बिजनौर और चित्रकार
बिजनौर और चित्रकार
डॉ. ऋचा शर्मा
बिजनौर जनपद मुरादाबाद मण्डल के उत्तर पश्चिमी किनारे गंगा नदी की जलधारा जनपद की पश्चिमी सीमा को निर्धारित करती है। यह स्थल रामायण, महाभारत, जैन, बौद्ध, ईस्लामिक, ब्रिटिश. संस्कृति का साथ से वर्तमान समय तक अपनी पहचान बनाए है। प्रस्तुत शोध पर बिजनौर जनपद की चित्रकला पर प्रस्तुत है, जिसमें चित्रकला की बात करें तो वर्तमान में यहाँ नांगल में स्थित ‘गंगा मंदिर’ जिसे पांडव कालीन (जिसे अलकापुरी या छोटा .काशी भी कहा जाता था) में प्राप्त होते हैं मंदिर तक पहुँचने पर सर्वप्रथम एक कुआँ प्राप्त होता है। जिसके आस-पास खोले बनी हुई हैं (जहाँ कहा जाता है कि यहाँ ऋशि महान आत्माएँ निवास करती है।) कुछ कदम चलने पर प्राचीन ‘शिव मंदिर’ भी शांत खड़ा दिखाई देता है, जो नगर शैली की विषेशताएँ समाये है। यह मंदिर चित्रकला के साथ-साथ स्थापत्य का सुन्दर उदाहरण है। मन्दिर की बाह्य दीवार पर कोई चित्रकारी नहीं है, परन्तु मन्दिर का दृश्य अद्भुत है। मन्दिर में प्रवेश करने पर सामने शिवलिंग है। जो प्राचीन बताया जाता है। मंदिर की छत व दीवारे चित्रकारी का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है। छत पर ज्यमिति आलेखन हुए है। आलेखन के मध्य कमलाकार आकृति है जिसके चारों ओर गोलाकार. आलेखन है। इसके ब्हाय नृत्य करती आकृति बनी हुई है, सम्पूर्ण आलेखन फूल पक्षीयों से सुसज्जित है। मन्दिर की दीवारों पर यद्यपि सफेदी हुई है, उसमें जगह-जगह जहाँ से प्लास्टर उखड़ गया है जिसमें अद्भुत चित्रकारी नजर आती हैं, जिसमें मानवाकृति जो अजन्ता की गुफा नं. 9 व 10 की याद दिलाती है। इन आकृतियों को देख है उनपर पूर्ण शोध करने की आवश्यकता है, आकृतियों व आलेखन में भरे रेखा व रंग भारतीय विशेशता समाहित किये हैं।
‘नगीना’ की काष्ठकला अपने में एक हजार साल पुराना इतिहास समाये है। यही तहसील नगीना अपनी काष्ठ कला के लिए अलग पहचान रखता है, जिसे विश्वपटल पर ‘वुड क्राफट सिटी’ के नाम से जाना जाता है। जहाँ के कारीगर लकड़ी को परम्परागत रूप से प्रयोग कर सुन्दर व आकर्षक वस्तुएँ बनाते हैं, इसका उद्योग का इतिहास मुगलकाल से शुरू माना जाता है। इस समय तलवारों के रास्ते पर नक्काशी और पच्चीकारी इस उद्योग की शुरुआत मानी जाती है। अँग्रेजों के समय बंदूक और छड़ी पर पीतल और हाथी दाँत से सजावट की जाने लगी जिसमें अनेक वस्तुएँ सज्जा कर बनाई जाने लगी। 1967 में जब अब्दुल रशीद यहाँ के कारीगर केा नेशनल अवार्ड मिला तो उस पर सबका ध्यान आकर्षित हुआ। अब्दुल रसीद, वशीर, अहमद और अब्दुल सलाम को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। यहाँ की काष्ठ कला में बने डिजाईन बेजोड़ हैं।
वेदनगर, विजयनगर से बिजनौर तक की यात्रा अपने आपमें एक अद्भुत इतिहास छिपाये, प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण नगरी कलाकारों को सदैव प्रभावित करती रही। कवि हो या लेखक काष्ठ, शिल्पी हो या हथकरघा कलाकार, ने मिलकर इस पवित्र भूमि पर अपनी कला को ऊँचाईयों पर पहुँचाया तो भला यहाँ के चित्रकार कैसे वंचित रह सकते थे। उन्होंने भी अपनी चित्रकारी से बिजनौर का नाम विश्वपटल पर अंकित करने में सफल रहे। बिजनौर के चित्रकार कला साधना में लगे हैं कि इतिहास को खंगालने के लिए अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार श्री अशोक मधुप जी