महंत पानप दास की समाधि धामपुर

 । महंत पानप दास महराज की गद्दी और समाधि पर हर वर्ष लगने वाले मेले की कहानी बड़ी अद्भुत और चमत्कारी है। फाल्गुन मास में कृष्णपक्ष की सप्तमी को हर वर्ष लगने वाले मेले में भक्त प्रसाद चढ़ाकर अपने और परिवार की उज्जवल भविष्य की कामना की मन्नत मांगते हैं।  दो दिन महंत की गद्दी स्थल पर मेला लगता है। समाधि स्थल पर भंडारा चलता है।

महंत पानप दास की महाराज की चमत्कारी कहानी आज से करीब 350 साल पुरानी है। वर्तमान में गद्दी के उत्तराधिकारी के रूप में महंत रामदास महाराज बताते है कि महंत पानप दास वास्तव में सच्चे संत थे। आज के संत उनके आदर्शों पर चलकर संतई करने का प्रयास कर रहे हैं। महंत पापन दास का जन्म सही मायनों में कब और कहां हुआ है किसी को पता नहीं है, लेकिन उनका जन्मस्थान राजस्थान के गांव तिजोरा में माना जाता है। वर्ष 1720 में जब पानप दास भ्रमण करने को धामपुर आए थे, तो धामपुर में वर्तमान में लाज वालों के परिवार के बुजुर्गों की ओर से महल का निर्माण कराया जा रहा था। उन्होंने इस महल में राज गिरी का काम किया। उनके राज गिरी के काम को देख कर अन्य काम कर रहे राज मजदूर उनसे घृणा करने लगे थे। तभी राज मजदूरों ने स्वयं एक दीवार को तिरछा कर इसके लिए महंत पानप दास को जिम्मेदरार ठहरा सेठ से शिकायत की तो सेठ से संत को डांटा, लेकिन उन्होंने बुरा नहीं माना। सेठ के डांटने के बाद संत ने कहा कि दीवार को उनके द्वारा तिरछा नहीं किया , लेकिन जब अन्य मिस्त्री कह रहे हैं तो वह उसे सीधी कर देते हैं। तभी संत ने हाथ लगाकर उक्त दीवार को सीधा कर दिया। सेठ ऐसा देख हैरान हो गए। उनके पैरों में गिर गए। माफी मांगने के बाद सेठ से उस महल को तैयार कर महंत पानप दास को सौंप दिया। इसी महल में महंत पानप दास की गद्दी है। इस पर वह पूजा करते थे।महंत रामदास बताते है कि ऐसा की वाकया नजीबाबाद के नबाव नजीबुद्दौला के साथ हुआ था। किसी ने महंत पानप दास के बारे में नजीबुद्दौला को बताया कि धामपुर में एक संत के पास खूबसूरत बैलों की जोड़ी है। नजीबुद्दीला ने बैलों की जोड़ी को मंगाने के लिए अपने लोगाें को हुकुम दे दिया। आश्चर्य की बात यह है कि नवाब के लोग बैलों की जोड़ी लेने का धामपुर नहीं आ सके। बैलों की जोड़ी स्वयं दिन होने पर नवाब को उनके महल में मिल गई। नवाब ने महंत की एक और परीक्षा ली। यह परीक्षा अलग प्रकार की थी। नवाब ने महंत के पास एक पवित्र पशु का मीट उपहार के रूप में भेजा। नवाब महंत के चमत्कार देखने को स्वयं भी यहां आए। उपहार से भरे छबड़े को देख महंत ने नवाब से कहा कि वह 12 पीस को छोड़कर बाकी प्रसाद भक्तों में बांट दें। जब नवाब ने प्रसाद वितरण किया तो वे छबड़े में मिठाई के पीस देख कर हैरान हो गए। प्रसाद वितरण के बाद जब वह प्रसाद के रूप में बचे पीसों को मिठाई मान घर ले गए तो वहां देखने पर वह पीस अपवित्र जानवर के मीट के पीस बन गए थे। ऐसी ही कहानी हल्दौर के नवाब रहे मान सिंह के बारे में कही जाती है। वर्ष 1730 के आसपास की बात है। हल्दौर के एक किसान वक्त बल थे। उनके कोई संतान नहीं थी, लेकिन वक्त बल संतों की सेवा किया करते थे। महंत के लिए हर रोज गायों का दूध लेकर आना उनकी प्राथमिकता हो गया था। महंत के आशीर्वाद से वक्त बल को मान सिंह के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। मान सिंह ऐसा प्रतापी नवाब हुआ जिसने हल्दौर रियासत की बागडोर संभाली।महंत रामदास बताते है कि महंत पानप दास की मृत्यु नहीं हुई। उनके द्वारा वर्ष 1774 में धामपुर में समाधि दी। इसी समाधि स्थल पर हर वर्ष मेला गलता है। महंत गद्दी के नाम से देश के कई प्रांतों में करोड़ों की जमीन जायदाद है।

सतीश शर्मा धामपुर 




20 फरवरी 2014 अमर उजाला मेरठ

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