: कहानी ऐसे गांव की जो संजोये है वैदिक कालीन अवशेषों को
।
गांव
बरमपुर (पौराणिक नाम ब्रह्म पुर) (वैदिक कालीन नाम ब्रह्म ऋषि आश्रम ) हस्तिनापुर राज परिवार के राज गुरु
कृपाचार्य का आश्रम तहसील नजीबाबाद जनपद बिजनौर उत्तर प्रदेश जिला मुख्यालय से
लगभग 30किलोमीटर उत्तर दिशा में तथा तहसील मुख्यालय से लगभग 20किलो मीटर पश्चिम
दक्षिण दिशा में ऐतिहासिक मालन नदी के किनारे प्रकृति की गोंद में बसा है आज कलकत्ता अमृतसर मुख्य रेल मार्ग मालनी नदी और
गांव अलग करते हैं जो वैदिक काल तथा
महाभारत कालीन अवशेषों को संजोए है।
चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में ५वी शताब्दी में
आया था जो एक बौद्ध भिक्षु था चीनी यात्री यवांग च्वांग -के यात्रा वृत्तांत में
चर्चा मिलती है ब्रह्म ऋषि आश्रम ब्रह्म सरोवर पांडव टीला जहां आज द्रोपदी का मन्दिर स्थित है
यहां
पर महाभारत काल में ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।
विषय पर आते हैं ईसा पांचवीं शताब्दी में चीनी
नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने आया था बाद में अपने साथीयों के
साथ जिज्ञासा वस भारत का नाम जिस प्रतापी
यशश्वी सम्राट के नाम पर भारत वर्ष पड़ा उन महान राजा की जन्म स्थली क्रीड़ा स्थली
कि खोज और तिरथाटन किया बौध धर्म के स्थलों का भी भ्रमण किया वह भारत में १६,
वर्ष रहा और भारत भ्रमण किया उसने मरीच कश्यप आश्रम से कण्व आश्रम तक
की यात्रा की और वह देव सरिता मालिनी नदी के उद्गम स्थान पुराण कोट स्रोत से
मालिनी के किनारे किनारे गंगा नदी में मिलने के संगम , स्थान
रावली (पौराणिक नाम कण्व आश्रम)तक की यात्रा की है जाहिर है उस समय यह क्षेत्र वनो
से आच्छादित रहा होगा ।
हिमालय में स्थित तीर्थ स्थानों गंगोत्री
यमुनोत्री बद्रीनाथ केदारनाथ जाने के दो
ही मार्ग थे एक हरिद्वार होकर और दूसरा कोहर द्वार दुवि गर्त या हेमकूट मरीच कश्यप आश्रम होकर
होकर जिसे आज कोट द्वार और दुगडडा कहते हैं हिमालय पर जाने का हरिद्वार वाला मार्ग
कठिन और अधिक लम्बा होने के कारण इसका उपयोग कम ही किया जाता होगा बरमपुर (ब्रह्म आश्रम ब्रह्म आश्रम) हस्तिनापुर_
शुकदेव मुनि आश्रम_( शुक्रताल) _कण्व ऋषि
आश्रम _ कृपाचार्य ब्रह्म आश्रम,(बरमपुर) _और
कोहर द्वार जाने वाले पौराणिक मार्ग पर स्थित है
जो हिमालय जाने वाले यात्रियों का सुगम और छोटा मार्ग था।
पुरान कोट स्थित मालिनी के पवित्रस्रोत के दर्शन करते हुए एक
दिन की यात्रा की समाप्ति पर जब हम सायं
काल किम-शिविर नमक प्राचीन स्थान( आज का किम
शेरा)( जहां पांडव पुत्र अर्जुन और भगवान शिव का कीरात रुप में युद्ध हुआ)पर
पहुंचे वहीं निर्जन घाटी में कैंप लगाकर
आस पास के वन क्षेत्र का अवलोकन करने लगे अगले दिन घूमते हुए एक संन्यासी के दर्शन
हुए उसने बताया जहां हो वहीं पास ही
महाभकूट पर्वत पर मरीच कश्यप आश्रय है जहां वैदिक काल मे हेमकूट पर्वत कहते थे जहां देवराज इन्द्र के
गुरु और अतिप्राचीन कश्यप संहिता के मूल उपदेशक
मरीच कश्यप का मरीच आश्रम है आश्रम जाने की हम तैयारी करने लगे क्या खूब
दिव्य स्थान था जिस पर्वत महा भकूट पर आश्रम था उसकी ऊंचाई पांच हजार छसौ छियालिस हाथ थी अंतोगत्वा हम
मरीच कश्यप आश्रम में पहुंच गए जहां महाराजा वार्योविद और कनखल निवासी वृदजीवक आयुर्वेद वेतताओं ने परम गुरु मरीच
कश्यप से आयुर्वेद की शिक्षा ली और आज के उज्यिनी और काशी के आयुर्वेद आचार्यों नालंदा के चिकित्सा प्राचार्यों ने शिक्षा ली यही वह
ऐतिहासिक स्थान है जहां दुष्यन्त निर्वाचित शकुंतला ने अपना ६, वर्षों
का अज्ञात वास किया था जहां सम्राट भरत ने जन्म लिया था कालिदास ने जिसका अपने अभिज्ञन शकुंतलम में
वर्णन किया है यही पर सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहने वाले मुनी मरीच कश्यप की
प्रेरणा से उनकी विशाद आयुर्वेद आश्रम ने आयुर्वेद की बाल भैषज्य शाखा का प्रवर्तन
एवं प्रवचन किया जो आने वाली मानव जाति के लिये वरदान ही है आश्रम की भव्यता उनूपम
है सैकड़ों कुटीर आचार्यों के लिए बने हैं जो एकल आवास और आचार्य परिवार जहां रह
ते हैं चारों ओर आश्रम में शांति और ज्ञान का प्रकाश फैला है जहां गायों के और
वन्य जीवोंछोटे छोटे शावक मुनि कुमारों के साथ स्वछंद क्रिडा करते हैं शिक्षार्थी
यों और ब्रह्मचारीयोंके लिए है कुछ बड़े कुटीर वने हैं जहां १० प्रशिक्षु एक साथ
रह सकते हैं औषधि निर्माण वाला और प्रयोग शाला भी बनी है प्रातः और संध्या हवन के
लिए बड़ी बड़ी यज्ञ शाला में बनी हैं
दो दिन आश्रम का भ्रमण के बाद हम
आश्रम के प्रधान आचार्य सुदीप कश्यप से विदा लेकर मालिनी के सूने तटों पर यात्रा
करते हुए मान गढ़ (महाभारत कालीन मोरध्वज)जनपद में पहुंचे और वहां तीन दिन का शिविर लगाकर भ्रमण करने लगे
मालनी की सहायक एक अनाम नदी के किनारे एक नगर के भग्नावशेष मिले यही सम्राट मयूरध्वज की अतिप्राचीन नगरी
के ध्वंसा अवशेषों है हम वहां विचरण करने लगे ऐसा निर्जन क्षेत्र जो
१३-१४सौ साल पहले एक संवृध राज्य रहा होगा यहां के निवासियों की शिक्षा दिक्षा रहन
सहन संस्कृति खूब उच्च रही होगी आज झाड़ झंकाडो इधर उधर बिखरी पड़ी भवनों की
प्राचीन ईंटों प्रस्तरो उबड़-खाबड़ गढ़ों एक दूसरे से गुथे वृक्षों में आत्म गोपन
कर वह अपने उस प्राचीन इतिहास को एक प्रकार से अपने अन्दर छिपाते हैं इस क्षिण दशा
में भी हमें वहां स्वर्ण मुद्राएं मिली
स्वर्ण मुद्रा से भी बड़ी बहुमूल्य एक और वस्तु हमें उपलब्ध हुईं वह था एक
प्राचीन प्रस्तर स्तम्भ जिसके उध्र्व भाग पर एक छोटा सा सुंदर चित्र उत्कीर्ण है
जिसमें एक धनुर्धर नरेश को अपने सामने आते हुए वन्य वराह पर बात मोचन करने में
तत्पर मुद्रा में तत्पर दिखाया गया है स्तम्भ के दुसरी ओर दो मृग शिकारी से भर भीतर होकर भागे जा रहे हैं जो सरलता से
उत्कीर्ण किया गया है शिकारी किसी रथ पर सवार नहीं है ।
शिविर को तीन दिन हो गये सुबह अगली यात्रा के लिए
प्रस्थान करना है इसलिए मयूरध्वज नगर के भग्नावशेषों वहां के संवृध इतिहास को वहां
राज्य करने वाले प्रतापी यशश्वी सम्राटों को प्रणाम कर उन से विदा लेकर शिविर में
लौट आये।
प्रातः अपने साथीयों के साथ शिविर को समेट
कर सभी ने अपने हिस्से का भार उठाया और चल
पड़े अगले गणतवय के लिए मालिनी के साथ साथ उसके पूर्वी तट के साथ साथ साथ पेड़ों
के झुरमुट झाड़ झंकारों से बचते हुए कभी नदी के रेत में कभी तक के उपर आगे बढ़े जा
रहे थे धूप तेज होने लगी बार-बार प्यास लग रही है उसका के लिए मालिनी का जल पीते
हुए बेर खाते हुए आगे बढ़ चले मध्यान्ह का समय होगया रेत में चलने के कारण थकान भी