के पास जाना ही उचित है, जो 45 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र के सलाका पुरुषों में गिने जाते हैं। सही जानकारी व उनका मार्गदर्शन ही श्रेष्ठ है, क्योंकि समय-समय पर चित्रकारों का मार्गदर्शन करना उनके कार्यों को समाज के सामने प्रस्तुत करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। जब उन्हें यह बताया गया कि बिजनौर के चित्रकारों का संग्रह किया जा रहा है तो उनकी प्रसन्नता देखने योग्य रही। अपने चिर-परिचित ठहाके के साथ वे अपने अतीत में चले गये। हंसने के बाद उनकी गम्भीर मुद्रा से मैं समझ गयी कि अब सागर से चुन-चुन कर मोती निकलने लगेंगे।
श्री सुशील वत्स- चाँदपुर के श्री रघुवीर सिंह के घर 19 फरवरी 1930 को सुशील वत्स जैसे प्रतिभाशाली बालक का जन्म हुआ। इनके पिता मण्डी धनौरा में मुख्य अध्यापक थे, जो दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र उकेरने में निपुण थे। परिवार के कलात्मक वातावरण का प्रभाव बालक पर पड़ा व उन्होंने चित्रकला को अपना ध्येय बनाया। निरन्तर कला साधना में लीन वत्स जी की कला अमूर्त चित्रण की ओर ले जाती है। गोवा, मुम्बई, दिल्ली, कैलीफोर्निया आदि अनेक देशों में इनके चित्र प्रदर्शित होते रहे हैं। 1995 में गंगावतरण चित्र पर इन्हें ‘नेशनल प्रेसीडेन्टल अवार्ड’ के साथ इन्हें अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। मण्डी धनौरा के स्वामी हीरानन्द जीे आश्रम में 26 जुलाई 2023 को उनका र्स्वगवास हो गया।
श्री हरिपाल त्यागी- 20 अप्रैल 1934 को बिजनौर के महुआ गाँव में जन्मे हरिपाल पत्रकार, उपन्यासकार, सम्पादक व चित्रकार कला में निपुण थे। 1955 में इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् ये कला साधना के लिए दिल्ली चले गये, फिर इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1969 में महानगर 1970 में न्यू स्टडीज़ इन ऑयल, 1971 में ऑयल इन कोलाज़, 1985 में साम्प्रदायिकता के विरुद्ध घुमन्तु रचनात्मक पोस्टर प्रदर्शनी, राष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी दिल्ली प्थ्।ैम्ए ललित कला अकादमी उ0प्र0 में इनके चित्र अनेकों बार प्रदर्शित हुए। इनके रेखाचित्र देश विदेश के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। 2003 में प्थ्।ैम् दिल्ली द्वारा वरिष्ठ कलाकार, 2004 में इन्हें पुनः प्थ्।ैम् द्वारा आदि अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
श्री योगेन्द्र कुमार सिंह- 25 जुलाई 1942 को जन्मे योगेन्द्र अद्भुत प्रतिभा के धनी रहे। इन्होंने विश्व भारती विश्वविद्यालय शान्ति निकेतन से फाईन आर्ट की उच्च शिक्षा प्राप्त की। ये चित्रकार के साथ-साथ उच्च कोटि के डिजाईनर भी थे। रैपिड स्कैचिंग में सिद्धस्थ इनके चित्र उच्च कोटि के रहे। बंगाल स्कूल से टैम्प्रा पद्धति सीख इन्होंने उसे अपने चित्रों का माध्यम चुना। लघु चित्र, लैण्डस्केप, रेखांकन जैसे गूढ़ विषयों पर इन्होंने अपनी तुलिका चलाई। लैदर पर बाटिक प्रिन्टिंग का इन्हें विशेष अनुभव भारतीय चित्रकारों में अलग पहचान दिलाता हैं इनके चित्र समय-समय पर राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित होते रहे हैं।
