बिजनौर राजपूत (चौहान) वंशावली बिजनौर मित्र मंडल की स्मारिाक से साभार

अनपर्व बिजनौर


राजपूत (चौहान) वंशावली


प्रस्तुत कर्ता भूपेन्द्रसिंह (आजमपुर)

राजपूत कौम बाबर बादशाह के जमाने तक राजपूताने में रहती थी जहां उनकी विभिन्न राजपानियां स्थापित थी । सन् 1530 में बाबर की मृत्यु के बाद देश में काफी प्रशान्ति और उपद्रव हो रहे थे। उस समय मौजूद जिला बिजनौर वन था। जिला व परगना मधी के नाम से मशहूर था, और वहां पठानों का अधिपत्य था। भील कौम भी तुकों के साथ ही मिलकर रहती थी ।उस समय यहां जंगलों में भैरों सिद्ध तपस्या करते थे। तुर्कों ने, जो शिकार करते घूमते थे, भैरों सिद्ध से गोश्त पकाने के लिए आग व पानी मांगा तब भैरो सिद्ध ने इन्कार कर दिया । समझाया भी, पर वे न माने और वहीं गोश्त पकाकर खाया । वे उनके बाद  गये। बाद में भैरों सिद्ध


माया भैरों सिद्ध ने श्राप देकर वह स्थान छोड़ (1) राजा मुकुट सिंह, निवासी सिखावेडी दिया और कहा- तुमने हमारा स्थान अपवित्र (2) राजा मालदेव, निवासी छागला- मौजू किया है। ईश्वर तुम्हारी हुकूमत (राज्य) तुमसे आबाद (3) राजा श्याम सिंह व रामसिंह (4) छुड़ायेगा। तब भैरों सिद्ध सोमवती अमावस को राजा रणधीर सिंह व कांधल सिंह, निवासी गंगा स्नान के लिए गढ़-मुक्तेश्वर (जिला मेरठ) नीमसराय, (5) राजा गोपीचन्द, निवासी चले जाये। भैरों सिद्ध एक मशहूर योगी थे । चित्तौरगढ़, (6) राजा बलभद्र सिंह (7) राजा राजस्थान के तथा अन्य राजा भी स्नान के लिए गजानन देव चौहान, निवासी आबुगढ़, (8) वहाँ आये थे। वे भैरों सिद्ध के दर्शन करने गये राजा वाग्चन्द्र व राजा गुप्तसैन (9) राजा और उनसे अपने डेरों पर चलने की प्रार्थना की अमरजीत सिंह व मगनसिंह निवासी गोरीपुर तब भैरों सिद्ध ने कहा- हमें तुर्की ने सताया है। तलवाडी ( 10 ) राजा मानधाता सिंह चौहान, यदि तुम उनसे बदला लेने का वचन दो तो हम निवासी बरसुई दकुवनी तलवाड़ी) (11) तुम्हारे साथ चलेंगे। राजाओं के हां करने पर राजा रामचन्द्र, निवासी दहनरानी (12) राजा आनन्द सिंह, निवासी घावलिंग को लेकर राजा मुकुट सिंह के पास गये जो उस उपरोक्त सभी राजाओं ने महताब और समय के एक जाने-माने राजा थे। सब बातें सुन हसनपुर के मैदान में छावनी डाली और वहां से कर राजा मुकुट सिह ने कहा- क्षत्रिय का जन्म धनौरे की ओर गये। इन राजाओं के पास बारह साथ गऊ व ब्राह्मण की रक्षा करने के लिए हुआ हजार दो सौ सैनिक थे। वहां से प्रस्थान कर है। क्योंकि तुर्कीों ने नींदड़ में राजा नवल सिंह चांदपुर की घाटी में छावनी डाली और चांदपुर का राज्य छीना है और भैरों सिद्ध को सताया है के पश्चिम में रुके जो कालान्तर में संन्द्रार अत: दिये गये वचन के अनुसार हमें धर्म की रक्षा (सेना का द्वार) के नाम से जाना गया। सभी के लिए उनसे लड़ना होगा। परिणाम स्वरूप राजाओं ने पराक्रम और आपसी तालमेल से बारह राजा इस युद्ध के लिए तैयार हुए जो इस मधी के नवाब फतेहउल्ला खाँ पठानी रुहेला पर

चौहान हमीरी, गोत्र तिलंज ने नंगला, बसेड़ा कर दिया और नींदड़ (नींदड़गढ़) तक छावनी कुंवर बसाया ।


