ओले ने उजाड़ दिया था थोड़े समय में ही गंगा मेला
ओले ने उजाड़ दिया था थोड़े समय में ही गंगा मेला
हर कोई अपनी जान बचाने के लिए रहा था दौड़
एक महिला ने अपनी जान बचाने को सास को अपने ऊपर लिया था लेटा
अशोक मधुप
बिजनौर, 11 नवंबर
विदुर कुटी में लगने वाले गंगा स्नान मेले में सन 1972 में ऐसा ओला पड़ा था कि लोगों की जान पर बन आई। हर कोई अपनी जान बचाने में लगा था। परिवार की किसी को चिंता नहीं थी। कुछ दंपति तो अपने बच्चों को फेंक कर अपनी जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए थे। एक महिला ने अपनी जान बचाने के लिए अपनी सास को अपने ऊपर लेटा लिया। महिला तो बच गई पर सास की जान चली गई। ओले से बचने के लिए लोगों ने मेले में लगी दुकानों से तमाम कंबल लूट लिए थे और लोगों के डेरों में जा घुसे थे। ऐसा ओला मेले में फिर कभी नहीं पड़ा।
गंगा और नदियों के तट पर हर साल मेला लगता है। इस मेले में लाखों की तादाद में श्रद्घालु पहुंचते हैं। 1972 में भी श्रद्घालु खुशी खुशी मेले में गए थे। श्रद्घालुओं को नहीं मालूम था कि मेले में उनकी जान पर बन आएगी। मुख्य स्नान का उस समय भी मंगलवार का दिन था। तेज बारिश के साथ मोटे ओले पड़ने लगे। यह देखकर श्रद्घालुओं की सांसे फूलने लगीं। ओला इतना तेज था कि उससे बच पाना मुश्किल था। लोग अपने परिवार के सदस्यों को छोड़ अपनी जान बचाने में जुट गए। कई दंपति तो अपने बच्चों को फेंक कर भाग गए थे। जाट महासभा के जिलाध्यक्ष शूरवीर सिंह बताते हैं कि ऐसा ओला मेले में फिर कभी नहीं देखा। एक महिला ने तो अपनी जान बचाने के लिए ओलों से बचने के लिए अपनी सास को अपने ऊपर लेटा लिया। महिला तो बच गई पर उसकी सास की मौत हो गई। उस समय मेले में खादी आश्रम के अलावा कंबलों की तमाम दुकानें लगती थीं। लोगों ने दुकानों से तमाम कंबल लूट लिए। जान बचाने के लिए लोगों के डेरों में जा घुसे। पूरा मेेला उसी दिन बारिश व ओला रूकने पर उखड़ गया था। मेले में जाने वालों ने ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहन रखे थे। इन कपड़ो मेंं बारिश का पानी भर गया।कोट स्वाटर गर्मी की जगह बुुरी तरह ठंड दे रहे थे। मेले में आने वाले त्राहि त्राहि कर रहे थे।प्रायः सबका यही कहना था कि किसी तरह से बचकर घर पंहुच जांए आगे से कभी मेलेे नहीं आंएगे।
घटना को 47 साल बीत गए पर मेले में जाने वालों को लगता है कि आज की ही बात हो। उन्हें भया लगने लगता है। धामपुर के शिव मदिंर के पास की रहने वाला निर्मल बताती हैं कि वह उस साल बिजनौर से बीटीसी कर रहीं थी। परिवार और मिलने वालों ने स्नान के लिए तिगरी मेले मेें जाने का तय किया। सवेरे सब ट्रक से चले। तिगरी में मेले से काफी पहले बारिश को देख ट्रक चालक ने एक होटल पर ट्रक यह कहकर रोक दिया कि मौसम खराब है । बारिश में आगे जाना ठीक नहीं । वे ट्रक से उतर का होटल में घुसे कि बारिश और तेज हो गई। कुछ देर में ओले पड़ने लगे। मोटे मोटे ओले। होटल के बाहर बर्फ की मोटी चादर बिछ गई। होटल वाले से कहकर खिचड़ी बनवाईं। वहीं रूके रहे। गंगा स्नान सब भूल गए। बस एक चीज याद रही कि किसी तरह घर पंहुचा जाए। बारिश रूकने पर वहां से गंज पहुंचे तो भगदड़ मची थी। सब किसीतरह से घर पंंहुचना चाहते थे। काफी व्यक्ति उनके ट्रक में चढ़ गए। चालक ने भी मना नहीं किया। कहा सब संकट में हैं, वह धीरे धीरे ले चलेगा।