श्री कैलाश चन्द्र राघव- बिजनौर के चित्रकारों की बात होती है तो 15 नवम्बर 1947 को जन्मे कैलाश चन्द्र जी पर स्वतः ही चला जाता है। भित्ति चित्र के धनी राघव जी बिजनौर चित्रकारी में अपना विशेष स्थान रखते हैं। इनके द्वारा बनाये गये दो विशाल भित्ति चित्र आर.जे.पी. इण्टर कॉलेज, बिजनौर की भित्ति पर आज भी शोभायमान हैं। मथुरा, गांधार शैली की विशेषता लिए हुए ये चित्र प्रेमियों को आश्चर्य चकित करते हैं। इन चित्रों का लोकार्पण 1981-82 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्री स्वरूप रानी बख्शी ने किया। साथ ही पूर्व राज्यपाल कुँवर धर्मवीरा जी द्वारा सराहा गया। आर.जे.पी. इण्टर कॉलेज बिजनौर में कार्यरत उदयमान चित्रकारों का मार्गदर्शन करने में अग्रणीय है। इनके चित्रों के विषय रामायण, महाभारत, पशु-पक्षी आदि रहे हैं।
श्रीमती भारती सिंह- राज परिवार से जुड़ी भारती जी की कला यात्रा साहनपुर (बिजनौर) से शुरु होती है। चित्रकला से इनका जुड़ाव 40 वर्षों से अधिक समय से है। अब तक ये 50 एकल व सामूहिक प्रदर्शनी में अपने चित्र प्रदर्शित कर चित्रकला के नये आयाम प्रस्तुत कर रही हैं। इनके चित्रों के चटक रंग उनकी रेखायें भारतीय कला की विशेषताओं को समहित करती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, सिंगापुर, यू.के. आदि देशों में इनके चित्र प्रदर्शित हो चुके हैं। चित्रकारिता के साथ-साथ वन्य जीवन संरक्षण में अपना बहुमूल्य योगदान दे रही हैं। ॅॅथ् भारत में प्रायः लुप्त पक्षियों पर एक चित्र श्रृंखला भी चित्रित की। थ्व्ब्चर्् वाइल्ड लाईफज्यूरिड आर्ट प्रदर्शनी, लाफायेट, यूएसए में इनकी प्रन्टिंग को बेस्ट ऑफ द शो का पुरस्कार दिया गया। जीवन्त, प्रसन्न रंग इनके चित्रों का मुख्य आकर्षण है।
श्री रामलाल अवस्थी- श्री अवस्थी वर्धमान कॉलेज बिजनौर में 1960 से 1978 तक अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे। उन्हें चित्रकारी में अधिक रूचि थी। 5 अगस्त 1988 को इन्होंने बिजनौर में प्रथम एकल चित्रकला प्रदर्शनी ‘जैन धर्मशाला बिजनौर’ में लगायी। इन्होंने अंग्रेजी नाटक ‘इडिपस’ के लिए भी चित्र बनाये थे। इन्होंने अपने शिक्षण काल में सन्त परम्परा का निर्वाह किया।
श्री श्वेत गोयल- 29 अक्टूबर 1975 को नजीबाबाद में जन्मे श्वेत गोयल राजस्थानी, पहाड़ी शैली के चित्रों को मूलाधार ले चित्रकारी में नये-नये प्रयोग कर रहे हैं। इनके चित्रों की पृष्ठभूमि अद्भुत इन्द्रधनुषीय रंगों से सजी हुई दर्शकों को भाव विभार कर देती है। राधा-कृष्ण इनके चित्रों के मुख्य विषय हैं। लघु चित्रों के साथ-साथ प्राकृतिक दृश्य, पेड़-पौधे, फूल, पशु-पक्षी, लैण्डस्केप के साथ ग्रामीण दृश्य, भीडभाड़ से भरे शहर इनके चित्रों में नजर आते हैं। इनका झुकाव अमूर्तता की ओर भी बढ़ता नजर आता है। इनके चित्रों में आकृतियाँ, राजस्थानी वेशभूषा पहने हुए, महात्मा गाँधी आदि जैसे विषयों को चित्रण का आधार बनाया।
श्री केशव हेगड़े- बिजनौर के विलक्षण चित्रकार हेगड़े की कला यात्रा बहुत छोटी है। व्यक्ति चित्रों के सम्राट हेगड़े जी ने अपनी तुलिका से बिजनौर की महान विभूतियों को अपने कैनवास पर उतारा। अनेकों पुस्तकों के कवर पेज पर इनके चित्रों को स्थान मिला। कनार्टक के निवासी हेगड़े दिल्ली में फिल्मों के पोस्टर व होर्डिंग्स बनाते थे, जहाँ से इन्हें बिजनौर के विजय चौधरी फोटोग्राफर यह कहकर ले आये कि यह कार्य (चित्रकारी) बिजनौर में भी सम्भव है। बिजनौर आकर इन्होंने सिनेमा पोस्टर व डॉ0 गिरिराज शरण अग्रवाल जी के यहाँ बुक कवर डिजाइन का कार्य भी किया।
