बिजनौर का वैश्य राजवंशी समाज

बिजनौर का वैश्य राजवंशी समाज --- वी०पी० गुप्ता मोबाइल 8979574567 हमारे देश का वृहद हिन्दू समाज अनेक वर्णों , जातियों और उप जातियों में विभक्त है ।इनमें वैश्य जाति वाणिज्य , व्यापार और उद्योग में संलग्न होने के कारण धनाढ्य मानी जाती है।इसीलिए ये जाति समाज में एक प्रमुख स्थान रखती है। वैश्य जाति में भी कई उप जातियां हैं ।इन सबमें अग्रवाल वैश्य अग्रणी माने जाते हैं । अग्रवाल वैश्य महाराजा अग्रसेन को अपना प्रवर्तक मानते हैं जो वर्तमान हरियाणा राज्य के हिसार क्षेत्र में , स्थित अग्रोहा राज्य के यशस्वी शासक थे । माना जाता है कि वे अयोध्या नरेश महाराजा राम चन्द्र जी के पुत्र कुश के वंशज थे । महाराजा अग्रसेन के दो रानियां थीं । बड़ी रानी से उत्पन्न सन्तान अग्रवाल कहलाई और छोटी रानी से उत्पन्न सन्तान राजवंशी कहलाई । इस प्रकार ये दोनों , अग्रवाल और राजवंशी , बड़े भाई और छोटे भाई हैं ।दोनों के पूर्वज , रीति रिवाज़ , गोत्र , समान हैं । अग्रवाल वैश्य अधिकतर वाणिज्य , व्यापार एवं उद्योग में रत हैं , जबकि राजवंशी वैश्यों का झुकाव उच्च शिक्षा प्राप्ति के बाद नौकरियों तथा बौद्धिक पेशों की ओर अधिक है , जैसे डॉक्टरी , वकालत , इंजीनियरिंग , शिक्षण , इत्यादि । यहां पर एक ऐतिहासिक तथ्य उल्लेखनीय है । राजवंशी वैश्य 17 वीं शताब्दी में मुजफ्फरनगर जनपद के कस्बा मीरापुर में लाला जय लाल सिंह गोयल , आढ़ती , के घर उत्पन्न रतन चन्द जी को अपना प्रेरणा स्त्रोत , मार्गदर्शक व आदर्श मानते हैं ।वे अपनी प्रतिभा के बल पर तरक्की करते हुए तत्कालीन मुग़ल बादशाह फर्रुखसीयर के दरबार में पहुंच गए और खज़ाने व राजस्व विभाग के प्रभारी बन गए।बादशाह ने उनको राजा का खिताब दिया । राजा रत्न चन्द ने उस समय हिन्दुओं से लिए जाने वाले जजिया कर को समाप्त करवाया और हिंदुओं को , विशेष रूप से वैश्यों को बड़ी संख्या में राजस्व विभाग में नियुक्त किया । उन्होंने वैश्य समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को त्यागने के लिए बहुत प्रयास किया , और युवकों से शिक्षा प्राप्त करने और शासन प्रशासन में अच्छी नौकरियां प्राप्त करने अथवा अन्य क्षेत्रों में सेवा करने के लिए प्रेरित किया। इससे उनकी सामाजिक और आर्थिक उन्नति हो । स्वाभाविक ही था कि अग्रवाल बंधुओं को , जो स्वाधीनता के साथ व्यापार से धनोपार्जन कर रहे थे , राजा रतन चन्द जी का मुगलों की नौकरी करना पसंद न आया और उन्होंने राजा रत्न चन्द व उनके अनुयायियों का बहिष्कार कर दिया । राजा रतन चन्द के समर्थक , उनके अनुयायी और वे सब जो उनसे लाभान्वित हुए थे , राजा की बिरादरी अथवा राजाशाही कहलाए । दुर्भाग्य से , शाही दरबारों में चलते रहने वाली साजिशों का शिकार हो कर राजा रतन चन्द सन 1720 में मृत्यु को प्राप्त हो गए । राजा रतन चन्द के अनुयायी जिनको अब राजा की बिरादरी अथवा राजशाही न कह कर , राजवंशी कहा जाता है ।