बलवंत सिंह राजपूत
नाम: बलवंत सिंह राजपूत
जन्म: बिजनौर जनपद के छोटे से ग्राम लच्छीरामपुर के साधारण कृषक परिवार में दो सितंबर सन 1944 में ।
प्रारंभिक शिक्षा:
गांव के स्कूल से पांचवीं कक्षा में पूरी सर्कल ( पचास स्कूलों ) में प्रथम स्थान पाकर छटी कक्षा में गांव से छह किलोमीटर दूर किरतपुर कस्बे के हिंदू इंटर कॉलेज में प्रवेश लिया जहां जाने के लिए प्रतिदिन सुबह पांच बजे से पैदल चलना पड़ता था और छूटी होने पर पैदल चल कर ढाई बजे दोपहर घर पहुंचा जाता था। दसवी कक्षा तक ये क्रम रहा और छटी से नौवी कक्षा की प्रत्येक परीक्षा में प्रथम स्थान पाया। उत्तर प्रदेश बोर्ड की दसवी की 1958 की परीक्षा में गणित में शत प्रतिशत, भौतिकी में शत प्रतिशत तथा रसायन विज्ञान में 98 प्रतिशत अंक प्राप्त करके नया रिकॉर्ड स्थापित किया था। इस परीक्षा में बोर्ड में उच्च मेरिट लेकर राष्ट्रीय मेरिट स्कॉलरशिप प्राप्त किया जो 11वी कक्षा से एमएससी तक मिलता रहा और इस प्रकार पोस्टग्रेजुएशन तक की पूरी पढ़ाई छात्रवृति से ही पूरी की। उत्तर प्रदेश बोर्ड की 12 वी की 1960 की परीक्षा में भी उच्च प्रथम श्रेणी तथा राजकीय इंटर कॉलेज बिजनौर में प्रथम स्थान प्राप्त किया तीन विषयों में विशेष योग्यता अर्जित की।
उच्च शिक्षा:
आगरा विश्वविद्यालय से बीएससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी एवम प्रथम स्थान( टॉप) के साथ 1962 में और एमएससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी एवम प्रथम स्थान ( टॉप) के साथ 1964 में उत्तीर्ण की।
उसी वर्ष (1964 में) बीस वर्ष की आयु में ही कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में भौतिकी में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति हो गई। वहां इस पद पर रहते 1969 में क्वांटम फील्ड थ्योरी में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की तथा तदुप्रांत तीन शोध छात्रों को पीएचडी डिग्री हेतु गाइड करके और तीस शोध पत्र अंतराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित कर के 1972 में मात्र अठाईस वर्ष की आयु में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में भौतिकी में स्वयं को श्रेष्ठ अध्यापक एवम अति उत्कृष्ट शोध कर्ता के रूम में स्थापित किया। इसी पद पर रहते उस विश्विद्यालय में दो और शोध छात्रों को पीएचडी के लिए गाइड किया और साथ ही दो वर्ष ( 1972 से 1974) अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हरियाणा प्रांत का अध्यक्ष भी रहा।
1975 में देश में आपातकाल की अवधी में मुझे तत्कालीन हरियाणा सरकार ने बंदी बनाकर छह माह कारागार ( करनाल में) रखा। जनवरी 1976 में कारागार से मुक्त होने पर तत्कालीन हरियाणा सरकार ने पुनः मीसा में बंदी बनाने के प्रयास किए तो कुरुक्षेत्र से अवकाश लेकर उत्तर प्रदेश में गढ़वाल विश्वविद्यालय ( वर्तमान में केंद्रीय विश्वविद्यालय) में भौतिकी में उपाचार्य एवम विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति प्राप्त की। वहा चार वर्षो में पांच छात्रों की पीएचडी गाइड करके तथा विभाग को दो मेजर रिसर्च प्रोजेक्ट्स दिला कर अक्टूबर 1980 में कुमाऊं विश्विद्यालय में मात्र पैंतीस वर्ष की आयु में प्रोफेसर एवम विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति प्राप्त की। ( उस समय देश में सबसे कम आयु का प्रोफेसर था)।
इसी विश्विद्यालय में 1983 में विज्ञान का संकाध्यक्ष बना तथा छबीस वर्षो तक कार्यरत रहकर एक अति विशिष्ट अध्यापक तथा अति उत्कृष्ट वैज्ञानिक एवम श्रेष्ठ शिक्षाविद की ख्याति अर्जित की। इस अवधि में इस विद्यालय से पच्चीस शोध छात्रों को पीएचडी के लिए गाइड किया, तीन सौ उच्च कोटि के शोध पत्र अंतराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल्स में प्रकिशित कराए, पंद्रह मेजर शोध परियोजनाओं को सफलता पूर्वक पूर्ण किया, विभाग को यूजीसी से डीआरएस, डीएसए, कॉसिस्ट जैसी उत्कृष्ट स्कीम्स प्राप्त की तथा विशिष्ट अनुदान प्राप्त किए। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने इस विभाग को उत्कृष्ट शोध के आधार पर सेंटर ऑफ एक्सक्लेंस घोषित किया और अति विशिष्ट अनुदान प्रदान किया तथा यूजीसी ने सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी घोषित करके विशिष्ट अनुदान दिया।
उत्कृष्ट अध्यापन एवम उच्च कोटि के शोध के आधार पर कई राष्ट्रीय एवम अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार एवम सम्मान अर्जित किए।
प्रशासनिक उपलब्धियां:
a) अठाईस वर्षो तक भौतिकी में प्रोफेसर एवम विभागाध्यक्ष।
b) एक टर्म गढ़वाल विश्वविद्यालय में कुलपति
c) दो टर्म कुमाऊं विश्वविद्यालय में कुलपति
d) एक टर्म उत्तर प्रदेश राज्य उच्च शिक्षा परिषद का अध्यक्ष।
d) एक टर्म गढ़वाल विश्वविद्यालय की कार्य परिषद सदस्य।
e,) तीन टर्म्स कुमाऊं विश्वविद्यालय की कार्य परिषद का सदस्य
f) देश के कई विश्वविद्यालयों की पाठ्य क्रम समिति तथा शोध समिति का सदस्य।
g) देश के अनेक विश्…
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