अशोक मधुप तैयब अली की फेसबुक वॉल से
जानेमाने लेखक श्री मधुप जी का आज जन्म दिन है मेरी ओर से मधुप जी को जन्म दिवस कि हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपके उत्तम स्वास्थ्य व सुदीर्घ जीवन की कामना करता हूँ
लगभग 71 बसंत देख चुके श्री अशोक मधुप जी का जन्म 17 जुलाई सन 1950 मे कस्बा झालू मे हुआ जनपद बिजनौर के वरिष्ठ पत्रकारों में शामिल हैं मधुप जी सन 1971 में उन्होंने अपनी पत्रकारिता व कविता कि शुरू की थी कवि सम्मेलन में खूब गए श्री अशोक मघुप जी की अभिव्यक्ति गद्य पद्य दोनो रूप मे समान भाव से होती है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी मधुप जी बिजनौर के एतिहासिक स्थलों व पुरातत्व महत्त्व की जानकारी का भण्डार है ।मुझे भी बहुत कुछ सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है सन 76 से अमर उजाला से जुड़े।इधर उधर घूमे।फिर अमर उजाला से जुड़ गए। अमर उजाला के साथ उनका लगभग 45 साल का सफर है
पत्रकारों की मान्यता है कि मघुप जी कि लेखनी ही इनकी लंबी आयु का राज है।
मधुप जी ने अपने जीवन में दर्जनों लोगों को पत्रकारिता के गुर सिखाए हैं मधुप जी तटस्थ विचारों के कुशल खिलाड़ी ही नहीं साहित्य सृजन के संस्कार से अनुप्राणित व्यक्ति भी हैं सरलता म मधुरता उनकी पहचान है।
अपने विचारों को साझा करते हुए बताया कि एक जमाना था जब अखबारों में चार पंक्ति की समाचार आने पर हाय-तौबा मचने लगती थी लोग कहते थे कि अखबार में छपा है,तो सही ही होगा उस दौरान मेरठ से लेकर बिजनौर तक कुछ ही समाचार पत्र होते थे समय दूरसंचार प्रणाली उतनी तेज नही होने के कारण लोग सूचना के लिए अखबार पर निर्भर थे।
आज इलेक्टानिक मीडिया के आने पर भी अखबारों की प्रासंगिता कम नहीं हुई है। लोग सुबह सवेरे उठते ही अमर उजाला अखबार की ओर झपटते हैं ।आम आदमी से लेकर खास आदमी जब प्रशासन नेताओं को अपनी बात कहते-कहते थक जाते हैं ।कोई परिणाम सामने नहीं आता है तब लोगों की आखिरी आस पत्रकार होते हैं।
आज भी लोग कहते हैं चलो अखबार में खबर छपा देते हैं। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारिता की प्रासंगिकता न कभी कम हुई है न कभी कम होगी
मधुप जी मेरी नजर मे एक एसे पत्रकार है जिन्होने बड़े-बड़े नेताओं पदाधिकारियों के कृत्य को जनता के सामने लाकर उसे नेपथ्य तक ले जाने में भी अपनी भूमिका निभाई
बिजनौर मे कभी पत्रकारों को धमकियां भी मिली है लेकिन इस पवित्र पेशे को अच्छे लेखक पत्रकार अपनाने में आज लोग हिचक नहीं रहे हैं। इनके विरुद्ध दो बार रासुका लगाने के प्रयास हुए।तो एक बार सेना में विद्रोह फैलाने के प्रयास का भी मुकदमा हुआ।
मधुप जी बताते हैं पत्रकार बिना कोई सुरक्षा की परवाह किए सच को सामने लाने के लिए खाक छान देता है ।कभी कभी इसकी जान भी चली जाती है। पत्रकार की ताकत तो अपनी कलम ही होती है ।इसी के बल पर इनका मजमा लगता है कभी लोग ताली भी बजाते हैं कभी कोसते भी हैं।
आम जनता के बीच पत्रकार की पैठ ही असली ताकत होती है इसलिए पत्रकारों का दायित्व बनता है कि वह जनता के विश्वास में खरा उतरते रहे ।अपनी लेखनी को किसी भी शर्त पर गिरवी न रखें।
पत्रकार का काम केवल जानकारी देना नहीं बल्कि हर सभ्य कदम हर मानवीय मूल्य के साथ खड़े होने और जनहित के लिए लड़ने वाले एक योद्धा का साथ भी देने का है । इस लड़ाई में कभी वह जीतता भी है तो कभी हार भी जाता है
समाज की दो सबसे महत्वपूर्ण शक्तियां राजनीतिक और आर्थिक है।
यह वही शक्तियां हाथी के समान हैं । मिडिया एक अंकुश है।इसका लक्ष्य इस हाथी को सही रास्ते पर चलने को मजबूर करते रहना है ।पत्रकारिता में दबे कुचले वर्ग की भागीदारी भी आवश्यक है ।जब तक पत्रकार समाज के लोग सच्ची पत्रकारिता से नहीं जुटेंगे तबतक उनके सही दर्द को नहीं जाना जा सकता है
प्रस्तुति----------तैय्यब अली
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