सरवर नगीनवी


शायरी और पत्रकारिता के स्तंभ सरवर नगीनवी
           साहित्यिक रूप से संपन्न व समृद्ध जिला बिजनौर की धरती के न केवल शहरों बल्कि ग्रामीण अंचलों ने भी अनेक प्रतिभाओं को जन्म दिया है जिन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, इस श्रेणी में एक नाम नगीना तहसील के ग्राम कोटरा निवासी सरवर नगीनवी का भी है जो जीवन भर तमाम दुश्वारियां के बावजूद भी संघर्ष करते रहे और उर्दू साहित्य जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे जिनका पिछले दिनों इंतकाल हो गया। 
    रफ़ीक़ अहमद अंसारी का जन्म 10 नवंबर 1946 में क़स्बा कोटरा, नगीना में हुआ था। दस वर्ष की आयु में वह अपने पिता हाजी अब्दुल रशीद के साथ झरिया जिला धनबाद (झारखंड) चले गये। मिट्टी की खदानों के लिए मशहूर झरिया रफीक अंसारी से सरवर नगीनवी उप नाम रख कर उन्होंने 1960 में शान भारती, वक़ार कादरी, आमेर सिद्दीकी, के साथ अपनी शायरी के सफर का आग़ाज़ किया और उर्दू दुनिया में एक साथ नाम कमाया। सरवर नगीनवी 1962 में माहिर-उल-हमीदी इलाहाबादी के शिष्य बने। उनकी सलाह पर अल्लामा अब्र अहसनी गन्नौरी से काव्य सुधार की शिक्षा ली। अब्र अहस्नी की हत्या के बाद, मुशीर झिंझानवी के साथ काव्य विमर्श करना जारी रखा और इस प्रकार उन दोनों से शायरी की कला हासिल की। सरवर नगीनवी ने स्कूली शिक्षा तो ज्यादा नहीं पाई थी लेकिन सोहबत का असर कि वह शायरी और पत्रकारिता की बारीकियों से पूरी तरह वाकिफ़ थे और उनका तक़रीर करने का मुंफर्द अंदाज सुनने वालों पर असर अंदाज होता था, यही वजह है कि वह देश के बड़े-बड़े प्रोफेसरों, शिक्षाविदों और वरिष्ठ राजनीतिज्ञों के बीच अपनी पहचान क़ायम किए हुए थे। उनका काव्य संग्रह "बिखरा बिखरा लहजा" जो उर्दू जगत में लोकप्रिय हुआ का विमोचन 11 सितंबर 1993 को दिल्ली के ग़ालिब एकेडमी हाल में लोकदल के नेता चौधरी अजीत सिंह, समालोचक प्रोफेसर उनवान चिश्ती, प्रोफेसर शारिब रुदौलवी, डॉक्टर उबैदुर रहमान हाशमी ने किया था। 13 मार्च 2004 को "सदा ए अंसारी" नई दिल्ली पत्रिका ने सरवर नगीनवी विशेषांक प्रकाशित किया था। उन्होंने सन् 1982 में नगीना से एक पाक्षिक "ख्वाब ओ ज़ार" और उसके बाद दिल्ली से "दस्तकार समाज" साप्ताहिक का प्रकाशन किया। नगीना से त्रैमासिक "मेमार ए अदब" प्रकाशित किया जिसका विमोचन 1 फरवरी 2001 को पद्म भूषण प्रोफेसर गोपीचंद नारंग, सलाहुद्दीन परवेज, मुशर्रफ आलम जौक़ी ने किया था। उन्होंने दिल्ली से दैनिक "शाम का साथी" भी निकाला था। इस तरह उन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित की। वह राजनीतिक और सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे । मैंने "दबिस्तान ए बिजनौर" के संकलन के समयवर्ष 2015 में सरवर नगीनवी से उर्दू के विकास में जिला बिजनौर की भूमिका पर एक कविता का अनुरोध किया। तीसरे दिन सरवर ने विस्तृत कविता कही और मुझे सौंप दी। सरल शब्दों से सजी कविता हमारे सपनों और विचारों का हिस्सा बन गई । वो शख्सियतें जिनके