सुल्ताना फांसी की तारीख 16 जुलाई 1924

 सौ वर्ष पूर्व 7 जुलाई 1924 को आगरा की जेल में सुल्ताना डाकू को उसके 15 साथियों सहित फांसी की दी गई


सुल्ताना डाकू नही स्वतंत्रता सेनानी था, वो अंग्रेजी व्यवस्था से तंग आकर बागी बना था 


सुल्ताना डाकू होने के बावजूद महिलाओं की बहुत इज्जत करता था


कलम हिन्दुस्तानी 

शादाब ज़फ़र 


यू तो नजीबाबाद की हिन्दू, मुस्लिम एकता विश्व प्रसिद्व है पर पूरी दुनिया मैं मशहूर अंग्रेजी सरकार को नाको चने चबाने वाले एक डाकू के नाम से भी नजीबाबाद की पहचान विश्व प्रसिद्व हैं. सुलताना की जिंदगी और नजीबाबाद का इतिहास अंग्रेजों के कहर और सुल्ताना के प्रतिशोध की दास्तां समेटे हुए है।

   बात करे अगर डाकू सुलताना की तो सुल्ताना डाकू का नाम आज कौन नही जानता, आज भी देश विदेश के लाखों लोग ये किला डाकू सुलताना की प्रसिद़ी के कारण देखने आते है। हम सब जानते हैं कि आज सुलताना डाकू का नाम भारत मै यू ही नही बल्कि पुरी दुनिया मै मशहूर है. आज सैक्डो बरस बाद भी डाकू सुल्ताना की बहादुरी और दरिया दिली की किस्से पूरी दुनिया मै नजीबाबाद को पहचान दिलाने मै अहम रहे हैं.सुल्ताना डाकू ने नजीबाबाद को विश्वस्तर पर पहचान दिलाई वही नजीबुद्दौला के बनाये किले को अपने नाम से प्रसिद़ कर दिया। सुल्ताना डाकू के इस पर कब्जा करने के बाद इस किले ने देश ही नहीं बल्कि विदेशो में प्रसिद्धि पाई। 

     नाटकों, नौटंकियो और ग्रामीण सांग व कहानियो में सुल्ताना डाकू को  नजीबाबाद, बिजनौर का  बताया जाता है पर दरअसल वह और उसका गिरोह मुरादाबाद जिले का था। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत में भले ही सुल्ताना जैसे लोगों को डाकूओं की संज्ञा दी गई हो पर असल में ये लोग व्यवस्था से तंग आकर बागी बने थे। इन लोगों ने अंग्रेजों व जमींदारों और साहूकारों के अत्याचारों से तंग आकर गलत रास्ता अख्तियार किया था!  कहते है कि अंग्रेजी हुकूमत के समय लगभग 155 साल पहले भांतू जाति का एक गिरोह मुरादाबाद में सक्रिय था, जिसमें सुल्ताना भी था। इस गिरोह ने सीधे अंग्रेजों की हुकूमत को चुनौती दे रखी थी। पर उस वक्त अंग्रेजी हकूमत से पार पाना बेहद मुश्किल था. गिरोह से छुटकारा पाने के लिए अंग्रेजों ने खाली पडे पत्थरगढ़ के किले को कब्जे में लेकर इस गिरोह के लोगों को पकड कर  किले में लाकर डाल दिया तथा उन्हें काम पर लगाने के लिए यहां पर एक कपड़े का एक कारखाना स्थापित कर दिया। इन लोगों को काम पर लगा दिया गया। पर यहॉ पर भी गिरोह के लोग इन लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे थे। इन लोगों की मजदूरी इतनी कम थी कि इनके परिवार का पालन-पोषण नहीं हो पाता था। हां इनको सप्ताह में एक दिन नजीबाबाद शहर में जाने की इजाजत  प्रशासन से जरूर मिलती थी। जेलनुमा जिंदगी से परेशान तथा आर्थिक तंगी के चलते इन लोगों ने चोरी छिपे फिर से एक गिरोह बना लिया, जिसका सरगना बालमुकुंद को बनाया गया। कुछ समय बाद बालमुकुंद नजीबाबाद के पठानपुरा मोहल्ले के मोहम्मद मालूक खां की गोली का शिकार हो गया। बालमुकुंद के मरते ही गिरोह की बागडोर सुल्ताना के हाथ में आ गई, जिसने अपने जज्बे और चालाकी से अंग्रेजों को छका कर नजीबाबाद के पास ही कंजली बन में डेरा डाल दिया। सुल्ताना का गिरोह इस वन में कितना सुरक्षित था, इसका अंदाजा इसी  बात से लगाया जा सकता है कि कंजली वन का विस्तार कई सौ किलोमीटर था।