श्रीमती इन्दिरा शर्मा जी- 24 मार्च 1944 बिजनौर में जन्मे इन्दिरा शर्मा साहित्य व चित्रकारी में समानान्तर कार्य कर रही हैं। इनके चित्रों के विषय स्टिल लाईफ, लैण्डस्केप, बादलों के पीछे छिपा अठखेलिया करता चाँद, पानी में तैरती मछलियाँ, बुद्ध की गम्भीर मुद्राएँ, सूर्य की रोशन में नहाती पर्वत शृंखलाएँ दर्शकों का ध्यान सहज ही आकर्षित कर लेती हैं।
नाथूराम शर्मा- हल्दौर के पास महमदाबाद में रहने वाले बेसिक शिक्षा के अध्यापक रहे। इन्हें यह कहकर नियुक्ति दी गयी थी कि आप जनपद के प्रत्येक स्कूल में एक-एक सप्ताह रहकर भित्ति चित्रकारी करेंगे, जो इनके चित्रकला की महत्ता को दर्शाता है।
डॉ. पारुल तोमर- 12 जनवरी 1973 को जन्मी पारुल स्वशिक्षित चित्रकार हैं। अपनी दादी को त्योहारों पर देवी-देवताओं के चित्र बनाता देख इनकी रूचि चित्रकारी में बढ़ती गयी। इनके चित्र, रेखाचित्र देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।
श्रीमती शिवाली ढाका- बिजनौर के गुरदासपुर में जन्मे ढाका कहती हैं- अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का चित्र एक विशेष माध्यम है। स्वप्रशिक्षित चित्रकार श्रीमती ढाका ने निरन्तर अभ्यास तैलीय चित्रण में निपुणता की ओर ले जाता है। इनके आरम्भिक चित्र राजस्थानी जन-जीवन से प्रभावित नजर आते हैं, जो धीरे-धीरे काल्पनिकता में परिवर्तित हो जाते हैं। इन्होंने पेन्सिल अक्रैलिक, तैल रंग, जल रंग अनेकों माध्यमों में कार्य किया। दिल्ली, गोआ, चण्डीगढ़, रूस फैस्टीवल आदि स्थानों पर इनके चित्र प्रदर्शित होते रहे हैं।
15 अगस्त 2016 का दिन बिजनौर के चित्रकला क्षेत्र में परिवर्तन का दिन है। भारत सरकार द्वारा संचालित ओडीएफ के अन्तर्गत तत्कालीन जिलाधिकारी बी0चन्द्रकला जी, सीडीओ श्री इन्द्रमणी त्रिपाठी जी के निर्देशन में स्वच्छता पथ का कार्य आरम्भ हुआ, जिसके लिए श्री मनोज सिंह अध्यक्ष-मेरठ प्रान्त प्रमुख राष्ट्रीय कला मंच, मुजफ्फरनगर में कार्यरत रहे, जो देश-विदेश में अनेकों चित्र प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं में अपने चित्र प्रदर्शित कर चुके थे। साथ ही भित्ति चित्रण का विशेष अनुभव रखते थे, को आमन्त्रित किया गया। मनोज जी ने डॉ. संजय साहनी- सार्वजनिक आर्य कन्या इण्टर कॉलेज, फीना (बिजनौर) को इस अभियान से जोड़ा, जिन्होंने बिजनौर क्षेत्र के कलाकारों को एकत्रित कर कार्य आरम्भ किया।
अब तक बिजनौर में डॉ. रामलाल अवस्थी, विभागाध्यक्ष-अंग्रेजी विभाग, वर्धमान कालेज बिजनौर में 05-07 अगस्त 1988, श्री योगेन्द्र सिंह सिन्हा ने 27-28 अक्टूबर 2007 व डॉ. ऋचा शर्मा, प्रवक्ता-आर.बी.डी. कॉलेज बिजनौर 13-14 दिसम्बर 2004 तक तीन एकल प्रदर्शिनियाँ ही लगी थी। डॉ. मृदुला त्यागी (संयोजक) व डॉ. पवन सागर (सह संयोजक) ने सामूहिक चित्रकला प्रदर्शनी नजीबाबाद में 2009 व 2015 में आयोजित की थी। डॉ. साहनी व मनोज कुमार के अथक प्रयास से इस कार्यक्रम को गति मिली, जिससे आज बिजनौर जिले के चित्रकार किसी परिचय से वंचित नहीं हैं। जिसमें कुछ चित्रकार निम्नवत हैं-
