बिजनौर का संगीत कला में योगदान

बिजनौर का संगीत कला में योगदान

डॉ॰ ऋचा शर्मा

असिस्टेंट प्रो॰ रानी भाग्यवती देवी

महिला महाविद्यालय, बिजनौर


गायन, वाद्य एवम् नृत्य तीनों कलाओं का समावेश संगीत शब्द से माना जाता है। सुव्यवस्थित ध्वनि जो रस की सृष्टि करें संगीत कहलाती है।

प्राचीन समय से ही भजन, प्रार्थना, उत्सव, युद्ध के समय संगीत एक भावों को उद्वेलित करने का माध्यम रहा है। संगीत का प्रारंभ वैदिक काल में भी करने का माध्यम रहा है। संगीत का प्रारम्भ वैदिक काल से भी पूर्व का है जिसका प्रमाण सामवेद है। भारत में राजा भरत के समय गीत शब्द प्रयुक्त होता था। वाद्यय, गीत नृत्य जबमिले तो संगीत की उत्पत्ति हुई। थोड़ा नीचे लिखे ‘गीतं वाद्यं तथा नृत्यं प्रयं संगततमुच्यते।’ पंडित सारंगदेव संगीत रत्नाकार

स्वर और लय की कला संगीत कहलाई जाने लगी। इसमें अनेक शैलिया धु्रपद, धमार, ख्याल, ठुमरी, भजन, गजल आते है। हिंदु परंपरा में ऐसा मानना है कि ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। भारतीय संगीत के सात स्वर षड्ज (सा)  ऋषभ (रे), गंधार (ग), मध्यम (म), पंचम (प), धैवत (ध) निषाद (नी) सम्पूर्ण संगीत समाये है। जहाँ भारत के कण-कण जो स्वर समाहित है उस मधुर लहरी से बिजनौर कैसे वंचित रह सकता था।

प्रस्तुत लेख वरिष्ठ (पूर्व अमर-उजाला) पत्रकार श्री अशोक माधुप जी के पत्र-पत्रिका में छपे लेखों के आधार व सीधे व्यक्तिगत वीणाकर जानकारी पर आधारित है।

अजय झिंगरन परिवार व संगीत-

बिजनौर एक परिवार पाँच पीढ़ी से संगीत गायन और वादन क्षेत्र में सेवा दे रहा है। इस परिवार के अजय झिगरन ने फिल्मी दुनिया में बिजनौर का नाम रोशन किया।

अजय झिंगरन ने फिल्मी दुनिया का एक उभरता सितारा रहे। वह धूमकेतु की तरह आए अपना  अस्तित्व दिखाया और इस दुनिया से मात्र 46 साल की आयु में ही विदा हो गए। कोई जनता भी नहीं कि ये बिजनौर के रहने वाले थे। इनके दादा रम्मो गुरु (रम्मो उस्ताद) संगीत गायन और कत्थक के विशेषज्ञ थे। रम्मो गुरु से ही अजय झींगरन ने गायन वादन और संगीत सीखा। रम्मो गुरु को अपने पिता से मिली इस विरास्त को पूरा घराना संभालने और आगे बढ़ाने में लगा है। इस घराना विज्ञान और कला का संगम है।

