महेंद्र अश्क
नजीबाबाद में sdm रहे और अब adm पद से सेवानिवृत श्री जे पी गुप्ता जी ने मेरे पिताश्री महेंद्र अश्क के बारे में लिखा है। धन्यवाद गुप्ता जी!
संस्मरण
"जिंदगी मैंने ये जी है इन्हीं गजलों के लिए
मेरे बच्चों यह ही गजलें हैं कमाई मेरी"
यह उस शायर का खुद का शेर है जिसे हम महेंद्र अश्क के नाम से जानते हैं .उर्दू पर आपकी जो पकड़ है वह वाकई काबिले तारीफ है .नजीबाबाद में उप जिला मजिस्ट्रेट के रूप में अपनी तैनाती के दौरान ऐसे खूबसूरत सख्स से मुलाकात हुई जो न केवल शायरी के बेताज बादशाह हैं बल्कि एक बहुत ही दिलकश एवं खुश मिजाज इंसान भी हैं, यारों के यार भी हैं और अपने स्वाभिमानी जीवन से बेहद प्यार भी है .नजीबाबाद में उन्होंने अपनी मोहब्बत से मुझे इतना नवाजा कि आज भी हम उनकी इस मोहब्बत के कायल है और शुक्र गुजार भी हैं .मैंने गजल लिखनी और पढ़नी भी नजीबाबाद से ही शुरू किया और महेंद्र अश्क जी के साथ ढेर सारे नेशिस्तों में शिरकत की जहां गीत गजल के बारे में बहुत ही बारीकियों के साथ बहुत सी चीजें अश्क जी से हम लोगों को सीखने को मिलती थी .अश्क जी की सरपरस्ती में आयोजित होने वाली नेशिस्तों में अश्क जी काफिया देकर लोगों को अगली नेशिस्त में अपनी गजल प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे .आज भी मुझे याद है कि उनकी दी हुई एक काफिया "नहीं हूं मैं" पर गजल लिखकर अगले नेशिस्त में मैंने भी अपनी गजल प्रस्तुत की जिसे अश्क साहब ने बहुत सराहा और मेरी हौसला अफजाई की .मेरी वो गजल थी -
महंगा नहीं तो इतना सस्ता नहीं हूं मैं
समझा है जैसा आपने वैसा नहीं हूं मैं
मुझको खरीद लीजिए मोहब्बत से प्यार से
वरना किसी दुकां का खिलौना नहीं हूं मैं
उनका ख्याल उनका तसव्वर है हर घड़ी
तन्हाइयों में रहकर भी तन्हा नहीं हूं मैं
उन मस्त-मस्त आंखों की मस्ती न पूछिए
अब तक भी अपने होश में आया नहीं हूं मैं
रुसवा मोहब्बतों में है वह भी कदम कदम
बदनाम इस 'जगत' में अकेला नहीं हूं मैं .
उनके बेशुमार प्यार के साथ-साथ उनकी गजल संग्रह 'धूप उस पार की' 26.10.2011 को दीपावली के अवसर पर उनके कर कमलों से सप्रेम प्राप्त हुई .उनकी गजल संग्रह का एक शेर आज भी उनकी किसी बात की याद दिलाता है .
'यूं अपने दिल के जख्म दिखाने लगे हैं लोग
मेरे ही शेर मुझको सुनाने लगे हैं लोग '
जब भी महफिल सजती थी कभी-कभी बड़ा ही मजेदार वाकया होता था .कई लोग महेंद्र अश्क जी के सामने ही महेंद्र अश्क जी के शेर पढ़ कर सुनाने लगते थे और फिर धीरे से अश्क जी मुस्कुरा कर मेरे कान में कहते थे 'गुप्ता जी, यह मेरा शेर है .देखिए मेरे ही सामने मेरे शेर को अपना बात कर सुना रहे हैं और जब मैं कहता था कि आपको इस बात को कहना चाहिए तो बड़े ही साफगोई के साथ जवाब देते थे कि कोई बात नहीं है . मेरे ही शेर को सुना कर शायर खुश हो रहा है और मुझे खुशी हो रही है कि मेरा शेर पढ़ा जा रहा है. यह दरियादिली थी महेंद्र अश्क साहब की. नजीबाबाद में उप जिला मजिस्ट्रेट के रूप में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बहुत ही भव्य तरीके से गंगा जमुना तहजीब पर आधारित मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन कराया और पूरे कार्यक्रम में महेंद्र अश्क साहब का जिस प्रकार का सहयोग रहा और बढ़-चढ़कर जिस प्रकार से हिस्सा लिया, आज भी वह एक यादगार लम्हा है और उन यादगार लम्हों की कुछ तस्वीरें इस बात की गवाह है. बेहद सादगी के साथ मुस्कुराते हुए जो अपनापन और प्यार उनसे मिला है उसके लिए मैं अश्क साहब को तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं और ईश्वर से उनके सेहतमंद रहने के लिए मंगल कामना करता हूं .
जेपी गुप्ता
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