नगर पालिकाएं चुंगी ही नही वसूलती थी,अपितु चुंगी स्कूल भी चलाती थीं-
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आज के चिंगारी सांध्य में मेरा लेख।
नगर पालिकाएं चुंगी ही नही वसूलती थी,अपितु चुंगी स्कूल भी चलाती थीं-
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नगर पालिकाएं चुंगी ही नही वसूलती थीं, अपितु चुंगी स्कूल भी चलाती थीं। इनके अपने स्कूल होते थे।
चुंगी की हालत यह थी कि बाहर से आने वाले वालों पर चुंगी स्टाफ नजर रखता था।आने वाले सामान का निरीक्षण करता।चुंगी लगने योग्य सामन पर चुंगी वसूलता। लोग−बाग प्रयास करते कि चुंगी न देनी पड़े। इसके लिए वे दूसरे रास्ते निकालते ।जंगल के रास्ते खेतों से होकर भी घर आते।
पालिका स्टाफ का सबसे ज्यादा जोर देहात से आने वाले साइकिल सवार को पकड़ना और उनसे पालिका का एक साल का टैक्स तीन रूपया वसूलना था। नगर क्षेत्र के भी कमजोर तबके के लोगों से ये साइकिल का का महसूल ही वसूल कर पाते थे।प्रभावशाली को महसूल वसूल करने वाला स्टाफ सलाम मारता था तथा उन्हें जाने देता।नगर पालिका बोर्ड के सुपरसीट होने के समय में साइकिल का महसूल सरकार ने खत्म किया।
जावेद आफताब 1989 में पालिका के चेयरमैन बने। इनके चुने जाने तक रिक्शा, घोड़े तांगे पर महसूल लिया जाता था। श्री जावेद आफताब साहब को रिक्शा यूनियन के कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया।इस कार्यक्रम में इन्होंने रिक्शा,घोड़े− तांगे आदि से टैक्स लेने पर रोक लगा दी।
श्री मुलायम सिंह यादव 1971 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। इन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश से चुंगी वसूली खत्म करा दी।
चुंगी स्कूल
कक्षा एक से आठ तक की शिक्षा 1971 से पहले जिला परिषद के पास और नगर पालिका के पास होती। दोनों के अपने −अपने स्कूल होते। इन स्कूल में पढ़ाने के लिए इनका स्टाफ भी अपना होता।इनका अपना कोर्स होता।नगर पालिका के स्कूल चुंगी स्कूल के नाम से मशहूर होते थे। किसी समय बिजनौर नगर में 37 चुंगी स्कूल होते थे। अब नगर क्षेत्र के स्कूलों की संख्या घटकर 14 रह गई है।
नगर क्षेत्र के स्कूलों का पढ़ाई का अपना कोर्स होता। परीक्षाएं लेते।रिजल्ट भी यही घोषित करते।
1971 में सरकार ने कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई के लिए बेसिक शिक्षा परिषद का गठन कर दिया। इसके बाद जिला पंचायत और नगर क्षेत्र के स्कूल बेसिक शिक्षा में चले गए। आज नगर क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र की पढ़ाई एक है। परीक्षा पद्धति एक है । सारा स्टाफ भी बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत आता है। किंतु नगर क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र कि शिक्षकों का कैडर अलग-अलग है। नगर क्षेत्र के शिक्षक ग्रामीण क्षेत्र में और ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षक नगर क्षेत्र में ट्रांसफर नहीं की किये जा सकते।
आज शिक्षा तेजी से सुधार आया है।प्राइवेट क्षेत्र में बढिया स्कूल खुलते जा रहे हैं। ऐसे में नगर क्षेत्र के स्कूलों की संख्या घटती जा रही है। अब यह 37 से घटकर मात्र 14 रह गए हैं।
1971 के बाद चुंगी स्कूल बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूल हो गए।
कांजी हाउस
नगर पालिकाएं कभी कांजी हाउस भी चलाती थीं। इन कांजी हाउस में नगरपालिक का स्टाफ शहर में आवारा घूमते पालतू पशुओं को लाकर बन्द कर देता।गाय −बैल ही नही । सड़क पर घूमते गधे और घोड़े भी यहां लाकर बंद कर दिए जाते।नगर पालिका कांजी हाउस में रहने के दौरान इन पशुओं के खाने− पहने की व्यवस्था करती। पशु स्वामी पशु को खोजता कांजी हाउस आता।उसे यहां जुर्माने के साथ पशु के खाने − पीने पर हुए खर्च का भुगतान भी करना पड़ता था।इसलिए आगे से वह अपने पशु का खास ध्यान रखता तथा घर या पशु के बाड़े से बाहर नही जाने देता था।
बिजनौर में कांजी हाउस रामलीला मैदान में बनी नगर पालिका की दुकानों की जगह होता था।
नगरपालिकाओं में पहले नालिओं की सफाई के लिए भिश्ती (सक्के) रखे जाते। ये कंधे पर मशक लादकर कुंए से पानी लेकर आते । मशक प्रायः बकरे की खाल को सिलकर बनाई जाती थी। अब स्ट्रीट लाइट के लिए एलईडी आ गई।पहले चौराहों पर मिट्टी के तेल के लैंप रखे जाते थे। लकड़ी की बल्ली पर एक चौकोर कांच लगे फेम लगे होते थे। दिन भी नगर पालिका का स्टाफ इनमें आकर तेल भरता और चिमनी साफ कर देता। शाम को वह सारे लैंप जला देता ।उस समय इन से ही रोनी की जाती।
