मुज़तर जमाली झालवी
ऐसे बेशुमार अच्छे शायर है,जिनकी शायरी अवाम तक नहीं पहुंची।इन्हीं शायरों में मुज़तर जमाली झालवी भी शामिल हैँ। बिजनौर ज़िले के क़स्बा झालू के अदबी घराने में पैदा हुए सैयद मज़ाहिर हुसैन को शायरी विरासत में मिली।उनके ताये अब्बा ज़फर हुसैन हुनर जमाली का शुमार अच्छे शायरों में था।ताये की देखा देखी सैयद मज़ाहिर हुसैन भी बचपन से ही शेर कहने लगे। उन्होंने अपना तखल्लुस मुज़तर जमाली झालवी मुन्तखिब किया।महकमा-ए- चकबंदी में नौकरी मिलने के बाद शायरी से उनका ध्यान हटा तो ज़रूर लेकिन उन्होंने शेर कहने नहीं छोड़े। जब भी मौक़ा मिला,उन्होंने शायरी की।
1982 में बिजनौर के मोहल्ला क़ाज़ीपाड़ा में शिफ्ट हुए मुज़तर जमाली साहब को शायरी का भरपूर माहौल मिला।उनके ताये अब्बा हुनर जमाली पहले ही बिजनौर शिफ्ट हो चुके थे।इस बीच उनके तयेरे ज़ाद भाई सैयद अहमद असर और सबा जमाली भी शायरी के मैदान में झंडे गाड़ने लगे थे।भाइयों व दीगर शायरो की सोहबत मिली तो मुज़तर जमाली की शायरी में भी निखार आने लगा।
नौकरी के सिलसिले में कभी यहां तो कभी वहां तबादला होता रहा,जिससे वे शायरी को बाक़ायदा टाइम नहीं दे सके। सीओ चकबंदी के औहदे से सबकदोश होने के बाद उन्होंने खुल कर शायरी की। उनकी कई ग़ज़लों के अदबी हल्क़ो में खूब चर्चे हुये।मुज़तर साहब अपना शेरी मजमुआ छपवाना चाहते थे लेकिन घरेलू मसरूफियात की वजह से उनकी यह हसरत पूरी न हुई। 19 फरवरी 2009 को वे मालिके हकीकी से जा मिले।अल्लाह पाक उनके दरजात बुलंद फरमाए। उनके बेटे मुशब्बर हुसैन(पत्रकार) उनकी याद में आये दिन शेरी निशस्तो का अहतमाम करते रहते हैँ।
मरगूब रहमानी
( 9927785785 )
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