होने लगी थी और भूख भी लगाने लगी थी सभी ने विचार किया पहले स्नान कर आहार करलिया जाते
थोड़ा विश्राम कर आगे की यात्रा करना ही उचित होगा सामने द्रशटी गरी तो मालिनी के दूसरे तट पर एक विशाल वटवृक्ष और
उसके साथ ही अन्य वृक्ष छाया और विश्राम के लिए उचित स्थान है सभी मालिनी को
लांघकर वृक्ष के झुरमुट के पास पहुंच गये पेड़ों के बीच में एक साफ-सुथरा स्थान है जहां दस से पंद्रह व्यक्ति आराम कर
सकते हैं ऐसा लगता है यह स्थान चरवाहों के आराम करने या वन उपज जड़ी बूटियां एकत्र
करने वालों ने दोपहर विश्राम के लिए उपयोग किया जाता है सभी ने मालिनी में स्नान
किया फिर रास्ते से एकत्रित किते पके आंवले बेर और सत्तू गुड़ के साथ भोजन
किया जल पीया धूर्त जंगली हिंसक पशु हानी
न पहुंचादें दो व्यक्तियों को जागते रहने सतर्क रहनेको कहकर थकान के का रण निद्रा
आगयी शीतल छाया और थकान के कारण पता ही नहीं चला सोते हुए एक प र कब बीत गया आंख
खुली तो दिन का चौथा पहर होगया सूर्य अपने गंतव्य को ओर तेजी से बढ़ रहा हैचार
घड़ी दिन शेष रह गया हमें भी अपने गंतव्य
की ओर जाना है और रात्रि विश्राम के लिए सुरक्षित स्थान भी खोजना है सभी ने हाथ मुंह धोकर जल ग्रहण किया और अपना
भार लेकर मालिनी के साथ साथ बढ चले जिंगन अमलतास ढाक का साधन वन कटिली झाड़ियां चलने में आ सहजता कर रहे थे
इसलिए मालिनी के वहाव के साथ साथ नरम रेत में चलना ज्यादा आराम दायक लग रहा था ।
यह क्या आगे बढ़ते ही मालिनी के दृश्य एक साथ
ही बदल गये एक तो उसने एक बार फिर अपने प्रवाह की दिशा पश्चिम से दक्षिण दिशा को
बदली दूसरे उसका फैलाव फांट भी अधिक होगया दूरतक रेत ही रेत बिछी थी सुर्य भी
अस्ताचल की ओर जा चुका था पक्षि अपने घोंसलों की ओर लौट रहे हैं गोधूली का समय है
तभी कहीं पेड़ों के झुरमुट के पार धुंआ उठता नजर आ रहा था संभव तया वहां कोई बस्ती हो या कोई आश्रम इस
क्षेत को तपो वन कहा जाता है यहां मरीच कश्यप आश्रम और कण्व आश्रम के अतिरिक्त भी
अन्य आश्रम भी है जो इतने प्रसिद्ध नहीं हो विद्या अध्ययन का केंद्र हैं मालिनी के
दुसरे छोर से गायों का एक रेवड पानी पी कर उसी ओर जा रहा था हम भी उत्सुकता वह उनके पीछे पीछे चल दिये कुछ दूर चलने के बाद ही आम्रो उदयान में पहुंच
गये वहां एक छोटा-सा मठ बना है कुछ
व्यक्ति संध्या आरती की तैयारी कर रहे हे साथ ही ६०कदम की दूरी पर एक विशाल
शिवलिंग नजर आ रहा है एक दूर तक फैला उद्यान में कुटिया बनी हैं कुछ व्यक्ति भोजन
की तयारी में जुटे है एक बडी सी कुटिया के सामने एक व्यक्ति कुश के आसन पर बैठा है
देखने से ही लगता था यह आश्रम का व्यवस्थापक या प्रधान आचार्य होगा मस्तक पर तिलक
चेहरे पर तेज नजर आरहा था मन में विचार आया इन महान पुरुष को प्रणाम कर इस स्थान
के विषय में विस्तार से जानकारी की जाये तभी आचार्य ने नजरें उपर उठाई और हमारी ओर
विस्मय से देखने लगे हमारा कंद और
वेशभूषा यहां के निवासियों से मेल नहीं खाती थी
।
चीन
के निवासी होने के कारण कद के लिहाज से छोटा कद
शरीर भी हम सभी का भारी ही था
स्वास्थ्य खुब अच्छा प्रतित होता था
कुछ पीला भूरा रंग और चपटे मुखपत्र निचे को झुकी मूंछें इस देश के लोगों से
पृथक बनाये थी विना कहे ही परदेशी परतित होते थे वह अपनी पीठ पर विचित्र पर कार की
पिटारी जो बेंत की बनी थी सिर पर लग भग डेड हाथ ऊंची चौड़े नागफन की तरह सिर पर छत बनाये हुए जो
थरती पर रख देने के बाद ऊंचाई में उसके बराबर ही प्रतित हुई हमने पिटारी जमीन पर
रख कर आचार्य को दंडवत प्रणाम किया आशीर्वाद देने के बाद आचार्य ने विनम्रतापूर्वक
कहा परदेशी पथिक दल का कृपाचार्य ब्रह्म ऋषि आश्रम में आचार्य सूचेत की ओर से
स्वागत है आपने ठीक पह चाना आचार्य
श्रेष्ठ पथिक को परदेशी हूं आचार्य
ने मेरी तरफ देखते हुए कहा श्रीमान चीन देश के यात्री हैं जी श्रीमंत आचार्य
यात्री और छात्र दोनों ही दोनों कैसे
यात्री इसलिए आपके देश की यात्रा कर रहा हूं और छात्र इसलिए मैं नालंदा का
छात्र हुं मैने संक्षेप में ही उत्तर दिया
साधूवाद क्या य्वांग च्वांग हो आचार्य ने कहा
अभी ६-७ महिने पुर्व ही कपिलवस्तु
के
विद्वान युवक ने परिचय दिया था जो उसी वर्ष नालंदा का स्नातक बना था और गोमुख की
यात्रा पर जाते हुए दो दिन कृपाचार्य आश्रम में रुका था आप चीनी यात्री यवांग
च्वांग हीं है जी आचार्य आपने ठीक ही पहचाना
मन में बहूत सारे प्रश्न थे जिनका उत्तर जानने की जिज्ञासा मन में थी तभी
आचार्य सूकेत ने कहा मेरे संध्या वंदन
गीता पाठ का समय होगया है कल मध्यान्ह में आप से संवाद होगा अब आप भोजन और विश्राम
करें एक संन्यासी को यह कहते हुए व्यवस्था करने को कहा।
प्रातः देर से निद्रा से जगे रात्रि में
निश्चिंत होकर सो पाते सुरक्षा के कोई चिंता नहीं थी सुरक्षा व्यवस्था आश्रम की
ठीक थी पुरुष योगा अभ्यास और प्राणायाम के बाद मालिनी में स्नान कर आगे थे आचार्य
पत्नियां और बालिकाएं भी सरोवर में स्नान कर चुके थे हमें भी दैनिक क्रियाओं से
निवत होना था और स्नान भी करना था हम भी मालिनी की धारा की ओर चल पड़े
स्नान के बाद जब हम आश्रम की ओर लौट रहे थे
तभी। हमारे कानो मे वेदों की ऋचाएं गूंजने लगी आश्रम में दैनिक ज्ञ यज्ञ होरहा है
हम भी यज्ञ मे समलिलहोकर आहुतियां दी आश्रम के ब्रह्मचारियों द्वारा आग्रह पूर्वक
बाल आहार कराया गया यज्ञ समाप्त होने के
बाद आश्रम की स्त्री या और बालिकाएं सरोवर के पश्चिम में बने छोटे से देवालय में
अनुष्ठान स्तुति कर रही है वहां जाकर देखने पर ज्ञत हुआ यह छोटा देवालय जगत जननी
माता भगवती का है
स्त्री मां स्तुति करते हुऐ द्रोपदी का नाम लेरही है तभी ध्यान आया भारतीय
काल गणना के अनुसार आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है आज से ही भारतीय नव वर्ष का
प्रारंभ होता है आज से नौ दिन तक भारतीय जगत जननी माता भगवती के नौ रुपों की
आराधना कर आशीर्वाद लेते हैं और नौवे दिन राम जन्म का उत्सव मनाया जाता है
देवी स्तुति तो ठीक हैं हस्तिनापुर राज परिवार
मे पांडव वधु द्रोपदी की स्तुति समझ से परे थी हमारे प्रश्न के उत्तर केवल आचार्य
सूचेत ही दे सकते हैं ।
अनेक प्रश्नों के साथ आश्रम भ्रमण के लिए चलपडे
आश्रम के चारों ओर एक सुन्दर उपवन लगा था जहां नाना प्रकार के फलों के वृक्ष रोपे
गये थे आम जामुन नासपाती पर फूल आरहा है सभी वृक्षों पर नयी पत्तियों
आरसी है जिन में से मंद मंद सुगंध का अहसास हो रहा है आश्रम के बाहर दूर तक फैले
खेत जहां फसल कटकर किसान खलिहान में
एकत्रित कर रहे हैं संभवतया यह कृषि भूमि आश्रम के आधिन हो मध्यान भोजन का समय हो
गया था हम आश्रम से दक्षिण दिशा में थे सामने
कुछ ही दुरी पर हमे मालिनी का बहाव
