मेमन सादात का परिचय-:
मेमन सादात दादा अशरफ अली ज़ैदी अलवास्तवी का बसाया हुआ मौज़ा मेवामन । यह ही आज मेमन सादात है। सन 1030 में जब पंजाब का हिस्सा फ़तह किया था तब किला छत बनौर सैयद अबुल फ़रहा वास्ती के बेटे की कमान में था। जब महमूद ने वापसी का इरादा किया और सैयद अबुल फ़राह वास्ती भी वापस होने की तैयारी करने लगे तब इनके चारों बेटों ने बाप से कहा कि अगर आपकी इजाज़त हो तो हम सब भाई यही पंजाब में बस जाएं । सुल्तान महमूद ने यह बात मान ली और ये यहां पर बस गए।
कुछ साल पंजाब की रियासत पटियाला रहे।
इसके बाद सैयद अबुल फ़राह वास्ती के बेटे सैयद शाह अशरफ़ अली ज़ैदी मेवामन अर्थात
मेमन सादात आकर बस गए। यह मौजा किरतपुर नजीबाबाद रोड पर भनेड़ा स्टैंड से ढाई किलो
मीटर की दूरी पर है इस मौज़ा मेमन सादात का नाम विश्व में प्रसिद्ध है क्योंकि
यहां के लोग विश्व के कोने कोने में आबाद हैं और बड़े बड़े अफ़सर रह चुके हैं। आज
इसको बसे हुए लगभग 900 वर्ष हो गए हैं।
मोहर्रम के महीने में मेमन सादात में
अज़ादारी हजरत इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) दुनिया में मशहूर है
-: मेमन सादात की
अज़ादारी-:
जिला बिजनौर में शिया समुदाय की सबसे
अधिक जनसंख्या वाला मौज़ा मेमन सादात है। यहां पर लगभग इस समय शियों लोगों की
जनसंख्या 6 से 7 हज़ार है। इसलिए इसे शिया लोगों की राजधानी भी माना जाता है। यहां
पर बहुत ही अच्छे तरीके से मोहर्रम के मौके पर अरबाइन अशरेसानी नौ रबी उल अव्वल
अर्थात सवा 2 महीने इमाम का ग़म मनाया जाता है। जिसमें मजलिसों का आयोजन और
जुलूस निकाले जाते हैं। यहां पर सभी इमामो की शहादत व विलादत पर प्रोग्राम का
आयोजन किया जाता है। यहां के लोग मोहर्रम करने बाहर से अपने घरों में आ जाते हैं।
यहां इस समय 10 अंजुमने हैं पुरुषों की 8 अंजुमने है तो वहीं महिलाओं की भी 2 अंजुमने हैं।
https://www.kalamhindustani.page/2019/09/meman-saadaat-ka-itihaas-mema-3Cv6mm.html से साभार
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