आह। शारिक कफील
आह। शारिक कफील।
जिंदगी अब मुझे रिहा कर दे।
मुझ से उठता नहीं तेरा गम अब।
नजीबाबाद
नजीबाबाद के बेहतरीन शायर ,मुशायरों के उम्दा नाजिम शारिक कफील के निधन से अदबी हलकों में गम की लहर दौड़ गई। वह एक लंबे समय से एमएनडी जैसी खतरनाक ला इलाज बीमारी से ग्रस्त थे।उनके निधन से उर्दू अदब में जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई ना मुमकिन है।
शारिक कफील ने एक जनवरी 1972 को एक मोआजिज घराने में कफील अहमद अंसारी के यहां नजीबाबाद से सटे गांव घिसट्पूरी में आंख खोली।उन्होंने बीएससी, एलएलबी और अदीब कामिल करने के बाद कुछ समय तक नजीबाबाद के कसमिया इंटर कालेज में टीचिंग की।उसके बाद उन्हें सिंचाई विभाग में एक बाबू के पद पर तैनात हो गए।
उन्हें शायरी का शौक पैदा हुआ ।उन्होंने सोज नजीबाबादी को अपना कलाम दिखाना शुरू कर दिया।उसके बाद उन्होंने अजीज नजीबाबादी को अपना उस्ताद तस्लीम किया और उनसे इसलाह लेते रहे।उनके कलाम में वैसे तो पुख्तगी पाई जाती थी लेकिन वह उस्ताद को बगैर दिखाए कलाम पढ़ने से गुरेज रखते थे।उन्हे शेर कहने में महारत हासिल थी।
हिंदुस्तानी तहज़ीब और उर्दू से लगाओ शरिक कफील का व्यक्तिव रहा।शायरी और जुबान के मामले में किसी से कोई भी समझोता करने को तैयार नहीं होते थे।बड़ों का अदब छोटों से प्यार और अच्छी बातें लोगों तक पहुंचाना उनका किरदार रहा।शरिक कफील एक अच्छे शायर होने के साथ साथ एक अच्छे इंसान भी थे।मुशायरों के वोह उम्दा नाजिम थे।निजमत के हवाले से उनकी अपनी एक पहचान रही है।
उनका यह शेर भी बहुत मशहूर रहा है।
बस एक दर पे झुकाया है मेंने सर अपना।
हजार दर नहीं ढूंढे है बंदगी के लिए।
शारिक कफील मेरे बहुत करीब थे।बीमार होने पर उन्हों ने मुझे शेर सुनाया था।
जिंदगी अब मुझे रिहा कर दे।
मुझ से उठता नहीं तेरा गम अब।
उनका एक शेर और मुझे याद आ रहा है।
मेरी खुशियां तो तुम से ही मंसूब है।
यूं तो होने को सारा ज़माना पड़ा।
शारिक कफील वैसे तो गजल के शायर थे लैकिन उन्होंने नात,वर्तमान हालात को भी अपनी शायरी का हिस्सा बनाया है।
उनका गजल का एक शेर
जुल्फ परेशा लब पे उदासी काजल फीका लगता है।
फूल सा चेहरा एक मुद्दत से उतरा- उतरा लगता है।
शारिक कफील के पास एक फन था वाह आप बीती को जग बीती बनाते थे।जब वोह कलाम पढ़ते थे तो ऐसे लगता था कि वोह सुनने वालों के दिलों की बात कर रहे हों। उनके गम उनकी मोहब्बत को अपनी शायरी में पिरो लिया हो।
पेश है उनका कलाम।
आंख रस्मन करें है पुरनम अब।
कौन करता है दिल से मातम अब।
दिल को उसका ख्याल रहता है।
फिक्र होती है अपनी कम कम अब।
आतिश ए गम से सूख जाते हे।
मेरे आंसू है मिस्ले शबनम अब।
बैठता जा रहा है दिल हाय।
सोजिशे गम नहीं है पहम अब।
अब तो मंजिल करीब है शरिक।
फिर यह रफ्तार क्यो है कम अब।
……................................
ये ताकत अपनी खोटा जा रहा है।
बदन बे जान होता जा रहा है।
दुआए बे असर होती जा रही हैं।
मुकद्दर अपना सोता जा रहा है।
कुछ ऐसा हाल अपना हो गया हे,
जो देखे वो रोता जा रहा है।
गिरा है जिंदगी का सफर शारिक।
मगर यह बोझ ढोता जा रहा है।
शारिक कफील को हम नम आंखों से खिराजे अकीदत पेश करते है।
डॉ०आफताब नोमानी
नजीबाबाद
M.9837345127
23 सिंतंबर 2023 चिंगारी सांध्य दैनिक
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