जिक्र ने कविता को सदाबहार बना दिया। क़ायम चांदपुरी से लेकर तहज़ीब अबरार और मुईन शादाब तक शायरों, लेखकों की सेवाओं और उनके उत्कृष्ट कार्यों ने नई पीढ़ी को उनके बौद्धिक प्रयास और व्यक्तित्व से अवगत कराया है। वर्ष 2016 में उन्होंने "कुल्लियात ए फ़रोग नगीनवी" का संकलन किया और एक ऐसे शायर और उनकी साहित्यिक रचनाओं का परिचय कराया जो अतीत में गुम हो चुकी थी। उसके बाद "सहरे के फूल" नाम से उनकी एक किताब और प्रकाशित हुई। "आबले फूट पड़े" नाम से उनका काव्य संग्रह प्रकाशन के लिए लगभग तैयार है। जबकि "नगीना के नगीने"(नगीना की साहित्यिक प्रतिभाओं के परिचय) और "मुझे याद है सब ज़रा ज़रा" (आत्मकथा) का काम उनके जाने के बाद बीच में ही छूट गया। सरवर नगीनवी की शायरी नई रचनात्मक संवेदना और साहित्यिक चेतना का दर्पण है। सरवर नगीनवी न केवल बिजनौर जिले से बल्कि उर्दू साहित्य के समकालीन परिदृश्य में जाने जाते हैं। आपकी रचनाएं 1960 से साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रही है।
   दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष डॉ. तौक़ीर अहमद खान के अनुसार "सरवर नगीनवी ने अपनी शायरी में गहरी चेतना का प्रमाण दिया है।" प्रसिद्ध आलोचक एवं शायर प्रो. उन्वान चिश्ती ने लिखा कि " सरवर नगीनवी उर्दू के उन छद्म शायरों में से एक हैं, जिन्होंने प्रशंसा और प्रसिद्धि से दूर रहकर उर्दू ग़ज़ल के निगारख़ाने में अपने ख़ून ए जिगर से रोशनी की है। सरवर नगीनवी ने बहुत ही खूबसूरती से अपनी शायरी में अपने जीवन के अनुभवों को शायरी का हिस्सा बनाया है। उन्होंने जीवन के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यथार्थ की असंख्य स्थितियों को सुंदर स्वर में काव्यात्मक रूप दिया है। सरवर नगीनवी की उदात्त कल्पना, सहजता, दुर्लभता, व्यापकता और गहराई, अनुभवों और अवलोकनों, भावनाओं और भावनाओं का प्रतिबिंब उनकी कविताओं में प्रमुख रूप से यहां दिखाई देता है।" सरवर नगीनवी की शायरी के बारे मेंं निश्तर खानक़ाही लिखते हैं कि "सरवर नगीनवी के यहां शायरी ना महज़ तफरी का वसीला है और ना ज़वाल पज़ीर मआशरे में पैदा हुई ज़हनी फ़रार की कोई सूरत बल्कि यह शायरी वोह है जिसके सोते हकीकी जज्बात और महसूसात की धरती से फूटे हैं यह शायरी वोह है जो नए और पुराने फैशन के ज़ेरे असर नहीं लिखी गई है बल्कि वह है जिसने शायर को लिखने पर ख़ुद मजबूर किया है।" डॉ. खलीक अंजुम के अनुसार, सरवर नगीनवी की शायरी में उर्दू भाषा अपनी विशिष्टता और सुंदरता के साथ चमकती है। 
 सरवर नगीनवी उर्दू के अग्रदूतों में से रहे । नवंबर 2024 में उनकी अंतिम गज़ल "ऐवान ए उर्दू दिल्ली" पत्रिका के प्रकाशित हुई। फरवरी 2025 में उन्होंने" ऑल इंडिया मजलिस तहफ्फुज ए उर्दू" का गठन किया था और आर्थिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उर्दू के अस्तित्व और विकास के लिए तैयार रहने की सलाह दी थी। नगीनवी ने उर्दू अकादमी का दिल्ली मुशायरा, गालिब अकादमी दिल्ली का नए पुराने चिराग