बिजनौर लोकसभा सीट पर पांच बार कांग्रेस व चार बार भाजपा का रहा कब्जा
बिजनौर लोकसभा सीट पर पांच बार कांग्रेस व चार बार भाजपा का रहा कब्जा
बिजनौर। बिजनौर लोकसभा सीट ने कई दिग्गजों को संसद तक पहुंचाया है। मायावती व मीरा कुमार पहली बार संसद बिजनौर लोकसभा सीट से ही पहुंची। पांच बार इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस तो चार बार भाजपा का कब्जा रहा। रालोद ने दो बार व सपा तथा बसपा ने एक-एक बार इस सीट पर परचम लहराया। निर्दलियों को भी यह सीट रास आई। दो बार हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस की झोली में गई।
बिजनौर लोकसभा सीट पर 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेमीशरण जैन ने विजय पताका लहराई। उन्होंने निर्दलीय गोविंद सहाय को चुनाव में पराजित किया। तब नेमीशरण जैन को 75018 व गोविंद सहाय को 43520 वोट मिले। 1957 के चुनाव में भी बाजी कांग्रेस के हाथ लगी। इंडियन नेशनल कांग्रेस के अब्दुल लतीफ ने भारतीय जनसंघ के भूदेव सिंह को पराजित किया। 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस का तिलिस्म टूटा। निर्दलीय प्रकाशवीर शास्त्री ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के अब्दुल लतीफ को चुनाव में पटकनी दे दी। 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से चुनाव जीत लिया। इंडियन नेशनल कांग्रेस के स्वामी प्रसाद शास्त्री ने भारतीय जनसंघ के एस राम को चुनाव में हराया। 1971 के चुनाव में भी बिजनौर सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। इंडियन नेशनल कांग्रेस के स्वामी रामानंद शास्त्री ने भारतीय क्रांति दल के महीलाल को चुनाव में शिकस्त दी। 1974 के चुनाव में कांग्रेस के रामदयाल निर्विरोध सांसद चुने गए। 1977 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर इतिहास बदलना शुरू हो गया। भारतीय लोकदल के महीपाल ने चुनाव जीता। उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस के महीलाल को पराजित किया। 1980 में जनता पार्टी सेकुलर के मंगलराम प्रेमी ने इस सीट पर कब्जा जमाया। उन्होंने जनता पार्टी के महीलाल को चुनाव हराया। 1984 के चुनाव में फिर से इस सीट पर कांग्रेस ने कब्जा किया। इंडियन नेशनल कांग्रेस के गिरधारीलाल ने लोकदल प्रत्याशी मंगलराम प्रेमी को चुनाव में पटकनी दी। गिरधारी लाल के निधन के बाद 1985 में हुए उपचुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस की मीरा कुमार पहली बार सांसद बनीं। उन्होंने लोकदल प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को चुनाव हराया। बसपा सुप्रीमो मायावती निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ीं और वे तीसरे नंबर पर रहीं। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में मायावती का सितारा बुलंद हुआ। मायावती पहली बार बिजनौर सीट से सांसद बनीं। बसपा से चुनाव लड़ीं मायावती ने जनता दल के मंगलराम प्रेमी को हराया। इंडियन नेशनल कांग्रेस से चुनाव लड़ीं पूर्व सांसद गिरधारी लाल की पुत्री आशा चौधरी दूसरे नंबर पर रहीं। 1991 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने पहली बार कब्जा किया। भाजपा से चुनाव लड़े मंगलराम प्रेमी ने मायावती को चुनाव हरा दिया। इसके बाद मायावती ने जिले की राजनीति से नाता खत्म कर लिया और फिर कोई चुनाव नहीं लड़ीं। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का कब्जा रहा। भाजपा से मंगलराम प्रेमी चुनाव लड़ें और उन्होंने सपा के सतीश कुमार को चुनाव हरा दिया। 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर पहली बार सपा ने परचम लहराया। सपा की ओमवती ने भाजपा के मंगलराम प्रेमी को चुनाव हराया। 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के शीशराम रवि ने फिर से कब्जा कर लिया। शीशराम रवि ने सपा की ओमवती को हराया। 2004 में रालोद व सपा के गठबंधन में रालोद के मुंशीराम पाल ने पहली बार रालोद को इस सीट पर जीत दिलाई। मुंशीराम पाल ने बसपा के घनश्यामचंद खरवाल को हराया। 2009 के चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन में रालोद इस सीट पर काबिज हुई। रालोद के संजय सिंह चौहान ने बसपा के शाहिद सिद्दीकी को चुनाव में हराया। 2014 के चुनाव में मोदी लहर में भाजपा ने फिर से बिजनौर सीट पर कब्जा जमाया। भाजपा के भारतेंद्र सिंह पहली बार सांसद बने। उन्होंने सपा के शाहनवाज राना को चुनाव में पटकनी दी। 2009 में पहली बार नगीना लोकसभा सीट पर सपा के यशवीर सिंह ने कब्जा किया। उन्होंने बसपा के आरके सिंह को चुनाव में पटकनी दी। 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने यह सीट कब्जा ली। भाजपा के डा.यशवंत सिंह ने सपा के यशवीर सिंह को चुनाव हराया। डा.यशवंत सिंह पहली बार सांसद बने।
अमर उजाला 20 Mar 2019 12:20
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