नजर आने लगा प्यास भी लग रही थी मालनी के बहाव यहां पूरी तरह बदल गया था मालिनी
यहां पुर्व दिशा की ओर बह रही थी अभी तक हमें मालिनी का वहाव पुर्व की ओर
बहता नहीं मिला था इसका अर्थ है मालिनी
कृपाचार्य आश्रम पर अर्ध चंद्राकार स्थिति में बहरही है आश्रम के तिन दिशाओं में मालिनी धारा बह रही है उत्तर दिशा में मालिनी
पश्चिम दिशा में मालिनी और दक्षिण दिशा में मालिनी हमनै जल ग्रहण कर प्यास बूझाई और लौट चलें
आश्रम की ओर आश्रम में आचार्य हमारा भोजन के लिए राह देख रहे थे ।
यह क्या भोजन केवल हमें ही परोसा गया हमें यह
देख कर आश्चर्य हुआ और पूछ ही लिया क्या अन्य आश्रम वासियों ने भोजन ग्रहण कर लिया
आचार्य सूचेत ने उत्तर दिया आश्रम में छोटे-छोटे बच्चों और किशोरों गर्भवती
महिलाओं के अतिरिक्त नौ दिनों तक आश्रय वासी भोजन
नहीं उपवास का पालनकरते हैं सांय
काल एक समय फल आहार करते हैं अनार अमरुद या भुने हुए कोदो मंडुवे का सत्तू गुड़
मिलाकर पीते हैं इससे महा स्रोत शुद्ध होजाता है ।हमने भोजन किया और बाहर निकल कुछ दूर ही आचार्य आम के
विशाल वृक्षों में बैठकर विद्यार्थियों को
यजुर्वेदवेद की ऋचाएं सूना रहे हैं पेड़ों पर कभी कभी कोयल के चहचहाने की
आवाज चिड़िया के चहचहाने की आवाज आ जाती है ।
हमें देख कर आचार्य श्रेष्ठ ने ब्रह्मचारियों
को विश्राम करने को कहा हमारी ओर देखकर
कहा क्या उत्सुकता है
हमनें उत्सुकता वह पूछा हमने नालंदा में मारिच
कश्यप आश्रम और कण्व आश्रम के बारे में तो सुना है इस आश्रम के विषय में कोई ज्ञत
ही नहीं था आचार्य ने बताया यह आश्रम भी कण्व ऋषि आश्रम का ही अंग है यहां ब्रह्म
ज्ञान और वेदांत दर्शन की शिक्षा दिजाती है यह स्थान तो अति प्राचीन है यहां
ब्रह्मा जी ने मार्कंडेय ऋषि को माता भगवती दुर्गा के नो औषधि स्वरुपों का उपदेश
दिया था जो आज हम मार्कंडेय चिकित्सा सूत्र
के रूप में जानते हैं मार्कंडेय ऋषि
द्वारा यहां शिवलिंग की स्थापना की गयी है यहां मालिनी भी शिव स्वरूप में ही बहती
है मालिनी की धारा स्थल का शिवलिंग वनाती है
आश्रम में स्थित यह छोटा सा सरोवर जिसमें ब्रह्म कमल खिलते हैं ब्रह्मा जी
द्वारा नवदुर्गा कवच का उपदेश देने के कारण यह ब्रह्म ऋषि आश्रम कहलाता है हमारी
उत्सुकता बढ़ती गर्मी हमने आग्रह किया इस स्थान से हस्तिनापुर भरत वंश के राजा
गुरु कृपाचार्य और भरत वंश की कुंती पुत्र वधू द्रोपदी का क्या संबंध है कृपा कर
बताने का कष्ट करें।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में कृपाचार्य ने कौरव
सेना की ओर से भाग लिया था कृपाचार्य को चिरंजीवी होने का वरदान शिव से मिला था
युद्ध की समाप्ति के बाद कौरव पक्ष से दोहरी व्यक्ति जीवित वचे थे कृपाचार्य और
अश्वत्थामा
अश्वत्थामा ने पांडवों के कुल का विनास करने के
लिए सोते हुए द्रोपदी के अबोध पुत्रों का बध कर दिया तथा ब्रह्म विद्या द्वारा वीर
अभिमन्यु की पत्नी का गर्भ नष्ट की करने की असफल कोशिश की जो श्री कृष्ण जी के आशीर्वाद से नहीं कर पाया रुष्ठ श्री कृष्ण
जी ने अश्वत्थामा के मस्तक की मणी निकाल ली जिससे उसका युद्ध विद्या का ज्ञान
शून्य होगया युद्ध के परिणाम और अपने भांजे अश्वत्थामा के व्यवहार से दुखी
कृपाचार्य श्रीकृष्ण जी के पास गये और श्रीकृष्ण जी से शिव द्वारा दियेगये वरदान
को समाप्त करने और अपनी मृत्यु का उपाय पूछा तब श्री कृष्ण जी ने कृपाचार्य से
कहा मालिनी के किनारे यहां मालिनी
अपनी बहाव धारा से शिव विग्रह
वनाती है वहां एक मार्कंडेय ऋषि द्वारा स्थापित शिवलिंग है शिवलिंग के पाप ही सरोवर है जिसमें ब्रह्म
कमल खिलते हैं वहां आश्रम बना कर रहो वेदांत और ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दो
प्रतिदिन संध्या काल भागवत कथा का वाचन और श्रवण करने से मन को शांति मिलेगी कृपा
चार्य जैसे विद्वान आचार्य की आज पहले से
अधिक आवश्यकता है श्रीकृष्ण का ऐसा कथन
सुन आचार्य कृप ब्रह्म सरोवर के पास आश्रम बनाकर रहने लगे आश्रम के चारों ओर की दो
योजन भूमी और संरक्षण आश्रम के लिए हस्तिनापुर राज्य द्वारा प्रदान किया गया।
कुछ समय हस्तिनापुर में राज्य करने के बाद
उत्तरा के पुत्र परिक्षित को राज्य का भार सोंपकर
पांडव पुत्र युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव द्रोपदी के साथ मोक्ष
प्राप्ति के लिए हिमाचल की यात्रा पर निकल
पड़े रास्ते में कण्व ऋषि आश्रम में रुका कर एक दिन की पैदल यात्रा कर संध्या के
समस कृपाचार्य ब्रह्म ऋषि आश्रम आकर ठहरे
दैवयोग से जिस दिन पांडव आश्रम आये उस दिन अमावस्या थी साय काल में स्नान कर कुल गुरु कृपाचार्य से
भागवत श्रावण कर विश्राम किया अगले दिन चैत्र प्रतिपदा महॠषि भृगु की काल गणना के
अनुसार स्रष्टि निर्माण का पहला दिन और
स्थान भी ब्रह्म ऋषि आश्रम जहां ब्रह्मा जी ने ऋषि मार्कण्डेय को दुर्गा कवच और
दुर्गा सप्तशती का ज्ञान दिया था पांडव
पुत्रों ने नवरात्र व्रत और जगत जननी माता भगवती की आराधना करने का संकल्प लिया
प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी पांडव द्रोपदी सहित मालिनी स्नान कर लौट आये
आराधना के लिए जिस स्थान पर यह छोटा सा देवालय बना है इसी स्थान पर द्रोपदी ने
माता पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाई तथा
वैदिक विधि से माता की स्तुति की नौ दिन तक जगत जननी के नौअलग अलग स्वरुपों
की उपासना कर नित्य प्रति दुर्गा सप्तशती का पाठ कीया दसवें दिन द्रोपदी ने अपने
हाथ से भोजन बनाकर आश्रम की ग्यारह वर्ष
से कम की कन्याओं को भोजन कराकर आशीर्वाद लिया
बाद में हस्तिनापुर के महाराजा परिक्षित द्वारा इस देवालय का निर्माण कराया गया जिसे आश्रम वासी द्रोपदी मन्दिर कहते हैं।
दशमी के दिन पांडव गुरु कृपाचार्य से आज्ञाले
मोक्ष प्राप्ति के लिए हिमाचल की ओर चल दिये यही आश्रम में रहने वाला एक श्वान
(कुत्ता) जो नित्य आचार्य के साथ स्नान कर आश्रम वासियों के साथ बैठकर
श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करता था पांडवों के साथ चला गया ।
और हमारी जिज्ञासा शांत हो गई थी सूरज की गर्मी भी कम होगयी थी हम आचार्य
श्रेष्ठ को प्रणाम कर आश्रम की पूर्व दिशा में भ्रमण के लिए चल पड़े सूरज छिपने से
पहले ही हम आश्रम लौट आते आचार्य श्रीमद्भागवत का वाचन कर रहे थे हम भी बैठ कर
सुनने लगे साय काल का भोजन कर अथिति गृह में विश्राम करने चले गये सुबह प्रातः
हमें अगली यात्रा के लिए निकलना है प्रातः उठे
तो देखा आचार्य श्रेष्ठ स्नान कर लौट आये है आचार्य श्रेष्ठ को प्रणाम किया नमन किया बह्मा
जी को मार्कंडेय ऋषि को हस्तिनापुर राज वधु द्रोपदी को और इस पुन्य भूमि को नमन कर
