नगीना का जलियांवाला बाग

नगीना का जलियांवाला बाग
नगीना का 'जलियावाला बाग' है पाईबाग
नौशाद अंसारी, नगीना, बिजनौर :

पंजाब के जलियावाला बाग में 1919 में हुए नरसंहार के जैसी घटना को ब्रिटिश हुकूमत ने बिजनौर में काफी पहले अंजाम दिया था। 1858 में नगीना में पाईबाग में अंग्रेजी हुकूमत ने अनेक लोगों पर गोलियां बरसाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना की एकमात्र निशानी के रूप में बचे एतिहासिक कुएं का आज तक संरक्षण नहीं किया जा सका है।

इतिहास के जानकारों के अनुसार प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम लड़ रहे शेरकोट निवासी माढ़े खां ने अपने साथियों के साथ नगीना में मोर्चा कायम करने का फैसला किया। 21 अप्रैल 1858 को जब अंग्रेजों की फौज पाईबाग के निकट पहुंची तो घात लगाकर बैठे आजादी के दीवाने इनामत रसूल व जान मुहम्मद महमूद ने फौज पर बंदूक से फायर कर दिया। इस पर सरकारी फौज ने गोलियां बरसाकर अनेक को मौत के घाट उतार दिया। इनायत रसूल अपने साथी सहित शहीद हो ए। गोलाबारी में घायल अनेक व्यक्ति पाईबाग में स्थित कुंए में जान बचाने को कूद गए, लेकिन अधिकांश की मौत हो गई।

एक अनुमान के अनुसार इस घटनाक्रम में करीब डेढ़ सौ लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। उस दौरान जनपद में सदर अमीन रहे सर सैय्यद अहमद खां ने भी अपनी किताब सरकश-ए-बिजनौर में इस घटना का जिक्र किया है।

जलिया वाला बाग कुएं के नाम से जानते हैं लोग

नगर की पंजाबी कालोनी से सटे मोहल्ला लाल सराय में स्थित एतिहासिक जलिया वाला बाग कुएं का असली नाम पाई बाग है, लेकिन लोग जलिया वाला बाग के नाम से ही इसे जानते हैं। इस घटना की एकमात्र निशानी के रूप में बचे एतिहासिक कुएं का संरक्षण नहीं किया गया है। यह पूरी तरह उपेक्षा का शिकार है। नगीना व जनपद के प्रतिनिधियों ने इस कुएं की सुध नहीं ली। इसे लेकर नागरिकों में रोष है।

'तारीखे अदब जिला बिजनौर' और ऐतिहासिक झांकियां जिला बिजनौर ' के लेखक शकील बिजनौरी ने कहते हैं कि जलियावालां बाग हत्याकांड से डेढ़ सदी पूर्व जिले में ऐसी घटना घटित हुई थी। जलियावाला बाग में जहां स्मारक बना है और लोग शहीदों को याद करते हैं, लेकिन यहां ऐसे स्थल को भुला दिया गया है। ऐसे ही हालत रहे तो एक दिन इसका नामो-निशान भी नहीं रहेगा। ऐसी धरोहर का संरक्षण होना चाहिए, जिससे आने वाली पीढि़यां इसे याद रख सकें।
14 अगस्त 2013 के दैनिक जागरण से साभार

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