डॉ. संजय साहनी- 01 जनवरी 1978 को गोरखपुर में जन्मे डॉ. संजय साहनी ने सार्वजनिक आर्य इण्टर कॉलेज, फीना (बिजनौर) में 19 वर्ष तक अपनी सेवायें देकर देश-विदशों में अपनी पहचान बनायी है। ओ.डी.एफ. अभियान, स्वच्छ भारत मिशन, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर आदि अनेक योजनाओं में अपनी कला का अद्भुत जादू बिखेरते रहे हैं। अब तक ये 350 से अधिक एकल व सामुहिक चित्र प्रदर्शनियाँ, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला में अपनी चित्रकारी का परचम फहरा चुुके हैं। श्री साहनी की दोनों हाथों से निर्मित भित्ति चित्रण उनकी निपुणता को अलग पहचान देती है। राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित श्री साहनी कलाकारों के मार्गदर्शन हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। बिजनौर जिला प्रशासन द्वारा इन्हें मुसाव्विर-ए-नूर की उपाधि से सुशोभित किया गया।
जनाब नौशाद अख़तर- बिजनौर जिले के नगीना तहसील में 1966 में जन्मे श्री नौशाद रेखाओं के जादूगर कहलाते हैं। कला के प्रति आकर्षण इन्हें कक्षा-3 की स्मृतियों में ले जाता है। रेखांकन में सिद्धस्थ नौशाद जी की रेखायें चित्रकारी के साथ-साथ कैलीग्राफी की ओर मुड़ती हुई दृष्टिगोचर होती है। बिजनौर में भारत सरकार द्वारा संचालित ओडीएफ कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वृक्षारोपण, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर आदि अनेक कार्यक्रमों में अपनी चित्रकारी का प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, मेरठ आदि महानगरों में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित बिजनौर प्रशासन द्वारा ‘मुसब्बिर-ए-बाकमाल’ उपाधि से सुशोभित किया गया।
श्री पवन सागर- 25 मार्च 1974 को बिजनौर जिले की नजीबाबाद तहसील में जन्मे पवन सागर कहते हैं- ‘‘एक कलाकार तभी काम कर सकता है, जब वह बच्चे की तरह कार्य करे।’’ उक्ति इन पर चरितार्थ होती है। स्वभाव से अन्तःमुखी, शान्त पवन जी के चित्र उनके अन्दर चल रहे द्वन्द्व को प्रकट करते हैं। सृजनात्मकता के प्रति उनका सुझाव प्रारम्भ से ही नजर आता है। यूरोपीयन चित्रकारों की कलाकृतियों की अनुकृति करने में निपुण उन्हें संतुष्टि नहीं दे सका। वह उन्हें तभी प्राप्त हुई, जब वे अमूर्त चित्रण की ओर बढ़े। ओडीएस कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वृक्षारोपण, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर कार्यक्रमों में इनका विशेष योगदान रहा। इनके चित्र दिल्ली, हरिद्वार, लखनऊ, अलीगढ़ आदि महानगरों में प्रदर्शित होते रहे हैं। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पवन जी एक अद्भुत योजना पर कार्य कर रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने एक बड़े स्तर की आर्ट गैलरी का निर्माण करने का भी प्रस्ताव बनाया है, जहाँ पर चित्रकार अपने चित्रों का प्रदर्शन कम से कम व्यय पर कर सके। जिला बिजनौर प्रशासन द्वारा मुसव्विर-ए-नूरू की उपाधी से विभूषित किया गया।
डॉ. ऋचा शर्मा- इनका जन्म मेरठ महानगर के श्री निर्मल कुमार शर्मा एवं माता श्रीमती सुधा शर्मा के घर 28 फरवरी 1974 में हुआ। इनकी शिक्षा मेरठ में ही रहकर पूर्ण हुई। श्री अशोक मधुप जी के शब्दों में- ‘‘इस लेख की लेखिका डॉ. ऋचा शर्मा मूल रूप से मेरठ की रहने वाली हैं। वह बिजनौर के रानी भाग्यवती देवी महिला महाविद्यालय में लम्बे समय से चित्रकला के प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं। ऋचा शर्मा एक विख्यात आर्टिस्ट हैं। अपने चित्रों की प्रदर्शनी बिजनौर के अलावा कई शहरों में लगा चुकी हैं। मुसव्विर-ए-सकूत से विभूषित हुई। आपने देश-विदेश की चित्रकला में भाग लेकर बिजनौर का सम्मान बढ़ा रही हैं। ‘अब तक 900 से अधिक चित्र प्रदर्शिनी चित्र कार्यशाला में प्रतिभागिता कर चुकी हैं। मुसव्विर-ए-सकूत’ की उपाधी (जिला प्रशासन बिजनौर) से सुशोभित डॉ॰ ऋचा शर्मा।