हम आचार्य को प्रणाम कर अपनी अपनी कंडी उठाई और चल पड़े मालिनी के साथ साथ कण्व
ऋषि आश्रम की खोज में।
यशपाल सिंह
−−−−−−−−
इतिहास के पन्नों से बरमपुर स्थिति द्रोपदी
मंदिर
कहानी ऐसे गांव की जो संजोये है वैदिक कालीन
अवशेषों को।
गांव
बरमपुर (पौराणिक नाम ब्रह्म पुर) (वैदिक कालीन नाम ब्रह्म ऋषि आश्रम ) बरम पुर नाम फारसी भाषा का हैं उर्दू
और फारसी में ब्रह्म पुर न तो लिखा जा सकता है और ना हीं बोला जा सकता है इसलिए
15ईशवी में इस क्षेत्र पर मुगलों का पूर्ण अधिपत्य स्थापित होने के बाद ब्रह्म पुर
को बरम पुर बोलना लिखना शुरू किया ।
हस्तिनापुर राज परिवार के राज गुरु कृपाचार्य
का आश्रम तहसील नजीबाबाद जनपद बिजनौर उत्तर प्रदेश जिला मुख्यालय से लगभग
30किलोमीटर उत्तर दिशा में तथा तहसील मुख्यालय से लगभग 20किलो मीटर पश्चिम दक्षिण
दिशा में ऐतिहासिक मालन नदी के किनारे प्रकृति की गोद में बसा है आज कलकत्ता अमृतसर मुख्य रेल मार्ग मालनी नदी और
गांव को अलग करते हैं जो वैदिक काल तथा
महाभारत कालीन अवशेषों को संजोए है मेरे पूज्य दादा जी ठाकुर उमराव सिंह जी दलाल
ने मुझे बताया लोक मान्यता यह है और यहां का भूगोल भी गवाही देता है।
चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में ५वी शताब्दी में
चीनी यात्री यवांग च्वांग हू आया था जो एक बौद्ध भिक्षु था चीनी यात्री यवांग
च्वांग हू -के यात्रा वृत्तांत में चर्चा मिलती है यह लोक मान्यता है ब्रह्म ऋषि आश्रम ब्रह्म
सरोवर माता जगत जननी का मंदिर जो कुरु वंस की महारानी द्रोपदी को समर्पित है
यहां
पर महाभारत काल में ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।
विषय पर आते हैं जो प्रचलित मत है ईसा पांचवीं
शताब्दी में चीनी नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने आया था बाद में अपने
साथीयों के साथ जिज्ञासा वस भारत का नाम
जिस प्रतापी यशश्वी सम्राट के नाम पर भारत वर्ष पड़ा उन महान राजा की जन्म स्थली
क्रीड़ा स्थली कि खोज और तीर्थ आटन किया बौध धर्म के स्थलों का भी भ्रमण किया वह
भारत में १६, वर्ष रहा और भारत भ्रमण किया उसने मरीच कश्यप
आश्रम से कण्व आश्रम तक की यात्रा की और वह देव सरिता मालिनी नदी के उद्गम स्थान
पुराण कोट स्रोत से मालिनी के किनारे किनारे गंगा नदी में मिलने के संगम , स्थान
रावली (पौराणिक नाम कण्व आश्रम)तक की यात्रा की है जाहिर है उस समय यह क्षेत्र वनो
से आच्छादित रहा होगा ।
हिमालय में स्थित तीर्थ स्थानों गोमुख
यमुनोत्री बद्रीनाथ केदारनाथ जाने के दो
ही मार्ग थे एक हरिद्वार होकर और दूसरा कोहर द्वार दुवि गर्त या हेमकूट मरीच कश्यप आश्रम होकर
होकर जिसे आज कोट द्वार और दुगडडा कहते हैं हिमालय पर जाने का हरिद्वार वाला मार्ग
कठिन और अधिक लम्बा होने के कारण इसका उपयोग कम ही किया जाता होगा बरमपुर (ब्रह्म आश्रम ब्रह्म आश्रम) हस्तिनापुर_
शुकदेव मुनि आश्रम_( शुक्र ताल) _कण्व ऋषि
आश्रम _ कृपाचार्य ब्रह्म आश्रम,(बरमपुर) _और
कोहर द्वार जाने वाले पौराणिक मार्ग पर स्थित है
जो हिमालय जाने वाले यात्रियों का सुगम और छोटा मार्ग था।
पुरान कोट स्थित मालिनी के पवित्र स्रोत के दर्शन करते हुए एक
दिन की यात्रा की समाप्ति पर जब हम सायं
काल किम-शिविर नमक प्राचीन स्थान( आज का
किम शेरा)( जहां पांडव पुत्र अर्जुन और भगवान शिव का किरात रुप में युद्ध
हुआ)पर पहुंचे वहीं निर्जन घाटी में कैंप
लगाकर आस पास के वन क्षेत्र का अवलोकन करने लगे अगले दिन घूमते हुए एक संन्यासी के
दर्शन हुए उसने बताया जहां हो वहीं पास ही
महाभकूट पर्वत पर मरीच कश्यप आश्रय है जहां वैदिक काल मे हेमकूट पर्वत कहते थे जहां देवराज इन्द्र के
गुरु और अतिप्राचीन कश्यप संहिता के मूल उपदेशक
मरीच कश्यप का मरीच आश्रम है आश्रम जाने की हम तैयारी करने लगे क्या खूब
दिव्य स्थान था जिस पर्वत महा भकूट पर आश्रम था उसकी ऊंचाई पांच हजार छसौ छियालिस हाथ थी अंतोगत्वा हम
मरीच कश्यप आश्रम में पहुंच गए जहां महाराजा वार्योविद और कनखल निवासी वृदजीवक आयुर्वेद वेतताओं ने परम गुरु मरीच
कश्यप से आयुर्वेद की शिक्षा ली और आज के अवंतिका और काशी के आयुर्वेद आचार्यों नालंदा के चिकित्सा प्राचार्यों ने शिक्षा ली यही वह
ऐतिहासिक स्थान है जहां दुष्यन्त निर्वाचित शकुंतला ने अपना ६, वर्षों
का अज्ञात वास किया था जहां सम्राट भरत ने जन्म लिया था कालिदास ने जिसका अपने अभिज्ञन शकुंतलम में
वर्णन किया है यही पर सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहने वाले मुनी मरीच कश्यप की
प्रेरणा से उनकी विशाद आयुर्वेद आश्रम ने आयुर्वेद की बाल भैषज्य शाखा का प्रवर्तन
एवं प्रवचन किया जो आने वाली मानव जाति के लिये वरदान ही है आश्रम की भव्यता उनूपम
है सैकड़ों कुटीर आचार्यों के लिए बने हैं जो एकल आवास और आचार्य परिवार जहां रह
ते हैं चारों ओर आश्रम में शांति और ज्ञान का प्रकाश फैला है जहां गायों के और वन्य
जीवों के छोटे छोटे शावक मुनि कुमारों के साथ स्वछंद क्रिडा करते हैं
शिक्षार्थीयों और ब्रह्मचारीयोंके लिए है कुछ बड़े कुटीर वने हैं जहां १०
प्रशिक्षु एक साथ रह सकते हैं औषधि निर्माण वाला और प्रयोग शाला भी बनी है प्रातः
और संध्या हवन के लिए बड़ी बड़ी यज्ञ शालायें बनी हैं दो दिन
आश्रम का भ्रमण के बाद हम आश्रम के प्रधान आचार्य सुदीप कश्यप से विदा लेकर मालिनी
के सूने तटों पर यात्रा करते हुए मान गढ़ (महाभारत कालीन मोरध्वज)जनपद में पहुंचे और वहां तीन दिन का शिविर लगाकर भ्रमण करने लगे
मालनी की सहायक एक अनाम नदी के किनारे एक नगर के भग्नावशेष मिले यही सम्राट मयूरध्वज की अति प्राचीन नगरी
के ध्वंसा अवशेषों है हम वहां विचरण करने लगे ऐसा निर्जन क्षेत्र जो
१३-१४सौ साल पहले एक संवृध राज्य रहा होगा यहां के निवासियों की शिक्षा दिक्षा रहन
सहन संस्कृति खूब उच्च रही होगी आज झाड़ झंकाडो इधर उधर बिखरी पड़ी भवनों की
प्राचीन ईंटों प्रस्तरो उबड़-खाबड़ गढ़ों एक दूसरे से गुथे वृक्षों में आत्म गोपन
कर वह अपने उस प्राचीन इतिहास को एक प्रकार से अपने अन्दर छिपाते हैं इस क्षिण दशा
में भी हमें वहां स्वर्ण मुद्राएं मिली
स्वर्ण मुद्रा से भी बड़ी बहुमूल्य एक और वस्तु हमें उपलब्ध हुईं वह था एक
प्राचीन प्रस्तर स्तम्भ जिसके उध्र्व भाग पर एक छोटा सा सुंदर चित्र उत्कीर्ण है
जिसमें एक धनुर्धर नरेश को अपने सामने आते हुए वन्य वराह पर बाण मोचन करने में
तत्पर मुद्रा में दिखाया गया है स्तम्भ के दुसरी ओर दो मृग शिकारी से भयभीत होकर भागे जा रहे हैं जो सरलता से
उत्कीर्ण किया गया है शिकारी किसी रथ पर सवार नहीं है ।
शिविर को ३दिन हो गये सुबह अगली यात्रा के लिए
