फ़िक्र बिजनौरी
क़ाज़ी रियासत हुसैन ( फ़िक्र बिजनौरी ) उर्दू के मुंफरिद शायर थे।उनकी अपनी अलग पहचान थी। वे शायद पहले ऐसे शायर हैँ,जिन्होंने शेर तो सैकड़ों कहे लेकिन कभो कोई मुकम्मल ग़ज़ल या नज़्म वगैरा नहीं कही। फ़िक्र साहब मुताफर्रिक शेर कहते थे। वे निहायत शरीफ,खामशी पसंद,नेक दिल और मिलनसार इंसान थे। उनका आबाई गांव हताई शेख था।वे जून 1954 को बिजनौर के मोहल्ला क़ाज़ीपाड़ा में आकर बस गये थे। फ़िक्र साहब दीनदार थे।मुआशरे की इस्लाह उनकी फ़िक्र पर हावी थी। यही वजह रही कि उनके ज़्यादातर शेर इस्लाही है।
फ़िक्र साहब शायरी को हद से ज़्यादा ज़िम्मेदारी का काम समझते थे। वे रदीफ़ क़ाफिये की बंदिश से आज़ाद थे। उन्होंने कभी ग़ज़ल तो क्या दो शेर भी नहीं कहे। वे सिर्फ एक शेर कहते थे।उसे भी बहुत सोच समझ कर और मशवरा करके फाइनल करते थे।फ़िक्र साहब का एक ही शेर मुकम्मल ग़ज़लों और नज़्मों पर भारी होता था। उनके बहुत सारे शेर बहुत मशहूर हुए।
फ़िक्र साहब के इस शेर - टेलीवीज़न की बदौलत फ़स्ल जल्दी पक गई/बच्चा-बच्चा शहर का बालिग़ नज़र आने लगा-- ने तो गैर मुल्कों तक के शायरों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। उनके कई और शेर भी बहुत मक़बूल हुए।
रियासत हुसैन फ़िक्र बिजनौरी के दो शेरी मजमूए "सच्चे मोती"और "दो लफ्ज़"भी छपे,जिन्होंने खातिर ख्वाह शौहरत हासिल की। 2003 में मंज़रे आम पर आये सच्चे मोती को तो उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी से इनाम भी मिला। फ़िक्र साहब के इन दोनो मजमूओ की खास बात ये है कि इनमे फ़िक्र साहब ने अपने एक एक शेर को यकजा करके उन्हें कोई एक उनवान दिया है। बतौर मिसाल कयामत, ज़िन्दगी, नज़र,पानी,मुफलिसी,ज़मीर वगैरा उनवान से बहुत सारे शेर एक ही जगह दिये गये हैँ। फिक्र साहब का मानना था कि मुकम्मल ग़ज़ल में भी तो एक दो शेर ही अच्छे होते है,फिर क्यों न अच्छा सा एक ही शेर कहा जाये।मुशायरो के मारूफ नाज़िम अनवर जलालपुरी साहब फ़िक्र साहब से बहुत मुताअस्सिर थे। वे तक़रीबन हर मुशायरे में निजामत के दौरान फ़िक्र साहब का टेलीवीज़न वाला शेर कोट करते थे। कई और बड़े नामचीन शायर जैसे मैराज फैज़ाबादी,हिलाल स्योहारवी,बीना बिजनौरी,बेकल उत्साही,वाली आसी,शमीम जयपुरी,सागर आज़मी व मलिक ज़ादा मंज़ूर अहमद वगैरा भी रियासत हुसैन फ़िक्र की शायरी को सराहते थे। फ़िक्र साहब एक शेर के शायर के नाम से मशहूर थे।
रियासत हुसैन फ़िक्र साहब 26 जुलाई 2006 को इस दार-ए-फानी से कूच कर गये। अल्लाह पाक उनके दरजात बुलंद फरमाए। मोला उन्हें जहां रक्खे खुश रक्खे।
मरगूब रहमानी
(9927653786)
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