श्रीराम शरण शर्मा (रम्मो गुरु) एम एस सी केमिस्ट्री से करके शादी लाल गु्रप की चीनी मिल में कैमिस्ट हुए। शादी लाल गु्रप की विभिन्न मिल में काम किया और चीफ केमिस्ट से सेवानिवृत्त हुए। वे रसायन विज्ञानी थे। इसके बावजूद संगीत उनकी रंग-रंग में भरा था। बिजनौर के खत्रियान के रहने वाले जगदीश शरन खन्ना बताते है कि रम्मो उर्फ रम्मो गुरु का घर मुहल्ला सोतियान में रामलीला मैदान से सर्राफा बाजार जाने वाले रास्ते पर था। कत्थक कला में वे पारंगत थे। दूर-दूर तक उनका बड़ा नाम था। बिजनौर के सोती अनिल कुमार बताते हैं कि रम्मो गुरु के बेटे अशोक सहारनपुर चले गए। रम्मो गुरु के सामने ही उनका निधन हो गया। बाद में रम्मो गुरु सपरिवार बेटे के परिवार के पास सहारनपुर चले गए। वे बताते हैं कि उनकी और उनके दोस्त विपिन महर्षि की राज शाम को रम्मो गुरु के पास दो-तीन घंटे महफिल जमती थी। वह बताते हैं कि रम्मो गुरु में संगीत के प्रति दीवनगीथी। वे जमकर नाचने और गाते। नाचते तो काफी देर नाचते तो काफी देर नाचते रहते। वे बताते है कि वर्धमान कॉलेज के अंग्रेजी के प्रोफेसर राघवानन्द भी रम्मो गुरु के पास आते थे।

मेरठ के रहने वाले पत्रकार और बिजनौर में जागरण के ब्यूरो प्रमुख रहे प्रवीण वशिष्ठ कहते हैं कि उन्होंने अजय के जीवन काल में उनपर एक स्टोरी की थी। तब उन्होंने बताया था कि वह बिजनौर के रहने वाले हैं। उनके दादा रम्मो गुरु का अपना म्युजिक घराना होता था। वे कहते है कि फिल्मी गीतकार जावेद अख्तर फिल्मी दुनिया में आए अय झिगरन के बारे में कहते थे, कि बहुत आगे जाएगा किंतु जल्दी ही इस दुनिया से चले गए।

अजय झिंगरन के भाई श्री राजीव झिंगरन बताते हैं कि वे सारस्वत ब्राह्मण है। उनके दादा रम्मो गुरु (रम्मो उस्ताद) संगीत के गुरु थे। वे प्रशिक्षित क्लासिक गायक और कत्थर डांसर थे। संगीत और कत्थक सीखने जनपद के आसपास के व्यक्ति उनके पास आते रहते थे। उन्होंने तबला वादन पर एक पुस्तक भी लिखी। रम्मो गुरु का जन्म बिजनौर में 16 जनवरी 1908 को बिजनौर में हुआ। निधन दस फरवरी 1995 में सहारनपुर में हुआ।

वे बताते हैं कि उनके पड़दादा केशव शरण शर्मा अपने समय के जाने-माने शास्त्रीय संगीतज्ञ थे। उनका उपनाम लल्ला पुरोहित था। उनसे उनके दादा जी रम्मो गुरु ने संगीत सीखा। दादाजी से पिता अशोक झिंगरन से गायन वादन और कत्थक सीखा। पिता का जन्म 19 मार्च 1937 को हुआ। वे अल्कोहल टैक्नालॉजी के विशेषज्ञ थे। उन्होंने कई शराब बनानब वाली कंपनी में काम किया। 26 अगस्त 1989 में सहारनपुर में उनका निधन हुआ। वे भी प्रशिक्षित गायक, वादक और कत्थक नृतक थे। पिता अशोक झिंगरन ने बिरला कॉलेज पिलानी से शिक्षा पाई शिक्षा पाने के दौरान से ही वे कार्यक्रम करने लगे थे। राजीव झिंगरन बताते है कि उनके पिता के समय में काफी लोग अपने नाम के आगे शर्मा लगाने लगे थे। पिछड़ी जाति में शामिल भी अपने को शर्मा लिखने लगे। इसीलिए पिता अशोक शर्मा अपने गांव झिंगरन का नाम अपने नाम के आगे लगाने लगी।तबसे परिवार के सब सदस्य अपने को झिगरन लिखने लगे। वे सारस्त ब्राह्मण हैं। उनके सबसे छोटे भाई अजय झिंगरन गायक, म्युजिक डाइरेक्टर लेखक कवि और आर्टिस्ट भी थे। मुंबई में रहन वाले बिजनौर के दानिश जावेद कहते है कि बिजनौर जनपद का और ए एमयू के साथी होने के कारण उनकी अजय ये अच्छी दोस्ती थी। जावेद अख्तर उन्हें बहुत प्यार करते थे।

