बिजनौरवासी जानते भी नहीं राव कदम सिंह को
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बिजनौरवासी जानते भी नहीं राव कदम सिंह कोबिजनौर की आजादी की 1857 की लड़ाई में राव कदम सिंह गुर्जर का बड़ा योगदान है, किंतु बिजनौरवासी उनके बारे में जानते भी नहीं। उन्होंने 1857 की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया । राव कदमसिंह गुर्जर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम मे मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों के नेता थे। इन्होंने मेरठ से बिजनौर तक आजादी की लड़ाई लड़ी। बिजनौर के नवाब महमूद के साथ ये आजादी की लड़ाई में शामिल हुए।नजीबाबाद पर अंग्रेजों की फतह के बाद इनका कुछ पता नही चला। इतने बड़े बलिदानी के बारे में बिजनौर में किसी ने जानना और खोजना भी गंवारा नहीं किया।
1857 की क्रान्ति की शुरूआत 10 मई 1857 की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष क्रान्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है ।10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धनसिंह गुर्जर (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे। मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया।
राव कदमसिंह गुर्जर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम मे मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों नेता थे। इन्होंने मेरठ से बिजनौर तक आजादी की लड़ाई लड़ी।उसके साथ दस हजार क्रान्तिकारी थे, जो कि प्रमुख रूप से मवाना, हस्तिनापुर और बहसूमा क्षेत्र के थे। ये क्रान्तिकारी कफन के प्रतीक के तौर पर सिर पर सफेद पगड़ी बांध कर चलते थे। 10 मई की संध्या को मेरठ क्रान्ति की शूरूआत धन सिंह द्वारा हो चुकी थी।मेरठ के तत्कालीन कलक्टर आर एच डनलप द्वारा मेजर जनरल हैविट को 28 जून 1857 को लिखे पत्र से पता चलता है कि क्रान्तिकारियों ने पूरे जिले में खुलकर विद्रोह कर परीक्षतगढ़ के राव कदम सिंह को पूर्वी परगने का राजा घोषित कर दिया। राव कदम सिंह और दलेल सिंह के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने परीक्षितगढ़ की पुलिस पर हमला बोल दिया । इस पुलिस को उन्होंने मेरठ तक खदेड दिया। उसके बाद, अंग्रेजों से सम्भावित युद्व की तैयारी में परीक्षतगढ़ के किले पर तीन तोपें चढ़ा दी। ये तोपे तब से किले में ही दबी पड़ी थीं, जब सन् 1803 में अंग्रेजों ने दोआब में अपनी सत्ता जमाई थी। इसके बाद हिम्मतपुर और बुकलाना के क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के नेतृत्व में गठित क्रान्तिकारी सरकार की स्थापना के लिए अंग्रेज परस्त गांवों पर हमला बोल दिया और बहुत से गद्दारों को मौत के घाट उतार दिया। क्रान्तिकारियों ने इन गांव से जबरन लगान वसूला।
राव कदम सिंह बहसूमा परीक्षतगढ़ रियासत के अंतिम राजा नैनसिंह गुर्जर के भाई के पौत्र थे। राजा नैनसिंह गुर्जर के समय रियासत में 349 गांव थे और इसका क्षेत्रफल लगभग 800 वर्ग मील था। 1818 में नैन सिंह के मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने रियासत पर कब्जा कर लिया था। इस क्षेत्र के लोग पुनः अपना राज चाहते थे, इसलिए क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह को अपना राजा घोषित कर दिया।
10 मई 1857 को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के निर्देश पर सभी सड़के रोक दी और अंग्रेजों का यातायात और संचार को ठप कर दिया। मार्ग से निकलने वाले सभी अंग्रेजों को लूट लिया। मवाना-हस्तिनापुर के क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के भाई दलेल सिंह, पिर्थी सिंह और देवी सिंह के नेतृत्व में बिजनौर के विद्रोहियों के साथ साझा मोर्चा गठित किया और बिजनौर के मण्डावर, दारानगर और धनौरा क्षेत्र में धावे मारकर वहाँ अंग्रेजी राज को हिला दिया। इनकी अगली योजना मण्डावर के क्रान्तिकारियों के साथ बिजनौर पर हमला करने की थी। मेरठ और बिजनौर दोनों ओर के घाटों, विशेषकर दारानगर और रावली घाट, पर राव कदमसिंह का प्रभाव बढ़ता जा रहा था।
