नगीना
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नगीना
"गहना" के लिए शब्द है, इसका नाम सैयद ने रखा था जिन्हें मुगलों द्वारा यह स्थान
जागीर के रूप में मिला था। सैयद ग़ालिब अली को यह स्थान जागीर के रूप में प्राप्त
हुआ और उन्होंने नगीना महल या बारा महल का निर्माण करके शहर की स्थापना की।
आइन-ए-अकबरी में शहर का उल्लेख नगीना महल (बारा महल) के मुख्यालय के रूप में किया
गया है जो वर्तमान में मोहल्ला-सैयदवाड़ा नगीना या परगना में स्थित है। ब्रिटिश
काल के दौरान, यह
संयुक्त प्रांत में नगीना तहसील, बिजनौर जिले का मुख्यालय बना रहा; और 1817-1824 तक, यह नवगठित उत्तरी
मोरादाबाद जिले का मुख्यालय था। 1901 में, नगीना तहसील में 464 गाँव और दो कस्बे थे:
नगीना, जिसकी
आबादी 21,412 थी, और
अफ़ज़लगढ़, जिसकी
आबादी 6,474 थी।
क्षेत्र
में रोहिल्ला शक्ति का उदय 18वीं सदी के एक किले से हुआ, जिसे बाद में तहसील या
तहसील कार्यालयों के रूप में इस्तेमाल किया गया। 1805 में, मुहम्मद अमीर खान के
नेतृत्व में पश्तूनों ने शहर पर कब्ज़ा कर लिया था।
1857 के भारतीय विद्रोह के एक भाग के रूप में, नगीना नजीबाबाद के नवाब
और अंग्रेजों के बीच युद्ध का स्थल था, जो 21 अप्रैल, 1858 को नवाब की हार के साथ
समाप्त हुआ, जिसके
बाद अंग्रेजों ने बिजनोर में अपना अधिकार स्थापित किया, और बाद में, 1886 में नगीना नगर पालिका
बन गयी।
नगीना
बिजनौर जिले का एक छोटा सा शहर है, नगीना उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण
लकड़ी पर नक्काशी केंद्रों में से एक है। दुनिया भर में 'लकड़ी शिल्प नगरी' के नाम से मशहूर यह शहर
अंतरराष्ट्रीय स्तर के लकड़ी के हस्तशिल्प का उत्पादन करता है।
नगीना
के काष्ठ शिल्प उद्योग का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है। इस शहर
में ज्यादातर मुल्तानी लोग रहते हैं जो मूल रूप से पाकिस्तान से आए थे। इन लोगों
द्वारा निर्मित लकड़ी की अनोखी वस्तुओं को मुगल काल से ही सराहा और प्रोत्साहित
किया जाता रहा है। लकड़ी की वस्तुओं में से, चलने की छड़ें, विशेष पीतल की जड़ाई और
लकड़ी की जड़ाई बक्से और नक्काशी बहुत लोकप्रिय हैं।
नगीना, बिजनोर के पूर्व में
स्थित, पुरैनी
से लगभग 7 किमी
और धामपुर से 17 किमी दूर है। नगीना का मुख्य स्टेशन नगीना रेलवे स्टेशन है। निकटतम
हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है।
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नगीना एक ऐतिहासिक शहर
डा० शेख नगीनवी
सदियों से शांति सदभाव और सौहार्द का प्रतीक, हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों के दामन में बसा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर का शहर नगीना 29.26 उत्तरी अक्षांश और 78.26 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। समुद्री तल से 249.317 मीटर ऊंचाई और राष्ट्रीय राजमार्ग-74 पर स्थित नगीना का पूर्व नाम "नदीना" था और यह उत्तर की ओर नदी के किनारे बसा हुआ था। सम्राटों की दृष्टि में "शिकारगाह" होने के कारण इसकी बड़ी अहमियत थी। सन् 1540 में शेरशाह सूरी के शासन काल में मिर्जा फजल अली ने इस शहर की पुर्नस्थापना की। 