किसानों के संघर्ष को लगातार उठाया, पुल और तटबंध की सौगात दिलाई

 किसानों के संघर्ष को लगातार उठाया, पुल और तटबंध की सौगात दिलाई

बिजनौर। अमर उजाला जिले के किसानों की आवाज है तो यह कहना गलत नहीं होगा। अमर उजाला गंगा से जमीन के कटान की समस्या में लगातार किसानों की आवाज उठाता रहा। खादर में अपनी जान जोखिम में डालकर खेती करने वालों की समस्या लगातार प्रशासन के सामने रखता रहा। इसकी का सिला आज किसानों को मिला है। गंगा पर पैंटून पुल बन चुका है और तटबंध को मंजूरी मिल गई है।

उत्तराखंड में होने वाली बारिश जिले में मंडावर के खादर में प्रलय मचाती है। खादर में गंगा कटान करती है और खेतों की मिट्टी को बहाकर ले जाती है। पिछले कई सालों में खादर के किसानों की कई हजार बीघा जमीन कटकर गंगा की धारा में समा चुकी है। कागजों में जमीन होने के बाद भी कई किसान भूमिहीन हो चुके हैं। गंगा पर तटबंध बनाने का प्रस्ताव साल 2002 में बना था लेकिन यह मंजूर नहीं हुआ था। बरसात में उफनती गंगा खेतों में तबाही मचा देती है। अमर उजाला खादर में गंगा से होने वाले कटान की खबरों को लगातार प्रकाशित करता रहा। खादर में गंगा से होने वाली तबाही, विस्थापित होने वाले किसानों के दर्द को अमर उजाला ने नेताओं व अफसरों के सामने रखा। इसके सुखद परिणाम अब सामने आए हैं और गंगा पर करीब 60 करोड़ की लागत से बनने वाले तटबंध को मंजूरी मिल गई है। कटान की वजह से किसानों की जमीन गंगा की धारा के दूसरी ओर जा चुकी है। किसानों को गंगा की धारा को पार करके खेतों पर जाना पड़ता था। किसानों के ट्रैक्टर ट्राली तक नाव पर सवार होकर जाते थे। कई बार नाव न होने पर किसानों को गंगा की धारा को पैदल चलकर या तैरकर पार करना होता था। इस समस्या को किसानों ने प्रशासन और नेताओं के सामने रखा। पिछले साल पीपे के पुल के लिए गंगा की धारा में खड़े होकर 32 दिन तक आंदोलन किया था। अमर उजाला में यह आंदोलन बिना नागा किए 32 दिन तक छाया रहा। इसके बाद प्रशासन और नेता हरकत में आए और पीपे के पुल को मंजूरी मिली। इस साल पीपे के पुल का निर्माण हुआ तो किसानों ने इसके लिए अमर उजाला का आभार जताया था। इसी साल दिसंबर में गांव डैबलगढ़ के सामने पीपे का पुल बनकर तैयार हो गया है और इस पर आवागमन शुरू हो गया है।

आंखों से देखी तबाही

गांव डैबलगढ़ के रहने वाले किसान बरम सिंह का कहना है कि उनके सामने हजारों बीघा जमीन कट गई और कई परिवारों के किसान गंगा में डूब गए। अब किसानों को इससे निजात मिलेगी। अमर उजाला ने खादर के किसानों की बात हर बार मजबूती से रखी।

अमर उजाला स्थापना दिवस 12 दिसंबर 2002

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