अजय झिंगरन का जन्म सात नवबर 1969 को हुआ। हृदयघात से 18 सितंबर 2013 केा मुंबई में उनका निधन हुआ। अजय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से साहित्य में स्नातक किया। पंजाब विश्वविद्यालय से भारतीय रंगमंच में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। गायक सोनू निगम ने ही झिंगरन को  बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने में मदद की थी। गायक के रूप में उनके कुछ लोकप्रिय गीतों में ‘मन में बावरा’ (हजारों ख्वाइशें ऐसी’, 2005) खोया खोया चांद (खोया खोया चांद) 2007 और बिल्लू बार्बर शामिल हैं। बिल्लू बार्बर, 2009) गीतकार के रूप में उन्होंने बोलो राम (2004) जैसी फिल्मों में काम किया है। रक्त (2004) जैसी फिल्मों में काम किया है। ‘रक्त’ (2004) पेज 3 (2005) और फिर कभी (2009) में भी उन्होंने संगीत दिया। 18 सितंबर 2013 को अचानक दिल का दौरा पड़ने से समय से पहले उनकी मृत्यु हो गई।

श्री राजीव झिगरन बताते है कि उनके दादा राम शरण शर्मा, पिता अशोक झिंगरन, वह खुद राजीव झिंगरन उनका छोटा भाई संजीव झिंगरन विज्ञान के छात्र रहे हैं। इसके बावजूद ईश्वर कृपा से सभी बढ़िया सिंगर है। उनका छोटा भाई अजय झिंगरन ने पंजाब विश्व विद्यालय पटियाला से थियेटर और कला में एक. ए. किया। उसने फिल्म छोटा भाई अजय झिंगरन ने पजाब विश्व विद्यालय पटियाला से थियेटर और कला में एम.ए. किया। उसने फिल्म गीत लेखन में अपनी जगह बनाइ। उन्होंने जावेद अख्तर के साथ काम किया। शाहरूख खान की फिल्म बिल्लू में  शाहरुख खान के साथ उन्होंने काम किया। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रसिद्ध नौशाद साहब के साथ सम्मानित किया।

श्री राजीव झिंगरन के अनुसार उनके बच्चे भी परिवार की विरासत को संभाल रहे हैं। वह बताते हैं कि उनका बेटा शुभांकर झिंगरन 23 साल एक अच्छा गायक है। शुंभांकर का पंजाब विश्वविद्यालय पटियाला में एम.ए. संगीत का पहला साल है उनकी बेटी श्रुति झिंगराना (21 साल), एक प्रतिभाशाली कथक नृत्यंगना है। वह पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला से बीए कथक (ऑनर्स) कर रही है। इस साल उसका फाइनल ईयर है।

श्री राजीव झिंगरन का कहना है कि पूरे परिवार का इरादा विरासत से मिली गायन वादन कला को आगे बढ़ाने का है वे सब पूरे समर्पण भाव से इस कार्य में लगे हैं।

