी। प्रस्तुति -मुकेश सिन्हा नजीबाबाद
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