101 पक्के कुंए भी बनवाएं। सम्राट अकबर के समय में नगीना की हैसियत पूर्ण राज्य की रही। जिसका उल्लेख आईन-ए-अकबरी (अकबर का संविधान) में परगना और महल के रूप में भी मिलता है। शाहजहां के शासन काल में नगीना की सरकारी आय उनकी पुत्री जहां आरा के लिए मुकर्रर हुई थी। दाराशिकोह की बेटी का मकबरा रामलीला मैदान के पास आज भी जर्जर अवस्था में है। 1743 में नगीना नवाब अली मौहम्मद खां (आंवला) के पास था जो उन्होने नजीब खां को नवाब दूधे र्खा रईस सिसौली की लड़की से शादी करने पर दे दिया था और नजीब खां को फौज का सालार बनाया था। 10 नवम्बर 1801 को नगीना ईस्ट इंण्डिया कम्पनी के नियन्त्रण में आ चुका था। 1805 में अमीर खां पण्डारी ने अचानक जिले पर हमला कर दिया और नगीना, किरतपुर, ताजपुर, धामपुर, शेरकोट, नजीबाबाद पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन किरतपुर और अफज़लक की जंग में उसकी
शिकस्त हुई नतीजा उसे जिला छोड़ना पड़ा। नगीना रूहेलो के क्षेत्र में भी रहा है। पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद नजीबुददौला ने नगीना को नवाब अवध को दे दिया था। 1836 के बाद यह आगरा में भी रहा है। 18वीं शाताब्दी के शुरू में अंग्रेजी शासनकाल में ही नगीना को तहसील का दर्जा मिला। 1817 में इसको मुरादाबाद जिला से अलग कर उत्तरी जिला के नाम से एक नया जिला बनाया गया जिसका मुख्यालय नगीना या जो 1824 तक रहा। 1886 में नगीना नगर पालिका बनी जिसके पहले चेयरमैन बुनियाद अली ये। श्री मति अफरोज जहाँ प्रथम महिला चेयर पर्सन बनी। पलिका के इतिहास में दो-दो बार पति पत्नि के अध्यक्ष चुने जाने का रिकार्ड शेख खलील-उर रहमान और उनकी पत्नि ताहिरा खलील के नाम दर्ज है। 1857 की भारतीय क्रान्ति की ज्वाला नगीना पहुंची। 21 अप्रैल 1857 को फिर गदर हुआ और इसका केन्द्र नगीना था। इस जंग में रूहेला नवाब और ब्रिटिश कम्पनी की सेना के मध्य जंग हुई। 1857 को जंग-ए-आज़ादी में नगीना के सपूतों ने बहादुरशाह जफर के किले से लेकर नगीना के बाएं बाग तक अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी। नगीना के रहने वाले फैयाज अली दिल्ली के शहर कोतवाल थे और बहादुर शाह के किले की हिफाज़त करते हुए जां बहक हो गए। इसी जमाने की माए नाज शख्सियत माडे खां तोपची ने अंग्रेजों का खुला मुकाबला नगीना में किया और अपनी जान-ए-अजीज मालिक-ए-जां को सौंप दी। 8 जून 1858 को जौहर गेट के निकट बाएं बाग में अंग्रेजों ने नरसंहार
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किया और नगीना की स्त्रियों ने अपनी इज़्ज़त और सम्मान की सुरक्षा के लिए कुंए में कूद गई और कयामत तक के लिए उसे पनाहगाह बना लिया नगीना खिलाफत आंदोलन का भी केन्द्र रहा है। मौलाना मौहम्मद अली जौहर, शौकत अली खिलाफत तहरीक का परचम लेकर नगीना कई बार आये और यहां मौलवी जुल्फिकार अली के नेतृत्व में तुर्की टोपियों की होली जलाई गई थी। खादी तहरीक को लेकर 13 अक्टूबर 1929 को महात्मा गांधी नगीना पहुंचे और रात्रि विश्राम कर खादी तहरीक और स्वतन्त्रता आंदोलन पर जन सम्पर्क किया 118 अक्टूबर 1920 को मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने नगीना पहुँचकर असहयोग आंदोलन के लिए भाषण दिया था। नगीना के भगवत प्रसाद गांधी, प० राधेश्याम शर्मा, गुरुशरण वैद्य और कश्मीरी लाल विश्नोई ने भी । वर्ष की कड़ी जेल यात्रा की। सर सय्यद अहमद खां जो 1857 में बिजनौर जिले में सदर अमीन के पद पर कार्यरत थे ने सस्कशी-ए-जिला बिजनौर में नगीना के गदर को कलम बन्द किया
