ज़हीर रब्बानी ।यादें ज़िन्दा हैं।
ज़हीर रब्बानी ।यादें ज़िन्दा हैं।
डॉ० शेख़ नगीनवी
(लेखक साहित्यकार व दबिस्तान ए बिजनौर के संकलनकर्ता है)
यह कटु सत्य है कि जो दुनिया में आया है , उसे एक न एक दिन इस संसार को छोड़कर अवश्य जाना है ।यही जीवन की हक़ीक़त है । इंसान दुनिया से चला जाता है, लेकिन उसकी यादें ज़िंदा रह जाती है, उसके कर्मों को उसके व्यवहार को, उसके संघर्षों को , उसके साथ गुज़रे पलों को लोग याद करते हैं और जो जीवन में अच्छे कर्म करता है उसे दुनिया के लोग अच्छे से याद करते हैं और उसकी कमी को महसूस करते हैं ।
सरज़मींन ए नेहटौर के नागरिकों ने अपनी योग्यता, क्षमता, प्रतिभा से साहित्य ,स्वतंत्रा संग्राम और देश की प्रगति में अपनी बिसात से ज़्यादा भूमिका निभाई है । यहाँ के कारीगरों , मेहनतकश मज़दूरों ने भी देश व विदेश के लाखों करोडों लोगों के तन को ढांपने का काम किया है ।
बुद्धिजीवियों (दानिशमंदों ) की इस बस्ती ने मुबारक हुसैन , बुद्धू सिंह , भोपाल सिंह, बसंत राम सिंह जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,प्रथम उर्दु कहानी लेखक सज्जाद हैदर यलदरम, ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त विश्व प्रसिध्द लेखिका कुरेतुल एेन हैदर ,डॉक्टर ख़ुर्शीद हमरा सिद्दीक़ी ,डा० शमा अफ़रोज़ ज़ैदी ,नज़र सज्जाद , रवींद्र नाथ त्यागी, प्रोफ़ेसर सुरैया हुसैन, खलीलुर्रहमान बीना ,महमूद नहटौरी, तलत सिद्दीक़ी ,अज़ीज़ नहटौरी, मुशीर नहटौरी, जिया नहटौरी, शाद नहटौरी ,इब्रहीम शाह , नय्यर वास्ती ,डॉक्टर संजय कुमार, अलका त्यागी , विनोद त्यागी,गिज़ाल मेहदी ,बिलाल जैदी ,हकीम विकारजैसे साहित्यकार, शायर, पत्रकार व प्रतिभा दी जिन्होंने अपने कौशल , क़लम और ज्ञान के ज़रिए साहित्य और इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया है।। इन्ही में एक नाम एक ऐसी शख़्सियत का है जिसकी जिंदगी का मकसद हिन्दू मुस्लिम यकजहती, अमन शांति, गरीबों ,मज़दूरों, मेहनतकशों की आवाज़ उनके लिए जद्दोजहद करना, दूसरों को इज़्ज़त, सम्मान देना,युवाओं और प्रतिभाओं का उत्साह वर्धन करना,किसी के पद धन दौलत से प्रभावित न होना, वंचित और पिछड़े समाज के लोगों को शिक्षा के लिए जागृत करना, उन में फैली सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास करना, पठन पाठन ,अध्ययन , पत्रकारिता को अपना ओढ़ना बिछौना बनाने वाले , एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लगे खुदगर्ज़, मफाद परस्त लोगों के बीच बेलौस होकर अवाम की मदद करने वाले, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के चिंतकों, समाज सुधारकों, साहित्यकारों, कवियों,शायरों से सीधे संपर्क रखने वाले,स्व० बाबू सिंह चौहान व निश्तर ख़ानक़ाही के सान्निध्य में रह कर अपने कलम की धार को तेज़ करने वाले, गंगा जमुनी तहज़ीब के अलमबरदार, साफ सुथरी छवि रखने वाले, गरीबों ज़रूरतमंदों के लिए इंसाफ़ के लिए, उनकी बेहतरी के लिए हमेशा धडकता दिल रखने वाले, बुलन्द विचार और ऊंची सोच रखने वाले , जिनकी आँखों से शराफ़त टपकती थी ज़बान पे चाशनी, हमदर्दी और मोहब्बत से भरे अल्फ़ाज़ रहते थे को ज़हीर रब्बानी के नाम से जाना जाता है।जो 22 जून 2021 को इस दुनियां से रूख्सत हो गए ।