अशोक मधुप
आज के चिंगारी सांध्य में मेरा लेख।
नगर पालिकाएं चुंगी ही नही वसूलती थी,अपितु चुंगी स्कूल भी चलाती थीं-
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नगर पालिकाएं चुंगी ही नही वसूलती थीं, अपितु चुंगी स्कूल भी चलाती थीं। इनके अपने स्कूल होते थे।
चुंगी की हालत यह थी कि बाहर से आने वाले वालों पर चुंगी स्टाफ नजर रखता था।आने वाले सामान का निरीक्षण करता।चुंगी लगने योग्य सामन पर चुंगी वसूलता। लोग−बाग प्रयास करते कि चुंगी न देनी पड़े। इसके लिए वे दूसरे रास्ते निकालते ।जंगल के रास्ते खेतों से होकर भी घर आते।
पालिका स्टाफ का सबसे ज्यादा जोर देहात से आने वाले साइकिल सवार को पकड़ना और उनसे पालिका का एक साल का टैक्स तीन रूपया वसूलना था। नगर क्षेत्र के भी कमजोर तबके के लोगों से ये साइकिल का का महसूल ही वसूल कर पाते थे।प्रभावशाली को महसूल वसूल करने वाला स्टाफ सलाम मारता था तथा उन्हें जाने देता।नगर पालिका बोर्ड के सुपरसीट होने के समय में साइकिल का महसूल सरकार ने खत्म किया।
जावेद आफताब 1989 में पालिका के चेयरमैन बने। इनके चुने जाने तक रिक्शा, घोड़े तांगे पर महसूल लिया जाता था। श्री जावेद आफताब साहब को रिक्शा यूनियन के कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया।इस कार्यक्रम में इन्होंने रिक्शा,घोड़े− तांगे आदि से टैक्स लेने पर रोक लगा दी।
श्री मुलायम सिंह यादव 1971 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। इन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश से चुंगी वसूली खत्म करा दी।
चुंगी स्कूल
कक्षा एक से आठ तक की शिक्षा 1971 से पहले जिला परिषद के पास और नगर पालिका के पास होती। दोनों के अपने −अपने स्कूल होते। इन स्कूल में पढ़ाने के लिए इनका स्टाफ भी अपना होता।इनका अपना कोर्स होता।नगर पालिका के स्कूल चुंगी स्कूल के नाम से मशहूर होते थे। किसी समय बिजनौर नगर में 37 चुंगी स्कूल होते थे। अब नगर क्षेत्र के स्कूलों की संख्या घटकर 14 रह गई है।
नगर क्षेत्र के स्कूलों का पढ़ाई का अपना कोर्स होता। परीक्षाएं लेते।रिजल्ट भी यही घोषित करते।
1971 में सरकार ने कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई के लिए बेसिक शिक्षा परिषद का गठन कर दिया। इसके बाद जिला पंचायत और नगर क्षेत्र के स्कूल बेसिक शिक्षा में चले गए। आज नगर क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र की पढ़ाई एक है। परीक्षा पद्धति एक है । सारा स्टाफ भी बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत आता है। किंतु नगर क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र कि शिक्षकों का कैडर अलग-अलग है। नगर क्षेत्र के शिक्षक ग्रामीण क्षेत्र में और ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षक नगर क्षेत्र में ट्रांसफर नहीं की किये जा सकते।
आज शिक्षा तेजी से सुधार आया है।प्राइवेट क्षेत्र में बढिया स्कूल खुलते जा रहे हैं। ऐसे में नगर क्षेत्र के स्कूलों की संख्या घटती जा रही है। अब यह 37 से घटकर मात्र 14 रह गए हैं।
1971 के बाद चुंगी स्कूल बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूल हो गए।
कांजी हाउस
नगर पालिकाएं कभी कांजी हाउस भी चलाती थीं। इन कांजी हाउस में नगरपालिक का स्टाफ शहर में आवारा घूमते पालतू पशुओं को लाकर बन्द कर देता।गाय −बैल ही नही । सड़क पर घूमते गधे और घोड़े भी यहां लाकर बंद कर दिए जाते।नगर पालिका कांजी हाउस में रहने के दौरान इन पशुओं के खाने− पहने की व्यवस्था करती। पशु स्वामी पशु को खोजता कांजी हाउस आता।उसे यहां जुर्माने के साथ पशु के खाने − पीने पर हुए खर्च का भुगतान भी करना पड़ता था।इसलिए आगे से वह अपने पशु का खास ध्यान रखता तथा घर या पशु के बाड़े से बाहर नही जाने देता था।
बिजनौर में कांजी हाउस रामलीला मैदान में बनी नगर पालिका की दुकानों की जगह होता था।
नगरपालिकाओं में पहले नालिओं की सफाई के लिए भिश्ती (सक्के) रखे जाते। ये कंधे पर मशक लादकर कुंए से पानी लेकर आते । मशक प्रायः बकरे की खाल को सिलकर बनाई जाती थी। अब स्ट्रीट लाइट के लिए एलईडी आ गई।पहले चौराहों पर मिट्टी के तेल के लैंप रखे जाते थे। लकड़ी की बल्ली पर एक चौकोर कांच लगे फेम लगे होते थे। दिन भी नगर पालिका का स्टाफ इनमें आकर तेल भरता और चिमनी साफ कर देता। शाम को वह सारे लैंप जला देता ।उस समय इन से ही रोनी की जाती।
अशोक मधुप
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