मशहूर क़व्वाल शेवन बिजनौरी
बिजनौर का वो फनकार,जिसकी बसों में बिकी किताबें
शेर बने सुपरहिट गाने और क़व्वाली।
घूँघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है।
हिंदी फिल्म हम हैं राही प्यार के,का यह हिट गीत बिजनौर के बाकमाल शायर और मशहूर क़व्वाल शेवन बिजनौरी का लिखा हुआ है। शेवन साहब बिजनौर के शायद ऐसे पहले शायर हैं,जिनकी ग़ज़लों-नज़्मों के किताबचे ट्रेनों और रोडवेज़ बसों में खूब बिका करते थे।बचपन में ऐसे ही एक किताबचे में मैने शेवन साहब की यह ग़ज़ल घूंघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा रहता है, पढ़ी थी। बरसों बाद शेवन साहब की इसी ग़ज़ल को फिल्मी गीतकार समीर के गीत के रुप में सुन कर मुझे हैरत हुई।शेवन साहब शायर और क़व्वाल के रुप में बहुत ज़्यादा मक़बूल थे।उनके कलाम को बड़े बड़े क़व्वालो,ग़ज़ल गायकों और फिल्मी सिंगरो ने अपनी आवाज़ दी है।इनमें यूसूफ आज़ाद क़व्वाल,जानी बाबू क़व्वाल, अज़ीज़ नाज़ा,अनुराधा पौड़वाल,अनुप जलौटा, सोनू निगम, कुमार सानू,अल्ताफ राजा,राम शंकर,अलका याज्ञनिक,अनवर,मोहम्मद अज़ीज़,अनीस साबरी,राहत अली खा,कविता कृष्णमूर्ती,नुसरत फतह अली खा,मेंहदी हसन,अताउल्ला,शकीला बानो और पंकज उधास आदि शामिल हैं।
बिजनौर के मोहल्ला मिर्दगान में क़व्वाल घराने में 30 अप्रैल 1930 को पैदा हुए शेवन बिजनौरी का नाम फ़ैयाज़ अहमद था।शेवन बिजनौरी उनका तखल्लुस था।वे बचपन से अपने वालिद क़व्वाल बदर हुसैन के साथ रहते थे। विरासत में मिले क़व्वाली के फन के साथ साथ शेवन साहब ने बहुत कम उम्र में शेर कहने शुरू कर दिये थे। उन्हें तब और हौसला मिलता था,जब उनके कहे शेर उनके वालिद अपने क़व्वाली प्रोग्राम में पढ़ते थे। उनके शेरों पर जब खूब वाह वाही होती तो उनके लिखने का जज़्बा और बढ़ जाता।
1952 में मदीना प्रेस के एक मुशायरे में जिगर मुरादाबादी साहब तशरीफ़ लाये तो शेवन साहब ने उनसे मुलाक़ात कर उन्हें बाक़ायदा अपना उस्ताज़ बना लिया,इससे शेवन साहब की शायरी मे दिन ब दिन निखार आता गाया। 1957 मे वालिद के इंतक़ाल के बाद शेवन साहब को बिजनौर छोड़ना पड़ा। वे मेरठ में रहने लगे।वहां वे शौरिश मुज़फ्फरनगरी को अपना कलाम दिखाने लगे। वालिद के इंतक़ाल के चंद बरसों बाद शेवन साहब ने अपने नाम से अपनी क़व्वाल पार्टी बना ली,जिसे बहुत जल्द मक़बूलियत हासिल हो गई। शेवन साहब की क़व्वाल पार्टी को जल्द शौहरत मिलने की एक वजह यह भी थी कि वे ज़्यादातर अपना ही कलाम पढ़ते थे। क़व्वाली मुक़ाबले वे इस लिए जीत जाते थे कि वे फिलबदीह ( हाथों हाथ ) शेर कह कर सामने वाले क़व्वाल को मुंह तोड़ जवाब दे देते थे।
शेवन साहब ने बहुत ज़्यादा और अच्छी शायरी की।उनकी छोटी-बडी 500 से भी ज़्यादा किताबें छपी। उन्होंने नात व हम्द शरीफ भी बहुत लिखीं। एक दौर था कि शेवन साहब की नात व हम्द शरीफ के किताबचे मस्जिदों-मदरसो मे रखे होते थे।
बड़े क़व्वाल और बड़े शायर होने के बावजूद शेवन साहब में तकब्बुर
बिल्कुल नही था। वे बिजनौर में होने वाली छोटी से छोटी शेरी निशस्तो में भी खुलूस के साथ शामिल होते थे। मेरी शेवन साहब से जब जब मुलाक़ात हुई तब तब उन्होंने मुहब्बत,शफ़क़त और खुलूस से मेरा दिल जीत लिया। रुख़सत होते हुए वे ढेर सारी दुआएं देते थे। अपना दुनियवी सफर पूरा करते हुए बिजनौर का यह बेश क़ीमती फन्कार 22 जून 2001 को हमेशा के लिए अपने चाहने वालों को अलविदा कह गया। नगर पालिका बिजनौर ने उनकी फन्नी खिदमात का एतराफ करते हुए मोहल्ला मिर्दगान की एक सडक का नाम शेवन बिजनौरी रोड रक्खा है। बानगी के तौर पर यहां उनका एक मतला एक शेर हाजिर है- ए जाने तमन्ना,जाने जिगर शोलों को शरर से टकरा दे/ गर देखना है चाहत का असर नज़रों को नज़र से टकरा दे।
माना के ज़माने में कोई बेऐब नहीं लेकिन शेवन/ इंसान वही है जो बढ़ कर,ऐबों को हुनर से टकरा दे।
24 वी बरसी पर शेवन साहब को उनके तमाम चाहने वालों की जानिब से दिली खिराज-ए-अक़ीदत।अल्लाह उन्हें जहां भी रक्खे खुश रक्खे।
मरगूब रहमानी
9927785786
Comments