रवा राजपूतों का उज्जवल इतिहास

 रवा राजपूतों का उज्जवल इतिहास

मेरी नव प्रकाशित पुस्तक, 

" Historical, Cultural and Scientific Heritages of India" 

से अनुवादित।

वैदिक काल से ही शासन करना और प्रजा का न्याय पूर्वक पालन करना तथा मातृभूमि  की रक्षा करना क्षत्रियों के प्रमुख कर्म माने जाते थे तथा सप्तम विक्रम संवत तक  शासक क्षत्रिय नरेश ही होते थे। मध्य युग में क्षत्रियों का स्थान उज्जवल वंशीय राजपूतों ( राजपुत्रो अर्थात राजा की संतानों) ने के लिया था जिन्हें लोग ठाकुर अथवा स्वामी भी कहते थे। इनके मूल स्थान हस्तिनापुर के पश्चिम में ( गंगा, मालिन एवम रवाशा नदियों के बीच में), अवध के दक्षिण में, अवंती तथा राजपुताना में थे जहां से ये दसवें विक्रमी संवत में पंजाब, कश्मीर, उत्तरी भारत, मध्य भारत और सुदूर पूर्व तक फैल गए थे तथा तेरहवें विक्रमी संवत में मध्य हिमालय के क्षेत्रों में भी बस गए थे।राजपूतों में रवा राजपूतों ( अथवा रावल अथवा राव, अथवा राय, अथवा राई अथवा रावत अथवा रोहिला) को उच्च वंशी राजपूतों में माना जाता है तथा इन्हे सूर्यवंश, चंद्रवंश एवम अग्निवंश के प्रसिद्ध नरेशो के वंशज माना जाता है।इनमे से सूर्यवंशी रवा राजपूत शिशोदिया कुल के हैं जिन्हें श्री राम ( बप्पा रावल के माध्यम से) का वंशज माना जाता है । चंद्रवंशी रवा राजपूतों का भी अति उज्ज्वल इतिहास है तथा इन्हे चंद्रदेव के पुत्र बुद्ध एवम इक्ष्वाकु ( मनु की चौथी पीढ़ी) की भगिनी इला के पुत्र पुरुरवा का वंशज माना जाता है।इनका छठा पुत्र राव था जिसके वंशज चंद्रवंशी रावा (रवा) कहलाए थे । राजपूतों के प्रसिद्ध छत्तीस कुलों में रवा राजपूतों के छह कुल हैं: गहलोत ( शिशोदिया) , कुशवाहा ( कच्छवाहा), तंवर ( तोमर), यदु, चौहान तथा पंवार( परमार)। रवा राजपूतों के इन सभी कुलों ने भारत के विभिन्न राज्यों की स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता के लिए अनेक अवसरों पर अपने प्राणों का बलिदान दिया था। सम्राट पृथ्वीराज चव्हाण के पतन के बाद दिल्ली में आक्रमण कारी मुस्लिम  एवम मुगल शासन की स्थापना के बाद भी उनका पूरे भारत पर अधिकार कभी नही हो पाया था उस काल खंड में भी रवा राजपूतों के नरेशों (ग्वालियर के तोमरों एवम मेवाड़ में  राणाओं के राजवंशों) के शासन थे। तोमरों ( तंवर) महाभारत के अर्जुन के वशंज माने जाते हैं। इन्होंने विक्रमी संवत 849( 792 ई) में दिल्ली राजधानी  बनाई थी तथा दिल्लका ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवम पंजाब)  को स्थापित किया था। दिल्ली के अंतिम तोमर शासक अनंग पाल थे जिन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। उस काल में अन्य प्रसिद्ध रवा राजपूत शासक  ग्वालियर नरेश मानसिंह तोमर थे जिन्होंने सिकंदर लोदी को ग्वालियर पार करके दक्षिण की और नही बढ़ने दिया था। मेवाड़ के राणाओं ने भी मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमणों के कठिन समय में भी स्वतंत्रता एवम स्वायत्ता के ध्वज को वीरता साथ संभाले रखा था। रावत राजपूत चंद्रवंशी चौहानों ( पृथ्वीराज के भाई हरिराज ) के वंशज माने जाते हैं जो पृथ्वीराज के साम्राज्य के पतन के पश्चात विक्रमी संवत 1249(1192 ई) में पर्वतों और सघन वनों में जाकर बस गए थे।समय के साथ कुछ राठौर, रोहिल, पंवार, भाटी, गहलोत तथा शिशोदिया कुल भी रावत राजपूतों ने समिल्लित होगए थे। अजमेर के रावतों के दस ठिकाने ( रियासतें) थे जो मेवाड़ से दिवर ( उदयपुर दरबार )तक फैले थे तथा इन्होंने सदा ही मुस्लिम आक्रांताओं एवम मुगल आक्रमणकारियों के विरुद्ध संघर्ष में मेवाड़ के महारानाओं का साथ दिया था। उत्तराखंड एवम दतिया के रावत गंगा यमुना तथा मालिन रवाशा नदियों के मध्य मैदानी क्षेत्रों से गए थे।