प्रस्थान करना है इसलिए मयूरध्वज नगर के भग्नावशेषों वहां के संवृध इतिहास को वहां
राज्य करने वाले प्रतापी यशश्वी सम्राटों को प्रणाम कर उन से विदा लेकर शिविर में
लौट आये।
प्रातः अपने साथीयों के साथ शिविर को समेट
कर सभी ने अपने हिस्से का भार उठाया और चल
पड़े अगले गणतवय के लिए मालिनी के साथ साथ उसके पूर्वी तट के साथ साथ पेड़ों के झुरमुट झाड़ झंकारों से बचते हुए कभी
नदी के रेत में कभी तक के उपर आगे बढ़े जा रहे थे धूप तेज होने लगी बार-बार प्यास
लग रही है उसका के लिए मालिनी का जल पीते हुए बेर खाते हुए आगे बढ़ चले मध्यान्ह
का समय होगया रेत में चलने के कारण थकान भी होने लगी थी और भूख भी लगाने लगी थी
सभी ने विचार किया पहले स्नान कर आहार करलिया जाये थोड़ा विश्राम कर आगे की यात्रा
करना ही उचित होगा सामने द्रष्टि गयी तो
मालिनी के दूसरे तट पर एक विशाल वटवृक्ष और उसके साथ ही अन्य वृक्ष छाया और
विश्राम के लिए उचित स्थान है सभी मालिनी को लांघकर वृक्ष के झुरमुट के पास पहुंच
गये पेड़ों के बीच में एक साफ-सुथरा स्थान
है जहां दस से पंद्रह व्यक्ति आराम कर सकते हैं ऐसा लगता है यह स्थान चरवाहों के
आराम करने या वन उपज जड़ी बूटियां एकत्र करने वालों ने दोपहर विश्राम के लिए उपयोग
किया जाता है सभी ने मालिनी में स्नान किया फिर रास्ते से एकत्रित किये पके आंवले
बेर और सत्तू गुड़ के साथ भोजन किया जल
पीया धूर्त जंगली हिंसक पशु हानी न पहुंचादें दो व्यक्तियों को जागते रहने और
सतर्क रहने को कहकर थकान के कारण निद्रा आगयी शीतल छाया और थकान के कारण पता ही
नहीं चला सोते हुए एक प र कब बीत गया आंख खुली तो दिन का चौथा पहर होगया सूर्य
अपने गंतव्य को ओर तेजी से बढ़ रहा है चार घड़ी दिन शेष रह गया हमें भी अपने गंतव्य की ओर जाना है और रात्रि
विश्राम के लिए सुरक्षित स्थान भी खोजना है
सभी ने हाथ मुंह धोकर जल ग्रहण किया और अपना भार लेकर मालिनी के साथ साथ बढ
चले जिंगन अमलतास ढाक का साधन वन कटिली
झाड़ियां चलने में आ सहजता कर रहे थे इसलिए मालिनी के वहाव के साथ साथ नरम रेत में
चलना ज्यादा आराम दायक लग रहा था ।
यह क्या आगे बढ़ते ही मालिनी के दृश्य एक साथ
ही बदल गये एक तो उसने एक बार फिर अपने प्रवाह की दिशा पश्चिम से दक्षिण दिशा को
बदलदी दूसरे उसका फैलाव फांट भी अधिक हो गया दूरतक रेत ही रेत बिछी थी सुर्य भी
अस्ताचल की ओर जा रहा था पक्षि अपने घोंसलों की ओर लौट रहे हैं गोधूली का समय है
तभी कहीं पेड़ों के झुरमुट के पार धुंआ उठता नजर आ रहा था संभव तया वहां कोई बस्ती हो या कोई आश्रम इस
क्षेत को तपो वन कहा जाता है यहां मरीच कश्यप आश्रम और कण्व आश्रम के अतिरिक्त भी
अन्य आश्रम भी है जो इतने प्रसिद्ध नहीं हो विद्या अध्ययन का केंद्र हैं मालिनी के
दुसरे छोर से गायों का एक रेवड पानी पी कर उसी ओर जा रहा था हम भी उत्सुकता वस उनके पीछे पीछे चल दिये कुछ दूर चलने के बाद ही आम्रो उदयान में पहुंच
गये वहां एक छोटा-सा देवालय बना है कुछ
व्यक्ति संध्या आरती की तैयारी कर रहे हे साथ ही ६०कदम की दूरी पर एक विशाल
शिवलिंग नजर आ रहा है एक दूर तक फैला उद्यान में कुटिया बनी हैं कुछ व्यक्ति भोजन
की तयारी में जुटे है एक बडी सी कुटिया के सामने एक व्यक्ति कुश के आसन पर बैठा है
देखने से ही लगता था यह आश्रम का व्यवस्थापक या प्रधान आचार्य होगा मस्तक पर तिलक
चेहरे पर तेज नजर आरहा था मन में विचार आया इन महान पुरुष को प्रणाम कर इस स्थान
के विषय में विस्तार से जानकारी की जाये तभी आचार्य ने नजरें उपर उठाई और हमारी ओर
विस्मय से देखने लगे हमारा कद और वेशभूषा
यहां के निवासियों से मेल नहीं खाती थी ।
चीन
के निवासी होने के कारण कद के लिहाज से छोटा कद
शरीर भी हम सभी का भारी ही था
स्वास्थ्य खुब अच्छा प्रतित होता था
कुछ पीला भूरा रंग और चपटे मुखपत्र निचे को झुकी मूंछें इस देश के लोगों से
पृथक बनाये थी बिना कहे ही परदेशी प्रतित होते थे वह अपनी पीठ पर विचित्र प्रकार
की पिटारी जो बेंत की बनी थी सिर पर लग भग डेड हाथ ऊंची चौड़े नागफन की तरह सिर पर छत बनाये हुए जो
थरती पर रख देने के बाद ऊंचाई में उसके बराबर ही प्रतित हुई हमने पिटारी जमीन पर
रख कर आचार्य को दंडवत प्रणाम किया आशीर्वाद देने के बाद आचार्य ने विनम्रतापूर्वक
कहा परदेशी पथिक दल का कृपाचार्य ब्रह्म ऋषि आश्रम में आचार्य सूचेत की ओर से
स्वागत है आपने ठीक पह चाना आचार्य
श्रेष्ठ, पथिक को , परदेशी
हूं ,आचार्य ने हमारी तरफ देखते हुए कहा श्रीमान चीन देश के यात्री हैं जी
श्रीमंत ,आचार्य, यात्री और छात्र, दोनों ही
,दोनों कैसे ,यात्री
इसलिए, आपके देश की यात्रा कर रहा हूं और छात्र इसलिए मैं नालंदा का छात्र
हुं ,मैने संक्षेप में ही उत्तर दिया
साधूवाद क्या य्वांग च्वांग हू हो आचार्य ने कहा अभी ६-७ महिने पुर्व ही
कपिलवस्तु
के
विद्वान युवक ने परिचय दिया था जो उसी वर्ष नालंदा का स्नातक बना था और गोमुख की
यात्रा पर जाते हुए दो दिन कृपाचार्य आश्रम में रुका था आप चीनी यात्री यवांग
च्वांग हीं है जी आचार्य आपने ठीक ही पहचाना
मन में बहूत सारे प्रश्न थे जिनका उत्तर जानने की जिज्ञासा मन में थी तभी
आचार्य सूकेत ने कहा मेरे संध्या वंदन श्रीमद
गीता पाठ का समय होगया है कल मध्यान्ह में आप से संवाद होगा अब आप भोजन और विश्राम
करें एक संन्यासी को यह कहते हुए व्यवस्था करने को कहा।
प्रातः देर से निद्रा से जगे रात्रि में
निश्चिंत होकर सो पाये सुरक्षा के कोई चिंता नहीं थी सुरक्षा व्यवस्था आश्रम की
ठीक थी पुरुष योगा अभ्यास और प्राणायाम के बाद मालिनी में स्नान कर आगे थे आचार्य
पत्नियां और बालिकाएं भी सरोवर में स्नान कर चुके थे हमें भी दैनिक क्रियाओं से
निवत होना था और स्नान भी करना था हम भी मालिनी की धारा की ओर चल पड़े
स्नान के बाद जब हम आश्रम की ओर लौट रहे थे
तभी। हमारे कानो मे वेदों की ऋचाएं गूंजने लगी आश्रम में दैनिक यज्ञ हो रहा है हम
ने भी यज्ञ मे समलिल होकर आहुतियां दी आश्रम के ब्रह्मचारियों द्वारा आग्रह पूर्वक
बाल आहार कराया गया यज्ञ समाप्त होने के
बाद आश्रम की स्त्री या और बालिकाएं सरोवर के पश्चिम में बने छोटे से देवालय में
अनुष्ठान स्तुति कर रही है वहां जाकर देखने पर ज्ञत हुआ यह छोटा देवालय जगत जननी
माता भगवती का है
स्त्रीयां स्तुति करते हुऐ द्रोपदी का नाम ले रही है तभी ध्यान आया भारतीय
काल गणना के अनुसार आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है आज से ही भारतीय नव वर्ष का
प्रारंभ होता है आज से नौ दिन तक भारतीय
जगत जननी माता भगवती के नौ रुपों की आराधना कर आशीर्वाद लेते हैं और नौवे दिन राम
जन्म का उत्सव मनाया जाता है
