मोरध्वज का किला

भले ही आज मालन नदी नाले की तरह तंग हो गई है, लेकिन कभी मालन के किनारे समृद्ध सभ्यता हुआ करती थी। कण्व आश्रम ही नहीं बल्कि राजा मोरध्वज का किला भी मालन के किनारे बताया जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संकेतक भी इसे तस्दीक करते हैं और किवदंतियां भी किस्सा बयां कर रही हैं। सभ्यता के अवशेष मालन के किनारे शिवलिंग, मूर्तियों और अन्य वस्तुओं के रूप में मिले हैं। साल 1975 में भारतीय पुरातत्व विभाग भी यहां खोदाई कर चुका है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने मथुरा मोर गांव में स्थित मयूरेश्वर मंदिर पर संरक्षण का बोर्ड भी लगाया हुआ है।

अब मालन और प्राचीन काल में मालिनी कहलाने वाली नदी का उद्गम पौड़ी जिले की चंड़ा पहाड़ियों से माना जाता है। बिजनौर में हल्दूखाता से मालन प्रवेश करती है। जिले में 53 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद गंगा में मालन का मिलन रावली में स्थित कण्व आश्रम के पास हो जाता है। मालन के किनारे ही कण्व मुनि का आश्रम हुआ करता था। जिनके आश्रम में रहने वाली शकुंतला का राजा दुष्यंत से गंधर्व विवाह हुआ। मालन नदी का क्षेत्र ही राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रणय स्थली रहा। उनके बेटे चक्रवर्ती सम्राट भरत ने बचपन में इसी धरती पर शेर के दांत गिने थे, जिनके नाम पर देश का नाम भारत पड़ा।

[7:21 pm, 17/08/2024] Achal Au: मालन नदी के किनारे पर एक प्राचीन सभ्यता हुआ करती थी, जोकि समय के साथ नष्ट हो गई। इसके अवशेष आज भी मथुरापुर मोर में मालन के आसपास मिलते रहते हैं। तमाम अवशेष मयूरेश्वर नाथ महादेव किला बाबा धाम मंदिर में सहेज कर रखे हुए हैं। मयूरेश्वर नाथ महादेव मंदिर के अध्यक्ष देवराज सहगल बताते हैं कि मालन के किनारे कभी अनेकों मंदिर हुआ करते थे। नजीबाबाद में टीला स्थित मंदिर में शिवलिंग की प्रकृति भी ऐसी है जैसी की मोरध्वजेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग की है। मालन से तीन सौ मीटर की दूरी पर साल 2000 में एक शिवलिंग मिला था, उसी स्थान पर मोरध्वजेश्वर मंदिर का निर्माण कराया गया। यहां स्थापित शिवलिंग साढ़े चार फुट ऊंचा है।

साल 2007 में मिला सबसे बड़ा शिवलिंग

मोरध्वजेश्वर मंदिर की स्थापना होने के सात साल बाद यानि 2007 में इसी इलाके में एक और करीब साढ़े छह फुट ऊंचा शिवलिंग मय चर के साथ जमीन में दबा मिला। जिसे गांव वालों से जंगल से लाकर मयूरेश्वर नाथ बाबा मंदिर में स्थापित कर दिया। ताज्जुब कि बात यह कि जहां यह शिवलिंग मिला था, उसी जगह से चालीस साल पहले नंदी की मूर्ति मिली थी। मंदिर के अध्यक्ष बताते हैं कि नंदी ने ही महादेव को यहां बुला लिया है। अध्यक्ष बताते हैं कि भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी मंदिर पहुंचे तो उन्होंने यह शिवलिंग पांच हजार साल पुराना बताया था, बाद में यहां संरक्षण का बोर्ड भी लगाया गया।

सहेज कर रखी गई हैं मूर्तियां और शिवलिंग

मालन के इस क्षेत्र में सिर्फ दो शिवलिंग ही नहीं मिले, बल्कि अन्य तमाम मूर्तियां भी मिली हैं। इसके अलावा दर्जनों अन्य शिवलिंग भी सहेज कर रखे गए हैं। एक अर्द्घनारीश्वर शिवलिंग भी यहां मौजूद है जोकि जमीन में ही दबा मिला था।

अंग्रेज भी कर चुके हैं मोरध्वज किले का वर्णन

देवराज सहगल बताते हैं कि यह क्षेत्र महाभारत काल में पुरुक्षेत्र हुआ करता था, जहां मंदिर है, उसे महाभारत काल मेें गिरी टीला बोलते थे। अग्निपुराण में मोरध्वज का प्रसंग मयूर नगर से आया है। वहीं हवैन सांग और सर्वे जनरल कनिंघम ने राजा मोरध्वज के किले का वर्णन किया गया है।


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