अरशद अली- हसनपुर-अमरोहा में 01 जुलाई 1982 को जन्मे ‘मुसब्बिर-ए-बेमिसाल’ उपाधि से शोभायमान श्री अरशद अली बाल्यकाल से ही फिल्मों की होर्डिंग पर बने पोर्टेªस से प्रभावित रहे हैं। देश-विदेश में इनके चित्र समय-समय पर प्रदर्शित होते रहे हैं। रेखांकन में सिद्धस्थ श्री अरशद जी ओडीएफ कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वृक्षारोपण, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर जैसे कार्यक्रमों में इनका महत्वपूर्ण योगदान अतुलनीय है। आदर्श ग्रामीण इण्टर कॉलेज, चन्दक (बिजनौर) में कार्यरत अरशद जी भावी चित्रकारों का मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
श्री जितेन्द्र कुमार मारवाड़ी- 15 जून 1964 को हल्दौर में जन्मे मारवाड़ी एक श्रेष्ठ चित्रकार भी हैं। ये 19990 से सी.डी.ए. इण्टर कॉलेज, हल्दौर में चित्रकला के अनुदेशक के रूप में कार्यरत रहे, जहाँ पर चित्रकारों को चित्रण की शिक्षा देते हैं। जल रंग, तैल रंग, चारकोल इनके चित्रों के प्रिय माध्यम है। बिजनौर में ओडीएफ कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वृक्षारोपण, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर कार्यक्रमों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
श्री सुधीर कुमार- 10 अप्रैल 1965 को देवीदासवाला, मण्डावर (बिजनौर) में जन्मे सुधीर ने ओडीएफ कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वृक्षारोपण, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर आदि कार्यक्रमों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। आर.जे.पी. इण्टर कॉलेज में 1990 से कार्यरत रहते हुए जल रंग, तैल रंगों से अपनी चित्रकारी में पहचान बनायी है।
श्रीमती मृदुला- बिजनौर की नारी चित्रकारों में नजीबाबाद की मृदुला विशेष स्थान रखती हैं। चार बहनों में सबसे बड़ी शान्त, निश्चल खड़ी अपनी कला साधना से कला प्रेमियों को स्वतः ही प्रभावित कर लेती हैं। जितनी शान्त वे नजर आती हैं, उनके चित्र उनके अन्तःकरण को भी प्रकट कर देते हैं। वर्तमान में रमा जैन कन्या इण्टर कॉलेज, नजीबाबाद (बिजनौर) में कार्यरत अनेकों राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने चित्र प्रदर्शित कर चुकी हैं। लखनऊ, अमृतसर, हरिद्वार, दिल्ली, देहरादून, बरेली, खजुराहो आदि महानगरों के साथ-साथ इनके चित्र अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुके हैं। भारत सरकार द्वारा संचालित ओडीएफ कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वृक्षारोपण, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर आदि में इन्होंने भित्ति चित्र बनाकर अपनी चित्रकारी को प्रस्तुत किया है। बिजनौर प्रशासन द्वारा इन्हें ‘मुसव्विर-ए-तमाम की उपाधि से सुशोभित किया गया है।
