बिजनौर की एक कोठी तैयब अली की फेसबुक बॉल से
बिजनौर मे अब समाजवादी पार्टी कार्यालय बन चुकी यह कोठी पूर्व चेयरमैन फरीद अहमद के परदादा रईस मौलवी अब्दुल हई कि कोठी है जो अब विरान सुनसान पडी है
देश के समर्पित प्रखर शिक्षाविद समाज सेवक रईस मौलाना अब्दुल हई ऐसे योद्धा रहे हैं जिन्हें उनके स्मरणीय योगदान के बावज़ूद बिजनौर वासियो ने लगभग भुला सा दिया है।
मौलवी अब्दुल हई देश की गंगा-जमुनी संस्कृति और हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल हिमायती थे उनका कथन था ‘हम हिन्दू हों या मुसलमान हम एक ही नाव पर सवार हैं हम उबरेंगे तो साथ डूबेंगे तो साथ
स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान की स्मृति में बिजनौर में मौलवी अब्दुल हई
के नाम से आज भी शहर की एक प्रमुख सड़क का नाम मोजूद है।
बिजनौर में पहली बार उस जमाने के रईस मौलवी अब्दुल हई साहब महात्मा गांधी से मिले थे सन 1897 में बिजनौर जिले मे भीषण अकाल के दौरान राहत कार्यों में उनकी बड़ी भूमिका रही थीस्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए मौलवी अब्दुल हई ने बिजनौर में अपनी सोलह बीघा ज़मीन दान देकर मुस्लिम इण्टर कालेज का निर्माण कराया था
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मुस्लिम इण्टर कालेज पढ़ाई छोड़ने वाले युवाओं की शिक्षा के लिए कॉलेज की स्थापना हुई। मौलवी अब्दुल हई ने जेल को जमीन दे कर जेल का निर्माण कराया था कोसी नामक साप्ताहिक पत्रिका मे आज़ादी के पक्ष में अपने प्रखर लेखन के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था
यह ब्रिटिश कालीन कोठी रखरखाव के अभाव में खंडहर हो चुकी है इसके रखरखाव के लिए कोई कर्मचारी तैनात नहीं है लोग कोठी के दरवाजे एवं खिड़की आदि उखाड़ कर ले गए हैं
यह कोठी सन 1923 में लाखों रुपए खर्च करके मौलवी अब्दुल हई
द्वारा बनवाई गई थी बताते हैं कि उस जमाने में अफसर यहां अदालत लगाते थे जिसमें सिंचाई विभाग से संबंधित मामलों की सुनवाई होती थी अंग्रेजी शासनकाल का सूर्य अस्त होते ही यह कोठी लावारिस हो गई तथा देखभाल नहीं होने के कारण खंडहर में तब्दील होती चली गई। समय बीतने के साथ हालात बद से बदतर होते गए। सिंचाई विभाग ने भी इसकी सुध नहीं ली
वीरान हो चुकी ब्रिटिश कालीन इस कोठी को विभाग ने भी लावारिस छोड़ दिया है इसका अंदाजा वीरान पड़ी कोठी में खड़ी झाड़ियों से लगाया जा सकता है इस इमारत को विभाग ने सुरक्षित रखने की दिशा में कोई कवायद नहीं की अफसोस
प्रस्तुति---------तैय्यब अली




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