देवी स्तुति तो ठीक हैं हस्तिनापुर राज परिवार
मे पांडव वधु द्रोपदी की स्तुति समझ से परे थी हमारे प्रश्न के उत्तर केवल आचार्य
सूचेत ही दे सकते हैं ।
अनेक प्रश्नों के साथ आश्रम भ्रमण के लिए चल
पडे आश्रम के चारों ओर एक सुन्दर उपवन लगा था जहां नाना प्रकार के फलों के वृक्ष
रोपे गये थे आम पर मंजरियां जामुन नासपाती पर फूल आरहा है सभी वृक्षों पर नयी पत्तियों
आरसी है जिन में से मंद मंद सुगंध का अहसास हो रहा है आश्रम के बाहर दूर तक फैले
खेत जहां फसल कटकर किसान खलिहान में
एकत्रित कर रहे हैं संभवतया यह कृषि भूमि आश्रम के आधिन हो मध्यान भोजन का समय हो
गया था हम आश्रम से दक्षिण दिशा में थे सामने
कुछ ही दुरी पर हमे मालिनी का बहाव
नजर आने लगा प्यास भी लग रही थी मालनी के बहाव यहां पूरी तरह बदल गया था मालिनी
यहां पुर्व दिशा की ओर बह रही थी अभी तक हमें मालिनी का वहाव पुर्व की ओर
बहता नहीं मिला था इसका अर्थ है मालिनी
कृपाचार्य आश्रम पर अर्ध चंद्राकार स्थिति में बहरही है आश्रम के तिन दिशाओं में मालिनी धारा बह रही है उत्तर दिशा में मालिनी
पश्चिम दिशा में मालिनी और दक्षिण दिशा में मालिनी हमनै जल ग्रहण कर प्यास बूझाई और लौट चलें
आश्रम की ओर आश्रम में आचार्य हमारा भोजन के लिए राह देख रहे थे ।
यह क्या भोजन केवल हमें ही परोसा गया हमें यह
देख कर आश्चर्य हुआ और पूछ ही लिया क्या अन्य आश्रम वासियों ने भोजन ग्रहण कर लिया
आचार्य सूचेत ने उत्तर दिया आश्रम में छोटे-छोटे बच्चों और किशोरों गर्भवती
महिलाओं के अतिरिक्त नौ दिनों तक आश्रय वासी भोजन
नहीं उपवास का पालनकरते हैं सांय
काल एक समय फल आहार करते हैं अनार अमरुद या भुने हुए कोदो मंडुवे का सत्तू गुड़
मिलाकर पीते हैं इससे महा स्रोत शुद्ध होजाता है ।हमने भोजन किया और बाहर निकल कुछ दूर ही आचार्य आम के
विशाल वृक्षों में बैठकर विद्यार्थियों को
यजुर्वेदवेद की ऋचाएं सूना रहे हैं पेड़ों पर कभी कभी कोयल के चह चहाने की
आवाज चिड़िया के चह चहाने की आवाज आ जाती है ।
हमें देख कर आचार्य श्रेष्ठ ने ब्रह्मचारियों
को विश्राम करने को कहा हमारी ओर देखकर
कहा क्या उत्सुकता है
हमनें उत्सुकता वह पूछा हमने नालंदा में मारिच
कश्यप आश्रम और कण्व आश्रम के बारे में तो सुना है इस आश्रम के विषय में कोई ज्ञत
ही नहीं था आचार्य ने बताया यह आश्रम भी कण्व ऋषि आश्रम का ही अंग है यहां ब्रह्म
ज्ञान और वेदांत दर्शन की शिक्षा दिजाती है यह स्थान तो अति प्राचीन है यहां
ब्रह्मा जी ने मार्कंडेय ऋषि को माता भगवती दुर्गा के नो औषधि स्वरुपों का उपदेश
दिया था जो आज हम मार्कंडेय चिकित्सा
सूत्र के रूप में जानते हैं मार्कंडेय ऋषि
द्वारा यहां शिवलिंग की स्थापना की गयी है यहां मालिनी भी शिव स्वरूप में ही बहती
है मालिनी की धारा स्थल का शिवलिंग वनाती है
आश्रम में स्थित यह छोटा सा सरोवर जिसमें ब्रह्म कमल खिलते हैं ब्रह्मा जी
द्वारा नवदुर्गा कवच का उपदेश देने के कारण यह ब्रह्म ऋषि आश्रम कह लाता है हमारी
उत्सुकता बढ़ती गर्मी हमने आग्रह किया इस स्थान से हस्तिनापुर भरत वंश के राजा
गुरु कृपाचार्य और भरत वंश की कुंती पुत्र वधू द्रोपदी का क्या संबंध है कृपा कर
बताने का कष्ट करें।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में कृपाचार्य ने कौरव
सेना की ओर से भाग लिया था कृपाचार्य को चिरंजीवी होने का वरदान शिव से मिला था
युद्ध की समाप्ति के बाद कौरव पक्ष से दो ही व्यक्ति जीवित वचे थे कृपाचार्य और
अश्वत्थामा
अश्वत्थामा ने पांडवों के कुल का विनास करने के
लिए सोते हुए द्रोपदी के अबोध पुत्रों का बध कर दिया तथा ब्रह्म विद्या द्वारा वीर
अभिमन्यु की पत्नी का गर्भ नष्ट की करने की असफल कोशिश की जो श्री कृष्ण जी के आशीर्वाद से नहीं कर पाया रुष्ठ श्री कृष्ण
जी ने अश्वत्थामा के मस्तक की मणी निकाल ली जिससे उसका युद्ध विद्या का ज्ञान
शून्य होगया युद्ध के परिणाम और अपने भांजे अश्वत्थामा के व्यवहार से दुखी
कृपाचार्य श्रीकृष्ण जी के पास गये और श्रीकृष्ण जी से शिव द्वारा दिये गये वरदान
को समाप्त करने और अपनी मृत्यु का उपाय पूछा तब श्री कृष्ण जी ने कृपाचार्य से
कहा मालिनी के किनारे यहां मालिनी
अपनी बहाव धारा से शिव विग्रह
वनाती है वहां एक मार्कंडेय ऋषि द्वारा स्थापित शिवलिंग है शिवलिंग के पाप ही सरोवर है जिसमें ब्रह्म
कमल खिलते हैं वहां आश्रम बना कर रहो वेदांत और ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा दो
प्रतिदिन संध्या काल श्रीमदभागवत कथा का वाचन और श्रवण करने से मन को शांति मिलेगी
कृपा चार्य जैसे विद्वान आचार्य की आज पहले
से अधिक आवश्यकता है श्रीकृष्ण का
ऐसा कथन सुन आचार्य कृप ब्रह्म सरोवर के पास आश्रम बनाकर रहने लगे आश्रम के चारों
ओर की दो योजन भूमि और संरक्षण आश्रम के लिए हस्तिनापुर राज्य द्वारा प्रदान किया
गया।
कुछ समय हस्तिनापुर में राज्य करने के बाद
उत्तरा के पुत्र परिक्षित को राज्य का भार सोंप कर पांडव पुत्र युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव
द्रोपदी के साथ मोक्ष प्राप्ति के लिए
हिमालय की यात्रा पर निकल पड़े रास्ते में कण्व ऋषि आश्रम में रुका कर एक
दिन की पैदल यात्रा कर संध्या के समस
कृपाचार्य ब्रह्म ऋषि आश्रम आकर ठहरे दैवयोग से जिस दिन पांडव आश्रम आये उस
दिन अमावस्या थी साय काल में स्नान कर कुल
गुरु कृपाचार्य से भागवत श्रावण कर विश्राम किया अगले दिन चैत्र प्रतिपदा थी महॠषि भृगु की काल गणना के अनुसार स्रष्टि निर्माण का पहला दिन और स्थान भी
ब्रह्म ऋषि आश्रम जहां ब्रह्मा जी ने ऋषि मार्कण्डेय को दुर्गा कवच और दुर्गा
सप्तशती का ज्ञान दिया था पांडव पुत्रों
ने नवरात्र व्रत और जगत जननी माता भगवती की आराधना करने का संकल्प लिया प्रातः
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी पांडव द्रोपदी सहित मालिनी स्नान कर लौट आये आराधना
के लिए जिस स्थान पर यह छोटा सा देवालय बना है इसी स्थान पर द्रोपदी ने माता
पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाई तथा
वैदिक विधि से माता की स्तुति की नौ दिन तक जगत जननी के नौअलग अलग स्वरुपों
की उपासना कर नित्य प्रति दुर्गा सप्तशती का पाठ कीया दसवें दिन द्रोपदी ने अपने
हाथ से भोजन बनाकर आश्रम की ग्यारह वर्ष
से कम की कन्याओं को भोजन कराकर आशीर्वाद लिया
बाद में हस्तिनापुर के महाराजा परिक्षित द्वारा यहां माता भगवती के देवालय का निर्माण कराया
गया जिसे आश्रम वासी द्रोपदी मन्दिर कहते
हैं।
दशमी के दिन पांडव अपने अस्त्र शस्त्र गुरु
चरणों में समर्पित कर गुरु कृपाचार्य से
आज्ञाले मोक्ष प्राप्ति के लिए हिमाचल की ओर चल दिये यही आश्रम में रहने वाला एक