2. शेवन बिजनौर-कव्वाली, गीत, गजल और भजन शेवन बिजनौरी उनके लिखी कव्वाली, भजन, गजल और गीत बहुत मशहूर हुए। फैययाज अहमद उर्फ शेवन बिजनौरी का जन्म बिजनौर के मुहल्ला मिर्दगान में 30 अप्रैल 1930 को हुआ। फैययाज अहमद उर्फ शेवन बिजनौरी के पिता बदर हुसैन कव्वाल थे। दादा नत्थू खंा शिक्षक थे। शेवन बिजनौरी बचपन से अपने पिता के साथ रहते थे। पिता की कव्वाल पार्टी में जाने के कारण इन्हें कव्वाली गायन के सारे हुनर आ गए। शायरी का शौक बचपन से ही था। 1952 में मदीना प्रेस के एक मुशायरे में जिगर मुरादाबादी आए। शेवर बिजनौरी तभी उनके बाकायता शार्गीद बन गए। इसके बाद शेवर बिजनौरी की शायरी परवाज चढ़ने लगी 1957 में पिता का देहान्त होने के बाद शेवन बिजनौरी अकेले रह गए। वे बिजनौर छोड़कर मेरठ चले गए। वह शायर शॉरिश मुजफफरनगरी से बाकायदा शायरी की सलाह लेने लगे। उन्होंने अपनी कव्वाली की पार्टी बना लीं। शेवन बिजनोरी अपनी कव्वाल पार्टी को लेकर वे अहमदाबाद चले गए। अहमदाबाद में उनका कामयाब प्रदर्शन रहा। उस समय वहाँ इस्माइल आजाद, शंकर शंभू, युसूफ आजाद आदि की प्रसिद्ध कव्वाल पार्टी थी। शेवन बिजनौरी खुद ही गजल, गीत शेर और कव्वाली लिखते और गाते थे, इसलिए कोई भी दूसरी पार्टी मुकाबलों में उनसे जीतती नहीं थी। ये प्रोग्राम में हाथौं-हाथ कव्वाली का जवाब लिखते और गाते। इनकी कव्वाली लोगों द्वारा  गुनगुनाई और गाई जाने लगीं।

आपके कलाम की हिलाले अरब, मुस्लिम के लाडले, कव्वाली मजमुआ आदि छोटी-मोटी लगभग 500 किताबें छपीं 1973 में गजलों का दीवार सैल ए रवां के नाम से छपा। एक दीवान प्रीत के धागे हिंदी में छपा 1980 में घंूघट की आड़ में दीदार अधूरा रहता है, प्रकाशित हुआ। इन सब से इनकी प्रसिद्धि आसमान पर पहुँच गई। 1985 में बाबू लाल कव्वाल ने कैसिट सोनियों टोन कंपनी दिल्ली के लिए गाया। ये ही कव्वाली डाइरेक्टर नासिर हुसैन ने अपनी फिल्म हम है राही प्यार के में नदी श्रवण के संगीत में गायक कुमार शानू और कविता कृष्ण मूर्ति ने गवाई। ये कव्वाली इतनी हिट हुई कि 1993 में इसे फिल्म फेयर अवार्ड मिला 1990 में टी सीरीज के लिए गुलाम अली म्यूजिक डाइरेक्टर के अलबम अफसाना में वो मुझको छोड़के जाना चाहता है, अनुराधा पाडवाल और सोनू निगम ने गाया। भारत के अलावा दूसरे मुल्कों के कव्वाल मेंहदी हसन, परवेज  मेंहदी, नुसरत फतह अली खां ने भी शेवन बिजनौरी को गाया।

शेवन बिजनौरी के पुत्र प्रसिद्ध ढोलक वादक आसिफ अक्काशी बताते हैं कि उनके पिता की कव्वाली गजल और कलाम देश के अधिकांश मशहूर गायक और कव्वालों ने गाए। युसूफ आजाद कव्वाल ने उनकी कव्वाली सीने में मुहब्बत की रहती है, जलन बरसो, जानी बाबू कवल मुम्बई ने ऐ जाने तमन्ना जाने जिगर, अजीज नांजा मुंबई ने मुहब्बत का जमाना आ गया है, फिल्मी ंिसगर अनुराधा पौड़वाल ने वह मुझको छोड़ जाना चाहता है, अनूप जलौटा ने भजन-पकड़े गए कृष्ण भगवान, अलताफ राजा ने तू मेरी जान है, राम शंकर ने कैसेट जलवा है जलवा, अलका याज्ञनिक ने फिल्म हम हैं राही प्यार के मैं घूंघट की आड़ में दिलवर का गाए।