रोहिल राजपूत भी रवा राजपूतों के ही कुल हैं जो पांचाल क्षेत्र के रोहिलखंड में बस गए थे तथा वहा इन्होंने दीर्घ काल तक शासन किया था।दसवें विक्रमी संवत में रोहिल नरेश विग्रहराज ने रोहिल राज्य की सीमा को यमुना तट पर  सुगनापूर्व तक विस्तारित कर लिया था तथा उसकी पश्चिमी सीमा पर सरसावा के विशाल  दुर्ग  को स्थापित किया था।इनकी सातवी पीढ़ी में नवरंग देव रोहिलखंड के प्रतापी नरेश हुवे थे जिनके वीर पुत्र हंसाकरण रहकवाल पृथ्वी राज चव्हाण की सेना में एक  सेनापति थे।अन्य प्रसिद्ध रिहोला शासक राजसिंह (पांचाल), सहारण (थानेश्वर), प्रताप सिंह ( करौली गंगोह), महेंद्रपाल पंवार ( जगादरी तथा जींद), परमदेव पुंडीर ( लाहौर) तथा इंद्रगिरि ( सहारण पुर) हुवे हैं।इनके प्रसिद्ध शासक  इंद्रगिरी सहारण ने प्रसिद्ध रोहिल दुर्ग का निर्माण कराकर सहारण नगर की स्थापना की थी । इनके वंशज सहारण कहे जाते हैं जो सूर्यवंश की एक गौरवशाली शाखा है।  पृथ्वी राज चव्हाण की सेना में रवा राजपूतों के पांच रावल कुलो के वीर थे: रावल (रोहिले), रावल (सिंधु), रावल ( गहलोत), रावल (कशाच) तथा रावल ( बल्द) । फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय थानेशर (कुरुक्षेत्र) में सहारण का ही शासन था। दिल्ली ने गुलाम वंश के शासन के समय स्वतंत्र स्वायत शासी रोहिलखंड की राजधानी रामपुर में थी जिसे रोहिल नरेश राजा राम शाह ने स्थापित किया था। इनके वंशज रोहिल राजा रणवीर सिंह ( काठी कुल  एवम निकुंभ गोत्र के)  ने फिरोज तुगलक के प्रधान सेनापति नसीरुद्दीन चंगेजी को परास्त किया था। विक्रमी संवत 1249 में दिल्ली में सम्राट पृथ्वीराज चव्हाण के पतन के बाद विक्रमी संवत 1250( 1193 ई) में गुलाम शासक कुतुबदीन ऐबक ने चितौड़ पर  अचानक आक्रमण कर दिया था जब  नरेश राणा समर  सिंह वहा नहीं थे। उनकी अनुपस्थिति में उनकी महारानी ने मात्र 21 रोहिल राजपूतों, 9 रावलों, और 1 रावत योद्धा ( सभी रवा राजपूतों के कुल) की सहायता से वीरता के साथ गुलाम सेना को  परास्त करके भगा दिया था जिसके बाद गुलाम शासक कभी भी चितौड़ पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर पाए थे। 

रवा राजपूतों का अन्य प्रसिद्ध कुल राठौड़- कुल हैं। नाडोल नरेश राव नर राठौर कुल के थे जिन्होंने विक्रमी संवत 1516 में जोधपुर की स्थापना की थी। राव महादेव राठौर इसी कुल के थे जिनका जन्म विक्रमी संवत 1568 में हुवा था जिन्होंने विकरमी संवत 1584 में विदेशी अक्रांता बाबर के विरुद्ध खनवा के प्रसिद्ध युद्ध में महाराणा संग्राम सिंह का सक्रिय  साथ दिया था। इनकी पौत्री कुंवरी फूलदेवी महाराणा प्रताप की छठी महारानी थी । इसी राठौर वंश में मारवाड़ नरेश जसवंत सिंह राठौर तथा उनके अग्रज प्रतापी वीर अमर सिंह राठौर थे। राठौर वीरों के कई कुल मध्य भारत तथा गुजरात तक फैल गए थे।