सुल्ताना ने नजीबाबाद के आसपास के गरीबों को विश्वास में लेकर जमींदारों व साहूकारों के घरों में डकैती डालनी शुरू कर दी। हर जगह अंग्रेजों व जमीदारों को चुनौती पेश करने वाले इस डाकू के चर्चे पूरे हिन्दुस्तान में होने लगे। सुल्ताना गरीबों में इसलिए भी ज्यादा लोकप्रिय हो गया था कि क्यों कि उसका कहर जमींदारों तथा साहूकारों पर ही टूटता था और उनसे लूटकर वह सब कुछ गरीबों में बांट देता था। कहा जाता है कि उसने कई गरीब बेटियों की शादी भी कराई। सुल्ताना की विशेष बात यह भी थी कि डाकू होने के बावजूद वह महिलाओं की बहुत इज्जत करता था तथा उनके द्वारा पहने जेवर को लूटने की इजाजत अपने लोगों को नहीं देता था। सुल्ताना के बारे में कहा जाता है कि डकैती डालने से पहले वह डकैती के दिन व समय का इश्तहार उस मकान पर चिपका देता था जहॉ उसे डकैती डालनी होती थी। पर इस बात में इतना दम नहीं लगता , जितनी मजबूती ये यह पेश की जाती है। हां, इतना जरूर था कि उसने बदले की भावना से कुछ जमींदारों के घर पर इश्तहार जरूर लगाए थे तथा इश्तहार लगाने कुछ ही समय बाद डकैती भी डाल दी थी। सुल्ताना ने नजीबाबाद के पास जहां डकैती डाली, उन में कोटद़ारा ट्रेन को लूटा, जालपुर और अकबरपुर प्रमुखता से डकैतिया डाली। 

    बताया जाता है कि सुल्ताना डाका डालने से पहले डकैती वाले घर पर इश्तहार चस्पा कर देता था । बिजनौर जिले के आसपास की पुलिस भी सुल्ताना से खौफ खाती थी। बिजनौर जिले के नांगल थाने के जालपुर गांव में सुल्ताना ने 22 मई 1922 को डकैती डाली, जिसमें 17248 रुपए की लूट की। सुल्ताना द्वारा की गई थी यह डकैती शिब्बा सिंह के घर पर डाली गई थी ।नांगल थाने में फारसी भाषा में उस मामले की रिपोर्ट और जांच के दस्तावेज आज भी मौजूद हैं। यह मुकदमा अपराध रजिस्टर में 25/1922 धारा 397 के अंतर्गत दर्ज है ।

   जब पुलिस सुल्ताना डाकू को नहीं पकड़ पाई तब टिहरी रियासत के राजा के कहने पर फ्रेडी यंग नाम के एक जांबाज अफसर को सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए विशेष तौर पर बुलाया गया। यंग ने अपने साथ प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट को शामिल किया ।इसके अतिरिक्त तुला सिंह ने भी फ्रेडी यंग का सहयोग किया ।यंग  ने 300 सिपाही और 50 घुड़सवारों को लेकर नैनीताल से नजीबाबाद के जंगलों में 14 बार छापेमारी की। जिम कार्बेट लिखते हैं कि एक बार सुल्ताना डाकू ने उनकी तथा एक बार फिर फ्रेडी यंग की जान भी बख्शी थी। सुल्ताना ने फ्रेडी यंग  को तरबूज भी भेंट किया था।

 14 दिसंबर 1923 को नजीबाबाद के जंगलों में सुल्ताना को 15 साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया। सुल्ताना के साथ उसके साथी पीतांबर ,नरसिंह, बलदेव और भूरे भी पकड़े गए। नैनीताल अदालत में सुल्ताना डाकू पर केस चलाया गया। यह केस नैनीताल गन केस के नाम से जाना जाता है। 7 जुलाई 1924 को आगरा की जेल में सुल्ताना डाकू को उसके 15 साथियों सहित फांसी की  दे दी गई। यंग ने सुल्ताना की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदलवाने का काफी प्रयास किया लेकिन अंग्रेजी हुकूमत इस बात पर सहमत नहीं थी। फ्रेडी यंग ने सुल्ताना की पत्नी और पुत्र के भोपाल के पास रहने की व्यवस्था की और उसके बाद सुल्ताना के लड़के को उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा तथा सुल्ताना के बेटे को अपना नाम भी दिया। आज भी नजीबाबाद में नवाब नजीबुदौला का बनवाया हुआ वह किला मौजूद है। किले पर सुल्ताना ने कब्जा कर लिया था और आज इस किले को कुछ लोग सुल्ताना डाकू के किले के नाम से भी जानते है। 

    कुछ लोग कहते है कि सुल्ताना डाकू का एक हाथ पंजे से नीचे से कटा था पर वास्तव मै सुल्ताना के एक  हाथ की तीन अंगुलियां कटी हुई थी, जिन के द़ारा ही पकडे जाने के बाद सुलताना के रूप मै उसकी शिनाख्त भी हुई थी। सुल्ताना डाकू के बारे में बहुत सी बाते प्रचलित है कुछ कहते है कि शुरु में उस ने किसी दुकान से अण्डा चुराकर अपनी मॉ को लाकर दिया था और एक अण्डे की चोरी ने उसे इतना बडा डाकू बना दिया। ये बात यू ही नही मशहूर हुई कहा जाता है कि पकडे जाने के बाद फांसी से पहले जब उसकी मां  उस से मिलने जेल आई तो उसने मॉ से मिलने से यह कहकर मना कर दिया कि आज यह दिन तेरे कारण देखने को मिला। इस से ये बात मजबूत बनती है कि उसे डाकू बनने का कितना पछतावा था। 

    कुछ भी हो सुलताना जैसा नाम इतिहास मै आज भी अमर है और अमर रहेगा..


शादाब ज़फ़र  शादाब की फेसबुक वॉल से

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