आसिफ अक्काशी बताते है। कि 1999 में तबियत खराब होने के कारण उनके पिता शेवन बिजनौर अपने घर बिजनौर आ गए। 22 जून 2021 को उनका निधन हो गया। शेवन बिजनौरी की याद में उनके घर के सामने वाले मार्ग का नाम उनके नाम पर किया गया 2016 से जिला कृषि और औद्योगिक प्रदर्शन में 2016 से शेवन बिजनौरी नाइट का आयोजन किया जाता है इसमें सूफी कव्वाली, गजल और फिल्मी गीत प्रस्तुत किए जाते हैं।

शेवन बिजनौरी के बड़े बेटे मुहम्मद वामिक अक्काशी उर्फ साजन बाबू भी मशहूर कव्वाल हुए। दूसरे बेटे आसिफ अक्कशी मशहूर तबला वादक हैं। इन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और भूपेंद्र सिंह मैताली की टीम के कार्यक्रम में तबला बजाया देश-विदेश में हुए कार्यक्रम में शामिल हुए तीसरे बेटे मुहम्मद खालिद अक्काशी ब्यूटीशियन है। चौथे बेटे मुहम्मद आरिफ अक्काशी प्रसिद्ध तबला वादक हैं।

3. भिंडी बाजार घराना

बिजनौर के भिंडी बाजार घराना है ये घराना मुंबई के भिंडी बाजार घराने के नाम से मशहूर हुआ। इस घराने से फिल्मी गायिका लता मंगेशकर, मन्ना डे, आशा भोंसले, महेंद्र कपूर, पंकज उदास आदि महत्वपूर्ण हस्तियों ने गायन की शिक्षा पायी। लता जी ने भी इसी घराने के उस्ताद अमान अली खान से संगीत की शिक्षा ली थी। उस्ताद अमान अली खान का परिवार बिजनौर के मिर्दगान मेाहल्ला के रहने वाला था। लता मंगेशकर उनके सबसे काबिल शिष्यों में से एक रहीं। इस परिवार के दिलावर खान के बड़े भाई ने इस कला को सीखा (उनके नाम का पता नहीं चलता) उन्होंने संगीत दिलावर खान को सिखाया। बड़े भाई मुंबई चले गए। वहाँ जमने पर उन्होंने दिलावर खान को अपने पास बुला लिया।

मुरादाबाद और बदायू के कलाकारों पर संगीत में शोध कर रही मुरादाबाद की शोध छात्रा रचना रुहेला गोस्वामी के अनुसार उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के उस्ताद दिलावर खान बिजनौर के मुहल्ला मिर्दगान में रहते थे। ये परिवार के साथ 1875 के आसपास मुंबई चले गए। मुंबई में रहकर इन्होंने अपने तीन बेटों छज्जू खान, नाजिर खान और खादिम खान को प्रशिक्षित किया। छज्जू खान के तीनों बेटे परम्परागत गायन के लिए प्रसिद्ध हुए। इन्होंने दस हजार से ज्यादा बंदिश तैयार कीं इनमें से अधिकांश बंदिशें हिंदू देवी-देवाताओं की स्तुति में थी।

उस्ताद छज्जू खान के बेटे उस्ताद अमान अली खान (1888-1953) भिंडी बाजार घराने के सितारे के रूप में जाने गए। अमान अली खान से लता मंगेशकर आदि ने गायक सीखा। घराने ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे विशिष्ट शैली विकसित की। अमान अली खान ने मैसूर राज्य के दरबारी संगीतकार कलानिधि बिदाराम कृष्णप्पा के मार्गदर्शन में कर्नाटक संगीत का भी अध्ययन किया। खान साहब ने प्रचार से परहेज किया। उन्होंने एक एकांत आध्यात्मिक जीवन जीना पसंद किया।