श्रीमती निशा राजपूत- बिजनौर में जन्मी निशा राजपूत एक जुझारू चित्रकार हैं। ओडीएफ कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, वृक्षारोपण, पढ़ेगा बिजनौर बढ़ेगा बिजनौर के अतिरिक्त प्रयागराज, मुजफ्फरनगर, दिल्ली, मेरठ, आगरा आदि महानगरों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी हैं। इनके चित्र राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित हो चुके हैं। बिजनौर के साथ-साथ इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। इन्हें जिला प्रशासन द्वारा मुसव्विर-ए-खास से सुशोभित किया गया है।
श्री अक्षय वर्मा- जिला बिजनौर की तहसील नजीबाबाद में श्री राजकुमार वर्मा माता श्रीमती अंजु वर्मा के घर 13 मई 1995 को जन्में बहुमुखी प्रतिभा के धनी अक्षय तन्त्र जैसे गूढ़ विषय को अपनी भावनाओं के प्रकटीकरण का आधार सहजता से चुनते हैं। भगवान के विभिन्न स्वरूपों के साथ शक्ति के विभिन्न रूप (काली, भैरवी, योगिनी) आदि को चुन अपनी परिपक्वता का परिचय देते हैं।
पंकज कुमार- जिला बिजनौर की तहसील नजीबाबाद में श्री महेन्द्र सिंह एवं माता श्रीमती अनीता देवी के घर 5 अप्रैल 1992 को जन्मे जल रंग में अपनी अद्भुत पकड़ रखते हैं। इनके द्वारा व्यक्ति चित्र इनकी कार्यकुशलता को दर्शाते हैं। व्यक्ति चित्र के अतिरिक्त समकालीन समस्यायें भी इनके चित्रों में दृष्टिगोचर होती है। अनेक सम्भावनायें छिपाये पंकज बिजनौर जनपद का नाम विश्वपटल पर अंकित करना चाहते हैं।
पूजा रानी- बिजनौर जिले के गाँव फजलपुर में श्री सत्यपाल एवं माता श्रीमती अनिता के घर में जन्मी चित्रकार के रूप में पहचानी जाती हैं। सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत लोगो प्रतियोगिता में इन्हें 5000 रुपये का नकद पुरस्कार भी मिला। मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर आदि महानगरों में इनके चित्र प्रदर्शित होते रहे हैं।
चैतन्य गुप्ता- जिला बिजनौर के हल्दौर विकास खण्ड में 16 जुलाई 1998 को जितेन्द्र कुमार मारवाड़ी एवं माता श्रीमती शैली मारवाड़ी के घर जन्म हुआ। बहुतमुखी प्रतिभा के धनी चैतन्य ने बीएफए की शिक्षा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, एम.डीईएस की शिक्षा गुजरात से पूर्ण की। बिजनौर में होने वाले कार्यक्रमों में ये अपनी योग्यता का परिचय देते रहते हैं।
प्रशान्त कुमार शर्मा- जिला बिजनौर की नजीबाबाद तहसील के साहनपुर कस्बे में श्री हृदेश कुमार एवं माता श्रीमती उमा रानी के घर 01 अगस्त 1989 को जन्मे अपनी उच्च शिक्षा उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय में स्वर्णपदक प्राप्त करके उत्तीर्ण की। व्यक्ति चित्र में निपुण प्रशान्त अनेकों राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में अपने चित्र प्रदर्शित कर चुके हैं। अनेकों पुरस्कार से सम्मानित प्रशान्त कुमार लैण्डस्केप, व्यक्ति चित्र को अपना प्रिय विषय मानते हैं।
राजेन्द्र सिंह- जिला बिजनौर की चान्दपुर तहसील के ग्राम-सरकथल में श्री सीताराम सिंह एवं माता श्रीमती परमेश्वरी देवी के घर जन्मे क्रियेटीविटी को अपनी चित्रकाला मुख्य आधार मानते हैं। लखनऊ, मुम्बई, कलकत्ता, पटना, दिल्ली आदि महानगरों में अपने चित्र प्रदर्शित कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते आ रहे हैं। रचनात्मक डिजाइन के क्षेत्र में ये नये आयाम स्थापित करने को तत्पर हैं।
उस्मान अंसारी- बिजनौर जिले के नगर स्योहारा में 20 अगस्त 1962 को इनका जन्म हुआ। पैन और इंक से व्यक्ति चित्र बनाने में सिद्धस्थ जनाब उस्मान को 1996 में एम.एफ. हुसैन से सम्मानित किया गया। देश प्रेम से सम्बन्धित चित्र पर इन्हें जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