मुशायरा, दिल्ली का लाल किला मुशायरा के अलावा मुंबई, झारखंड, लुधियाना और उत्तर प्रदेश में हुए ऑल इंडिया मुशायरों के साथ आल इंडिया रेडियो नजीबाबाद में अपने शायराना कलाम के जौहर दिखाएं और श्रोताओं की खूब दाद हासिल की। सरवर नगीनवी ने एक छोटे से गांव कोटरा में कई ऑल इंडिया मुशायरे कराए, जिसमें सरदार करनैल सिंह पंछी, डॉक्टर मीना नकवी, इंजीनियर अनवर कैफी, शकील जमाली, गुलजार ज़ुत्शी देहलवी, तरन्नुम कानपुर, साक़िब गंगोही, शकील जमाली, अबुज़र नवेद, अतहर शकील  जैसे विख्यात शायरों को कलाम पढ़ने का मौका दिया। सरवर नगीनवी ने राजनीति में भी अपना भाग्य आजमाया और  धामपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडा। चौधरी अजीत सिंह, काजी रशीद मसूद,शरद यादव, आफाक़ अहमद खान, हेमवती नंदन बहुगुणा, रामविलास पासवान, बाबू क्रांति कुमार के वह काफी करीब रहे। उर्दू, पिछड़ों, बुनकरो और विशेष रूप से अंसारी बिरादरी के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस, ऑल इंडिया मोमिन अंसार फ्रंट के कई सम्मेलन उन्होंने कराये । पसमांदा तबको़ में तालीमी बेदारी के लिए उन्होंने कई शैक्षिक संगठनों का भी गठन किया। हाली जूनियर हाई स्कूल की स्थापना की। अल्ताफ हुसैन हाली से वह बेहद प्रभावित रहे हैं और हाली के नाम से कई बार उन्होंने सेमिनार भी कराए। राष्ट्रव्यापी पहचान बनाने के बावजूद सरवर नगीनवी अपने गांव कोटरा की उलझनों में जीवन भर उलझे रहे जिससे उनका कैरियर प्रभावित हुआ । आखिर 6 मार्च 2025 को दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली और उनके साहित्यिक, सामाजिक संघर्षों के प्रयासों पर विराम लग गया। 7 मार्च शुक्रवार कोटरा गाँव में सुपुर्द ए खाक किया गया। 
सरवर नगीनवी के चंद अशआर आपकी भी नज़र:-
बनती है दिल की चोट, लबों पर मेरे हंसी, 
जाऊंगा अपने साथ ही, मैं यह हुनर लिए। 
कौन अपना है, किसे आज पराया कहिए, 
आज के दौर में इंसान को, तन्हा कहिए। 
अब ज़माने में कहां अमनो सुकूं मिलता है, 
देखिए जिसको, उसे दर्द की दुनिया कहिए। 
जख्मों की तेज आग जलाएगी क्या मुझे, 
चिंगारियों में खेल के शोला हुआ हूं मैं। 
तारीख बन के सामने आएगी एक दिन, 
सैय्याद कर रहा है जो अहले चमन के साथ। 
रात आए तो तेरी याद की खुशबू फैले, 
दिन जो निकले तो तेरे अक्स को मंजर दे दे। 
 ज़ख्म ही ज़ख्म हैं सरवर के बदन पर यूं तो, 
 ज़ख्मे ताज़ा के लिए और भी नश्तर दे दे। 
आईने बेनूर हो जाते हैं उसको देखकर, 
तुमने समझा ही नहीं है आईनो का इज़्तराब। 
कत्ले नाहक़ पर किसी की जब नहीं खुलती ज़बां, 
बोलने लगता है सरवर खंजरों का इज़्तराब। 
तारीकियों में गुम है नजा़रों की कायनात, 
किस सिम्त जा रहा हूं मैं हुस्ने नज़र लिए। 
किन अदाओं से सजा है गुलिस्तां मेरे लिए, 
 ज़र्रा ज़र्रा बन गया बर्क़ ए तपां मेरे लिए। 
 चले भी आओ मोहब्बत की बात हो जाए, 
 हसीन रात है इससे ज्यादा क्या कहिए। 
आलेख: डॉ. शेख़ नगीनवी 
9412326875




 

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