कि
जामा मस्जिद
जौहर द्वार नगीना
नगीना की जनता ने अंग्रेज़ो और उसकी • पुश्तपनाही में पलने वालों का किस तरह मुकाबला किया।
नगीना के हालात और वाक्यात पर रिफअत सरोश द्वारा "नगीना यू० पी० का एक रिवायती करवा" शीषर्क से दैनिक अवाम 2 में 5 दिसम्बर 1998 को विस्तृत लेख ● प्रकाशित किया। 15 मई 1984 को तालीमी कांफ्रेस में मौलाना मुहम्मद आरिफ ने भी नगीना की तारीख पेश की थी। 1945 के प्रकाशित "डिस्ट्रक्ट बिजनौरस विक्ट्री नम्बर" एवं पीयर्स इंसाक्लोपीडिया, 1945 में एडीशन (विश्व गजेटियर) बिजनौर गजेठिबर, ज्योति, 30 प्र० में गांधी जी, दबिस्ताने बिजनौर तथा बिजनौर के जवाहर पुस्तकों में नगीना का उल्लेख है। नगीना के साहू छेदा लाल, गुफ्ती इस्हाक हुसैन, खान साहब शेया शफीक अहमद, महमूद अली, साहू हरवंश लाल, खान साहब सययद तौकीर अहमद, मुंशी जमीर अहमद मुख्तार, अब्दुल समद, सेठ भूरी लाल आदि के नाम एंव उनके द्वारा किया गया सहयोग का विस्तृत विवरण सचित्र "डिस्ट्रिक्ट बिजनौरस विक्ट्री नम्बर" पुस्तक में अंकित हैं। नगीना जागीरदारों, साहूकारों और दस्तकारों का शहर था। जागीरदार ऐसे जिन्हें यह तक मालूम न था कि उनके पास कितनी जमीन और उसकी कितनी आय है। वह अपने महलों और दीवान खानों की दुनिया में सिर्फ ऐश करते थे मगर उस ऐश में शराब, शबाब, रक्स और मौसीकी (नृत्य, संगीत) का गुजर न था। शुरफाए नगीना (सर सय्यद द्वारा दिया गया नाम) इल्म दोस्त थे। और रिआया की शांत मदद करते। प्राचीन निर्माण में जामा मस्ज्दि का नाम उल्लेखनीय है। जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है का निर्माण मिर्जा अली ने करवाया था। हिन्दु आबादी से चारो ओर घिरी सुनहरी मस्जिद, चारों ओर मुस्लिम आबादी से घिरा मुजराती मंदिर हिन्दु-मुस्लिम एकता की मिसाल है। नवाब अवध के सूबेदार ने एक किला भी बनवाया था जो आज जीर्ण क्षीर्ण अवस्था में
है और वहां आज कल थाना है। प्राचीन मन्दिरों में मुक्तेश्वर नाथ, खोखरनाथ तथा जम्वेश्वर बाय मंदिर उल्लेखनीय है। ब्राहमणी वाला तालाब भी अपनी प्राचीनता की कहानी बता रहा है। शिवरात्री पर मंदिर मुक्तेश्वर में अन्य जिलों के श्रद्धालु आकर गंगा जल चढ़ाते हैं। जैसा कि नगीना शिकारगाह जाने के लिए के एक उचित स्थान था। शाहजहां की बेटी राजकुमारी जहां आरा नगीना आकर रुकती थी यही वह विश्राम कर आगे पहाड़ो के लिए रवाना होती थी जिसकी वजह से मौहल्ला पहाड़ी दरवाजा नाम रखा गया। जनता की सुविधा के लिए मौलवी मौहम्मद सईद ने 1964 में एक सायरन नगीना की जामा मस्जिद में लगवाया। जो सुर्य उदय, अस्त और दोपहर के ठीक बारह बजे बजता है। इसके साथ ही बैतुलमाल की छत पर एक पीतल का घंटा लगा है जिसे समय के अनुसार हर घंटे पर बजाया जाता है। इन सायरन और घंटे की आवाज पूरे शहर और करीब देहात में भी सुनाई देती है। सययद सालार मसूद गाजी मय लश्कर 1030 के करीब के नगीना आऐ थे जिन्हो ने नगीना में नेजा जस्व करके विश्राम किया था और जबसे ही