श्वान (कुत्ता) जो नित्य आचार्य के साथ स्नान कर आश्रम वासियों के साथ बैठकर
श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करता था पांडवों के साथ चला गया ।
और हमारी जिज्ञासा शांत हो गई थी सूरज की गर्मी भी कम होगयी थी हम आचार्य
श्रेष्ठ को प्रणाम कर आश्रम की पूर्व दिशा में भ्रमण के लिए चल पड़े सूरज छिपने से
पहले ही हम आश्रम लौट आये आचार्य श्रीमद्भागवत का वाचन कर रहे थे हम भी बैठ कर
सुनने लगे साय काल का भोजन कर अथिति गृह में विश्राम करने चले गये प्रातः हमें
अगली यात्रा के लिए निकलना है प्रातः उठे
तो देखा आचार्य श्रेष्ठ स्नान कर लौट आये है आचार्य श्रेष्ठ को प्रणाम किया नमन किया बह्मा
जी को और मार्कंडेय ऋषि को हस्तिनापुर राज वधु द्रोपदी को और इस पुन्य भूमि को नमन
कर हम आचार्य को प्रणाम कर अपनी अपनी कंडी उठाई और चल पड़े मालिनी के साथ साथ कण्व
ऋषि आश्रम की खोज में।_______________पांडव पुत्र मोक्ष प्राप्ति के
लिए हिमालय की यात्रा पर चले गये इसके बाद का 700, बर्ष का
इतिहास लोक कथाओं में मिलता है आश्रम का
विस्तार निरंतर होता जा रहा था आश्रम में वेदान्त के साथ साथ दर्शन शास्त्र
आयुर्वेद राजनीति और युद्ध विद्या की शिक्षा दिलाने लगी
एक समय
आश्रम में 84 , आचार्य और प्रशिक्षुओं की संख्या 800तक होगयी
आचार्य परिवार आश्रम से अलग 300कदम की दूरी पर अपने आवास बना कर परिवार सहित निवास
करते थे। कालांतर में मालिनी का बहाव भी पश्चिम और दक्षिण दिशा में आश्रम से दूर
होता चला गया जिस से पानी लाने में आश्रम वासियों और आचार्य परिवारों को बहुत समय
लगता था उधर समय के साथ हस्तिनापुर राज्य कमजोर हो गया जिससे अगग अलग छोटे छोटे
राज्य स्थापित हो गये शुकदेव मुनि आश्रम के सामने भगवती गंगा के पुर्व में कर्ण कि 20वी पीढ़ी के वंसज मांडव केतु ने मांडव प्रशस्त राज्य की स्थापना की जो आज मंडावर के नाम से जाना जाता है कण्व ऋषि आश्रम और कृपाचार्य ब्रह्म ऋषि आश्रम
भी मांडव प्रस्त राज्य के आधीन आगये मांडव केतु ने कृपाचार्य आश्रम के बाहर द्रोपदी देव स्थान से 251 0कदम की दूरी
पर पूर्व दिशा में आश्रम और आचार्य कुलम के मध्य में जहां आचार्य परिवार रहते थे
पानी पीने के लिए एक कूप का निर्माण कराया।
आश्रम
के आस पास उपजाऊ जमीन और स्वास्थ्य वर्धक
जलवायु पानी की प्रचुरता से इस क्षेत्र में बसावट होने लगी आश्रम के बाहर बसावट ने
गांव का रुप ले लिया था इस कूप से आश्रम और आचार्य कुलम के पानी की आवश्यकता की
पूर्ति होती थी आज कूप की उपयोगिता समाप्त हो गयो
वहां गांव के लोगों ने कूंए को बंद कर उसपर श्री हनुमान मंदिर का निर्माण
कर लिया है आश्रम के कार्य में बाधा न हो
और विद्या अध्ययन चलता रहे बार-बार और प्रतिदिन शिव की आराधना और शिव स्वरूप के
दर्शन करने आश्रम में बस्ती के नर और नारी आने लगे जिससे प्रशिक्षुओं का ध्यान भंग
होता था इस से बचने के लिए आचार्य मुग्धा नन्द जो उस समय कृपाचार्य ब्रह्म ऋषि
आश्रम के मुख्य आचार्य थे द्रोपदी देवालय के ठीक सामने देवालय से ,501 कदम की दूरी पर एक शिव विग्रह पूर्व
दिशा में स्थापित किया जिसपर मांडव प्रस्त के राजा कृत केतु ने जिसके नाम पर कीरतपुर नगर बसा है द्वारा
सुन्दर मंदिर का निर्माण कराया गया मंदिर के सामने एक कूप का भी निर्माण कराया गया
जहां आज श्री शिव मंदिर है।
उधर दिल्ली पर महमूद ग़ौरी ने 1205,इईशवी
में आक्रमण कर पृथ्वी राज चौहान की हत्या करदी और दिल्ली की गद्दी पर कुतुबुद्दीन
ऐबक को बैठा दिया मुस्लिम शासकों के
अत्याचार से बचने के लिए वैदिक धर्म को मानने वाले लोग गंगा नदी के उत्तर में वन
क्षेत्र में आकर बसने लगे जिनमें सभी वर्गों के व्यक्ति थे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और कारीगर समाज भीथा उस समय जाट
या गूजर जाती अलग नहीं थी सभी को क्षत्रिय
कहा जाता था जिनमें कुछ क्षत्रिय परिवार ब्रह्म ऋषि आश्रम के पूर्व दिशा में आकर
बस गये।समय बिताता गया दिल्ली पर खिलजी वंश के क्रुर और महत्व कांसी शाशक
अलाउद्दीन खिलजी ने कब्जा कर लिया।
दुसरी तरफ कृपाचार्य आश्रम से दक्षिण में मालिनी
के उस पर मालिनी के किनारे सुरसैना नामक नगर मूर्त रूप ले रहा था जिसकी स्थापना उस
समय के मांडव प्रशस्त के राजा सूर सेन ने की थी यह समय था 1316ई था दिल्ली की
गद्दी पर इतिहास का सबसे क्रुर शाशक अलाउद्दीन खिलजी का शासन था दक्षिण और पूर्वी
भारत को जीतने के बाद उसकी नजर ग़ंगा से उत्तर के प्रदेश पर गयी उसने अपने सेना
पति मलिक काफूर को मांडव प्रस्त पर आक्रमण करने को एक विशाल सेना लेकर भेजा मलिक काबूल अलाउद्दीन खिलजी से भी अधिक क्रुर
और निर्दयी था वह दिल्ली से मांडव प्रस्त के रास्ते में पड़ने वाले भूभाग को रोंदता
हुआ बस्तियों को उजाड़ता हुआ सनातन मंदिरों को नेस्तनाबूद करता हुआ सनातन धर्मी
यों को लूटता और कत्ल करता हुआ गंगा नदी की ओर बढ़ा चला आ रहा था उसे और खिलजी को
भारत के शिक्षण संस्थाओं से नफ़रत थी 1312ई में बख्तियार खिलजी ने नालंदा
विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया था जहां 1000से अधिक आचार्यों और 10000से
अधिक विद्यार्थी यों की हत्या करदी गरी थी नालन्दा के पुस्तकालय की आग दो वर्षों
तक सुलगती रही थी वह पुस्तकालय भारत के ऋषियों विद्वानों की हजारों वर्षों की
रिसर्च पुस्तकों का दुनिया में सबसे बड़ा संग्रालय था नालन्दा विश्वविद्यालय की आग
दो वर्ष तक जलती रही एक अनपढ़ क्रूर धर्मांध असभ्य ने मानवता की जो हानी की उसकी भरपाई अगले
हजारों वर्षों तक नहीं हो पाये गी ।
मलिक
काफूर ने गंगा पर कर सबसे पहले कण्व ऋषि आश्रम पर धावा बोला आश्रम में आग लगा दी
वहां के सैकड़ों आचार्यों और विद्यार्थियों को कत्ल कर दिया इस निर्दयी और क्रुर
ने हजारों वर्षों से दुनिया में ज्ञान बांटने बाले संस्था का अस्तित्व समाप्त कर
दिया यह सर्दियों का महिना पूस मांस की घटना है आगे बढ़ते हुए फसलों को उजाड़ते
रोंदते मांडव प्रस्त पर आक्रमण कर दिया छोटा
सा राज्य जिसकी छोटी सी सेना राजा सूर सेन ने वीरता के साथ मलिक काफूर का सामना किया आखिर परिणाम हार ही
होना था राजा सूर सेन की युद्ध में मृत्यु होगयी सूरसेन की दोनो रानी यों ने 2हजार
क्षतराणियो के साथ जोहर कर लिया मलिक काफूर ने निर्दयता की सारी हदें पार कर दी
छोटे छोटे बच्चों का कतल उन की मांओं के सामने कर दिया और स्त्री यों को गुलाम बना
लिया ।
मांडव प्रस्त के बाद उसका अगला निशाना सुरसैना
और कृपाचार्य आश्रम और आगे कश्यप आश्रम था
तभी अलाउद्दीन खिलजी के बुलावे पर उस नर पिशाच को दिल्ली लौटना पड़ा वह अपने