विजय पायी और तुर्कों को नबाब सहित कत्ल डाली। सहायता के लिए तुकों का कोई ग्रादमी रामगंगा पार सरकड़ा के राजा के पास गया जो पुण्डीर राजपूत था । तुर्की के साथ वह इन राजाओं के मुकाबले में पाया । पुन्डीर राजा को बसाये । करारी हार मिली और उसने भागकर मुजफ्फर नगर में शरण ली। इस युद्ध में राजा अमरजीत सिंह के दो पुत्र वीरगति को प्राप्त हुए।


इसके बाद वन को साफ किया गया और चौरासी- चौरासी गांवों का एक तालुका बनाया गया। इस प्रकार तेरह तालुके बनाये गये । सिरमौर होने के कारण राजा मुकुटसिंह के पास दो तालुके रहे तथा बाकी सब पर एक-एक तालुका रहा। इन राजाओं के द्वारा बसाये गये गाँव इस प्रकार हैं।


1. राजा मुकुटसिंह, सूर्यवंशी, अलकुशवाहा, टर सखावत, गोत्र वशिष्ठ ने प्रथम गाँव भटियाना बसाया । सात वर्षों तक सभी राजा नीदड़ में रहे। फिर इन्होंने अलग-अलग गाँव बसाने शुरू किये। राजा मुकुटसिंह की औलाद के द्वारा बसाये गये गाँव इस प्रकार हैं-भटियाना, मटौरा, गारोपुर, ऊमरी, खदाना, तरकौला, मौरना, दौलतपुर, दरियापुर, गुनिया खेड़ी, जमालपुर, तेलीपुरा, रवाना, सिड्यावली, गढ़ी, बुडेरन, बसाये । जमालपुर तथा रामगंगा पार का सरकड़ा।


2. राजा मालदेव, सूर्यवंशी, अलकुशवाहा (नरुका), टरसखावत, गोत्र वशिष्ठ ने प्रथम गाँव स्याऊ बसाया। बाद में सेन्दार, श्राजमपुर, जाफराबाद कुरई (जाफरा) बसाया ।


3. राजा श्यामसिंह व रामसिंह, सूर्यवंशी, अलकुशवाहा, मुरड़ जावत, गोत्र वशिष्ठ ने एक मात्र गाँव सरकड़ा बसाया


5. राजा गोपीचन्द, प्रलसिसौदिया, सूर्य वंशी, गोत्र वशिष्ठ ने पाँच गाँव पीपलसाना, धामपुर कलाँ, जंतरा, मधी व परमावाला


6. राजा बलभद्र सिंह, चन्द्रवंशी, गोत्र शिशवनखण्डे अलकुल गौड़ ने कालाखेड़ी, मिर्जालीपुर, शादीपुर बसाये ।


हरगनपुर,


7. राजा गजाननदेव चौहान, अलकुल चौहान देवरा, गोत्र तिलंज सरु ने बाछलपुर सह बाजपुर, गौहावर, असगरीपुर व पुरैनी बसाये ।


8. राजा बागचन्द व राजा गुप्तसैन, चन्द्र वंशी, अलकुलबीस, तिलोकचन्दी, गोत्र भारद्वाज ने वागा नाँगल, जमीलपुर, नहटौर, हल्दौर, कुम्हारपुरा और बाद में बिलाई बसाये।


9. राजा श्रमरजीत सिंह व मगनसिंह अलकुल चौहन महेन्द्रोवार, अग्निवंश, (चन्द्रवंशी), गोत्र वंशलच्छ (बाछल) ने दो गाँव फीना तथा तीवड़ी बसाये ।


10. राजा मानधाता सिंह, अलकुल चौहान, अग्निवंश (चन्द्रवंशी), बाछल (वत्स) गोत्र तिलंज ने दो गाँव अमखेड़ा तथा सरकथल


11. राजा रामचन्द्र, अलसिसोदिया, गहू लौत, सूर्यवंशी, गोत्र वशिष्ठ ने केवल एक गाँव शेरकोट बसाया ।


12. राजा श्रानन्दसिंह, अलकश्यप गोत्र वशिष्ठ, सूर्यवंशी ने नन्दपुर, नगीना, सराय नसीरपुर और बाद में बुडगरा बसाया ।


अकबर के समय में इन्हीं राजाओं की औलाद को चौधरी की पदवी मिली, इसी कारण 4. राजा रणधीरसिंह, कान्धलसिंह, अलकुल आज भी ये चौधरी कहलाये जाते हैं । बिजनौर जिले में चौहानों की उल्लेखनीय सेवाएं रहीं हैं। शेरकोट, हल्दौर, बसेड़ा आदि


उनकी रियासतें रहीं हैं।


निवास 1 30- गगन बिहार, दिल्ली



 

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