नगीना में नेजा मेला लगता है। होली के बाद आने वाले बुद्ध को सबसे पहले नगीना में नेजा मेला लगता है उसके बाद धामपुर, नजीबाबाद, नहटौर, संभल वगैरह शहरों में नेजा मेला लगता है। नगीना शहर के बारे में "अव में मदीना हिन्दुस्तान में नगीना" स्लोग्न अक्सर लोगों की जबान से सुनने को मिलता है। इसकी वजह यह भी बताई जाती है कि एक लाख की आबादी वाले इस
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शहर में सौ से अधिक मस्जिदें है। मौलाना सय्यद आलिम अली ने 1855 ई० मदरसा अरबिया का संगे बुनियाद मौहल्ला अचारजान में रखा। मौलाना आलिम अली ने ही नेत्रहीनों के लिए मदरसा नाविनान कायम किया जिससे हजारो नेत्रहीनों ने शिक्षा लाभ प्राप्त किया। उत्तरी भारत में इसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। दारूल उलूम देवबन्द के संस्थापक मौलाना कासिम नानौतवी ने नगीना में 1871 मदरसा कासमिया अरबिया की स्थापना कराई। मौलाना रशीद अहमद गंगोही के खलीफा हजरत शाह यासीन साहब के वतन नगीना में सन् 1968 में जामिया अरबिया रशीदीया की स्थापना मुफ्ती जलील अहमद ने की। कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लालन पालन और शैक्षिक आवश्यकताओं को दूर करने के लिए नगीना में सन् 1987 में इदारा राफ्ताह व रहमा की स्थापना हुई। शेखुल हिन्द मौलाना महमूदुलहसन, अल्लामा अनवर शाह कश्मीरी, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, मौलाना हिफ्जुर्रहमान स्योहारवी, मौलाना मोहम्मद जकारिया, असद मदनी, कारी तय्यब, मौलाना सिद्दीक बांदवी, मौलाना अली मियां नदवी आदि उलेमाओं ने स्वयं नगीना तशरीफ लाकर इस सरजमीन को बरकतों से नवाजा और इल्म की शमा को रोश्नी बख्शी। बताते हैं कि हिन्दुस्तान में पहले शिया हाफिज अमीर काजिम नगीना के रहने वाले थे। नगीना का शिक्षा का स्तर मण्डल मुरादाबाद के अन्य शहरों की अपेक्षा बेहतर रहा है। जनगणना 2011 के अनुसार नगीना की जनसंख्या 95267 व साक्षरता प्रतिशत 52.75 है। नगीना में किले के निकट सूबेदार ने एक स्कूल की स्थापना 18वी शताब्दी में की थी जिसका 1887 में संचालन अंग्रेजों के पास था। 1947 के बाद इस स्कूल को "नेशनल वैलफेयर
सोसाइटी" देख रही है। नारी शिक्षा के लिए
1903 में विश्नोई सराय में 'वैदिक कल्या
पाठशाला" की स्थापना हुई। 1933 में
साहू गौरी शंकर के द्वारा सराय मीर मौहल्ले में भूमिदान करने पर सर एजाज अली ने कन्या विद्यालय की आधारशिला रखी। विद्यालय समीति के अध्यक्ष राम शरण लाहौटी थे। यही विद्यालय 1975 में इण्टर कालेज बना। 1912 में जार्ज हिन्दु पब्लिक स्कूल के नाम से एक विद्यालय की स्थापना हुई।
कुंबर दिलीप सिंह द्वारा भूमि दान देने पर साहू बशेश्वर नाथ के आर्थिक सहयोग से विशाल भवन बना जिसका शिलान्यास 1923 में सी.वाई. चिन्तामणि ने किया था