25 -11-1963 में नहटौर के मोहल्ला पीर शहीद काला में हकीम महबूब अहमद साहब के यहाँ पैदा हुए, ज़हीर रब्बानी को उनके वालिद ने पिछड़ेपन से निकाल कर बाविक़ार ज़िंदगी गुज़ारने के लिए राहे हमवार की , समाज सेवा करने की प्रेरणा दी ।छात्र जीवन से ही समाज सेवा, पत्रकारिता और राजनीति में रुचि रखने वाले ज़हीर रब्बानी ने छात्रों और युवाओं के लिए कई आंदोलन चलाए ।ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रांतीय परिषद के सदस्य और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ाव ने ज़हीर रब्बानी को रिक्शा पोलरों,मज़दूरों और परेशानहाल लोगों के अधिकारों के लिए हर सरगर्म रखा है।1988 में नगरपालिका नहटौर के मेम्बर और वाइस चेयरमैन बने । प्रसिद्ध कम्यूनिस्ट लीडर एमपी मौलाना इस्हाक़ सँभाली ने उन्हें अन्जुमन तरक्की पसंद मुसन्नफीन उर्दू का प्रांतीय सचिव मनोनीत किया । उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन पंजी० के जिलाध्यक्ष व जिला महामंत्री के पद को उन्होने सुशोभित किया ।रोज़ाना खबर जदीद, बिजनौर में न्यूज़ एडिटर की हैसियत से उन्होंने काम किया है । इन्कलाब मुंबई,नईदुनिया , नई ज़मीन , क़ौमी आवाज़ , सहाफ़त , बिजनौर टाइम्स, चिंगारी, उत्तर भारत टाइम्स आदि समाचार पत्रों में उनके लेख व खबरें अक्सर छपती रहती थी । ख्वाजा अहमद अब्बास, अली सरदार ज़ाफ़री,कैफी आज़मी,भीष्म साहनी,ग़ुलाम रब्बानी ताबां, मजरूह सुल्तानपुरी, वामिक़ जौनपुरी मुईन अहसन जज़्बी, वारिस किरमानी,जॉन एलिया,शमीम फ़ैजी, डॉक्टर नामवर सिंह मिस शौक़त फहमी,फहमीदा रियाज़,क़ुरैतु एन हैदर, प्रोफ़ेसर सुरैया हुसैन, डॉक्टर शमा अफरोज़ ज़ैदी, सूर्यमणि रधुवंशी जैसी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय शख़्सियात से ज़हीर रब्बानी की मुलाक़ातें और क़ुरबतें रहीं और कई हस्तियों के उन्होंने इंटरव्यू लिए।
1995 में बेसिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश में वह उर्दू टीचर नियुक्त हुए और अपनी तमाम सलाहियतों को उन्होंने शिक्षा और समाज के लिए समर्पित कर दिया । जीवन भर वो प्रतिभाओं को तलाशते रहे और उनका हौसलाबढ़ाने के लिए सम्मानित करते ।ऐसी - ऐसी प्रतिभाओं को उन्होंने सम्मानित किया जो समाज की नज़र से दूर थी लेकिन अपने अंदर एक ख़ास टैलेंट रखती थी । जहीर रब्बानी उर्दू से बेपनाह मोहब्बत करते थे । उन्होंने एक मुलाक़ात में बताया था कि समाज के लिए और इस देश के लिए बहुत कुछ काम करने हैं। अमन और शांति के लिए, तालीम के लिए भी ।आज के हालात में ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है. सेवानिवृत्ति के बाद एकाग्रता से काम करना है लेकिन हाय बेवक़्त मौत ने उनके मिशन को कमज़ोर कर दिया ।
मौत आनी हैं आएगी बाख़बर ज़ात ए ख़ुदा ।
मौत यह रस्म ना दोहराती के तू जिंदा रहता
9412326875
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