वीकिपीडिया के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि कदम सिंह विद्रोही हो चुकी बरेली बिग्रेड के नेता बख्त खान के सम्पर्क में भी थे ,क्योंकि उसके समर्थकों ने ही बरेली बिग्रेड को गंगा पर करने के लिए नाव उपलब्ध कराईं थीं। जबकि इससे पहले अंग्रेजों ने बरेली के विद्रोहियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए गढ़मुक्तेश्वर के नावों के पुल को तोड़ दिया था।
27 जून 1857 को बरेली बिग्रेड का बिना अंग्रेजी विरोध के गंगा पार कर दिल्ली चले जाना खुले विद्रोह का संकेत था। जहाँ बुलन्दशहर में विद्रोहियों के नेता वलीदाद खान वहाँ का स्वामी बन बैठे, वही मेरठ में क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह को राजा घोषित किया और खुलकर विद्रोह कर दिया। 28 जून 1857 को मेजर नरल हैविट को लिखे पत्र में कलक्टर डनलप ने मेरठ के हालातों पर चर्चा करते हुये लिखा कि यदि हमने शत्रुओं को सजा देने और अपने दोस्तों की मदद करने के लिए जोरदार कदम नहीं उठाए तो जनता हमारा पूरी तरह साथ छोड़ देगी और आज का सैनिक और जनता का विद्रोह कल व्यापक क्रान्ति में परिवर्तित हो जायेगा। मेरठ के क्रान्तिकारी हालातों पर काबू पाने के लिए अंग्रेजों ने मेजर विलयम्स के नेतृत्व में खाकी रिसाले का गठन किया। इसने चार जुलाई 1857 को पहला हमला पांचली गांव पर किया। इस घटना के बाद राव कदम सिंह ने परीक्षतगढ़ छोड़ दिया और बहसूमा में मोर्चा लगाया। यहाँ गंगा खादर से उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई जारी रखी।
18 सितम्बर को राव कदम सिंह के समर्थक क्रान्तिकारियों ने मवाना पर हमला बोल दिया और तहसील को घेर लिया। खाकी रिसाले के वहाँ पहुंचने के कारण क्रान्तिकारियों को पीछे हटना पड़ा। 20 सितम्बर को अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। हालातों को देखते हुये राव कदम सिंह एवं दलेल सिंह अपने हजारों समर्थकों के साथ गंगा के पार बिजनौर चले गए। यहाँ नवाब महमूद खान के नेतृत्व में अभी भी क्रान्तिकारी सरकार चल रही थी। थाना भवन के काजी इनायत अली और दिल्ली से तीन मुगल शहजादे भी भाग कर बिजनौर पहुँच गए।
राव कदम सिंह आदि के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने बिजनौर से नदी पार कर कई अभियान किये। उन्होंने रंजीतपुर में हमला बोलकर अंग्रेजो के घोड़े छीन लिये। पांच जनवरी 1858 को नदी पार कर मीरापुर (मुज़फ्फरनगर) मे पुलिस थाने को आग लगा दी। इसके बाद हरिद्वार क्षेत्र में मायापुर गंगा नहर चौकी पर हमला बोल दिया। कनखल में अंग्रेजों के बंगले जला दिये। इन अभियानों से उत्साहित होकर नवाब महमूद खान ने कदम सिंह एवं दलेल सिंह आदि के साथ मेरठ पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु उससे पहले ही 28 अप्रैल 1858 को बिजनौर में क्रान्तिकारियों की हार हो गई ।
18 अप्रेल को अंग्रेज सेना और नवाब के आदमियों के बीच शुरू हुई । ये लड़ाई हरिद्वार के पास अंबासोत से शुरू हुई। लड़ाई में नवाब और उसके समर्थक परास्त होते गए। अंग्रेज फौज के हमलों से वह बड़ी तादाद में मरे और घायल हुए। अंबासोत से नगीने तक जगह जगह लाश ही बिछी नजर आती थीं।न इन्हें कोई पहचानने वाला था। न अंतिम संस्कार करने वाला। नजीबाबाद और नगीने पर कब्जे के बाद अंग्रेज 26 अप्रैल को बिजनौर पहुंचा। 28 अप्रैल का उसका पूरे जनपद बिजनौर पर कब्जा हो गया। नवाब महमूद अपने कुछ विश्वस्त साथियों और परिवार वालों के साथ नेपाल चले गए। बताया जाता है कि वहीं बीमारी के कारण उसकी मौत हो गई। सर सैयद अपनी डायरी सरकशे बिजनौर में दलेल सिंह गुजर का जिक्र करते हैं। वह कहते हैं कि नजीबाबाद पर हमले से पहले ही दलेल सिंह गुर्जर वहां से निकल चुके थे।
अंग्रेज का 28 अप्रैल को बिजनौर पर कब्जा हो गया पर कदम सिंह एवं दलेल सिंह का क्या हुआ कुछ पता नही चलता।इनके साथ बिजनौर की जंग में भाग लेने पंहुचे थाना भवन के काजी इनायत अली और दिल्ली से तीन मुगल शहजादों के बारे में भी इतिहास मौन है। लगता ये कि ये बिजनौर की लड़ाई में ही शहीद हो गए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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