धामपुर का रंगमंचीय सफर


धामपुर का रंगमंचीय सफर : अतीत से आज तक 

अशोक मधुप
 एक शताब्दी का सफर पूरा हो रहा है। नाटक और नौटंकी के युग से हम टेलीविजन,सिनेमा और सोशल मीडिया के सुनहरे पड़ाव तक आ पहुंचे हैं, लेकिन इन तीनों माध्यमों की चकाचौंध के बावजूद रंगमंचीय दुनिया ने अपना वजूद बरकरार रखा है। रंगमंचीय सफर में धामपुर का अपना इतिहास रहा है। इस यात्रा में उतार चढ़ाव आते रहे, लेकिन यह सफर आज भी कुछ मजबूत कंधों के सहारे एक सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर है। धामपुर में सन् 1930-36 के बीच गर्मियों की रातों में खुले मंचों पर रात भर रासलीलाएं और नौटंकी कंपनियों द्वारा नौटंकी नाटक आयोजित किए जाते थे। इनमें अभिनय करने वाले स्त्री पुरुष दोनों होते थे। नाटकों की नायिका प्रायः यहां के रईस घरानों द्वारा दी गई चुनरी, लहंगा आदि धारण करती थीं। तब कोई भी इसे बुरा नहीं मानता था। सारा समाज समरसता में डूब हुआ था। रंगमंचीय इतिहास में पहला नाम पं फकीरचंद्र 'केशव' का है। केशव जी स्वयं नाटक लिखते थे। उनकी शैली पारसी थियेटर कंपनियों या प्रदर्शित किए जाने वाले नाटकों जैसी संवाद और शायरी से युक्त थी। इस शैली का प्रयोग में एषेोधाम तथा अन्य नाटक-लेखक किया करते हैं। केशव जी निर्देशक के साथ-साथ कुशल अभिनेता भी थे। उनके ऐतिहासिक नाटक 'वीर पन्ना' ने धूम मचाई। इस नाटक में पन्ना का अभिनय केशव जी ने ही किया। कालांतर में धामपुर के भगत सिंह चौक पर प्रदर्शित 'श्री कना' नाटक में इस चरित्र का सजीव प्रदर्शन किलाल (दफ्तरी) ने किया। केशव जी के सह प्रसिद्ध अभिनेताओं में पं. कन्हैया लाल राम हलवाई), पं. रामगोपाल शर्मा (मुनीम), पहल वशिष्ठ, यमुना प्रसाद, सरयूप्रसाद शर्मा, बबूलाल शर्मा (होटल वाले) आदि के नाम आज भी चर्चित हैं। इसी दौरान समाज सुधारक युवाओं ने यहां 'प्रेम सभा' का गठन किया। इनमें बाबूराम कात्यायन, रतनलाल, बाबू शिवचरन सिंह सक्सेना, डा. अमीरी सिंह, रामचंद्र माहेश्वरी, राजेश्वर प्रसाद गुप्ता, छत्रपाल शर्मा, देवर्षि मनाइय आदि प्रमुख थे। इन्होंने देवनागरी परिषद बनाकर हिंदी भाषा के विकास के लिए भी कार्य किए। साथ ही यहां श्री रामचरित मानस का प्रदर्शन करके एक नई परंपरा को जन्म दिया। राम कथा के सभी पात्र 'प्रेम सभा' के सदस्य हुआ करते थे। इन्हें प्रसिद्ध चित्रकार रामवर्मा का सहयोग भी मिला। वे न्यू एलफ्रेड में काम कर चुके थे। धीरे-धीरे इनके साथ स्थानीय छात्रों का एक ग्रुप, जिसमें प्रकाश गोयल, सुरेश गुप्ता, श्रीवत्स सनाढ्य, डा. सरन माथुर आदि प्रमुख थे । पं. मंगूलाल वशिष्ठ, यमुना प्रसाद कात्यायन, सरयू प्रसाद शर्मा, वैद्य बाबूराम कात्यायन, श्री वत्स सनाढ्य आदि ने मिलकर हिंदी नाट्य परिषद का गठन किया। नाट्य परिषद द्वारा शेरकोट, नजीबाबाद, धामपुर आदि स्थानों पर हरि कृष्ण प्रेमा के नाटक 'रक्षाबंधन' का मंचन सिनेमा की तर्ज पर किया गया। धामपुर में कई बार चंद्रगुप्त (जय शंकर प्रसाद), सीता (द्विजेंद्रलाल राप), वीर अभिमन्यु (पं. राधेश्याम) आदि नाटकों का भी सफल मंचन किया गया। इसके बाद शुरू हुआ चंद्रहास शर्मा और ओमप्रकाश 'बाया' का परिवर्तनशील युग। ओम प्रकाश 'बाबा' सशक्त रंगकर्मी होने के साथ- साथ निर्देशन और मंच सज्जा में भी माहिर थे। बड़ी मंडी तथा शुभम् मंडप में उन्होंने कई बार अपनी कला का प्रदर्शन किया है। उन्होंने धामपुर व नजीबाबाद में मंडलीय और जिला स्तर पर नाटक प्रतियोगिताएं भी कराईं और कई अभिनेताओं की कला को निखारा। चंद्रहास शर्मा द्वारा निर्देशित कई नाटकों का मंचन भी धामपुर में किया गया। बाद में चंद्रहास शर्मा व श्रीवत्स सनाइय ने आर. एस. एम. कालेज में रणजीत नाट्‌य परिषद का गठन किया। इसके कलाकारों ने बरेली मंडलीय समारोह में अपनी नाट्य कला का प्रदर्शन कर वाह-वाही लूटी। के.