अमान अली खान के पौते श्री तहसीन अहमद ने बहरीन से फोन पर बताया कि उस्ताद दिलावर अली खान बिजनौर से मुरादाबाद आए। मुरादाबाद में नवाब पुरा में रहे। वहाँ से मुंबई गए। तहसीन अहमद किसी कार्यक्रम में भाग लेने आजकल बहरीन गए हुए हैं।

उन्होंने आगे बताया कि उस्ताद अमान अली खान साहब के कोई बच्चा नहीं था। उन्होंने अपनी बहिन के लड़के उनके पिता मुमताज अली खान को गोद ले लिया। उस्ताद मुमताज अली खान पूरी उस आकाशवाणी लखनऊ में कलाकार के रूप में काम करते रहे। उन्होंने बताया किा आज उनके दादा के परिवार से बिजनौर में कोई नहीं रहता खानदानी घर का क्या हुआ, इसकी भी उन्हें जानकारी नहीं।

इस घराने की विशेषता यह रही कि गायकों ने लंबी अवधि तक सांस नियंत्रित करने में लोकप्रियता और प्रसिद्धि प्राप्त की। इस तकनीकि का प्रयोग करने इस घराने के कलाकार एक ही संास में लंबे-लंबे अंतरे गा सकते थे। इसके अतिरिक्त इन्होंने कर्नाटक रागों का भी प्रयोग किया।¬

घराने की नींव मुंबई के भिंडी बाजार इलाके में 1890 में रखी गई थी। इस घराने की यात्रा नाल बाजार और इमामबाड़ा के बगल में एक गली में शुरू हुई। दिलचस्प है कि चूंकि घराना भिंडी बाजार में रहता था, इसलिए बाद में लोग इसे भिंडी बाजार या भिंडा बाजार घराना कहने लगे। मजेदार बात यह है कि जहाँ ये रहते हैं यहाँ न कभी भिंडी बिकी। न उनका बाजार लगा। फोर्ट के पिछले भाग में बसे बाजार को अँग्रेजों ने बिहांइड द बाजार कहा गया। बिहाइंड बाद में बोलचाल में भिंडी हो गया। मराठी में इसे भिंडा बाजार कहते है। इसी इलाके में रहने के कारण ये घराना भिंडी बाजार या भिंडा बाजार घराना कहा गया।

ये घराना कोई बॉलीवुड कोंचिंग सेंटर नहीं था यह गंभीर संगीत-केंद्र था। इतिहास यह कहता है कि विलंबित ख्याल के उस्ताद यही बैठते थे। इस घराने ने सिर्फ गायन के सीखने सीखाने पर जोर दिया। प्रचार से यह घराना दूर रहा। छज्जू खान के बेटे अमन अली खान और अंजनीबाई मालपेकर, इस घराने के प्रसिद्ध प्रतिपादक हैं। 

इस घराने के तीसरी पीढ़ी के प्रमुख की शिष्या प्रतिपादक अंजनीबाई मालपेकर रहीं। ये उस्ताद नजीर खान (1883-1974) की शिष्या थी। चौथी पीढ़ी में अमन अल खान (1888-1953) के शिष्य पंडित शिवकुमार शुक्ल (1918-1998), तमेश नाडकर्णी (1921-1995) टीडी जानोरीकर (1921-2006) और पाँचवी पीढ़ी में (स्वर्गीय) नीलाताई नागपुरकर (स्वर्गीय) उपेंद्र कामत (स्वर्गीय) मंदाकिनी गद्रे पं. जगन्नाथ संगीतमूर्ति प्रसाद वसंती साठे रहे।