रोहिल रवा राजपूतों के कुल  सूर्यवंशी श्री राम के अनुज भरत के वंशज माने जाते हैं। इसी वंश के  वीर नरेश जसवंत सिंह सत्रहवे विक्रमी संवत में स्वायत शासी अति समृद्ध राज्य सरसावा के शासक थे जिन्होंने मुगलों के साथ अनेक युद्ध किए और कभी उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी। इनका स्वतंत्र राज्य पश्चिम में  यमुना नदी से पूर्व में  हस्तिनापुर के गंगा तट तक तथा उत्तर में गंगा तट पर ज्वालापुर से दक्षिण में भद्रा नदी के तट पर वर्णाव्रत तक फैला था।जब  मुगल शासक शाहजहां ने विक्रमी संवत 1690 ( 1633 ई) में उत्तर में नव निर्मित हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया तो सरसावा नरेश  जसवंत सिंह तथा उनके मित्र जगादरी नरेश महावीर सिंह राई, तथा सहारण पुर नरेश सबल सिंह ( सभी रवा राजपूत) ने उत्तरी भारत के कनेरी कला राज्य के वीर नरेश ब्रजपाल सिंह , दसौली ( तनगढ़ क्षेत्र गढ़वाल),  देवल गढ़ ( गढ़वाल) की महारानी कर्णावती एवम उनके पुत्र नरेश पृथ्वीपाल शाह तथा पत्थर गढ़ ( मानगढ़ जो अब नजीबाबाद के नाम से जाना जाता है) के नरेश मानसिंह ( सभी रवा राजपूत) ने इसका प्रबल विरोध किया तथा इन की संगठित शक्ति के कारण मुगल सेना देवभूमि में कभी प्रवेश नहीं कर पाई थी जिस से देवभूमि के सभी धामों के सभी पवित्र मंदिर तथा कनखल, हरिद्वार एवम मायानगरी के सभी ऐतिहासिक मंदिर सुरक्षित रहे थे । अत्याचारी तथा मूर्ति भंजक एवम मंदिर  विध्वंसक औरंगजेब के शासन काल में भी ये सभी मंदिर उस समय पर कनेरी  कला के प्रतापी वीर नरेश अनिरुद्ध सिंह ( ब्रजपाल सिंह के पुत्र)  के नेतृत्व में उक्त  सभी राज्यों की संगठित शक्ति के संरक्षण में पूर्णतः सुरक्षा रहे। 

