सुल्ताना डाकू

जो भारत का रॉबिन हुड बन गया।सुल्ताना के जीवन की पड़ताल करती मेरी स्टोरी आज के जनवाणी में।सम्पादक यशपाल सर और जनवाणी परिवार का दिल से आभार।


यूपी में बिजनौर की  है पुख्ता बुनियाद ,

उसी जिले में एक है शहर नजीबाबाद ,

शहर नजीबाबाद वही का है मशहूर फ़साना ,

दिल दिलेर मानिंद शेर एक था सुल्ताना।


 सुल्ताना डाकू उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,बिहार सहित समूचे उत्तर भारत में एक ऐसा किरदार जो नाटकों नौटंकी के रूप में आज भी जीवित है ।सुल्ताना डाकू  एक ऐसा नाम जिसे डाकू होने के बावजूद बहुत आदर के साथ लिया जाता है ।सुल्ताना डाकू एक ऐसा नायक जो लूटमार करने के बावजूद अपनी बेहतरीन छवि से जननायक बन गया ।


सुल्ताना डाकू का जन्म मुरादाबाद शहर से सटे हरथला गांव में हुआ था ।वह भान्तु जाति का था जो खुद को महाराणा प्रताप का वंशज मानती थी। सुल्ताना की जाति को अंग्रेज आक्रामक मानते थे, इसलिए अंग्रेजों ने नवादा गांव में शिविर में भातु जाति के लोगों को रखा ।वहीं सुल्ताना की परवरिश हुई। इसके बाद सुल्ताना का परिवार नजीबाबाद आकर बस गया। बताया जाता है कि सुल्ताना मात्र 17 साल की उम्र में डाकू बन गया। उसने अपना 300 सदस्यों का एक गिरोह तैयार किया। सुल्ताना के गिरोह में शामिल डाकुओं के पास आधुनिक हथियार थे। सुल्ताना बेहद अनुशासित था और गिरोह में किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करता था। सुल्ताना पर आधारित नौटंकी के अनुसार  सुल्ताना का एक साथी शेर सिंह गद्दार हो गया था जिसे सुल्ताना ने मौत के घाट उतार दिया था । सुल्ताना के बारे में किवदंती है कि वह अमीरों को लूटता था और उस धन को गरीबों में बांट देता था। प्रसिद्ध  शिकारी जिम कार्बेट ने अपनी किताब माई इंडिया के भाग 'सुल्ताना: इंडियाज रोबिन हुड' में बताया है कि सुल्ताना ने कभी भी किसी गरीब आदमी को नहीं लूटा और वह दुकानदारों को पूरे दाम देकर सामान खरीदता था ।सुल्ताना के निशाने पर अंग्रेजों का खजाना रहता था ।वह भारत का रॉबिनहुड बन गया था।सुल्ताना मानता था कि अंग्रेजों द्वारा इकट्ठा किया गया खजाना गरीब हिंदुस्तानियों की खून पसीने की कमाई का है जिसे अंग्रेज जबरदस्ती छीन लेते हैं । जिम कार्बेट के अनुसार सुल्ताना का क्षेत्र नजीबाबाद से लेकर कुमाऊं ,नैनीताल , कालाढूंगी रामनगर और काशीपुर तक था। उस समय देहरादून से नैनीताल के  राज निवास के लिए जो रास्ता जाता था वह नजीबाबाद के जंगलों से होकर गुजरता था। अंग्रेजों का खजाना भी इसी रास्ते से जाता था ।सुल्ताना इसी रास्ते पर घात लगाकर हमला करता और अंग्रेजों का खजाना लूट लेता था ।सुल्ताना ने कई बार रेलगाड़ी से जाने वाला खजाना भी लूटा।सुल्ताना अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बन गया था । जिस तेजी से सरकार सुल्ताना को तलाश रही थी , उतनी तेजी से उसकी लोकप्रियता भी निरंतर बढ़ रही थी। सुल्ताना ने हल्द्वानी के खड़क सिंह कुमडिया के घर पर डकैती डाली ।इस डकैती में खड़क सिंह और एक अन्य व्यक्ति मारा गया ।खड़क सिंह का मित्र तुला सिंह सुल्ताना का दुश्मन बन गया ।


बताया जाता है कि सुल्ताना डाका डालने से पहले डकैती वाले घर पर इश्तहार चस्पा कर देता था । बिजनौर जिले के आसपास की पुलिस भी सुल्ताना से खौफ खाती थी। बिजनौर जिले के नांगल थाने के जालपुर गांव में सुल्ताना ने 22 मई 1922 को डकैती डाली, जिसमें 17248 रुपए की लूट की। सुल्ताना द्वारा की गई थी यह डकैती शिब्बा सिंह के घर पर डाली गई थी ।नांगल थाने में फारसी भाषा में उस मामले की रिपोर्ट और जांच के दस्तावेज आज भी मौजूद हैं। यह मुकदमा अपराध रजिस्टर में 25/1922 धारा 397 के अंतर्गत दर्ज है ।