यह विद्यालय वर्तमान में हिन्दू इण्टर कालेज के नाम से है। सन् 1928 में मौहल्ला सब्यद वाड़ा में मुस्लिम ब्वायज इंग्लिश स्कूल की स्थापना मीर अहमद अली ने की जो 1933-34 में मौहल्ला अकावरान में चला और 2 फरवरी 1943 को हयात अली शाह ने नगर पालिका नगीना को सौंप दिया ।15 मई 1941 में कलक्टर मोहम्मद मुस्तफा ने शिलान्यास किया और उन्हीं के नाम मुस्तफा म्युनिस्पिल इण्टर कालेज कहलाया ।1968 में नगीना में अनीस अफज़ल 'आपाजान" ने प्रथम इंग्लिश मीडियम नगीना मांटेसरी स्कूल की स्थापना की। साहित्य के क्षेत्र में नगीना का विशेष योगदान रहा है। उर्दू उपन्यास के पितामह डिप्टी नजीर अहमद नगीना के रहने वाले थे। जिगर मुरादाबादी ने नगीना नगर पालिका में नौकरी की थी। सय्यद अज़ादार हसन और अख्तर नगीनची हजरत-ए-दाग देहलवी के शागिर्द थे। अल्लामा इकबाल के उस्ताद सय्यद मीर हसन जो शअर-ओ-सुखन में उच्च स्थान रखते है नगीना के ही बुजुर्ग थे। रिफअत सरोश जो कि उर्दू साहित्य का एक बढ़ा जाम
है नगीना में ही पैदा हुए थे। बाबू फखरूद्दीन महजू सम्पादक "रियासत" दिल्ली खुर्शीद आलम शमीमी, कोकब शादाबी, जिया अख्तर, राईस राही, मौहम्मद गुल, अन्दलीब, बिस्मिल नगीनवी, नज़्मी नगीनवी, हाफिज रहमतुल्ला नक्शवन्दी, रोशन नगीनवी, युसुफ इकबाल, इरफान रूमानी, अतहर शकील बेखुद नगीनवी, ने शायरी में बड़ा नाम कमाया था। नगीना के
वैद्य और हकीमों ने भी राष्ट्र स्तर पर नाम कमाया है। हकीम नजीर हुसैन हकीम अजमल खां के खास शागिर्द वे जबकि मौलवी हकीम जमीलुद्दीन उस्ताद, हकीम मोहम्मद अजमल खां नगीना के ही सपुत्र थे। हकीम जफरयाब अली को मसीह-उल-हिन्द का खिताब मिला हुआ था। वैों में पं० हरिशंकर, पं० बाबूराम, डाक्टर बनारसी दास और डाक्टर नवाब साहब उल्लेखनीय है। बालादस्ती के खिलाफ संघर्ष नगीना के खून में शामिल है। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हाफिज मोहम्मद इब्राहीम का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और 1940 से 1942 तक फतेहगढ़ जेल में भी बन्द रहें। हाफिज इब्राहीम 1946 में उत्तर प्रदेश विधान कौंसिल के सदस्य नियुक्त हुए। 1946, 1952 और 1957 में विधान सभा के सदस्य चुने गए। उत्तर प्रदेश में वित्त, उर्जा, उद्योग मंत्री रहे। 1964 में केन्द्रीय उर्जा, सिंचाई मंत्री रहे और 1964 में पंजाब के राज्यपाल के रूप में शपथ ली। सरकार ने उन्हें "पदम भूषण" की उपाधि से अलंकृत किया। जिला बिजनौर की आत्मा कहलाने वाला नगीना
JUNAID AHMAD
राजनैतिक दृष्टि से मुख्य केन्द्र रहा है। हाफिज मोहम्मद इब्राहीम केन्द्र की राजनीति तक पहुंचे उनके पुत्र अतीकुर्रहमान व अजीजुर्रहमान उत्तर प्रदेश मंत्रीमंडल में शामिल हुए थे। सन् 2007 में नगीना को नई लोक सभा सीट बनाए जाने से भी इसका राजनैतिक महत्व बढ़ा है। सन् 1976 से नगीना अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट हो जाने एवं बिजनौर लोकसभा सीट भी
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सुरक्षित हो जाने से यहां दलित राजनीति को भी बल मिला है।