ये मुजफ्फरनगर , बिजनौर , मेरठ इत्यादि जनपदों में प्रमुखता से फैले थे , पर कालांतर में अच्छे सुअवसर और अच्छी नौकरियां पाने पर देश के विभिन्न नगरों में फैल गए हैं । बिजनौर से और कुछ कस्बों से राजवंशी परिवार राजस्थान के बीकानेर ,कोटा , जोधपुर , आदि स्थानों मैं बस गए हैं । राजवंशी वैश्यों की कुछ चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख अप्रासंगिक न होगा । ये लोग अधिकतर नौकरी पेशा होते हैं इसलिए आवश्यक रूप से उच्च शिक्षित होते हैं , बोल चाल में सभ्य भाषा का प्रयोग करते हैं , कभी कभी स्वभाव में कुछ अकड़ - सी भी नज़र आती है , नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते ।जेब में बेशक माल कम हो पर ठाट बाट में कमी नहीं , रहन - सहन , खान - पान , घर का रख - रखाव , मतलब सही मायने में राजवंशी नजर आते हैं । दान देने में पीछे नहीं , आर्थिक सहायता करने में पीछे नहीं , खातिरदारी करने को सदैव तत्पर । अच्छे नेक लोग हैं । कालांतर में , जैसे −जैसे समाज के हालात में परिवर्तन आया , अग्रवाल वैश्यों की नई पीढ़ियों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया , और शासकीय नौकरी करने में उन्हें कोई बुराई नहीं दिखाई दी । अत: अपने राजवंशी बंधुओं से अलगाव की कोई वजह न देखते हुए सब मिलकर फिर एक हो गए । आज अग्रवाल युवक बड़ी संख्या में नौकरी कर रहे हैं या अन्य सेवा क्षेत्रों में कार्य करते हुए धन और यश कमा रहे हैं, और राजवंश युवक भी व्यापार कर रहेहैं । बिजनौर में राजवंशी वैश्य बड़ी संख्या में हैं , पर अधिकतर अपने नाम के साथ गुप्ता लगाते हैं या अपना गोत्र , इसलिए सही संख्या पता नही चल पाती । फिर भी , बिजनौर निवासी कुछ राजवंशी वैश्यों के नाम दिए जा रहे हैं जिन्होंने देश प्रदेश में प्रसिद्धि प्राप्त की है -- राजा ज्वाला प्रसाद ( ब्रिटिश शासन में प्रथम भारतीय चीफ इंजीनियर ),बाबू विश्वामित्र जी, वकील , स्वतंत्रता सेनानी,धर्मवीर जी , आईसीएस ,( पद्म विभूषण,कई राज्यों के राज्यपाल,बाबू गोविंद सहाय , प्रखर राजनीतिज्ञ,शान्ति भूषण जी , सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट , केन्द्रीय कानून मंत्री, कुं० सत्यवीर , शिक्षाविद , प्रदेश के पूर्व राज्य मंत्री,क्रान्ति कुमार , राजनीतिज्ञ , प्रदेश के मंत्री,इंजीनियर बैजनाथ जी,बाबू बनारसी प्रसाद गुप्ता वकील,बाबू राम चन्द्र गुप्ता वकील,डॉ० नीरज कुमार गुप्ता आर्थो० सर्जन, ओम प्रकाश गोयल , डीजीसी.,डॉ० किशोरी लाल,डॉ० हरगुलाल,नेमी शरण जैन सांसद, डॉ०( मेजर ) देवास्वरूप, परमात्मा शरण कंसल, चीफ इंजीनियर रेलवे,अभिनंदन शरण कंसल, चीफ इंजीनियर , रेलवे,प्रधानाचार्य चैतन्य स्वरूप गुप्ता,) राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित), प्रताप सिंह , जज( "बिना रास्ते की कोठी" वाले), मेजर जनरल राजेश मित्तल, चीफ इंस्ट्रक्टर , एनडीए , पुणे और इंजी० वेद प्रकाश गर्ग , चीफ इंजीनियर, हाइडल आदि −आदि। ये बहुत थोड़े से नाम बिजनौर नगर तथा पास पड़ौस में निवास करने वाले उन राजवंशियों के हैं जिन्होंने अपने कार्यों से समाज में नाम अर्जित किया । जनपद के अन्य नगरों व कस्बों में निवास कर रहे बड़ी संख्या में राजवंशियों का भी देश निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। वीपी गुप्ता (वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद हैं)

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