पाकिस्तान जाकर जासूस करने वाला मनोज दीक्षित







 पाकिस्तान में भारत के जासूस को 14 साल मिली थी यातनाएं    -देश की सुरक्षा एजेंसी रा के लिए परिवार व देश छोड़ा               -वापस आएं तो ना एजेंसी, ना सरकार ने ली कोई सुध                  -देश को जीवन समर्पित करने वाला था एजेंट , सिस्टम से हारा                               - पाकिस्तान से तनाव के बीच नजीबाबाद के मनोज दीक्षित के संघर्ष की यादें हुई ताजा      ----------------------------------------- पुलवामा में आतंकियों द्वारा पर्यटकों की हत्या किए जाने के बाद आज जब भारत व पाकिस्तान के टकराव व संघर्ष चल रहा है। भारत सरकार द्वारा पाक को सबक सिखाने के लिए कड़े व प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। ऐसे में नजीबाबाद के उस नौजवान मनोज दीक्षित की यादें ताजा हो गयी जिसने परिवार को बिना बताएं देश प्रेम व भक्ति के लिए देश की सुरक्षा एजेंसी अनुसंधान एवं विश्लेषण विंग ' रा’ का सदस्य बनकर पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश में रहकर भारत के लिए जासूसी करने का जानलेवा जोखिम उठाया। स्नातक पास मनोज दीक्षित ने रा एजेंसी के मानकों पर खरा उतरते हुए  प्रशिक्षित होकर 1983 में पाकिस्तान में यूनूस नाम से दाखिल होकर पाक के  मदरसे के बच्चों को उर्दू व फारसी की तालिम दी।  बताते हैं वह उर्दू व फारसी व मुस्लिम रीति रिवाज,धार्मिक कर्म में इतने पारंगत हो गये उन पर किसी को शक नहीं हुआ। रा एजेंट के रूप में मनोज दीक्षित ने पाकिस्तान के विभिन्न नगर व गांव में रहकर महत्वपूर्ण गोपनीय सूचनाएं भारत सरकार व एजेंसी को दीं। 23 जनवरी 1992 को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने मनोज दीक्षित को सिंध प्रांत से शक होने पर गिरफ्तार कर लिया। बस यहीं से पाकिस्तान की एजेंसी व पुलिस का भयानक चेहरा सामने आ गया। मनोज दीक्षित को बिना सोएं लगातार पूछताछ, मारपीट,गाली गलौज का सामना करना पड़ा यहां तक आईएसआई,स्थानीय जांच एजेंसी व पुलिस की पिटाई,बिजली करंट,लगातार खड़े रखना,खाना पानी ना देना, सर्दी में बर्फ पर लिटाना, नंगा कर घुमाते हुए बस एक ही दबाब रहा भारत को कौन कौन सी सूचना,तथ्य भेजे हैं तुम्हारे साथ ओर कौन जासूस पाक में छिपे हैं। किस मकसद से पाकिस्तान आएं हो। तमाम यातनाओं के बाद भी मनोज दीक्षित देश प्रेम के आगे ना झूठे ना टूटें हां अधिक पीड़ा होने पर कुछ बातें घुमा फिराकर की। मनोज दीक्षित ने देश के लिए खुफिया जानकारी पाने को आईएसआई व अफगानिस्तान में कबिलाई गुटों में भी घुसपैठ कर ली थी। चार वर्ष की कड़ी यातनाओं के बाद उन्हें पाक  न्यायालय ने पेश किया गया जहां से कोर्ट मार्शल किया गया तब से दस वर्ष तक पाकिस्तान पुलिस की गिरफ्त में रहकर विभिन्न जेलों में नरकीय जीवन बिताया। मनोज दीक्षित का देश भक्ति  व प्रेम ही था कि वह दुश्मन देश पाकिस्तान में 14 वर्ष यातनाएं झेलने के बाद भी ना टूटें ना ही झूकें। पाकिस्तान पुलिस ने कोई सफलता ना मिलने पर मनोज दीक्षित को पाक सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया जहां तमाम जिरह के बाद कोई ठोस सबूत ना मिलने पर 23 मई 2005 में उन्हें भारतीय बाघा बोर्डर पर आजाद कर दिया। अचानक नजीबाबाद घर पहुंचे तो परिवार को पाकर वह अपने आंसूओं को ना रोक सकें। पिता,माता व भाई भी अपने कलेजे के टुकड़े को कुशल पाकर ईश्वर का धन्यवाद करने लगे लेकिन जब मनोज दीक्षित की जुबां से पाकिस्तान में 14 साल जासूसी करने व यातनाएं झेलने की कहानी सुनी तो परिजनों के रोगंटे खड़े हो गये।    -------------------------------------     शिक्षक पिता को बुढापे में बेटे का मिला कुछ समय सहारा            -------------------------------------- एमजीएम इंटर कालेज नजीबाबाद में प्रवक्ता रहे विद्या सागर दीक्षित के बड़े पुत्र मनोज दीक्षित के अचानक गायब होने से पिता के साथ मां ओम कुमारी टूट चुके थे लेकिन मनोज दीक्षित की वापसी से माता पिता का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बूढ़े शरीर में खून बढ़ने से रंगत आने लगीं। लेकिन  वह ज्यादा समय घर नहीं  रहें और ना ही वह बूढ़े माता पिता पर बोझ बनना चाहते थे। भविष्य तलाशने बाहर निकल गये। मनोज दीक्षित के घर से जाने पर पिता ने 22 नबम्वर 2008 को दम तोड़ दिया। ----------------------------------------             देश की सुरक्षा एजेंसी रा व सरकार ने नहीं  ली सुध नहीं -------------------------------- -----                  मनोज दीक्षित ने वापस वतन आकर सुरक्षा एजेंसी रा के कार्यालय पहुंचकर अपनी आमद कराने का प्रयास किया लेकिन किसी ने उनकी ना तो पीड़ा सुनी ना पक्ष और ना ही जरूरत को सुना‌‌ । देश के गृह मंत्रालय में भी उनकी एंट्री नहीं हुई ‌ यहां तक प्रदेश के मुख्यमंत्री व देश के प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे आवेदन को भी रद्दी की टौकरी में डाल दिया।