वतन-परस्त शायर शौक बिजनौर
वतन-परस्त शायर शौक बिजनौर
एक शताब्दी की पूरी गवाही
शकील बिजनौर
मोहमत यामीन खान उपनाम शौक बिजनोरी", तीन, अगस्त 1903 को बसी किरतपुर जिला बिजनौर में एक युसुफजई पठान खावधान में जन्मे। आपके पिता जंगबाज खान निजनौर में तहसील मे सेवारत थे। इसी कारण यह परिवार बिजनौर गे रहने लगा,।शौक बिजनारी मेट्रिक पास कर के कलेक्ट्रेट बिजनौर में चीफ रीडर के पद पर 1921 में नियुक्त हुए।
शायरी का शौक बचपन हो हो था। शिक्षा काल में स्कूल क समारोह मे भाग लेते और सराहे जाते, और तालीम, तहजीब, तबियत ने उस समय जमींदार घरानो के एक शिक्षित परिवार में पले− बढ़े। शौक बिजनोरी को शायरी प्रकृति की एक अन्माल देन थी ।यही कारण था जब इस निर्भीक शायर का कलम उठता तो वह मात्र सच ही लिखता ।इसी पहचान ने शौक निजनाैरी को साहित्य में महान स्थान पर आसीन किया।
शौक बिजनौरी देश प्रेम के गीत गाते रहे। गज़ले लिखते रहे।
।यही कारण था सरकारी सेवा में रहते हुये भी वह अग्रेज सरकार विरुध लिखते और पढ़ते रहे। होली के अवसर पर आयोजित मुशायरे में शैक बिजनौरी ने अपनी जन्म "फरयादे-बुलबुल" पढी तो गिरफतारी की नौबत आ गयी। तत्त्कालीन डिप्टी कलक्टर जो इस मुशायरे की अध्यक्षता कर रहे थे, उन्हेंने इस जन्म को जब करने के आदेश दिये और शौक बिजनौरी को चेतावनी दी वह फिर ऐसी नजम न पढे अन्यक्षा आप के विरुध कडी कार्रवार्ही की जायगी। इस नज़्म और इस घटना को हिंदी अखबार ने पूर्ण विवरण साथ छापा ।देहली से निकलने वाले कोमी आवाज" पूर्ण पेज पर छापा (पहली मार्च 1986) "प्रयास- प्रवाह" में श्री आदित्य नारायण मिस्त्र ने बडे सराहनीय शब्दो में इस विवरण को छापा, शौक बिजनौर किससे रुकने नाले थे उन की दूसरी नज्जा "मय का जनाज़ा" भी जब्त की गयी । 19 अगस्त 1996 को उनकाइंतकाल हुआा।
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