28 ke Amar Ujala me prakashit
मैं रेडियो सिलोन से आपका गोपाल’
अशोक मधुप
बिजनौर। ‘मैं रेडियो सिलोन से आपका गोपाल’। आज के दिन सन 1931 में बिजनौर के चांदपुर नगर में जन्मे गोपाल शर्मा ने आवाज की दुनिया में वो नाम रोशन किया, जिसका दीवाना उस दौर का हर गायक और फिल्म कलाकार रहा। तमन्ना भी यह होती थी कि गोपाल उन पर नजरें इनायत कर दें तो गाड़ी चल निकले।
रेडियो युग में आकाशवाणी दिल्ली से शाम के समय आने वाले किसान भाइयों के कार्यक्रम को सुनने के लिए चौपाल या रेडियो स्वामी के घर पर भीड़ जमा हो जाती थी। सन 1960 के आसपास ‘रेडियो सिलोन’ भारत ही नहीं, एशिया में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम प्रस्तुत करता था। विविध भारती शास्त्रीय संगीत पर आधारित कार्यक्रम पेश करता था जबकि रेडियो सिलोन शुद्ध मनोरंजन के लिए जाना जाता था। उस पर भारतीय फिल्मों के सभी नगमे सुनाई देते थे। गोपाल सन 1956 से 24 अप्रैल 1967 तक 11 साल लगातार इस स्टेशन के हिंदी कार्यक्रमों के प्रस्तोता रहे। गोपाल अपनी कामयाबी का राज समय की पाबंदी को देते हैं। वे कहते हैं कि मैं प्रत्येक कार्यक्रम में निर्धारित समय से पहले पहुंचता रहा हूं। रेडियो सिलोन के 11 साल के दौर में कभी लेट नहीं हुआ। आजकल मुंबई में रह रहे गोपाल कमजोर हो गए हैं। उन्हें इंदौर की संस्था ‘सूत्रधार’ नए साल की पूर्व संध्या पर उन्हें सम्मानित करेगी।
नौलखा बाग' खो रहा है अपना मूलस्वरूप..
उत्तर प्रदेश के बिजनौर में दुनि या का अकेला नौलखा बाग का अस्तित्व तो है बिजनौर ! उत्तर प्रदेश के बिजनौर में दुनिया का अकेला नौलखा बाग का अस्तित्व तो है लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी और स्थानीय लोगों की अवैध खेती के कारण यह अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है। ऐतिहासिक उल्लेख के अनुसार बंगाल विजय के बाद यहां आए शाहजहां ने यह पूरा क्षेत्र जिसे पहले गोवर्धनपुर कहा जाता था शुजात अली को ईनाम में दे दिया। शुजात अली ने बादशाह का सम्मान रखते हुए इस क्षेत्र का नाम जहानाबाद रखा। इसी क्षेत्र में यह नौ लखा बाग स्थित है। लगभग दस एकड़ क्षेत्र, चारों ओर मजबूत दीवार और बीस फुट ऊंचे भव्य प्रवेश द्वार लिए इस बाग को शुजात अली के मकबरे के नाम से भी जाना जाता है। शुजात अली के अलावा उनकी पत्नी और दासी के भी मकबरे हैं। इसके अलावा एक महान पीर जाहर दीवान की भी मजार है। शुजात अली ने बाग परिसर में मस्जिद का निर्माण कराया था जो अपने समय में विश्व की पहली ऐसी मस्जिद थी जहां नमाज के पहले बजू गंगा जल से किया जाता था। गंगा नदी तक जाने के लिए मस्जिद के आंगन से विधिवत पैडियां बनाई...
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