अमर सिंह यादव
बिजनौर में 90 के दंगो से पूर्व घंटाघर से सटे होटल में द्वितीय तल पर अमर उजाला का कार्यालय होता था।कुछ लोगों से तभी विवाद हुआ था।एक दिन घंटाघर के नीचे तैनात पुलिस पिकेट का एक जवान आफिस में आया। अपना परिचय दिया। बताया कि वह नीचे पिकेट में तैनात हैं। चिंता न करें । आवाज देदें। आप पर हमला करने आने वाले जिंदा नहीं जा पाएंगे। उसके सीने पर लगी प्लेट पर नाम लिखा था अमर सिंह यादव। तब से ये अमर सिंह मेरे परिवार का सदस्य है।पुलिस की सेवा से निवृत होकर आजकल अपने बच्चों के पति पत्नी गुड़गांव में रह रहे हैँ। गजरौला के पास के रहने वाले अमर सिंह का दस 15 दिन में हालचाल जानने के लिए फोन जरुर आ जाता है।
अमर सिंह 15-16 साल के करीब विजिलैंस में रहा । इसीलिए आम पुलिस जैसा उसका आचरण नहीं है। वह न इधर - उधर से पैसा कमाने की कोशिश करता है। किस्सा उस समय का है जब कमल सक्सैना पुलिस अधीक्षक होते थे। वे बहुत ही ईमानदार और सख्त अधिकारी रहे। इस दौरान अमर सिंह को कोतवाली देहात थाने में मुहरिर बना दिया गया। थानाध्यक्ष बहुत कमाई करने वाले थे। वह चाहते थे कि अमर सिंह उसे कमाई करके दे। अमर सिंह ने कहा कि सर जांच करा लीजिए। वह खुद कोई पैसा नहीं लेता। जब वह ही नहीं लेता, तो आपको कहां से दे।इस पर वह अकड़ गए। कहा कि ज्यादा आदर्शवादी मत बनो। जो कहा है करिए। एक दिन उसने अमर सिंह को बहुत उल्टी- सीधी कही। कहा शाम तक तबादला करा लेना। नहीं तो सस्पैंड करा दूंगा।
दुपहर का एक बजा होगा। अमर सिंह मेरे पास आया। अपनी व्यथा सुनाई।मैंने कमल सक्सैना को फोन किया। मैने कहा कि एक कार्य है। आपके स्तर का नहीं है। किंतु करना पड़ेगा । ज्ञातव्य है कि सिपाही का तबादला अपर पुलिस अधीक्षक करते थे। इससे उपर के पदों का एसपी। वह मुस्कराकर बोले । मेरे स्तर का नहीं है फिर भी । मैंने कहा कि कुछ आप जैसे सिरफिरे होंते हैं। जिंन्हे ईमानदारी का जूनून होता है। ऐसे व्यक्ति संकट में हो तो आपकी हमारी जिम्मेदारी उनकी सुरक्षा और मदद की है। इसके बाद मैने पूरा किस्सा सुनाया। कहा कि थानाध्यक्ष पैसा चाहता है। ये पैसा लेता नहीं। ऐसे में कहां से दे। आज उसने बहुत उल्टा- सीधा कहा। इसलिए इसके साथ कुछ गलत हो उससे पहले कृपया इसे वंहा से हटा दीजिए। अपने कार्यलय में किसी भी जगह बुला लीजिए। वह हंसते हुए बोले - पुलिस में भी ऐसे हैं?जो ऐसी जगह चाहतें हैँ, जहां पैसा न हो। मैने कहा - जी।
उन्होंने कहा कि मै आर्डर कर रहा हूं, किसी से मंगा लीजिए। अमर सिंह एसपी के कैंप कार्यालय गया। 15 मिनट में अपना तबादला आर्डर लेकर मैरे पास आ गया। तीन बजे थाने पंहुच गया। थानाध्यक्ष के हाथ में अपना तबादला आदेश थमा दिया।
एसपी द्वारा सिपाही के तबादले का आदेश देखकर वह भी चौंका। सबको पता था कि सक्सैना साहब बहुत ईमानदार और सख्त हैं। एसपी द्वारा किया आदेश देखकर उसकी समझ में आया कि ये आदमी ऐसा - वैसा नहीं है। उसने बहुत पूछा - क्या हुआ। कैसे हुआ। अमर सिंह ने इतना कहा कि समाज में मदद करने वाले बहुत होतें हैं, पैसा ही सब कुछ नहीं होता। शाम को अमर सिंह रिलीव होकर बिजनौर आ गया। कोतवाली के थानाध्यक्ष और अन्य स्टॉफ यह जानने का बहुत प्रयाास करता रहा कि कैसे हुुआ?। पर किसी को तबादले के पीछे की कहानी का पता नहीं चला।
अशोक मधुप
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