जब पुलिस सुल्ताना डाकू को नहीं पकड़ पाई तब टिहरी रियासत के राजा के कहने पर फ्रेडी यंग नाम के एक जांबाज अफसर को सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए विशेष तौर पर बुलाया गया। यंग ने अपने साथ प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट को शामिल किया ।इसके अतिरिक्त तुला सिंह ने भी फ्रेडी यंग का सहयोग किया ।यंग  ने 300 सिपाही और 50 घुड़सवारों को लेकर नैनीताल से नजीबाबाद के जंगलों में 14 बार छापेमारी की। जिम कार्बेट लिखते हैं कि एक बार सुल्ताना डाकू ने उनकी तथा एक बार फिर फ्रेडी यंग की जान भी बख्शी थी ।सुल्ताना ने फ्रेडी यंग  को तरबूज भी भेंट किया था।

 14 दिसंबर 1923 को नजीबाबाद के जंगलों में सुल्ताना को 15 साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया ।सुल्ताना के साथ उसके साथी पीतांबर ,नरसिंह, बलदेव और भूरे भी पकड़े गए। नैनीताल अदालत में सुल्ताना डाकू पर केस चलाया गया। यह केस नैनीताल गन केस के नाम से जाना जाता है। 7 जुलाई 1924 को आगरा की जेल में सुल्ताना डाकू को उसके 15 साथियों सहित फांसी की  दे दी गई।आगरा जेल में अपने व्यवहार से सुल्ताना ने जेल के कर्मचारियों का दिल जीत लिया था। सुल्ताना के पनाहगार रहे  40 लोगों को काला पानी की सजा सुनाई गई। भारतीय सिविल सेवा में अधिकारी रहे लेखक फिलिप मेशन की किताब 'द मैन हु रुल्ड इंडिया' में इस बात का जिक्र है कि सुल्ताना डाकू को फ्रेडी यंग द्वारा ही पकड़ा गया है ।यंग ने  सुल्ताना की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलवाने का काफी प्रयास किया लेकिन अंग्रेजी हुकूमत इस बात पर सहमत नहीं थी। फ्रेडी यंग ने सुल्ताना की पत्नी और पुत्र के भोपाल के पास रहने की व्यवस्था की और उसके बाद सुल्ताना के लड़के को उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा तथा सुल्ताना के बेटे को अपना नाम भी दिया ।आज भी नजीबाबाद में नवाब नजीबुदौला का बनवाया हुआ वह किला मौजूद है जिस किले में पर सुल्ताना ने कब्जा कर लिया था और आज यह किला सुल्ताना डाकू के किले के नाम से  जाना जाता है ।हल्द्वानी में शीश महल के निकट एक सुल्तान नगरी है जिसका नाम सुल्ताना का ठिकाना होने के कारण पड़ा। गड़प्पू  के पास एक सुल्ताना का कुआं भी है जहां वह पानी पीता था ।7 जुलाई 1924 को अंग्रेजों ने भले ही सुल्ताना को फांसी दे दी लेकिन वह एक किवदंती बन गया और आज भी पूरे उत्तर भारत में उसके नाटक और नौटंकी खेली जाती हैं ।1956 में निर्देशक मोहन शर्मा ने सुल्ताना डाकू पर एक फिल्म सुल्ताना डाकू बनाई थी जिसमें जयराज ने सुल्ताना डाकू का किरदार निभाया था। 1972 में मोहम्मद हुसैन ने दारा सिंह, हेलन और अजीत को लेकर सुल्ताना डाकू के नाम से फिल्म बनाई थी। सुल्ताना डाकू पर नथा राम शर्मा की किताब सुल्ताना डाकू है जिसकी नौटंकी पूरे उत्तर भारत में खेली जाती है। इसके अतिरिक्त लखनऊ के अकील पेंटर ने 'शेर ए बिजनौर 'सुल्ताना डाकू 'के नाम से एक किताब लिखी ।

2009 में सुजीत सराफ ने कन्फेशन ऑफ सुल्ताना डाकू के नाम से एक किताब लिखी ।यह किताब सुल्ताना डाकू की पुलिस के सामने स्वीकारोक्ति के आधार पर लिखी गई है।सुल्ताना डाकू की कहानियां और फिल्मों में काफी अंतर है ।सुल्ताना को मरे 96 साल हो गए लेकिन अपनी कहानियों के कारण जनमानस के बीच भारत केरोबिन हुड के रूप में आज भी मौजूद है।

लेखक - विवेक गुप्ता

5 जुलाई जनवाणी मेरठ 




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