इतिहास के पन्नों से: बरमपुर

 इतिहास के पन्नों से:------------------------ 

अमेरिका की कैलीफोर्निया युनिवर्सिटी एवं समस्त योरोप में  विश्व इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक 1857 में भारत के,(प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) जिसे अंग्रेज इतिहासकार कारों ने गदर लिखा है  इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध (बगावत)गदर का जो इतिहास समस्त योरोप  ब्रिटेन की कैम्ब्रिज और अमेरिका की कैलिफोर्निया होस्टन  में  पढाया जा रहा है इतिहास के वह अंस जो बरमपुर के संदर्भ में तत कालीन जिला कलेक्टर सरसैयद अहमद खां द्वारा लिखे गये और बिजनौर जिला अभिलेखागार और विश्व इतिहास का जीवंत दस्तावेज है।


बिजनौर:-1857 में गदर के दौरान विकास खंड नजीबाबाद के गांव बरमपुर मे लूटी गयी थी लाखो मन‌ खांड


बिजनौर: 1857 में हुए गदर की खबरे मेरठ से बिजनौर के बाशिंदों को मिल रही थी गंगा पार से बिजनौर की ओर आ रहे लोग वापस जा रहे थे उस के बाद बिजनौर में जहां-तहां क्रांति की ज्वाला धधकने लगी थी जनपद में इस क्रांति का केंद्र बिजनौर मुख्यालय के अलावा नजीबाबाद मण्डावर और नगीना बन चुका था कई गांवों के नाम भी सुर्खियों में थे उन मे से एक घटना थी राजपूत बहुल्य बरमपुर गांव का लुटना और नजीबाबाद के नवाब महमूद अली खान का बिजनौर ब्रिटिश मुख्यालय पर हमला तथा नगीना में विद्रोही सैनिकों का तहसील पर हमला 

लूटे थे 10348 रुपये और 14 आने सहित इस इस नकद धनराशि के अलावा स्टांप व अन्य सामान भी शामिल था इस गदर की प्रमुख घटनाएं थीं तारिख ए सरकाशी बिजनौर नामक पुस्तक में सर सैय्यद अहमद खान ने 1857 की क्रांति के बारे में विस्तार से लिखा गया है बिजनौर में फैली इस क्रांति की आग का जिक्र तारीख-ब-तारीख लिखा है मई 1857 का महीना था लढोरा रुड़की से गंगा पार करते हुए हजारो हथियारबंद लोग मण्डावर पहुंचते हैं यह घटना मण्डावर थाने के गांव बरमपुर की है एक ओर तो बिजनौर में आजादी को लेकर पहला स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा हुआ था दूसरी तरफ बिजनौर के गांव बरमपुर के रवा राजपूतो और गंगा पार के गुर्जरो और मेव जाती के लोगो मे ठन गयी थी इसके बाद गंगा पात से बड़ी संख्या में लोगों ने एकत्र होकर बरमपुर वासियों पर हमला बोल दिया और रवा राजपूतो को लूटने कि योजना बनाई क्योंकि बरमपुर रवा राजपूतो का बहुत बढ़ा गाव था

गंगा पार के लोगो ने मिल कर बरम पुर को आठ दिन तक लगातार लूटा और दिवारे खोद खोद कर चांदी का रुपया अशर्फिया निकाली गयी और बचे कुचे घर जला दिये गये उस समय बरमपुर मे लगभग तीस हजार मन खाँड लूटी गयी बरमपुर खाँड उत्पादन मे बहुत बड़ा स्टॉक रखता था लुटेरो द्वारा बची कुची खाड़ गाव के नजदीक एक तालाब मे डाल दी गयी थी इस वजह से उस तालाब का नाम खाडवाली पड़ गया था रुपये पैसे गेहूं खाँड राब शीरा कुल मिला कर लगभग बरमपुर को लगभग तीन लाख रुपये का नुकसान हुआ थायह लिखते हैं सरसैयद अहमद खां उस समय की तीन लाख की धनराशि को आज के मुलयांकन से देखते हैं तो यह धनराशि एक हजार करोड़ से   भी अधिक हो सकती है मालिनी नदी के पूर्वी तट पर बसा ऐतिहासिक गांव बरमपुर रवा राजपूत बहुल व्यापारिक ग्राम था यहाँ पर 1857 में 52 परिवार ब्राह्मणों के एवं 52 परिवार सुनारों के 6 , परिवार वैश्यों के निवास करते थे वर्तमान मे तीन परिवार ब्राह्मणों के एव॔ एक परिवार सुनारों का  एक परिवार वैश्यों का बचा है ग्राम बरमपुर में द्रोपदी मन्दिर भी है किंवदन्तियों के अनुसार यहां  मार्कंडेय ऋषि द्वारा स्थापित शिवलिंग कुरु वंश के कुल गुरु कृपाचार्य का आश्रय था जिसके अवशेष आज भी विद्यमान है पाण्डवों के स्वर्गारोहण को जाते समय पांडवों ने द्रोपदी सहित यहां 9दिन प्रवास  किया द्रोपदी ने चैत्र नवरात्रि  का उपवास रहकर   मां भगवती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उपासना की थी दसवें दिन कन्या भोज कराकर पांडव अपने अस्त्र शस्त्र कुल गुरु कृपाचार्य के चरणों में समर्पित कर स्वर्ग आरोहण के लिए चले गये यहीं से एक कुत्ता पांडवों के साथ गया जो युधिष्ठिर की अंतिम यात्रा तक साथ रहा यहां मां भगवती को समर्पित द्रोपदी मंदिर वना है जहां आज भी चैत्र मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मेला भी लगता है जहां दूर दूर से लोग मन्नत मांगने आते हैं और मन्नत पूरी होने पर मां का वंदन करने आते हैं।

यशपाल सिंह

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