बिजनौर के चित्रकारों के सन्दर्भ चर्चा करना अधुरा ही रहेगा यदि हम कला गुरुओं का उल्लेख ना करें। श्री महेन्द्र कुमार गोयल ने कला शिक्षक के यप में एम.डी. इण्टर कॉलेज, नजीबाबाद में लगभग 40 वर्षों तक अपनी सेवायें दीं। इसके साथ-साथ नजीबाबाद के तमाम ऐसे लोगों से मित्रता हुई जिनका हस्तक्षेप कला साहित्य और रंगमंच से था। मित्रों के सुझाव पर गोयल जी ने घर पर ही एक चित्रकूट कला निकेतन नाम से तमाम छात्र-छात्राओं को पेन्टिंग सिखाना शुरु किया। ये चित्रकूट कला निकेतन लगभग 60 वर्षों तक चलता रहा। इसमें शहर के हजारों चित्रकला छात्रों ने लगभग तीन पीढ़ियों ने चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की। आज गोयल साहब के प्रशिक्षित किये गये ऐसे कलाकार हैं जो चित्रकला के क्षेत्र नये आयाम प्रस्तुत कर रहे हैं।
गाँव लालपुर-नजीबाबाद में 4 नवम्बर 1945 को जन्मे श्री इन्द्रदेव भारती 45 वर्षों से निरन्तर भावी चित्रकारों का मार्गदर्शन कर अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं। प्रत्येक इनकी दृष्टि अपने घर के प्रवेश द्वार पर लगी रहती है, कि कब काई विद्यार्थी अपनी चित्रकला सम्बन्धी जिज्ञासा शान्त करने आ जाये। यहाँ पर यह भी उल्लेख करना अनिवार्य है कि इस लेख से सम्बन्धित जब भी जानकारी हासिल करना चाहती थी, अपने घुटनों की पीड़ा को भूलकर बड़ी ही विनम्रता से अपने गुरु दायित्व का निर्वाह करते हुए चित्रकारी से सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध करायी।
05 सितम्बर 1947 को जन्मी सुश्री विजयारानी भारद्वाज जुझारू, कर्मठ, अनुशासित, प्रेममयी विद्यार्थियों को निरन्तर अभ्यास की ओर प्रेरित करती हैं। 1971 से 2015 तक रानी भाग्यवती देवी महिमा महाविद्यालय बिजनौर में चित्रकारों को तैयार कर अपने गुरु दायित्व का पालन किया। जय नारायण अरुण जी ने फीना कॉलेज से कला प्रवक्ता के रूप में सेवा शुरु की और चित्रकला को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
सैय्यद गौहर अली (1927) राजकीय दीक्षा विद्यालय नगीना में कार्यरत रहते हुए विद्यार्थियों को निःशुल्क कला शिक्षा देने को तत्पर रहते थे। साथ ही नगीना की काष्ठ कला हेतु ये डिजाइन भी तैयार करते थे, जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इकराम मकबूल रंगबाज मौहल्ला मीर की सराय, नहटौर निवासी एक श्रेष्ठ चित्रकार हुए हैं। 24 फरवरी 2022 को इनका हृदयाघात से मुम्बई में निधन हुआ। मास्टर अजीज साहब मौहल्ला महकमा नहटौर निवासी एच.एम.आई. इंटर कॉलेज, नहटौर में कला अध्यापक से निवृत्त हुए हैं। मास्टर अनवर कमाल मौहल्ला हलवायान नहटौर के निवासी हैं। निवासी एच.एम.आई. इंटर कॉलेज, नहटौर से चित्रकला शिक्षक के रूप में कार्य किया।
अन्य गुरु चित्रकारों में मा0 लक्ष्मी नारायण-झालू, प्रीति रानी-कन्या इण्टर कॉलेज, धामपुर, रामकिशन वर्मा-हल्दौर, रूचि सिंह- उच्च प्राथमिक विद्यालय रसूलपुर जंगला, एकता विश्नोई-आर.एस.एम. इण्टर कॉलेज, धामपुर, विजय रानी विश्नोई-राजकीय कन्या इण्टर कॉलेज, धामपुर, कु0 मनीषा गुप्ता-हल्दौर और औरंगजेब-नहटौर आदि अनेक प्रमुख हैं।
प्रस्तुतकर्ता
डॉ. ऋचा शर्मा
मो. 9897917603
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