एम. कालेज में अध्यापक के. बी. लाल के सरंक्षण में बाबा ने अच्छे नाट्य प्रदर्शन किए। सौभाग्यवती दानी महिला महाविद्यालय में डा. शांति शर्मा के संरक्षण में अच्छे नाटकों और नृत्यों का प्रदर्शन होता रहता है। एस बी डी महिला महाविद्यालय की छात्राएं भी अपने सांस्कृतिक प्रदर्शनों के लिए सराहना पाती रही हैं। 13 मार्च 1998 को सौभाग्यवती दानी महिला महाविद्यालय में सत्यराज की रचना 'एक अनपढ़ शाम' का मंचन धामपुर के रंगमंचीय सफर में मील का पत्थर साबित हुआ, जिसे सबसे पहले विद्यालय की छात्राओं ने मंचित किया था। धामपुर में नैनीताल आर्ट थियेटर की शाखा के गठन के बाद नाटक से संबंधित कार्यशालाएं आयोजित की गई। इसी थियेटर के संयोजन में भानु प्रताप सिंह के निर्देशन में साक्षरता विषयक नाटक एक अनपढ़ शाम के पूरे देश में 1000 नुक्कड़ नाटक हो चुके हैं। इस नाटक का आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी अनेक बार प्रसारण हो चुका है। धामपुर के ही नाट्य शिल्पी सत्यराज द्वारा लिखित और सजदा द्वारा निर्देशित नाटक बंजारा का चयन ओलंपियाड थिएटर के लिए हुआ, इस प्रतियोगिता में अनेक देशों के नाटक को के बीच बंजारा का भी चयन हुआ था जिसका मंचन 4 अप्रैल 1998 को रविंद्रालय मुंबई में हुआ। अक्षर संस्था के संयोजन में फरवरी 2022 में धामपुर में ओपन थिएटर का प्रयोग किया गया, जिसमें सत्यराज द्वारा लिखित नाटक युग का प्रयोगात्मक प्रदर्शन हुआ, जिसे धामपुर में बहुत सराहा गया । इस नाटक का निर्देशन एन एस डी पास आउट जाय मिटाई और साजिदा ने किया था। धामपुर के नाट्य कला परिषद, नाट्य दीप, ज्ञान दीप एवं अक्षर ग्रुप अॅफ आर्टस आदि संगठन नाट्य विधा को उत्कर्ष तक ले जाने के लिए प्रयासरत रहे हैं। इस कालखंड में अभिजीत मंडल भानु प्रताप सिंह प्रदीप गुप्ता आदि नाट्य निर्देशों का सहयोग धामपुर क्षेत्र के कलाकारों को मिलता रहा। इन कलाकारों में धामपुर निवासी साजिदा और पंकज लोचन दो कलाकार एनएसडी दिल्ली पास आउट भी बने। सत्यराज और उनकी कवियित्री सहधर्मिणी श्रीमती नीरजा सिंह का 'घरौंदा' धामपुर की सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक ,गतिविधियों का केंद्र है। इन दोनों की प्रेरणा से 'गधे की बारात,' सैंया भए कोतवाल', 'मॉडर्न सर्वेन्ट',द ग्रेट राजा मास्टर", कला और समाज, 'एक दोस्ती ऐसी भी ,"मुझे जेल भेज दो" ,अंधेर नगरी, चोर चरित्रम्, आखिर कब तक,' 'प्रस्ताव', 'किसके लिए ,अब और नहीं' आदि का नाटकों का सफल प्रदर्शन किया जा चुका है। इन नाटकों को रमेश राजहंस, बसंत अवनीश, सत्यराज, दिनेश भारती, प्रदीप गुप्ता, भारतेंदु हरिशचंद्र और डा. सरोज मार्कडेय ने लिखा। धामपुर के उभरते कलाकार सुरेश चंद्र, पवन संगम, ऊधम सिंह, धर्मेंद्र दीपक, बलजीत अग्निहोत्री, प्रभाकर शुक्ला, इंतजार शेख, सुशील कुमार, सलीम, पवन कुमार तथा बाल कलाकार पंकज, अकरम, अंकित, अभिनव (मनू), गौतम भारती, अमित सनाढ्य से बहुत आकांक्षाएं हैं कि ये लोग धामपुर के रंगमंचीय इतिहास के नक्षत्र बनेंगे। यह गौरव की बात है कि इनमें से कई कलाकार दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। भूली बिसरी यादों में स्व. पं. राजेश्वर प्रसाद शर्मा, पं. गौरी शंकर 'सुकोमल, महेश चंद्र शर्मा (बोतल महाराज), जय प्रकाश भारती आदि अभिनेता हैं, जिन्होंने धामपुर के रंगमंचीय सफर को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। पं. फकीर चंद 'केशव' की (वीर पन्ना) की पाण्डुलिपि आज भी उनके पुत्र पालिका के पूर्व सदस्य जयप्रकाश शर्मा 'केशव के पास सुरक्षित है। फिल्म निर्देशन तथा लेखक स्व.पं. नरोत्तम व्यास ने केशव जी से कहा था कि इस नाटक की फिल्म बनवा देंगे किंतु केशव जी के स्वाभिमान को शर्तें रास न आई और एक अच्छा कथानक इतिहास के पर्दे में छिपा हुआ पड़ा है।

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