विश्वास पात्र मुस्तफा बारी को मांडव प्रस्त का सूबेदार नियुक्त कर दिल्ली वापस
चला गया । मुस्तफा बारी को गुप्त चर से सूचना मिली कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से
नवमी तक ब्रह्म ऋषि आश्रम में विशेष उत्सव रहता है वहां दूर दूर से श्रद्धालु
द्रोपदी मंदिर परिसर में एकत्र होते हैं मुस्तफा बारी ने अष्टमी के दिन आश्रम पर
आक्रमण की योजना बनाई।अपने 300घुड सवार सैनिकों के साथ मुस्तफा बारी फजिर की नमाज
के बाद निकल पड़ा सुरसैना और कृपाचार्य आश्रम को लूटने और बर्बाद करने ।
सूरज की पहली किरण के साथ 300घुड सवार सुरसैना
में दाखिल हुए स्त्री पुरुष बच्चे जान बचाने को भागने लगे मुस्तफा बारी और उसके
सैनिक जो भी मिलता उसे कत्ल कर देते घरों को लूट कर उन्हें आग के हवाले कर देते
मुस्लिम आतताईयों द्वारा एक नगर बसने से पहले ही उजाड़ दिया गया कुछ लोग जान बचाकर
जंगलों में भागगये आज भी उजड़े नगर के अवशेष बरमपुर गांव के सामने डेढ़ किलो मीटर
दूर मालिनी के दक्षिणी किनारे पर मालिनी
पर बने उत्तर रेलवे के पुल के करीब बुडगरा गांव से 1किलोमीटर उतर पूर्व दिशा में
स्थित है इसका वहूत बड़ा भाग आज मालिनी में समाहित हो गया है आज वहां अभी कुछ
वर्षों पहले एक मंदिर बना है आज भी वहां मिट्टी के बर्तन जले हुए चावल जौ मिलते
हैं कुछ लोगों का दावा है यहां से स्वर्ण मुद्राएं भी मिलती है बादमें यहां से
पालायन कर गये बुडगराज (बुद्ध राज)चौहान ने बुडगरा गांव बसाया और धर्म दास पुंडीर
ने पूंडरी गांव बसाये ।
सुरसैना को नेस्तनाबूत कर मुस्तफा बारी और उसके
घुड़ सवारों को ब्रह्म ऋषि आश्रम की ओर मोड़ दिया ब्रह्म ऋषि आश्रम में सुरसैना के
आक्रमण लूट कत्लेआम और आगजनी की जान कारी हो गरी थी आक्रमण से निपटने और युद्ध की
तयारी आश्रम वासियों ने कर ली थी स्त्री यों और बच्चों को आश्रम और बस्ती से दूर
सुरक्षित स्थान पर भेजकर निश्चिन्त होकर मरने मारने को तैयार थे दिन का दुसरा पहर
था चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन गरम हो जाता है मुस्तफा बारी और उसके मुस्लिम दरिंदों ने आश्रम और बस्ती में लूट और आगजनी शुरू कर दी
आश्रय के ब्रह्मचारियों आचार्यों बस्ती के निवासियों ने ललकारते हुए डटकर युद्ध
किया जिसमें मुस्तफा बारी के 260 दरिंदें मारे ग्रे शेष मुस्तफा बारी के साथ जान
बचा कर भाग गये आश्रम में मन्दिर की रक्षा
करते हुऐ भुईयार बुनकर समाज के
हरदा की मृत्यु होगयी पचासों आचार्य और ब्रह्म चारी मृत्यु को प्राप्त हुए जिनमें
मुख्य थे बलिदान करने वाले चार ब्राह्मणों में से राज रत्न और
प्रेम रत्न दोनों भाई अविवाहित थे आचार्य मुक्ष
अविवाहित बाल ब्रह्मचारी थे और आचार्य वर्धक की पत्नी गर्भ वती थी जो शास्त्रों के अनुसार सती नहीं हो सकती थी दो
राजपूत राघव राज तेज राज की अभी दो महा
पूर्व विवाह हुआ था उनकी पत्नियों राघव
राज की पत्नी प्रेम कंवर तेजा राज की पत्नी राज कंवर ने अपने पति के साथ सती होने
का निर्णय लिया और दो शूद्र भी इस युद्ध
में मृत्यु को प्राप्त हुए हरदा भुईयार भी विवाहिता था उसके 4संताने थी जिनमें दो
पुत्र और दो पुत्री थी हरदा की पत्नी सविता ने बच्चों के हित में जीवित रहने का
फ़ैसला किया सहबा राम की पत्नी मालती और टहला राम
की पत्नी सुकमा शती चर्मकार उस
समाज में स्त्री के सती होने का रिवाज ही नहीं था दोनों ने जीवन अपना जीवन माता
जगत जननी की आराधना में बिताया जबतक वह जीवित रही आश्रम के निवासियों द्वारा
पूजनीय जीवित सती के रुप सम्मानित रही आश्रम में मृत शरीर चारों ओर बिखरे पड़े
थे जन हानी तो हुई थी परन्तु गर्व भी हो
रहा था मलेचछो को भगा दिया था सबसे पहले दोनों क्षत्रिय कुमारों की चितायें लगाई
गई दोनों क्षत्राणियां आपने अपने पति का मृत शरीर गोद में लेकर चिंताओं पर आसीन हो
गयी भरे मन से सभी जीवित आश्रम वासियों ने दोनों को भरे मन से विदाई दी चितायें धु
शुक्र जल उठी वाता वरण में मांस के जलने की दुर्गंध फैल गयी आचार्यों ने गरुड़
पुराण के मंत्र पढ़ें सभी की आंखों से अश्रु धारा बह निकली कालांतर में
ब्रह्मसरोवर को सती वाला तालाब इसी लिए कहने लगे
इसके बाद अन्य बलिदानी यों के शवों का विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार
किया आश्रम में मातम का माहोल था आश्रम के प्रधानाचार्य आचार्य मुक्ष की युद्ध में
मृत्यु होगयी थी आश्रम के शिक्षनालय को
बंद कर दिया गया शेष जीवित बचे आचार्य और प्रशिक्षुओं अपने अपने प्रदेशों को
प्रस्थान किया कुछ यहीं बस गए ।
अगले वर्ष देवालय और आश्रम की सुरक्षा में
बलिदान देने वाले बलिदानियों की याद में युद्ध कला का प्रदर्शन करते हुए अखाड़ा बस्ती
से मंदिर तक निकाला गया और द्रोपदी मंदिर पर पहुंच कर मां भगवती महा गौरा का
आशीर्वाद लिया गया य आज 900साल बाद भी गांव के लोग चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन वलिदानीयो की याद
में अखाड़ा निकालते हैं आपसी विवाद के कारण अब दो अखाड़े निकाले जाते हैं और धर्म
पर बलिदान होने वाले वीरों को नमन करते हैं आज मंदिर का जीर्णोद्धार स्वर्गीय श्री
चंद्रपाल सिंह तोमर की याद में कृष्णा वती
पत्नी स्वर्गीय श्रीचंद्र पाल सिंह तोमर और नागेंद्र सिंह तोमर भूपेंद्र सिंह तोमर वह हरेंद्रसिंह तोमर पुत्र स्वर्गीय
श्रीचंद्रपाल सिंह तोमर ने चैत्र शुक्ल
द्वितीया संबत २०५३ वी शाके १९१२ तथा अनुसार २१ मार्च 1996को क्या कर माता दुर्गा
की प्रतिमा की स्थापना विधि विधान से
करायी मंदिर परिसर मे एक और मां
काली का मन्दिर श्री सुभाष चन्द्र राजपूत
पुत्र श्री राजेन्द्र सिंह राजपूत की प्रेरणा से
श्री राम सिंह राजपूत निवासी गजरौला द्वारा कराया गया मंदिर परिसर के चारों
दिशाओं में सुंदर द्वार गांव निवासी राज पूत परिवारों द्वारा अपने स्वजनों की याद
में बनवाये है मंदिर परिसर केचारोओर प्राचीन काल से मेला लगता है जहां दुर दुर से
श्रद्धालु माता से आशीर्वाद लेने मनत मांगने मनत पूरी होने पर शीश नवाने आते हैं
चैत्र शुक्ल अष्टमी को मंदिर पर ,सबसे
पहले झंड़ी हरदा भुईयार के वंसजो भुइयार समाज द्वारा चढ़ाई जाती है इसके बाद और सब मंदिर में में झंडा चढा सकते
हैं सबसे पहले माता को चुनर दलित कन्या
द्वारा चढ़ाई जाती है तभी कोई और मां
भगवती को चुनरी चढ़ाता है मंदिर से पूर्व दिशा में मार्कंडेय ऋषि द्वारा स्थापित
शिवलिंग पर भी राकेश कुमार राजपूत सुपुत्र श्री देशपाल सिंह राजपूत द्वारा मंदिर
का निर्माण कराया गया है सनातन धर्म में
समरसता समानता देखनी हो तो आप भी आओ चैत्र
शुक्ल अष्टमी को (ब्रह्म ऋषि आश्रम) बरमपुर द्रोपदी मंदिर पर
जय मां जगत जननी
जय मां द्रोपदी
संकलन यशपाल सिंह आयुर्वेद रत्न
Comments