अशोक मधुप
12 Novmber 2019
हर कोई अपनी जान बचाने के लिए रहा था दौड़
एक महिला ने अपनी जान बचाने को सास को अपने ऊपर लिया था लेटा
अशोक मधुप
बिजनौर, 11 नवंबर
विदुर कुटी में लगने वाले गंगा स्नान मेले में सन 1972 में ऐसा ओला पड़ा था कि लोगों की जान पर बन आई। हर कोई अपनी जान बचाने में लगा था। परिवार की किसी को चिंता नहीं थी। कुछ दंपति तो अपने बच्चों को फेंक कर अपनी जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए थे। एक महिला ने अपनी जान बचाने के लिए अपनी सास को अपने ऊपर लेटा लिया। महिला तो बच गई पर सास की जान चली गई। ओले से बचने के लिए लोगों ने मेले में लगी दुकानों से तमाम कंबल लूट लिए थे और लोगों के डेरों में जा घुसे थे। ऐसा ओला मेले में फिर कभी नहीं पड़ा।
गंगा और नदियों के तट पर हर साल मेला लगता है। इस मेले में लाखों की तादाद में श्रद्घालु पहुंचते हैं। 1972 में भी श्रद्घालु खुशी खुशी मेले में गए थे। श्रद्घालुओं को नहीं मालूम था कि मेले में उनकी जान पर बन आएगी। मुख्य स्नान का उस समय भी मंगलवार का दिन था। तेज बारिश के साथ मोटे ओले पड़ने लगे। यह देखकर श्रद्घालुओं की सांसे फूलने लगीं। ओला इतना तेज था कि उससे बच पाना मुश्किल था। लोग अपने परिवार के सदस्यों को छोड़ अपनी जान बचाने में जुट गए। कई दंपति तो अपने बच्चों को फेंक कर भाग गए थे। जाट महासभा के जिलाध्यक्ष शूरवीर सिंह बताते हैं कि ऐसा ओला मेले में फिर कभी नहीं देखा। एक महिला ने तो अपनी जान बचाने के लिए ओलों से बचने के लिए अपनी सास को अपने ऊपर लेटा लिया। महिला तो बच गई पर उसकी सास की मौत हो गई। उस समय मेले में खादी आश्रम के अलावा कंबलों की तमाम दुकानें लगती थीं। लोगों ने दुकानों से तमाम कंबल लूट लिए। जान बचाने के लिए लोगों के डेरों में जा घुसे। पूरा मेेला उसी दिन बारिश व ओला रूकने पर उखड़ गया था। मेले में जाने वालों ने ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहन रखे थे। इन कपड़ो मेंं बारिश का पानी भर गया।कोट स्वाटर गर्मी की जगह बुुरी तरह ठंड दे रहे थे। मेले में आने वाले त्राहि त्राहि कर रहे थे।प्रायः सबका यही कहना था कि किसी तरह से बचकर घर पंहुच जांए आगे से कभी मेलेे नहीं आंएगे।
घटना को 47 साल बीत गए पर मेले में जाने वालों को लगता है कि आज की ही बात हो। उन्हें भया लगने लगता है। धामपुर के शिव मदिंर के पास की रहने वाला निर्मल बताती हैं कि वह उस साल बिजनौर से बीटीसी कर रहीं थी। परिवार और मिलने वालों ने स्नान के लिए तिगरी मेले मेें जाने का तय किया। सवेरे सब ट्रक से चले। तिगरी में मेले से काफी पहले बारिश को देख ट्रक चालक ने एक होटल पर ट्रक यह कहकर रोक दिया कि मौसम खराब है । बारिश में आगे जाना ठीक नहीं । वे ट्रक से उतर का होटल में घुसे कि बारिश और तेज हो गई। कुछ देर में ओले पड़ने लगे। मोटे मोटे ओले। होटल के बाहर बर्फ की मोटी चादर बिछ गई। होटल वाले से कहकर खिचड़ी बनवाईं। वहीं रूके रहे। गंगा स्नान सब भूल गए। बस एक चीज याद रही कि किसी तरह घर पंहुचा जाए। बारिश रूकने पर वहां से गंज पहुंचे तो भगदड़ मची थी। सब किसीतरह से घर पंंहुचना चाहते थे। काफी व्यक्ति उनके ट्रक में चढ़ गए। चालक ने भी मना नहीं किया। कहा सब संकट में हैं, वह धीरे धीरे ले चलेगा।
अशोक मधुप
12 Novmber 2019
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