इस परिवार के छज्जू खान का संत थे। उन्होंने अपना उपनाम अमर मुनि रख लिया था। उन्होंने अमर मुनि के नाम से भगवान शिव की स्तुति गाई। इनके बेटे उस्ताद अमन अली खान ने पिता के नाम अमर मुनि को आगे बढ़ाया। उन्होंने भगवान शिव की स्तुति ही नहीं देवी-देवताओं के भजन और अमर मुनि के नाम से गाए। श्री तसकीन अहमद बताते हैं कि उनके दादा अमान अली खान ने अपने पिता के नाम से हिंद देवी देवताओं के भजन गाए।

सरोदिया घराना 

सरोदिया घराना बिजनौर की अलग पहचान बताया है। ‘सफीक अला खां’ बुकराशिक (बुलन्दपुर) लखनऊ में सरोद वादन करते थे। जहाँ एक कार्यक्रम में कुवर सत्यवीरा जी ने उन्हें सुना और उनके वादन से प्रभावित हो अपने साथ बिजनौर ले आये जहाँ उन्हें धर्मनगरी में ही निवास स्थान दिया। सफीक उल्ला जी वहाँ अपनी साधना में लीन रहते साथ ही कहते और सत्यवीरा जी को सरोद वादन सीखया। यह अपने आप में एक अलग अनुभव था। ‘उस्ताद सफीक उल्ला खाँ’ जी ने अपने पुत्र श्री गुलाम साबिर जी को भी सरोद वादन की शिक्षा दी निरन्तर रियाज करते-करते कब उनकी ख्याति चारों ओर फैलने लगी इसका पता उन्हें उस समय लगा जब नजीबाबाद आकाशवाणी में उन्हें रिकार्डिंग के निमन्त्रण मिलने लगे। गुलाम साबिर जी को अपने विद्यालय में ही नौकरी पर रख लिया जहाँ वे विद्यालय में अन्य कार्य के साथ छात्राओं के कभी-कभी हारमोनियम व सरोद सीखने बैठ जाते। उनकी शिक्षार्थीयों में  कुंवरानी, व कुवरानी रुचिवीरा मुख्य रहीं।

एक समय था जब सरोद वादन बिजनौर में जीवित था लेकिन दुर्भाग्य है कि उनकी आगामी पीढ़ी इस कला को आगे नहीं बढ़ा पाई आज जब हम उनके पुत्र से बात कर रहे थे तो पूछा कि आप ने इस सरोद वादन की कला को क्यों नहीं सीखा तो वे शून्य में चले जाते हैं।

4. निरोल गुरुवाणी

बिजनौर निवासी डॉ॰ सुरिन्दर कौर जी भारतीय शास्त्रीय संगीत में परंगत हो ‘निरोल गुरुवाणी’ (गुरुग्रन्थ में वर्णित शब्दों का कीर्तन) को नये रूप में प्रस्तुत शास्त्रीय पुट दे प्रस्तुत कर भारतीय संगीत को समृद्ध कर रही है। 1970 सकलड़िया देहात (वाराणसी) में जन्मी सुरिन्द्रजी ने अपनी संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी में श्रीमति बनानी मिश्र जी, संगीता मिश्रा से प्रारम्भ की जिसे आपके गुरु श्री ओमसहाय जी ने रियास के साथ आपकी संगीत कला को एक नई दिशा प्रदान की जो अपनी पराकाष्ठा पर आपके गुरु श्री प्रेम जोहरी एवं सुनीता सक्सेना जी के सानिध्य में पहुँची। संगीत साधना में लीन उनके स्वर में पहुँच ईश्वरी आनंद तक पहुँच वे परमपिता में लीन हो जाती है। स्वरों के प्रति आकर्षण उन्हें बाल्काल से रहा। 5 वर्ष की आयु से प्रातः 4 बजे गुरुद्वारे में जाकर ज्ञानी जी की वाणी उन्हें भजन में लीन हो जाती थी। संगीत के सातों स्वरों में होना अर्थात ईश्वर व उसकी बनाई कृति (संसार) के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर उसकी वन्दना करने में लीन।