जिस देश भक्ति के लिए देश व एजेंसी के लिए जीवन दांव पर लगाकर तमाम यातनाएं झेलीं उसी देश में उसकी आवाज को ना सुनने के दर्द व लगातार भटकने के बाद टूट चुके मनोज दीक्षित ने सरकारी तंत्र से मुंह मोड़ लिया।                     ----------------------------------------  पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसी आईएसआई व अलकायदा तक अपनी घुसपैठ करने वाले मनोज दीक्षित को अपने ही देश में  जो दर्द व अपेक्षा मिली उसे वह कभी नहीं भूला सकते हैं । एक टीवी चैनल को दिए  साक्षात्कार में उन्होंने कहां  यह देश का दुर्भाग्य है देश के लिए जान की बाजी लगाने वाला देशभक्त पेट पालने के लिए भीख मांग रहा है। सरकार के दरवाजे खटखटा रहा है और उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं उसके बाद भी वह कहते हैं यदि दोबारा अवसर मिला तो वह अपने वतन के लिए अपनी जान दे देगा।                         --------------------------------------- रोजगार व मदद को  दर दर भटके मनोज दीक्षित         -----------------------------------------देश के लिए जीवन दांव पर लगाने के बाद मनोज दीक्षित दुश्मन देश पाकिस्तान में तमाम यातनाओं व अमानवीय उत्पीड़न के आगे ना झूठे ना टूटें लेकिन अपने ही देश के सरकारी सिस्टम के आगे झूक  गये।  उपेक्षित, दर्द भरा जीवन व थके पीड़ित शरीर को देकर वह लखनऊ की सड़कों पर भटकते रहे। उत्तर प्रदेश की सरकार से मदद की गुहार लगाई लेकिन निराशा ही हाथ लगी।   -----------------------------------------                          जीवन साथी मिली तो खुशियों कम ना भूलाने वाला हूं दर्द मिला -----------------------------------------  मनोज दीक्षित ने शेष बचे जीवन में खुशियां लाने को लखनऊ रहते हुए तरीन से विवाह किया। दोनों ने साथ जीने मरने व एक दूसरे के दुख दर्द में शामिल होने का संकल्प ले लिया । दोनों ने जीवन को पटरी पर लाने को रोजगार कर लिया लेकिन जीवन संगनी को कैंसर होने से उनका मंहगा इलाज कराने के लिए मनोज दीक्षित के सामने आर्थिक संकट आ गया। कोई सरकारी मदद, चिकित्सा सुविधा ना मिलने पर कुछ सामाजिक लोगों ने मदद की लेकिन मनोज दीक्षित 14 अप्रैल 2019 को अपनी जीवन संगनी तरीन को बचा नहीं सकें। ‌-----------------------------------------                  कोरोना में सरकारी तंत्र से हार गये मनोज दीक्षित                ----------------------------------------- सरकारी उपेक्षा व पत्नी के निधन से टूट चुके मनोज दीक्षित को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया‌ ‌ । निजि चिकित्सालय में कोरोना का उपचार कराने में अक्षम मनोज दीक्षित ने सरकारी चिकित्सालय में उपचार के लिए प्रयास किया लेकिन उन्हें भर्ती नहीं किया गया। वह पीड़ित रहते सीएमओ लखनऊ के कार्यालय में निशुल्क उपचार के लिए प्रार्थना पत्र देकर गुहार लगाते रहे। दो सप्ताह बाद जब सीएमओ की उपचार की अनुमति मिली तब तक देश भक्त मनोज दीक्षित ने यह दुनिया हमेशा के लिए छोड़ दी‌ । पाकिस्तान जैसे दुश्मन व क्रूर देश से  हार ना मानने वाला जांबाज देश भक्त मनोज दीक्षित अपने ही देश में सरकारी सिस्टम से हार गया।   -----------------------------------------                        देश भक्त मनोज दीक्षित  पर नहीं  बन पाई फिल्म                      ---------------------------------------- रा एजेंट मनोज दीक्षित की कहानी देशभक्ति ल प्रेम का अनुकरणीय उदहारण है ‌ ‌ उनके जज्बे से प्रभावित होकर शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी   स्वरूप  ने  उन पर  देशभक्ति की एक प्रेरणादाई फिल्म बनवाने के लिए  महाभारत में  दुर्योधन का किरदार निभाने वाले  पुनीत इस्सर के सामने  प्रस्ताव रखा। मनोज दीक्षित के छोटे भाई भाजपा के पूर्व नगर अध्यक्ष  मुकुल रंजन दीक्षित ने बताया शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप  ने भाई मनोज दीक्षित को अपने खर्च पर हवाई जहाज से फरवरी 2021 को कलकत्ता बुलाकर पुनीत इस्सर से भेंट कराकर उनकी जांबाजी की कहानी मनोज दीक्षित की जुबानी सुनवाई। पुनीत इस्सर ने भी मनोज दीक्षित के जीवन पर फिल्म बनाने व फिल्म नगरी मुम्बई में काम दिलाने का भरोसा दिया था लेकिन जीवन संगनी को खोकर टूट चुके मनोज दीक्षित ने कुछ समय बाद ही इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए विदा ले ली।                                                * मुकेश सिन्हा

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