रियाज अहमद रियाद

 साहिल पे आके उसने जो आवाज़ दी रियाज़

मै डूबने लगा था उभरना पड़ा मुझे

 मुहब्बत के मुख्तलिफ रंगो में लिपटा यह खूबसूरत शेर बिजनौर के मोहल्ला भाटान क़ाज़ीपाड़ा में रहने वाले संजीदा शायर रियाज़ अहमद रियाज़ बिजनौरी का है। रियाज़ साहब उप्र परिवहन विभाग में फोरमैन के उहदे पर फाइज़ रहे। नौकरी की मसरूफियात के बावजूद वे शायरी करते रहे। शेरी महफ़िलों में शिरकत को वे फर्ज़ जैसा समझते थे। नौकरी से सुबुकदोशी के बाद तो उन्होंने खुद को पूरी तरह शायरी के हवाले कर दिया था। उनकी शायरी में मुहब्बत और ज़िंदगी के मुख्तलिफ रंग मिलते हैं। सादा मिज़ाज रियाज़ साहब जब शेरी निशस्तो में अपना कलाम पढ़ते थे तो सामईन उनकी पज़ीराई किये बिना नहीं रहते थे। रिटायरमेंट के बाद रियाज़ साहब का ये मामूल था कि वे अपने शायर दोस्तों और शायरी सुनने का शौक़ रखने वालों से मिलने उनके घर जाते थे और उनसे शायरी पर गुफ्तुगू करते थे। एक बार जब वो मेरे घर तशरीफ़ लाये थे,तो उन्होंने बताया था कि उन्होंने अपने अज़ीज़ों की एक फहरिस्त बना रखी है। सबसे मुलाक़ात के दिन तय हैं।

रियाज़ साहब नेक दिल इंसान थे।बड़ों का एहतराम और छोटो से मुहब्बत करते थे। वे जब भी किसी से मिलने जाते,मिज़ाजपुर्सी के बाद सिर्फ शायरी पर बात करते थे। दुनियादारी पर चर्चा करने से परहेज़ करते थे।रियाज़ साहब ने भरपूर शायरी की। उन्होंने सभी तरह के शेर कहे और खूब दाद बटोरी। वे अपना मजमुआ-ए-कलाम छपवाना चाहते थे लेकिन किन्ही वजूहात के बाइस उनकी ये ख्वाहिश पूरी न हो सकी। 

15 फरवरी 2016 को क़रीब 87 साल की उम्र में रियाज़ साहब इस दारे फानी से कूच  कर गये। अल्लाह पाक उन्हें जहाँ रक्खे खुश रक्खे। शायरी हॉउस इंडिया की जानिब से रियाज़ साहब को दिली खिराज-ए-अक़ीदत।


रियाज़ अहमद रियाज़ साहब के ये कुछ शेर हैं -मुलाहिज़ा फरमाएं।

दुआएं दीजिये बीमार के तबस्सुम को

मिजाज़ पूछने वालों की आबरू रख ली


ये किस मुकाम पे ले आया इंतेज़ार मुझे

वो आ भी जाएं तो आये ना एतबार मुझे


चमन में रह के मेरी आरज़ू यही है रियाज़ 

कि में बहार को देखा करूँ और बहार मुझे


ये मुंडेरों पे जो बैठें हैं शकिस्ता पर हैं 

जिन के पर होते हैं परवाज़ किया करते हैं 

मरगूब रहमानी

9927 785 786


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