कनेरी कला नरेश अनिरुद्ध सिंह ( नरेश ब्रजपाल सिंह के पुत्र) के पूर्वज भी रवा राजपूत थे जिन्होंने  प्राचीन समय में खांडव प्रस्त से आकर उत्तर हिमालय  की दक्षिणी सीमा पर  हरिद्वार और  ऋषिकेश के मध्य कनेरी कला राज्य   ( जहां अब  भूस्खलन से निर्मित मुनिंकी रेती में अनेक संतो के आश्रम हैं) की स्थापना की थी। उस काल खंड में जगादरी नरेश राई महावीर सिंह के पूर्वज भी रवा राजपूत थे जिन्होंने पृथ्वी राज चव्हाण के  साम्राज्य के पतन के बाद खांडव प्रदेश से आकर हूणों को हराकर  जगादरी राज्य की स्थापना की थी ।कालांतर में इन्होंने स्वयं को रवा से राई ( अथवा रावे) लिखना प्रारंभ कर दिया था । मद्रेपुर ( अब मंडावर) का प्राचीन किला रवासा और मालिन  के बीच के क्षेत्र में बसे रवा राजपूतों  के नरेश मानसिंह के पूर्वजों ने  स्थापित् किया था जिन्होंने  बाद में पत्थर गढ़ के प्रसिद्ध किले में राजधानी बनाई थी । ये नगर मद्रेपुर प्रसिद्ध  प्राचीन मेनका  झील के पास्स्थित है जहां शकुंतला ( दुष्यंत पुत्र भरत का जन्म  हुवा था । महाभारत के युद्ध के पश्चात जनमेजय की पांचवी पीढ़ी के समय हस्तिनापुर के गंगा की बाढ़ मे  बह जाने के बाद नरेश निचकारा ने राजधानी को कौशांबी में स्थानांतरित कर दिया था । तब अनेक रवा राजपूत सैनिकों ने मद्रे पुर के चारो ओर गहन वन में घर बना लिए थे तथा अन्य कुछ  लोग राजपूताना में चले गए थे और शेष दिल्ली  ( प्राचीन खांडव प्रस्त) जाकर बस गए थे। राजा अनगपाल ( पृथ्वी राज के नाना) भीं राव (रवा राजपूत) थे जिन्हो ने दिल्ली में लंबे समय तक राज्य किया था और महरौली ने निकट राव पिथौरागढ़ दुर्ग तथा लालकोट महल बनवाया था।रवा राजपूत अनंग पाल को कोई  पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने नाती पृथ्वी राज चव्हाण को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। इस बहुत संपन्न एवम उन्नत राज्य की सत्ता संभालने के बाद पृथ्वी राज  उत्तरी भारत के अनेक राज्यों को जीत कर  देश के बहुत् शक्ति शाली सम्राट बन गए थे।उन्होंने विदेशी अक्रांता मोहम्मद गौरी को सत्रह बार सम्मुख युद्धों में परस्त करके हर बार क्षमा दान दिया था।उनकी  सेना में अधिकतर योद्धा रवा राजपूत थे तथा प्रधान सेनापति महान योद्धा चौमुंड रवा थे जो पृथ्वी राज की सेना रीढ़ थे तथा इन्हीं के नेतृत्व में सम्राट प्रथ्वी राज को सारी विजय मिली थी। ये अनंग पाल के भतीजे थे तथा पृथ्वी राज के मामा थे।  कन्नौज के राजा जयचंद एवम मोहमद गौरी के षडयंत्र द्वारा  पृथ्वी राज एवम चामुंड राव के मध्य कुछ भ्रांतियां एवम कटुता उत्पन्न कर दी गई थी जिस के कारण  सम्राट  प्रथ्वीराज ने चामुंड्ड राव की अंखोंपर  लोहे की मेखला बांध कर उन्हें कारागार में डाल दिया था। पृथ्वी राज के प्रति गहन स्नेह के कारण उन्होंने इस दंड को सहर्ष स्वीकार कर लिया था। तब दुष्ट एवम देशद्रोही जयचंद ने गौरी को प्रथ्विराज पर  पुनः आक्रमण को प्रेरित किया तथा और अनेक  धोखे एवम षड्यंत्र के द्वारा कारागार में आंखो पर लोह मेखला बंधे चामुण्ड राव की हत्या कराकर पृथ्वी राज को धोखे से बंदी बना लिया था।इसके बाद अनेक रवा राजपूत वीरों ने खांडव परस्त त्याग कर उत्तरी भारत के अन्य क्षेत्रों में  गढ़ी और रियासते बना ली थी। पृथ्वी राज  से भी पहले बप्पा रावल के पूर्वज गुहिलत ( बाद में गहलोत हुवे) इस क्षेत्र से कुछ वीर रवा राजपूतों की सेना लेकर राजपूताना में चितौड़ चले गए थे और वहा अपना राज्य स्थापित कर लिया था। उन्होंने अपने नाम के साथ  रावा के स्थान  पर रावल लगा लिया था। उनके वंशज बप्पा रावल ने मोहमद बिन कासिम को युद्ध में परास्त करके उससे ईरान तक दौड़ाया था। इनके वंशज महाराणा संग्राम सिंह ने अक्रांत बाबर को कई बार परास्त करके भारत की सीमाओं से बाहर कर दिया था ।  इन्ही  के   पौत्र समस्त क्षत्रियों के गौरव महाराणा प्रताप थे जिनसे मुगल शासक अकबर सदा भयभीत रहता था। 

 

मेरी सदर्भित पुस्तक का प्रकाशन प्रगति प्रकाशन, 240, वेस्ट कचहरी रोड मेरठ द्वारा किया गया है ।पुस्तक अमेजन एवम फ्लिप कार्ट पर भी उपलब्ध है।

बलवंत सिंह राजपूत

(पूर्व कुलपति) 

वरिष्ठ वैज्ञानिक

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