लोकसभा की स्पीकर मीरा कुमार पहली बार 1985 में बिजनौर सीट (जिसमें नगीना विस. भी शामिल) से लोकसभी पहुंची। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को लोकसभा में प्रथम बार भेजने का श्रेय भी इसी क्षेत्र को है। बाल्मीकि नेता मंगल राम प्रेमी नगीना से विधायक बाद में सांसद बने। नगीना के निसार अहमद विधान परिषद के सदस्य रहे है। नगीना विधान सभा क्षेत्र सदस्य ओमवती देवी और मनोज पारस को उ०प्र० मंत्रिमण्डल में प्रतिनिधित्व मिला है। नगीना में जन्मे सुरेश राठौर, ज्वालापुर (उत्तराखण्ड) फरजाना आलम, मालयर कोटला (पंजाब) से एम एल. ए० रही है। पंजाब प्रान्त से नगीना आये शमसी बिरादरी के लोग अधिकतर कारोबार से जुड़े हैं। पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत अदालत-ए-शस्य्य के चीफ जस्टिस तंजीलुर्रहमान शमसी नगीना के ही थे। नगीना कितना पुराना शहर है इसका साक्ष्य नहीं मिलता है लेकिन इस शहर को आबाद करने के लिए देश-विदेश से अनेक बिरादरियों और वर्ग के लोग नगीना आए और नगीना को अपना बनाकर आबाद किया। तकरीबन 400 साल पूर्व राजस्थान में भयंकर सूखा पड़ने पर वहां से विश्नोई बिरादरी के लोग पलायन कर गए उनमें से कुछ ने नगीना में शरण ली और आज एक पूरा मौहल्ला विश्नाई सराय के नाम से आबाद है। इसी तरह बागड़ राजस्थान से सन् 1757 में वैश्य समाज के सेठ धनपत राय नगीना आए उनके परिवार के लोग "पंच भैया" परिवार के नाम से मशहूर हुए उनका परिवार मानक चन्द में आबाद है। इस परिवार के लोग आज उद्योगपति, व्यापारी, निजि एवं सरकारी क्षेत्रों में उच्च पदों पर सेवा कर रहे हैं। इसी परिवार के धर्मवीर अग्रवाल
सचिव, भारत निर्वाचन आयोग रहे। शिक्षाविद्
बसंत कुमार गर्ग ने देश में पैरेंट टीवर
एसोसिएशन की स्थापना की थी जो आज भी
कई राज्यों के विद्यालयों में स्थापित है। डा०
सतीश गर्ग डी.यू में प्रोफेसर एंव उच्च कोटि
कवि थे।
इंजीनियर ओ. पी मित्तल को "पदम श्री" उपाधि मिली थी। आले इमरान जवाहर लाल के सहपाठी थे। उन्होने लन्दन से बार एट लॉ किया था। सययद मौहम्मद सिददीक • आईएएस की पढ़ाई के लिए लन्दन • और विभाजन से पूर्व प्रसारण पहुंचे थे विभाग में उच्च पद पर थे। नगीना में जन्में अहमद नगीना रत्न है जुनैद
जिन्होंने संघ लोक सेवा आयोग 2017 की परीक्षा में 352 वी की वर्ष और सन् 2018 की परीक्षा में तीसरी रैंक नगीना का नाम रोशन किया। साथ मुल्तान से आए लुहार पाकर मुगलों के बिरादरी के लोग जो हथियार बनाने का काम करते थे नगीना में आकर बसे और लुहारी सराय आबाद किया। हथियारों पर नक्काशी होने पर इस बिरादरी ने लकड़ी पर बंद अपनी सलाहियत और कला का प्रदर्शन किया आज इस फन की बदौलत नगीना और "वुड क्राफ्ट सिटी" के नाम से विश्वविख्यात है। नगीना में बन्दूक बनाने की इंडस्ट्री थी।
जिसका उल्लेख विश्व गजुट 1914 में अंकित है। मुराद बख्श और मौला लकड़ी की दस्तकारी के माहिर ये बख्श जिनको अंग्रेज अधिकारी लंदन ले और उन्होने महारानी विक्टोरिया गरे के
सामने अपने फन व कारीगरी का प्रदर्शन किया। उनकी फनकारी से प्रभावित होकर महारानी ने अपने दस्तखत से मैनुअल सर्टिफिकेट जारी किया। खान साहब अब्दुल्ला को 1892 में और 1917 में एडवर्ड सिल्वर मैडल मिला था।
नगीना के कारीगरों की नक्काशी का नमूना लंदन के शाही कब्रिस्तान के गेट और कई म्यूजियमों देखने को मिल जाते है। लकड़ी दस्तकारी में नगीना के अ० रशीद, शब्बीर हुसैन, बशीर अहमद और अ० सलाम, मतलूब अहमद मुल्तानी, को राष्ट्रपति एवार्ड मिल चुके हैं। हाथी दांत और आबनूस व चन्दन लकड़ी की शिल्पी कला में करम इलाही बड़े मशहूर रहे हैं। जिन्हे सरकार ने खान साहब की उपाधि से नवाजा था।
