महाभारत काल तक स्वर्ग या पहाड़ पर जाने का रास्ता बिजनौर से था
महाभारत काल तक स्वर्ग या
पहाड़ पर जाने का रास्ता बिजनौर से होकर ही बताया गया है। राजा दुष्यंत देवताओं के
बुलावे पर युद्ध करके इसी रास्ते से जाते और लौटते हैं।
सुहाहेड़ी के पास कश्यप ऋषि
का आश्रम बताया जाता है। सुहाहेड़ी के निवासी सेठ जयनरायण सिंह बताते हैं कि पूर्वज इस आश्रम के बारे में
बतातें आए हैं। यहां कुछ भी शेष नहीं। संभवतः यहा से बहने वाली मालन नदी की बाढ़
में किसी समय सब बह गया।इस आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत को शेर के दांत गिनता भरत मिलता है। यह ही उनका और शकुतंला का पुत्र है। इसी
के नाम पर बाद में देश का नाम भारतवर्ष पड़ा ।
द्रोपदी का मंदिर बरमपुर
में है। कहतें हैं कि र्स्वगा्रोहण के लिए पांडवों के
जाते समय द्रोपदी थक कर यहीं गिरी थी। यहीं उसकी मौत हुई थी ।
महाभारत काल में पहाड़ पर
जाने का स्वर्ग जाने
जाने का रास्ता बिजनौर से
होकर था ।हस्तिनापुर नरेश और वहां के व्यक्ति बिजनौर यहीं से होकर पर्वतों पर जाते
थे । दूसरी साइड में गंगा का बहुत बड़ा बहाव था और उसे बार-बार पार करना सरल नहीं
था हस्तिनापुर और बिजनौर के बीच में उस समय आवाजाही सरल थी । सैंधवार में कौरवों का आर्मी का हेड क्वार्टर था ।गुरु
द्रोणाचार्य का आर्मी ट्रेनिंग सेंटर भी यही था यही कौरव पांडव ने युद्ध कला सीखी
थी। विदुरकुटी शुक्रताल के बिल्कुल सामने और जनपद में पढ़ती है। कहा जाता है कि
महाराजा दुष्यंत देवताओं के बुलाने पर युद्ध के लिए बिजनौर होकर ही स्वर्ग जाते हैं । पांडव युद्ध की समाप्ति पर स्वर्गारोहण के लिए भी
इसी मार्ग से जाते हैं। स्वर्गारोहण के लिए पांडवों के जाते समय किरतपुर के पास बरमपुर नामक गांव में द्रौपदी बेहोश होकर गिर जाती है ।यहीं उसका निधन होता है। यहां द्रोपदी का प्राचीन मंदिर आज भी है ।उत्तर प्रदेश पर्यटन
विभाग ने कई साल पहले इस मंदिर और सामने बने ताल का सौंदर्यीकरण कराया। इन दोनों
कहानियों से पता लगता है उस समय पहाड़ों पर आने जाने का रास्ता बिजनौर की भूमि से होकर था ।यह यहीं से
सरल पढ़ता था ।हरिद्वार साइड से नहीं।
अशोक मधुप
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