दशहरा नही मनाते बिजनौर के राजपूत
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सैकड़ों वर्षों से दशहरा नहीं मनाते बिजनौर के ये राजपूत
बिजनौर | अनुप चौधरी
बिजनौर जिले में कुछ खास राजपूत आज भी ऐसे हैं, जिनके यहां सैकड़ों वर्षों से दशहरा नहीं मनाया जाता। इसके पीछे एक बहुत बड़ी कलंकगाथा की दास्तान मानी जाती है। ये जिले की चांदपुर तहसील के गांव सैदवार और स्याऊँ के वो राजपूत है, जिनके वंशजों ने ही कभी इन गांवों को बसाया था। इनके बारे में
इतिहासकार डॉ. ईश्वर सिंह मडाढ की किताब ‘राजपूतों का इतिहास और वंशवृक्ष’ में भी जिक्र है। इतिहासकारों के अनुसार खिलजी वंश के बाद और मुगलकाल के समय के थोड़ा पूर्व नीमराणा रियासत (आज का नींडढ) थी। खिलजी व अन्य अत्याचारी के चलते वहां के साधु संत एकत्र होकर कार्तिक पूर्णिमा पर गढमुक्टेश्वर पहुंचे थे, वहां आए हुए राजस्थान के राजपूत परिवारों सेमदद मांगी थी। 12 राज परिवार उस समय यहां आए और यहां आकर अलग-अलग रियासतों पर
कब्जा किया था। इनमें से सैदवार और स्याऊँ में कुशवाहा राजपूत बसे थे। सैदवार निवासी नरसिंह आदि अधिवक्ता कुलदीप सिंह बताते हैं, कि इस युद्ध के अलावव में यहां एक और युद्ध हुआ था।
युद्धिराम के बावजूद दूसरे पक्ष ने नवमी पर यानि दशहरा से पूर्व रात में ही हमला बोलकर 378 को भी मौत के घाट उतार दिया था। कोई पुरुष बड़ा या बच्चा अथवा गर्भवती महिला तक से नहीं छोड़ी गयी थी। मायके गई हुई दो तीन महिलाओं में से एक गर्भवती महिला भी थी, जिसके बाद में पुत्र हुआ। उस पुत्र से ही दोबारा वंश आगे चला और यह लाल कुशवाहा कहलाए। तब से इन दोनों गांवों के इन राजपूतों के यहां दशहरा नहीं मनाया जाता। अगर किसी के यहां दशहरा के दिन बेटे ने जन्म लिया हो तो उनके यहां दशहरा मनाना शुरू कर दिया जाता है।
दास्तान
युद्धिराम का उत्प्रेरण कर दशहरा से पूर्व रात में कलऊँआम में मारे गए थे 378 लोग
मारके गए हुए कई गर्भवती महिला से हुए पुत्र से चला था दोबारा वंश
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