आज भी नगीना वुड हैण्डिक्राफ्ट उद्योग
विश्व के अनेक देशों को लकड़ी के बने
प्रोडक्ट निर्यात कर करोड़ों रूपये की
विदेशी मुद्रा देश में ला रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नगीना की बनी आबनूस की छड़िया अमेरिका और जर्मन पहुंची और वहां लोगों का सहारा बनी। स्वतंत्रा से कुछ पहले मंसूरी से आए एक परिवार ने सिर्फ लकड़ी की छड़ियों का काम किया जो कि आज लाठी वालों के नाम से मशहूर है। देश भर में उनकी छड़ियों की सप्लाई है। 1947 को देश आजाद हुआ लेकिन विभाजन का जख्म भी दे गया। विभाजन से नगीना का भी मंजर नामा बदला और बहुत से सम्पन्न व प्रतिष्ठित परिवार पलायन कर गए और शरणार्थियों को नगीना में सहारा मिला। नगीना उत्तर रेलवे के मुरादाबाद डिवीजन का मुख्य रेलवे स्टेशन है। जहाँ जम्मु से स्यालदाह (बॉल) तक सीधी ट्रेन हैं। जौली ग्रांट नगीना का निकटतम एयरपोर्ट है। राष्ट्रीय राजमार्ग न० 74 पर स्थित नगीना से दिल्ली, चण्डीगढ़, देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार,
लखनऊ और कानपुर आदि के लिए
सीधी बसे मिलती हैं। नगीना से अन्य
शहर जाने के लिए 8 मार्ग हैं जिनमें
धामपुर, बिजनौर, नजीबाबाद, कोटद्वार,
नहटौर, हरेवली, किरतपुर, बढ़ापुर
प्रमुख है। नगीना शहर का विद्युतीकरण
सन् 1929 में तौकीर अहमद के
प्रयासों से चीफ इंजीनियर नैतीताल मि.
डाउल्स ने किया था। नगीना शहर के
चारो तरफ आम के बागात है जिनकी
सप्लाई कलकत्ता समुद्रीतट से विदेशों
तक होती है। नगीना के किसान आम
तौर पर गेंहू चावल और गन्ना की
पैदावार करते हैं। 1932 में नगीना में
धान अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की
गई जहां चावल की पैदावार बढ़ाने
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अनुसंधान का कार्य हुआ और इस केन्द्र ने एन-22,27,32,0-64 आदि चावल की नई-नई किस्मे दी। नगीना का अतीत जितना उज्जवल रहा है वर्तमान नहीं हैं। दुर्भाग्य से नगीना में स्थापित कताई मिल बन्द हो चुकी है।
शीशी उद्योग समाप्त हो गया है। बीटीसी स्कूल, मैडीकल कालेज दूसरे स्थानों पर ट्रांसफर हो चुके हैं। राजकीय डिग्री कालेज कई साल फाईलों में चलकर समाप्त हो चुका है। राजकीय महिला विद्यालय की स्वीकृति जबान तक है। काष्ठ कला उद्योग की भी दयनीय स्थिति है। विद्यालयों की शिक्षा इस सटैंडर्ड की नहीं रही कि यहां से शिक्षा प्राप्त छात्र बाहर जाकर कोई कम्पटीशन आसानी से क्लीयर कर ले। शिक्षा को व्यवसाय की दृष्टि से देखने वालों के लिए नगीना में प्रोफेशनल, टैक्निकल, इंस्टीट्यूट स्थापित कर अपने व्यवसाय को गति देने की अपार संभावनाएँ हैं। इन सबके बावजूद उम्मीद की किरन अभी बाकी है नगीना की जनता को नगीना और आने वाली नस्ल के लिए फिर से खड़ा होना पड़ेगा जिससे कि नगीना फिर "नगीना" बन
सके।
उसकी उन्नत किस्म की खोज व (लेखक ऊर्दू साहित्यकार और कालेज के पूर्व छात्र है)
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