डॉ॰ कौर के सानिध्य में अनेक छात्रों को तैयार किया। उनके कोड लाइन ‘रियाज संगीत का मुख्य आधार है’ पकड़ स्वाति सक्सेना (दिल्ली), रिचा भरद्वाज (काशी विश्वविद्यालय) आदि सैकड़ों छात्र संगीत को नई ऊँचाई प्रदान कर रहे हैं। आज जब मैं उनके निवास स्थान पर पहुँची तो साधना में रत डॉ॰ कौर स्वर संपूर्ण वातावरण को भक्ति संगीत में सरोवार किए हुए उस परम पिता परमेश्वर के सानिध्य की अनुभूति करा रहे थे। हम कुछ छड़ शांत बैठे थे, कहाँ से शुरू करें समझ ही नहीं आ रहा था। फिर उन्होंने ही बात की फिर जब हमारे वार्ता आरम्भ हुई तो कब संध्या हो गई पता ही नहीं चला। हमारे संगीत पर चर्चा अभी तो आरम्भ हुई थी।

श्रीमती अमृता अरोड़ा-

शास्त्राीय संगीत में ‘मिश्रित घराने’ की विशेषता लिए 13 नवम्बर को मेरठ में जन्मी अमृता 2008 में अरोड़ा परिवार विवाह कर बिजनौर में बस गई। 14 वर्ष की आयु में संगीत में रुचि होने के कारण कलागुरु श्री इन्द्रपाल तोमर (बिरजू महाराज के शिष्य) श्री मोदिनगर निवासी से जुड़ गई जिनके सान्निध्य में इन्होंने नृत्य, गायन, वादन तीनों में निपुणता प्राप्त की। गुरु सानिदय में ‘राधाकृष्ण नृत्य नाटिका’ की प्रस्तुती इस्कोन टैंपल  नोयडा में सामुहिक प्रस्तुति करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हआ। ये उत्तर प्रदेश के कत्थक को जयपुर घराने की विशेषता लिये प्रस्तुत करती हैं। उत्तर प्रदेश के कथक नृत्य नजाकता के साथ  आगद, सलामी, टुकड़े, परन, चकना, तोड़ा, गतभाव नजाकत के साथ प्रस्तुत किये जाते हैं  वही जयपुर घराने यही गत भाव खड़ा नृत्य हाथ खुले तलवार जैसे चलते हैं।

अमृता जी की शास्त्राीय संगीत में अत्यधिक रुचि थी, जिसे देख इनकी माताजी ने इन्हें 2010 में ‘संगीत कला केन्द्र (निकट नगर पालिका, बिजनौर) प्रयाग संगीत समीति इलाहाबाद से मान्यता प्राप्त खुलवाने में पूर्ण सहयोग दिया। जिसके लिए मैं सदैव अपने ससुराल पक्ष प्रति कृतज्ञता प्रकट करती है। बात करने पर बताती है, शास्त्रीय संगीत में तैमूरी, टप्पा, ध्रुपद, धमार, भजन जिसमें तराना, ध्रुपद। लहकारिया (लय की गति) दिखाई जाती है, विशेष प्रिय है। गायिके के समय लय में खोजने की अनुभूति अद्भुत है ‘लय मात्र लय’ अब तक ये अनेक छात्राओं से संगीत में निपुण कर चुकी है, जिसमें अनेकों विद्यार्थीयों के नाम बताती है, जिसमें कु. गुंजन, श्वेता सक्सेना आदि इनकी संगीत परम्परा को आगे बढ़ा रही है।

प्रस्तुतकर्त्ता

डॉ॰ ऋचा शर्मा 

रानी भाग्यवती देवी स्नातकोत्तर 

महिला विश्वविद्यालय, बिजनौर

मो. नं.9897917603


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