मेरे जनपद के गाँधी वादी वैज्ञानिक की आज पुण्य तिथि है. उनके विषय में अनोखी जानकारी प्रस्तुत है। सरल व्यक्तित्व के धनी को 1974 में मैंने एक पत्र लिखा था जिसके उत्तर में उन्होंने हस्तलिखित पोस्टकार्ड मुझे भेजा ! ख़ैर जानिए इस महान पुरुष के विषय में...
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का नाम विज्ञान के पृष्ठो पर अमर करने वाले महामना
आत्माराम जी की पुण्यतिथि के अवसर पर नमन
पूरा नाम डॉ. आत्माराम
जन्म 12 अक्टूबर, 1908 जन्म भूमि पीलना, बिजनौर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु6 फ़रवरी, 1983
शिक्षा बी.एससी. (कानपुर), पी.एचडी. (इलाहाबाद) पुरस्कार-उपाधि शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (1959), पद्म श्री (1959)विशेष योगदान : चश्मे के काँच के निर्माण में सराहनीय योगदान नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारीआत्माराम जी की स्मृति में 'केन्द्रीय हिन्दी संस्थान' द्वारा प्रतिवर्ष दो लोगों को 'आत्माराम पुरस्कार' दिया जाता है।
अर्थपरक वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी के पक्षधर आत्माराम जी विज्ञान की शिक्षा अपनी भाषा में देने पर जोर देते थे। उनके जीवन में इतनी सादगी थी कि लोग सम्मान के साथ उन्हें गांधीवादी विज्ञानी कहा करते थे।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक और औद्यौगिक अनुसंधानशालाओं के महानिदेशक डॉ. आत्माराम का
शोध कार्य
विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के बाद आत्माराम ने कांच और सेरोमिक्स पर शोध आरंभ किया। ऑप्टिकल कांच अत्यंत शुद्ध कांच होता है और उसका उपयोग सूक्ष्मदर्शी और विविध प्रकार के सैन्य उपकरण बनाने में किया जाता है। भारत में यह कांच जर्मनी से आयात होता था। इस पर प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा व्यय होती थी। डॉ. आत्माराम ने बड़ी लगन के साथ शोध करके भारत में ही ऐसा कांच बनाने की विधि का अविष्कार कर लिया। इससे न केवल देश की आत्मनिर्भरता बढ़ी वरन् औद्योगिक क्षेत्र में उसके सम्मान में भी वृद्धि हुई। 1967 में आत्माराम जी को देश की प्रमुख वैज्ञानिक संस्था 'वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद' का महानिदेशक बनाया गया।
डॉ. आत्माराम विज्ञान की शिक्षा अपनी भाषा में देने पर जोर देते थे।
आत्माराम के प्रयास से काँच और सिरेमिक उद्योग में काम आने वाले पदार्थों के देश में उपलब्ध संसाधनों का व्यापक सर्वेक्षण किया गया, जिससे इन पदार्थों का आयात खर्च बचाया जा सका।
2. आत्माराम ने काँच और सिरेमिक उत्पादों की गुणवत्ता जाँच और सलाह केन्द्र विकसित किया जिससे देश में इन उत्पादों की गुणवत्ता सुधारने और मूल्य कम करने में मदद मिली। उनकी कोशिश रहती थी कि यदि आयातित सामान के स्थान पर देसी सामान का उपयोग करके गुणवत्ता बनाई रखी जा सके तो ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए।
3. देश में बिहार, मध्य प्रदेश आदि प्रांतों में अभ्रक के विशाल भण्डार हैं। यहाँ अभ्रक की चादरें उपयोज्य आकार में काट कर निर्यात की जाती थीं। कटिंग और चूरे के बड़े-बड़े ढेरों को निपटाने की समस्या थी। उन्होंने इस अभ्रक अपशिष्ट को ईंटों में बदलने की प्रौद्योगिकी विकसित की, जिससे देश में ऊष्मारोधी पदार्थों से बने उत्पाद निर्माण का नव-पथ प्रशस्त हुआ।
4. चूड़ी उद्योग को, जो उस समय लाल रंग की चूड़ियों के लिये आयात करके सेलेनियम का उपयोग करता था, उससे भी अच्छा रंग कॉपर ऑक्साइड द्वारा प्राप्त करना सिखाया।
5. उनके मार्गदर्शन में सीजीआईआरआई में हुए मुख्य अनुसंधानों में शामिल हैं: रासायनिक पोर्सिलिन, बोरेक्स रहित विट्रस एनेमल, धूप के चश्मे, विभिन्न रंगों के रेलवे सिग्नलों के काँच, विशिष्ट क्रूसिबिल, तारों और प्रतिरोधों के लिये एनेमल, वाहनों में उपयोग के लिये स्पार्क प्लग, पोर्सिलिन के दाँत, pH मीटरों के लिये काँच के इलेक्ट्रोड, सिरेमिक उद्योग में उपयोग हेतु प्लास्टर ऑफ पेरिस एवं विभिन्न प्रकार के रंग, फोम-ग्लास, उद्योगों के लिये फर्नेस (भट्टी) आदि।
6. प्रकाशिक काँच अनुसंधान और मिलिटरी उपयोग के अनेक यन्त्रों, जैसे रेंज फाइन्डर, पनडुब्बी पेरिस्कोप, टेलिस्कोप, सूक्ष्मदर्शी, बाइनाकुलर, कैमरों, टैंक गन साइट यन्त्रों, स्पेक्ट्रममापियों आदि में उपयोग में लाया जाता है। विश्व में केवल जर्मनी में ही इसकी प्रौद्योगिकी उपलब्ध थी। आत्माराम ने अपने साधनों से ही सीजीसीआरआई में उच्च गुणवत्ता के निर्माण की प्रौद्योगिकी विकसित कर दिखाई।
(Chitra internet se sabhar )
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